हाल ही में सिख पंथ के सर्वोच्च सिंहासन श्री अकाल तख्त साहेब से पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल सहित अकाली दल के कई नेताओं को अकाली दल की सरकार के कार्यकाल में कुछ घटनाओं में पंथ की मर्यादयों और परम्पराओं का निर्वहन न करने का दोषी करार दिया गया और इसके लिए पंथ के असूलों अनुसार धार्मिक सजा दी गई थी। सिख पंथ के पांचों पवित्र तख़्त साहेब के सभी जत्थेदार साहेबान ने आपसी विमर्श के बाद श्री अकाल तख्त साहिब के ऐतिहासिक फ़सील से इस सजा का ऐलान किया था।
इसी सजा का निर्वहन करते हुए सुखबीर सिंह बादल पर दरबार साहिब अमृतसर में एक जानलेवा हमले की कोशिश भी हुई थी। अब एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसके कुछ अंश में श्री अकाल तख्त के पूर्व कार्यकारी ज्ञानी जत्थेदार हरप्रीत सिंह के तल्खी भरे संवाद हैं। विवाद तब और बढ़ गया जब पूर्व अकाली दल के नेता विरसा सिंह वल्टोहा ने सर्वजनिक तौर पर सवाल उठा दिए कि जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह द्वारा एक बैठक के दौरान अपशब्दों का प्रयोग किया गया है। यह सारा मामला उस समय का बताया जा रहा है जब अकाली दल के नेताओं को अपना पक्ष रखने के लिए अकाल तख़्त साहेब पर तलब किया गया था।
वल्टोहा ने पहले भी ज्ञानी हरप्रीत पर आरोप लगाए थे। जब सिंह साहिबान ने अकाली दल को विरसा सिंह वल्टोहा को 10 साल के लिए अकाली दल से निष्कासित करने के आदेश जारी किया गया तो उसके बाद वल्टोहा के द्वारा ज्ञानी हरप्रीत के चरित्र हनन करने प्रयासों से क्षुब्ध होकर ज्ञानी हरप्रीत ने तख्त जत्थेदार दमदमा साहिब के दायित्व से अपना त्यागपत्र शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को सौंप दिया।
पंथक हलकों में इसे पंजाब की सियासत से जोड़ कर भी देखा जाने लगा है। ज्ञानी हरप्रीत पर भाजपा और संघ के प्रति झुकाव रखने के आरोप भी लगाए गए हैं। माना जाता है कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी में बादल गुट का बाहुल्य है। सितंबर 2024 में अकाल तख़्त के पांच सिंह साहेबान ने सुखबीर सिंह बादल को 2007 से 2017 के बीच अकाली दल अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री रहते हुए कार्यकाल में की गई गलितयों के कारण एक सर्वसम्मत फैसले के बाद तनखईया करार दे दिया था। सिख धर्म में धार्मिक नियमों और मर्यादाओं का पालन न करने की गलती के दोषी को तनखईया घोषित किया जाता है। पंजाब में हुए चार उपचुनावों में अकाली दल ने अपने अध्यक्ष के तनखईया होने के चलते कोई हिस्सा नहीं लिया था।
चुनावी हार पर हार
सिख पंथ को मानने वाले बड़े समुदाय का वोट बैंक अकाली दल का परंपरागत समर्थक रहा है। 2024 के लोक सभा चुनाव में दो सांसद अमृतपाल सिंह खडूर साहिब लोकसभा क्षेत्र से और फरीदकोट सीट से सर्वजीत सिंह खालसा ने जीत प्राप्त की जो माना जाता है कि बेअदबी मामले में इंसाफ न किया जाने के चलते नाराज पंथक भावना के कारण मिली है।
अब पंजाब के स्थानीय निकाय नगर निगम नगर पंचायत के हुए चुनाव में राज्य की राजनीतिक तस्वीर स्पष्ट उभर आई है। पंजाब में लगभग तीन साल के आम आदमी पार्टी के शासन का प्रभाव किस किस क्षेत्र में किस प्रकार का है इन चुनावों के परिणामों से यह स्पष्ट हो गया है। साथ ही अकाली दल की एक और बड़ी हार ने पंथक राजनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
सुखबीर सिंह बादल पार्टी और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में वर्चस्व बनाए रखने की जद्दोजहद में लगे हैं। पंजाब प्रदेश में आम आदमी पार्टी की राजनीति के मध्य पंथक राजनीतिक ताकत और अकाली दल अपने राजनीतिक भविष्य को तलाशने में लगी हैं।
पंजाब में कुल 167 स्थानीय निकाय हैं। पंजाब में नगर निकाय के चुनाव लगभग पिछले दो साल से लंबित पड़े थे। न्यायालय के आदेश के अनुसार पांच नगर निगम अमृतसर, जालंधर, फगवाड़ा, लुधियाना, पटियाला और 42 नगर परिषद/नगर पंचायतों के चुनाव 19 दिसंबर को संपन्न हुए।
