गाँधी की हत्या का सिलसिला जारी है…


महात्‍मा गांधी की पुण्‍यतिथि से ठीक तीन दिन पहले इससे ज्‍यादा शर्मनाक खबर और कुछ नहीं हो सकती कि उन्‍हें अपशब्‍द कहने वाले कथित संत कालीचरण को पुणे की एक अदालत से बाकायदा ज़मानत मिल गयी। राष्‍ट्रपिता को गाली देने पर रिहाई की कीमत लगायी गयी महज 15000 रुपये!     

बीते 26 दिसंबर की शाम को रायपुर में हुई धर्म संसद में महात्मा गांधी के अपमान के आरोप में कालीचरण को छत्तीसगढ़ पुलिस ने मध्यप्रदेश के खजुराहो से चार दिन बाद 30 दिसम्बर को गिरफ्तार कर लिया था। इस गिरफ़्तारी से मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्र आहत हो गये थे। राज्य के डीजीपी को उन्‍होंने आदेश दे दिया कि वे छत्तीसगढ़ के डीजीपी से इस मामले में शिकायत दर्ज करें! होना तो यह चाहिए था कि मध्यप्रदेश पुलिस ही कालीचरण को गिरफ्तार करती, लेकिन यह संभव नहीं था।

इस बीच महाराष्ट्र में पुणे की एक अदालत से जमानत मिलने के बाद कालीचरण को एक और मामले में पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर 23 जनवरी को हिंदू महासभा ने ग्वालियर में एक आयोजन किया। ग्वालियर में युवक हिंदू महासभा द्वारा हिंदू युवा संसद और महिला हिंदू महासभा का सम्मेलन आयोजित किया जा गया जिसमें संत कालीचरण को बतौर चीफ गेस्ट बुलाने की तैयारी थी।

हिंदू महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयवीर भारद्वाज का कहना था कि महाराष्ट्र सरकार से संत कालीचरण को जमानत मिल गयी है, अब छत्तीसगढ़ में उसकी ज़मानत को लेकर उनका प्रयास जारी है। अगर कार्यक्रम से पहले कालीचरण को जमानत मिलती है तो ग्वालियर में आकर इस सम्मेलन में मुख्य अतिथि के तौर पर वह सभी युवाओं को संबोधित करेंगे।

प्रोग्राम के पहले तो नहीं लेकिन 27 जनवरी को कालीचरण की बेल हो सकी। बहरहाल, गिरफ़्तारी और जमानत का खेल तो यूँ ही चलता रहेगा। इसके लिए देश में काबिल जज-वकील और अदालतें हैं ही, लेकिन मूल बात है कि गांधी, कांग्रेस, मुसलमानों से नफ़रत आरएसएस और बीजेपी और अन्य हिंदूवादी संगठनों की मुख्य पहचान है। यही कारण है कि 1948 में नाथूराम गोडसे ने गांधीजी की हत्या कर दी और आज गोडसे भक्त न सिर्फ संसद में पहुंच गये हैं बल्कि संसद में खड़े होकर वे सीना ठोंककर कहते हैं- हाँ, हम गोडसे को नमन करते हैं! 

आज से ढाई साल पहले 9 अगस्त 2019 को लोकसभा में महात्‍मा गांधी की 150वीं जयंती पर तत्कालीन संस्‍कृति मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल भाषण दे रहे थे, तभी पीछे से कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि आप लोग तो गोडसे को नमन करते हैं। इसी के जवाब में पटेल ने छाती पर हाथ रख कर कहा, ”हां हां, करते हैं. इसमें कोई आपत्ति वाली बात नहीं है.”

यह सब कुछ उसी संसद भवन में हुआ जिसके बाहर गांधीजी प्रतिमा रूप में दशकों से मौन ध्यानमग्न बैठे हुए हैं और अब उनके ऐनक के दोनों कांचों पर ‘स्वच्छ-भारत’ लिख दिया गया है।

उससे पहले मालेगांव ब्लास्ट में मुख्य आरोपी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को बीजेपी ने 2019 के ही लोकसभा चुनाव में भोपाल से टिकट दिया था, जहां से जीत कर वो संसद पहुंची और गांधीजी के हत्यारे गोडसे की जमकर तारीफ की और उसे सच्चा देशभक्त बताया था। तब बीजेपी ने खुद को इसे उनकी निजी भावना कहते हुए प्रज्ञा ठाकुर को माफ़ी मांगने के लिए कहा था। प्रज्ञा सिंह ने पहले तो इंकार किया, फिर माफ़ी मांग ली थी. इस पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि वे आहत हैं और इसके लिए वे प्रज्ञा सिंह को ‘दिल से माफ़ नहीं करेंगे’।

