जब कोई मुझे कहता है कि तुम पर कोई विश्वास नहीं करता; तो मुझे दुःख नहीं होता। मैं सोचता हूँ कि जो मुझे ‘जज’ करके कह रहा है कि तुम पर कोई विश्वास नहीं करता; ये भी तो मेरे ऊपर उसका विश्वास ही है। कम से कम मैं इस लायक तो हूँ कि मुझे जज करने वाले को मुझ पर इतना विश्वास है कि मैं कभी बदल नहीं सकता। उसके ‘जजमेंट’ को कभी गलत साबित नहीं होने दूँगा। तो मैं ऐसे लोगों की संख्या बढ़ाने के लिए जो मुझ पर विश्वास करते हैं कि ये कभी नहीं बदल सकता, मूर्ख ही रहेगा; उनके विश्वास को अमर बनाये रखने के लिए अविश्वास के नए-नए करतब दिखाता रहता हूँ। एक दिन ऐसा भी आएगा, जब मुझ पर विश्वास करने वालों की संख्या सबसे अधिक होगी। सबको मेरे ऊपर विश्वास होगा- ये कभी नहीं बदल सकता।
ऊपर अपनी मूर्खताओं के बचाव में की गई मेरी जिरह को गंभीरता से न लें। अगर मैंने ‘तुम पर कोई विश्वास नहीं करता’ को गंभीरता से लिया होता, तो अब तक मुझे मर जाना चाहिए था। प्राकृतिक मृत्यु नहीं। मानव निर्मित मृत्यु। आत्महत्या कर लेनी चाहिए थी। लेकिन अब भी मैं पूरे विश्वास के साथ झूठ बोलता जा रहा हूँ। हो सकता है किसी दिन मैं प्रधानमंत्री बन जाऊँ। तब मेरे ऊपर विश्वास करने वालों का बहुमत मेरे साथ होगा। मेरे झूठ को झूठ साबित करने वालों पर मेरा बहुमत विश्वास ही नहीं करेगा- ‘साले गद्दार, झूठ बोल रहे हैं।’ झूठ के साथ बहुमत हो तो अज्ञान की सत्ता सच पर राज करती है। झूठ नंगी तलवार से सच का गला काट रहा है। सच के साथी तलवार म्यान में रखकर झूठ की नंगी तलवार से सच का बचाव कर रहे हैं।
‘तुम पर कोई विश्वास नहीं करता’, ये कहा मैं उन्हीं का गंभीरता से लेता हूँ, जिनके पास विश्वास का कण है। बहुमत की बातों को मैं गंभीरता से नहीं लेता। पूरी दुनिया में ऊपर वाले (धर्म के अनुसार अपने-अपने ऊपरवाले का नाम याद कर लें) में विश्वास रखने वालों का बहुमत है। अपने यहाँ कई ऊपर वाले जमीन के नीचे से भी निकल आते हैं। खोदाई के दौरान जमीन के नीचे से एक एलईडी बल्ब निकला। भक्तों को लगा, ऊपर वाले नीचे से प्रकट हुए हैं। बल्ब को शिवलिंग समझ भक्त चढ़ावा चढ़ाने लगे। लगभग पंद्रह सौ रुपये की कमाई करने के बाद किसी ने बता दिया कि शिवलिंग नहीं एलईडी बल्ब है। भक्तों के विश्वास का बल्ब फ्यूज हो गया। मैं उसके बारे में सोचता हूँ, जिसने बता दिया कि ये एलईडी बल्ब है। घंटे भर में शून्य लागत और दूसरे के श्रम से पंद्रह सौ रुपये कपटने के बाद वो रुक क्यों गया? वो जरूर व्यापारी रहा होगा। उसे ‘आइडिया’ मिला होगा- अगर फ्यूज बल्बों का बहुमत मेरे पास हो, तो शून्य लागत और दूसरों के श्रम से कपट-कपट असीमित मुनाफा कमाया जा सकता है। आइडिया से उसने अपना ‘बिजनेस प्लान’ बनाया। बिजनेस प्लान के तहत वो घूम-घूम कपट के करतब दिखाता है। फ्यूज बल्ब उसके कपट को अपना विश्वास समझते हैं।
भक्त कहते हैं, ‘कण कण में वो है।’ कण-कण में वो है, तो क्या किसी भक्त में विश्वास का कण है, जो अपना सीना चीर कर उसके दर्शन करा दे?