कुल 977 वार्ड में चुनाव हुए जिनमें से 961 वार्ड के परिणाम घोषित हो चुके हैं। आम आदमी पार्टी ने 522 (55%) वार्ड में जबकि कांग्रेस ने 191 वार्ड में (20%) जीत हासिल की। भाजपा और अकाली दल को जनता ने बुरी तरह नकार दिया है। भाजपा केवल 69 (7%) वार्ड ही जीत पाई और अकाली दल 31 (3%)। बहुजन समाज पार्टी को मात्र पांच वार्ड में जीत मिली। निर्दलीय उम्मीदवारों ने 143 (15%) वार्ड में जीत हासिल की। आम आदमी पार्टी ने इस बार 44 नगर परिषद में से 26 में जीत प्राप्त की है, लेकिन पांच बड़े नगर निगम में से केवल एक में ही पूर्ण बहुमत हासिल कर सकी है। मतदाताओं ने चार नगर निगमों में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं दिया।
आम आदमी पार्टी ने पटियाला में पूर्ण बहुमत हासिल किया लेकिन लुधियाना और जालंधर में पूर्ण बहुमत से कुछ सीटों के अंतर से कम रह गयी हालांकि यहां सिंगल लार्जेस्ट पार्टी बनकर उभरी है । कांग्रेस ने अमृतसर में जीत हासिल की और फगवाड़ा में सिंगल लार्जेस्ट पार्टी बनी है।
पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के नेता कै. अमरिंदर सिंह के गढ़ पटियाला की 60 सदस्य नगर निगम में आम आदमी पार्टी ने पूर्ण बहुमत 31 के आंकड़े से अधिक 43 वार्ड में जीत हासिल की। कांग्रेस और भाजपा को केवल चार चार सीट ही मिल पाई। शिरोमणि अकाली दल को दो सीट पर ही जीत मिल सकी। यहां सात अन्य वार्ड में चुनाव स्थगित किये गए हैं।
लुधियाना में 95 वार्ड में से आम आदमी पार्टी को 41 में ही जीत मिली जो पूर्ण बहुमत से सात सीट कम है। कांग्रेस ने 30 सीट पर जीत हासिल की और भाजपा को 19 वार्ड में जीत मिली। शिरोमणि अकाली दल को केवल दो वार्ड और निर्दलीय को तीन वार्ड में जीत मिली। भाजपा द्वारा जिस प्रकार रवनीत सिंह बिट्टू को लुधियाना में एक खास पहचान दी गई उसका कोई बड़ा लाभ पार्टी को यहां नहीं मिला।
फगवाड़ा में 50 सदस्यीय निगम में कांग्रेस ने 22 वार्ड में जीत हासिल कर के आम आदमी पार्टी को 12 वार्ड की जीत तक ही रोक दिया। यहां भाजपा को चार, शिरोमणि अकाली दल को तीन और बहुजन समाज पार्टी को तीन वार्ड में ही जीत मिल सकी। कांग्रेस यहां सिंगल लार्जेस्ट पार्टी बन कर उभरी है। अन्य पार्टी के समर्थन से कांग्रेस निगम में अपना बहुमत हासिल करने में कामयाब हो सकती है।
अमृतसर में अपेक्षाकृत कम मतदान हुआ । कांग्रेस ने 85 वार्ड में से 43 पर जीत दर्ज की। आम आदमी पार्टी 24 वार्ड पर ही अपनी जीत दर्ज कर सकी। भाजपा को नौ और शिरोमणि अकाली दल ने चार जबकि निर्दलीय ने पांच वार्ड में जीत दर्ज की है।
जालंधर में हाल के विधानसभा उपचुनावों में बड़ी जीत हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी निगम चुनाव में पूर्ण बहुत हासिल करने से पांच सीट चूक गई। 85 सदस्यीय निगम में आम आदमी पार्टी 38 सीटें ही जीत पाई। कांग्रेस ने यहां काफी अच्छा प्रदर्शन करते हुए 25 वार्ड में जीत दर्ज की। भाजपा ने 19 वार्ड में, बहुजन समाज पार्टी ने एक और निर्दलीय ने दो वार्ड में जीत हासिल की।
खनौरी की नगर पंचायत में भी आम आदमी पार्टी को बड़ा सेट बैक लगा है जहां 13 सीट में से केवल तीन सीट ही उसे मिली है। अन्य दस सीट निर्दलीय ने जीती है। किसान आंदोलन का सीधा प्रभाव यहां आम आदमी पार्टी की सरकार के कामकाज की वजह से दिखाई दिया है।
इसी तरह आम आदमी को पार्टी को बड़ा झटका संगरूर में लगा जहां 29 वार्ड में से केवल सात वार्ड पर ही वह जीत हासिल कर सकी। बरनाला विधानसभा उपचुनाव के बाद ये दूसरा बड़ा झटका आम आदमी पार्टी के लिए अपने ही गढ़ में है।
लोकसभा चुनावों में पंजाब में अकाली दल को मिली बड़ी हार पर पंथक राजनीति में सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व पर पहले ही सवाल उठे थे। इसके बाद पार्टी के भीतर ही सुधार की लहर ने जोर पकड़ा और नेतृत्व परिवर्तन की मांग उठा कर कई बड़े अकाली नेता एक जुट हो गए थे। सुधार लहर के नेताओं का कहना है कि अकाली दल की राजनितिक ताकत सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व में कमजोर हुई है। ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने भी अकाली दल की राजनीति को फिर से मजबूत करने के लिए आवश्यक सुधार करने के अपने विचार को सार्वजनिक तौर पर प्रकट किया था।
सुधार की मंशा के बावजूद नगर निकाय के चुनावों में भी हुई लगातार हार ने अकाली दल के भविष्य पर सवाल खड़ा कर दिया है।