आस्था नहीं, अन्वेषण पर आधारित होना चाहिए इतिहास
भारतीय इतिहासलेखन के विकास, असहमति की परंपरा तथा बौद्धिक अभिव्यक्तियों को बाधित करने के मौजूदा प्रयासों पर रोमिला थापर की कुलदीप कुमार से बातचीत (अनुवाद: अभिषेक श्रीवास्तव) आपकी …
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भारतीय इतिहासलेखन के विकास, असहमति की परंपरा तथा बौद्धिक अभिव्यक्तियों को बाधित करने के मौजूदा प्रयासों पर रोमिला थापर की कुलदीप कुमार से बातचीत (अनुवाद: अभिषेक श्रीवास्तव) आपकी …
Read Moreआनंद तेलतुम्बड़े हमारे समय के सबसे महत्वपूर्ण चिंतकों में एक हैं। पिछले दिनों उनके कहे-लिखे पर काफी विवाद खड़ा किया गया है। प्रस्तुत लेख उन्होंने ”समयांतर” के लिए लिखा था …
Read Moreसुरेंद्र प्रताप सिंह यानी एस.पी. पर जितेन्द्र कुमार के लिखे आलेख पर बहस अब तक फेसबुक समेत तमाम मंचों पर जारी है। यह लेख अब भी जितेन्द्र कुमार के ब्लॉग …
Read Moreभारत में टीवी पत्रकारिता के गॉडफादर माने जाने वाले सुरेन्द्र प्रताप सिंह उर्फ़ एसपी की आज पुण्यतिथि है. 1997 में उनकी मौत के बाद बीते दो दशक से ज्यादा वक़्त …
Read Moreजनसत्ता के 12 नवंबर 2012 अंक में छपे खाप का समर्थन करते शंकर शरण के लेख पर पिछले पोस्ट में हमने वरिष्ठ लेखक उदय प्रकाश की प्रतिक्रिया देखी जिसमें उन्होंने …
Read Moreपी. साइनाथ ने यह व्याख्यान दिल्ली के कांस्टिट़यूशन क्लब में पिछले साल दिया था। उसके संपादित अंश प्रस्तुत हैं। A Structural Compulsion To Lie जिस तरह किसी जंग को जनरलों के …
Read More‘भाषाई आत्मसम्मान और एक्टिविज्म’का सवाल जीतेंद्र रामप्रकाश अनुवाद: अभिषेक श्रीवास्तव ‘बोलना का कहिए रे भाई,बोलत बोलत तत्त नासाई’ (मैं वाणी के बारे में क्या कहूं भाई?वाणी की अधिकता से तो …
Read Moreदरअसल, भाषा के प्रति किसी का रवैया जीवन के प्रति उसके रवैये को प्रतिबिंबित करता है। यह कुछ महत्वपूर्ण चीजों के प्रति उसके वास्तविक रवैये का विस्तार है- जैसे संबंध, …
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