अब दो साल बाद प्रधानजी से यह कौन पूछने जाय कि उन्होंने प्रज्ञा ठाकुर को ‘दिल से माफ़’ किया या नहीं! चूंकि खुद देश के गृहमंत्री अमित शाह ने गांधीजी के ‘सम्मान’ में उनको ‘चतुर बनिया’ कह दिया था।

याद रहे कि साल 2019 में अलीगढ़ में हिन्दू महासभा की पूजा पांडे ने नाथूराम की याद में इस दिन शौर्य दिवस मनाया था। पूजा पांडे ने गांधी जी के पुतले को तीन गोली मारी थी और बाद में दहन किया था। ये वही पूजा पाण्डेय हैं जो साध्‍वी अन्‍नपूर्णा के नाम से अचानक हरिद्वार धर्म संसद में पिछले दिनों उभर कर सामने आयी हैं और यति नरसिंहानंद के साथ इनके खिलाफ भी एफआइआर हुई है।  

दिलचस्‍प यह है कि कालीचरण प्रकरण में आजतक चैनल ने बहस के लिए जो पैनल बैठाया उसमें साध्‍वी अन्‍नपूर्णा भी उपस्थित थीं। यह भूलते हुए कि वे खुद दो साल पहले म‍हात्‍मा गांधी के पुतले पर गोली चला चुकी थीं, एंकर चित्रा त्रिपाठी ने कालीचरण के बयान पर पूजा पांडे उर्फ साध्‍वी अन्‍नपूर्णा से उनका मत पूछा। जाहिर है, अन्‍नपूर्णा ने कालीचरण के बयान का समर्थन किया और बोल दिया कि गांधीजी का देश की आज़ादी में कोई योगदान नहीं रहा।

यह वीडियो यहां देखा जा सकता है।

गाँधीजी के प्रति नफ़रत या घृणा कोई नयी परिघटना नहीं है लेकिन जो नफरत पहले कहीं थोड़ी दबी हुई थी अब वो खुलकर बाहर आ रही है क्योंकि इन नफरती ताकतों के लिए मीडिया अनुकूल वातावरण मुहैया करा रहा है। गौरतलब है कि उक्त तमाम घटनाओं के खिलाफ न तो प्रधानमंत्री न ही राष्‍ट्रपति ने कोई प्रतिक्रिया दी है!

दरअसल गाँधी को मानने से पहले गाँधी को जानना जरुरी है, लेकिन आरएसएस और उससे संबंधित संगठन ऐसा नहीं मानते, उनके लिए वही सत्य है जिसे वे खुद सच मानते हैं या मानना चाहते हैं। महात्मा गाँधी अपनी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ के प्रस्तवना में लिखते हैं- “मुझे आत्मकथा कहाँ लिखनी है? मुझे तो आत्मकथा के बहाने सत्य के जो अनेक प्रयोग मैंने किये हैं, उनकी कथा लिखनी है।“ लेकिन अब इस वक्त उनसे यह कहना भी शायद अपराध माना जाये कि वे गांधीजी की जीवनी/आत्मकथा पढ़ें!

बीते कुछ वर्षों में देश में एक समुदाय विशेष के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में रिकॉर्ड तेजी आई है और यह वृद्धि खासकर भाजपा शासित राज्यों में हुई है। लिंचिंग की जो घटनाएं हुई उनमें किसी भी आरोपी को सजा होने के बदले उलटे पीड़ितों पर केस दर्ज हुए और आरोपियों को जमानत मिलने पर केन्द्रीय मंत्री द्वारा माला पहनाकर स्वागत किया गया और मिठाइयाँ बांटी गयीं। कमाल तो यह हुआ कि अख़लाक़ के हत्यारोपी के शव को तिरंगे से ढका गया और बीजेपी सांसद महेश शर्मा ने उस शव को नमन किया और उसके परिवार के सदस्यों को पांच लाख का चेक भी दिया था!