बहुमत के ‘अर्बन ईडियट्स’ पर मैं विश्वास नहीं करता। अपने विश्वास के पक्ष में की गई मेरी जिरह को अर्बन ईडियट्स ‘स्लेजिंग’ कहते हैं, हालाँकि वे स्लेजिंग की जगह अपनी परम्परा के अनुसार गाली कहते हैं। गाली-गलौज सुनने में भद्दा लगता है। लगता है कान में फटा बाँस डालकर मैल निकाला जा रहा है। स्लेजिंग ‘सॉफिस्टिकेटेड’ लगता है। एनेस्थीसिया का इंजेक्शन देकर फटे बाँस से मैल निकाला जा रहा है। अर्बन ईडियट्स भी सुनने में सॉफिस्टिकेटेड लगता है। अर्बन ईडियट्स अभिधा में सुनने के लती हो चुके हैं। व्यंजना, लक्षणा के साहित्य को भी अभिधा में ऊपरवाले की वाणी मान लेते हैं।
नया खिलाड़ी आता है। जोश से लबरेज। अभिधा में स्लेजिंग करता है। अभिधा में की गई स्लेजिंग अनुभवहीन होने की पहचान है। स्लेजिंग के पुराने खिलाड़ी व्यंजना और लक्षणा में स्लेजिंग करते हैं। अर्बन ईडियट्स की लत का मान रखने के लिए प्रधानमंत्री को कभी-कभार संसद में विपक्ष की अभिधा में स्लेजिंग कर देनी चाहिए।
स्लेजिंग से याद आया, स्लेजिंग का प्रयोग क्रिकेट में होता है। क्रिकेट में अब ‘फैंटसी लीग’ होने लगी है। इसे सीधे जुआ नहीं कहते। गाली लगता है। फैंटसी लीग कहने से सॉफिस्टिकेटेड लगता है। अर्बन ईडियट्स का बल्ब फ्यूज रखने के लिए रोजगार की विद्युत आपूर्ति घटा रही सरकार को पकौड़ा रोजगार की तरह जुए को भी रोजगार की सरकारी परिभाषा की श्रेणी में शामिल कर लेना चाहिए। सरकारी मद से वेतन देने का झंझट भी नहीं होगा। आत्मनिर्भरों की संख्या भी बढ़ेगी।
जुआ भी गृह उद्योग बन गया है। पूरा परिवार लगा हुआ है। जुआ उद्योग में बाप-बेटों के बीच सम्मान का सामंजस्य देखते ही बनता है। एक बेटा कहता है- पापा! मैं बाँस के नीचे वाली फड़ पर रहूँगा। आप वहाँ मत आइएगा। दूसरा बेटा कहता है- पापा! मैं पोखरे वाली फड़ पर रहूँगा। आप उधर मत आइएगा। बाप कहता है- बच्चों! मैं पीपल के नीचे वाली फड़ पर रहूँगा। तुम लोग उधर मत आना।
एक अर्बन ईडियट की पीड़ा सुनकर मैं द्रवित हो रहा था। पेट्रो की बढ़ती कीमत की तरह मैं भी अपने हृदय को हलाल करता हूँ। धीरे-धीरे, दिन-प्रतिदिन, थोड़ा-थोड़ा द्रवित करता हूँ। हृदय को झटका नहीं देता हूँ। डर लगता है, झटके की वृद्धि से हृदय का पम्प खून की सप्लाई न रोक दे।
उसकी पीड़ा का कारण भी अविश्वास था। मैं चौंका- ये तो अविश्वसनीय पीड़ा है। उसने बताया- उसके द्वारा किये जाने वाले समाजकार्य पर कोई विश्वास नहीं करता। उसकी पीड़ा का समाधान गाल बजाने जितना आसान था। पर मैंने तुरंत अपना गाल नहीं बजाया। झटका समाधान बर्दाश्त नहीं कर पाएगा। धीरे-धीरे, थोड़ा-थोड़ा, दो-चार दिन में हलाल समाधान बताऊँगा। उसे हलाल समाधान बताया- अर्बन ईडियट्स के सरताज को ‘फॉलो’ करो। बहुमत का विश्वास अर्जित कर लोगे।
झूठ के वर्तमान बहुमत का विश्वास है कि ईमानदार आदमी के बहुत दुश्मन होते हैं। इसीलिए झूठ के बहुमत पर अक्सर जान का खतरा मँडराता रहता है।
