समाजवाद को लू लग गई है। बदली-बारिश में भी धूप वाला चश्मा लगाने लगा है।
शहर में एक बार समाजवादी दल ने सरकार के विरोध प्रदर्शन का कार्यक्रम बनाया। तैयारी हुई। पुलिस ने भी तैयारी की। विरोध प्रदर्शन की जिम्मेदारी समाजवादी दल के युवा संगठन को दी गई थी।
विरोध प्रदर्शन वाले दिन कार्यकर्ता तैयार। पुलिस भी तैयार। युवा संगठन के अध्यक्ष गायब। उनको तैयार होने में देर हो गई। देर होने के कई कारण होते हैं। कपड़े इस्तरी होकर न आए हों। मीडिया वाले मौके पर न पहुँचे हों। वैचारिक दरिद्रता को ‘मेकअप’ की मोटी दीवार से ढँकने के लिए राजनीति का सौंदर्यीकरण करने की जिम्मेदारी निभाने में भी देर हो सकती है।
विरोध प्रदर्शन वाले दिन संगठन के अध्यक्ष कार्यक्रम स्थल से नदारद थे। उनका इंतजार शुरू हुआ। थक-हार अध्यक्ष की अनुपस्थिति में विरोध प्रदर्शन का कार्यक्रम सम्पन्न कर दिया गया।
युवा अध्यक्ष की अनुपस्थिति को समाजवादी दल ने अनुशासनहीनता माना। अध्यक्ष को कारण बताओ नोटिस जारी किया। अध्यक्ष ने कारण बताया- ‘विरोध प्रदर्शन में शामिल होने से रोकने के लिए सत्ता के मुखबिरों ने उन्हें नजरबंद कर दिया था।’ सच्चा कारण उन्हें ‘हैंडसम’ बनाने वाले ‘मेंस सलोन’ ने बताया- ‘विरोध प्रदर्शन के निर्धारित समय के बीस मिनट पहले वे सलोन में शेविंग कराने आए। शेविंग के बाद उन्हें बताया कि आँख के नीचे काले धब्बे पता चल रहे हैं। ‘कम्प्लीट फेसपैक’ लगा दूँ ?’ अध्यक्ष जी फेसपैक लगवाने लगे। कम्प्लीट फेसपैक में विरोध प्रदर्शन कम्प्लीट हो गया।
डैमेज कंट्रोल और समाजवाद का दुभाषिया बनने के लिए युवा अध्यक्ष ने हाई कमान से एक और मौका देने का आग्रह किया। युवा अध्यक्ष को मौका दिया गया-इस बार प्रधानमंत्री का पुतला फूँकना है।
पुतला फूँकने के लिए युवा अध्यक्ष मेंस सलोन से तैयार होकर मीडिया वालों के साथ ही पुतला दहन स्थल पर पहुँचे। तय हुआ था कि पुतला दहन के पहले ही मीडिया वाले बाइट कर लेंगे। क्योंकि पुतले में आग लगी तो पुलिस लाठीचार्ज कर सकती है। लाठीचार्ज से भगदड़ होगी। भगदड़ में बाइट नहीं हो पाएगी।
अध्यक्ष ने पुलिस के साथ ‘सेटिंग’ करने की कोशिश की थी। पुलिस वाले नहीं तैयार हुए। अध्यक्ष ने कहा था- पुतले को आग लगाने जाएँ, उसी समय थोड़ी देर की गुत्थमगुत्था के बाद पुलिस पुतला छीन ले। पुलिस ने अनापत्ति प्रमाण पत्र देने से मना कर दिया- ये पुतला अत्यंत ज्वलनशील है। दूर की चिंगारी से भी आग पकड़ सकता है। पुलिस से सेटिंग नहीं हुई, मीडिया वालों से हो गई- पुतला दहन के पहले बाइट कर लेनी है।
पुतले को बचाने के लिए पुलिस के साथ पीएसी भी लगायी गई थी। पुतले की सुरक्षा देख अध्यक्ष समझ गए थे, विरोध करने वालों का क्या हश्र होगा। अध्यक्ष के आगे मीडिया के बूम माइक लग गए। उन्होंने लाउडस्पीकर की तरह बोलना शुरू किया। हाथ में समाजवाद का झंडा लेकर बाइट दे ही रहे थे, तभी पुतला दहन स्थल के पास कूड़े के ढेर से धुआँ उठा। पुलिस को लगा अध्यक्ष के पीछे खड़े कार्यकर्ताओं ने पुतला फूँक दिया। अनापत्ति प्रमाण पत्र के उल्लंघन की आशंका में पुलिस ने लाठियाँ चटकानी शुरू कर दी। बाइट पूरी नहीं हुई थी, भगदड़ मच गई। अध्यक्ष हाथ में झंडा लेकर भागे। पीछे पुलिस। थोड़ी दूर भागने के बाद वे झंडे में फँसकर सड़क पर गिर पड़े। पुलिस उन्हें टाँगकर थाने ले गई।
पुतला दहन की घटना के बाद से अध्यक्ष झंडे से नाराज चल रहे थे- इसी के कारण पुलिस की पकड़ में आना पड़ा था। गनीमत थी पीएसी वालों के हाथ नहीं लगा। नहीं तो लाठी भी पड़ती।
अब झंडे से उनकी नाराजगी खत्म हो गई है। जब प्रधानमंत्री ने कहा- ‘जेल कितनी बार गए, कितनी लाठी खाए, राजनीति में अब ये मायने नहीं रखता।’ ये सुनने के बाद प्रसन्नचित्त रहने लगे हैं- कोई तो है, जिसने मेरे मन की बात की।