मोदी सरकार के तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ जारी किसानों के देशव्यापी आंदोलन को अब एक महीना पूरा होने वाला है. बीते 27 दिनों से हजारों किसान देश की राजधानी दिल्ली को तीनों सीमाओं पर घेरे बैठे हैं और उनके समर्थन में देश के अलग-अलग हिस्सों से रोज किसानों, मजदूर संगठनों के नये-नये जत्थे दिल्ली की सीमाओं पर पहुंच रहे हैं. इस बीच सरकार और किसानों के बीच अब तक तमाम वार्ताएं असफल साबित हुई और सरकार किसी भी हाल में इन नये कानूनों को वापस न लेने की जिद्द पर अड़ी हुई है. किसानों ने भी साफ़ कर दिया कि जब तक तीनों नये कानून सरकार वापस नहीं लेती उनका आंदोलन जारी रहेगा. इस बीच अब तक 40 से ज्यादा किसान इस आंदोलन के दौरान शहीद हो चुके हैं और किसानों का आंदोलन अब और तेज हो गया है. पूर्वांचल के बड़े किसान नेता, किसान मजदूर संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष और किसान आंदोलन समर्थन समिति, लखनऊ के संयोजक शिवाजी राय मंगलवार को टिकरी बॉर्डर पर किसानों के मंच पर थे. जनपथ की ओर से पत्रकार नित्यानंद गायेन ने इस मौके पर उनसे बात की है.
सम्पादक
शिवाजी राय के साक्षात्कार के मुख्य बिन्दु
- साल 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय से ही किसानों का यह आंदोलन शुरू हो चुका था जब 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून के तहत देश भर के किसानों के 10 लाख हैक्टेयर जमीन कार्पोरेट फार्मिंग के लिए जबरन छीन ली गयी. तब पूरे देश में आंदोलन हुए. नंदीग्राम सिंगूर से देवरिया, कुशीनगर से लेकर दादरी तक आंदोलन हुए. किसानों पर भट्टा पारसौल में किसानों पर लाठी गोली चली. कुल मिलाकर उस वक्त किसानों की हालत बहुत ख़राब हो गयी और जिसके चलते परवर्ती यूपीए सरकार को इन कानूनों को बदलना पड़ा.
- किसान आंदोलन के दबाव में 2013 में भूमि अधिग्रहण कानून में जो संशोधन हुआ उसके बाद कॉर्पोरेट को लगने लगा कि यह उनके खिलाफ है तब उन्होंने एक ऐसे आदमी की खोज शुरू कर दी जो उनके इशारों पर चले और उनके लिए काम करे, और इस तरह से 2014 में देश के अरबपति पैसे खर्च कर नरेंद्र मोदी को सत्ता में ले आये. उसके बाद उन्होंने जो किया वो सबके सामने है. नोटबंदी, जीएसटी फिर कोरोना काल में उन्हें और अवसर मिल गया इस दौरान किसका धन बढ़ा और कौन गरीब हुआ यह सबके सामने है.
- सरकार की जमीन हिल चुकी है और अब पीएम मोदी कभी गुरुद्वारा तो कभी मंदिर जा रहे हैं और हाथ जोड़कर कह रहे हैं कि उनकी बात मान लें, किंतु वे भूल चुके हैं कि उन्होंने जनता का भरोसा खो दिया है और अब उनकी नहीं सुनी जाएगी. मोदी ने गरीब किसान और मजदूरों के पेट पर लात मारी है.
- इससे पहले देश के गरीब लोगों ने तमाम कष्ट सह कर भी उनके कहने पर थाली बजाई , मोमबत्ती जलाई. सब कुछ किया किन्तु अब उन लोगों को पता चल गया है कि यह आदमी धोखेबाज है और किसान-मजदूर विरोधी है.
- किसानों का आंदोलन पूरे देश में पूर्व से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर उत्तर पूर्व असम तक हो रहा है जिसे गोदी मीडिया नहीं दिखाती. हां, कोरोना लॉकडाउन के समय जो शहरी मजदूर थे वे सैकड़ों किलोमीटर पैदल चल कर अपने गाँव गये और जो ट्रेन पहले भर-भर कर बड़े शहरों में आती थीं वे सभी ट्रेन अब नहीं चलाई जा रही हैं और गरीब किसान मजदूर के पास इतने पैसे नहीं है कि वे बस से या निजी वाहन से दिल्ली आ सकें. जो जहां है वो वहीं से किसानों के इस आंदोलन में शामिल है. गोदी मीडिया नहीं दिखाती पर आप इसे सोशल मीडिया पर देख सकते हैं. बहुत कठिन है सबके लिए दिल्ली पहुंच पाना. असम से दिल्ली पहुंचना.
किसान आंदोलन में आगे क्या होगा?
अब किसान अपने सांसदों से इस्तीफा करवाएंगे. किसान उनको घेरेंगे और कहेंगे कि हमने आपको वोट दिया था और आपने किसी अडानी या अंबानी से बयाना नहीं लिया है. मोदी ने लिया है और मोदी को आप लोगों ने चुना है. तो मोदी को छोड़िए और हमारे साथ आइए.