मेरी सलाह मान वो ‘फॉलोवर’ बन गया। अब वो बहुरूपिया, विदूषक कुछ भी बनने में पारंगत हो गया है। जहाँ भी जाता है, वहाँ की वेश-भूषा धारण कर समाज कल्याण का गाल बजाता है। सीवर साफ करने वालों की बस्ती में शिक्षा की ज्योत जलाने जाता है, तो विश्वास अर्जित करने के लिए चड्ढी पहन तालाब में फूल की तरह खिल जाता है। तालाब में मछली पकड़ने लगता है। एक बार तालाब में सिर के बल कूदा। तालाब की तली में वनस्पतियों का जाल बिछा हुआ था। जाल में सिर फँस गया। पैर के तलवे पानी की सतह पर ‘फ्लोटिंग’ करने लगे। समाज कल्याण का करतब देख रहे अर्बन ईडियट्स ताली बजाने लगे- योगाचार्य जलीय शीर्षासन कर रहे हैं। योगाचार्य किसी तरह जलीय शीर्षासन से मुक्त हुए तो लम्बोदर बनकर बाहर निकले।
एक बार मुसहर बस्ती में गया। एक बच्चा पेड़ से सूखी टहनियाँ काट रहा था। कुछ बच्चे कट कर गिर रहीं टहनियों को इकट्ठा कर रहे थे। विश्वास अर्जित करने के लिए वो डाल काटने पेड़ पर चढ़ गया। जिस डाल पर बैठा था, उसे ही काटने लगा। डाल के साथ वो भी जमीन पर आ गया। अर्बन ईडियट्स ताली बजाने लगे- कालिदास अंडर-कंस्ट्रक्शन।
करतबों पर बजने वाली तालियों ने उसकी समाज सेवा को मान्यता दिला दी। उसके घर पुरस्कारों का अम्बार लग गया है। आगंतुकों का स्वागत पुष्प-गुच्छ की जगह पुरस्कार-गुच्छ से करता है।
एक बार नए करतब के अभाव में पुरस्कार-गुच्छ की कलियाँ कम होने लगीं। चिंतित रहने लगा। पिन खिंचे हैंड ग्रेनेड की तरह फटने के लिए बेचैन रहने लगा। चिंता में हलाल होते-होते एक दिन झटका लगा। सीना पकड़ कर बैठ गया। उसके शुभचिंतक अर्बन ईडियट्स को लगा कि हर्ट अटैक आ गया।
समाज सेवा को पुरस्कार की प्राणवायु न मिले तो समाज सेवा की असामयिक मृत्यु भी हो सकती है।
शुभचिंतक उसे लेकर अस्पताल पहुँचे। वहाँ पता चला कि कोमा में चला गया। दिल उसके पास था ही नहीं, जो हर्ट अटैक आता। दिल को अपनी गाड़ी के टायर से रौंद चुका था।
उसे कोमा से निकालने का उपाय भी गाल बजाने जितना ही आसान था। इस बार शुभचिंतकों को झटके से बता दिया। जल्दी से ठीक होगा, तभी तो संजय बनकर समाज सेवा के उसके करतबों का आँखों देखा हाल पढ़ाऊँगा। बताया कि इसकी आँख पर पुरस्कार का चश्मा लगा दो। पुरस्कार का चश्मा बनवाया गया। फ्रेम में दोनों शीशों की जगह पुरस्कार फिट किये गए। चश्मा जैसे ही कान पर चढ़ा, उसकी अंगुलियाँ हिलीं। पुरस्कार का चश्मा लगाने के थोड़ी ही देर बाद वो समाज सेवा का करतब दिखाने के लिए फिट-फाट घोषित कर दिया गया।
फिट-फाट होने के बाद उसने मुझे भी सम्मानित किया। मुझे सलाहकार मंडल का सदस्य बना दिया। अब वो मेरी तरफ देखता नहीं, घूरता है। उसका विश्वास अर्जित कर मुझे क्या मिला? मुनीर नियाजी का एक शेर मिला-
वो दुश्मनी से देखते हैं, देखते तो हैं
मैं शाद हूँ कि हूँ तो किसी की निगाह में
(Art Credit: Pedro Gomes, Guernica Magazine)