**BEST QUALITY AVAILABLE** Ranchi: Union Minister of State for Civil Aviation Jayant Sinha with the lynching convicts at his residence after they were released on bail in Ramgarh, Jharkhand on Saturday, July 7, 2018. (PTI Photo)(PTI7_7_2018_000204B)

इन घटनाओं का जिक्र यहां इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि यदि आज गांधीजी जीवित होते तो वे शायद बहुत उदास होते या कहीं अँधेरे में छिपकर रो रहे होते।

उक्त घटनाओं का सीधा संबंध नफ़रत की राजनीति से है। यह वही नफरत है जो गोडसे मन में थी। आज एक बड़े और खास वर्ग विशेष में यह नफरत फ़ैल चुकी है और उसका खुलेआम प्रदर्शन भी हो रहा है। गौरी लंकेश की हत्या के बाद सोशल मीडिया में जश्न मनाने वाले दधीचि‍ याद हैं न! याद कीजिये गौरी लंकेश की हत्या के बाद देश के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति ने कोई शोक प्रकट नहीं किया था न ही कोई प्रतिक्रिया आयी थी जबकि उस दधीचि‍ को ट्विटर पर पीएम फॉलो कर रहे थे! गौरी लंकेश एक महिला पत्रकार थीं।

गाँधीजी के प्रति सम्मान जताने के लिए उनकी प्रतिमा बनवा देना और हर वर्ष उनकी जयंती पर उनकी तस्वीर और समाधि पर पुष्पांजलि देने की औपचारिकता से बेहतर है उनके जीवन-दर्शन को समझना और उसका प्रचार-प्रसार करना। उनके आश्रम में विदेशी महमानों के साथ जाकर तस्वीरें लेने या चरखे पर बैठ कर सूत कातने की भंगिमा में मीडिया को पोज देने से उनका सम्मान नहीं होता।  

चश्मे से लेकर चरखा तक सब कुछ ले लिया

वर्ष 2018 के जून में एक अभूतपूर्व घटना घटी! महात्मा गांधी की समाधि राजघाट पर 24 जून को ताला लगा दिया गया जो 25 जून को दिन के ग्यारह बजे खुला! ऐसा पहली बार हुआ कि बगैर किसी औचित्य और समुचित सूचना दिए राजघाट को आम लोगों के लिए इस तरह बंद कर दिया गया।

24-25 जून 2018 को राजघाट के ठीक सामने स्थित गांधी स्मृति व दर्शन समिति के परिसर में विश्व हिंदू परिषद की बैठक चल रही थी जिसकी सुरक्षा के नाम पर राजघाट पर ही ताला जड़ दिया गया! मने एक निजी धार्मिक संगठन की बैठक की सुरक्षा के लिए राष्ट्रपिता को उनके समाधि-स्थल पर कैद कर दिया गया!

यह सब अचानक या अनजाने में नहीं हो रहा है। सब लिखी हुई पटकथा की तरह से घटित हो रहा है या यूँ कह लीजिए कि आज के युग में टेलीप्रॉम्प्टर पर उसे पढ़ा जा रहा है!

कभी गांधीजी का भाषण सुनकर मुंशी प्रेमचंद ने सरकारी नौकरी छोड़ दी थी देश के लिए! वह असहयोग आंदोलन का ज़माना था, प्रेमचंद गंभीर रूप से बीमार थे। बेहद तंगी थी, बावजूद इसके गांधी जी के भाषण के प्रभाव में उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ने का निर्णय लिया था। लेकिन आजाद भारत में उसी गाँधी को आज कुछ लोग अपमानित करने पर तुले हुए हैं!

एक पंथ-निरपेक्ष देश का प्रधानमंत्री जब किसी सभा में यह कहता हो कि दंगाई तो कपड़ों से पहचाने जाते हैं वहां गाँधीजी की अहिंसा और शांति सन्देश का अपमान होने से कब तक बचा रह सकता है! उन्हीं प्रधान सेवक की पार्टी के नेता गांधीजी की स्वतंत्रता संग्राम को नाटक घोषित कर देता है और प्रधानजी चुप्पी साध लेते हैं। ऐसे में हम क्यों न मान लें कि अब सब कुछ पूर्वनियोजित तरीके से किया जा रहा है!

बीते दो-तीन वर्ष से गाँधी जयंती के दिन सोशल मीडिया पर गोडसे जिंदाबाद जैसे नारे सबसे ऊपर ट्रेंड करने लगे हैं! क्या यह सब अचानक से होने लगा है?

गौरतलब है कि जब सत्य को दबाने का सबसे अधिक प्रयास किया जाता है तब वह और गति के साथ प्रकट होने लगता है। गाँधी न केवल भारत में बल्कि अफ्रीका से यूरोप तक समस्त दुनिया में एक विचार के रूप में फैले हुए हैं। जब तक दुनिया है और मनुष्य में करुणा और संवेदनाएं बची रहेंगी गाँधी भी बचे रहेंगे विचार बन कर।



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