तन मन जन: महामारी का राजनीतिक अर्थशास्त्र और असमानता का वायरस


कोरोना महामारी ने दुनिया की अर्थव्यवस्था बदल कर रख दी है। मार्च 2020 से अप्रैल 2021 के तेरह महीनों में कई देशों की अर्थव्यवस्था अर्श से फर्श तक आ गयी। भारत में भी लगभग पूरे साल लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था तबाह हो गयी थी जो अनलॉक के बाद धीरे-धीरे पटरी पर आने की कोशिश कर रही थी। तभी कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी और ज्यादा घातक लहर ने नयी मुसीबतें खड़ी कर दीं। पिछले एक-दो महीने में भारत में देखी जा रही आर्थिक गतिविधियों से यह उम्मीद जगी थी कि जल्द ही स्थिति सामान्य हो सकती है। अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने भी वित्त वर्ष 2021-22 में भारत की विकास दर 10 फीसद रहने की बात की है, लेकिन अप्रैल में कोरोना वायरस की दूसरी भयानक लहर ने इस रिकवरी पर ब्रेक लगा दिया है। अब तो अर्थशास्त्री खुद भी संशय में हैं कि भारत की उठती अर्थव्यवस्था कहीं फिर से नकारात्मक दिशा में न मुड़ जाए।

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केन्द्र सरकार साफ कर चुकी है कि इस मन्दी में कोई आर्थिक पैकेज देने की योजना नहीं है। स्थिति साफ है कि देश की अर्थव्यवस्था सिकुड़ेगी, उत्पादन घटेगा, लोगों की क्रय शक्ति नीचे जाएगी। भुखमरी बढ़ेगी और देश में हाहाकार मचेगा। सेन्टर फॉर मॉनिटरिंग इन्डियन इकोनॉमी के आंकड़ों के अनुसार 31 मार्च 2021 तक बेरोजगारी 6.5 फीसद थी जो 18 अप्रैल तक बढ़कर 8.4 फीसद हो गयी। एचडीएफसी बैंक ने एक विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि 15 अप्रैल तक चेक बाउन्स के काफी मामले सामने आये हैं। विगत अप्रैल में दिल्ली और मुम्बई में लॉकडाउन लगाये जाने के बाद लगभग 25-30 फीसद मजदूरों ने शहर छोड़ दिया है। इससे खुदरा व्यापार, कन्स्ट्रक्शन के काम, मॉल, दुकानों आदि पर बहुत फर्क पड़ा है। बाजार में केवल आवश्यक वस्तुओं की दैनिक और खुदरा खरीद के अलावा विनिमय आदि ठप है। शॉपिंग सेन्टर एसोसिएशन ऑफ इन्डिया ने अपने एक बयान में कहा है कि वर्ष 2020 की अपेक्षा वर्ष 2021 के आरम्भ में देश में खुदरा व्यापार लगभग 70 फीसद तक अपना व्यवसाय पुनः शुरू कर चुके थे, लेकिन अप्रैल के बाद से स्थिति विकट हो चुकी है। बयान के अनुसार देश में जो 15 हजार करोड़ का कारोबार शुरू हुआ था वह घटकर 50 फीसद पर पहुंच चुका है।

आप सोच रहे होंगे कि जनस्वास्थ्य में यह अर्थशास्त्र की बातें क्यों हो रहीं हैं। दरअसल, महामारी या किसी भी कारण से यदि गरीबी बढ़ती है तो उसका सीधा असर लोगों की सेहत पर पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी ‘अत्यधिक गरीबी’ को रोग माना है। अभी यूएनडीपी एवं विश्व बैंक का एक आंकड़ा आया है कि कोरोना में एक वर्ष में भारत में 23 करोड़ लोग गरीब हो गये जबकि वर्ष 2006-16 के बीच करीब 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले थे। एक और रिपोर्ट अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के सेन्टर फॉर सस्टेनेबल एम्पलॉयमेन्ट की है। स्टेट ऑफ वर्किंग इन्डिया 2021: वन इयर ऑफ कोविड-19 नाम की यह रिपोर्ट भी कोरोनाकाल में नौकरी जाने से जीवन पर पड़ने वाले असर पर है। इसमें भी दावा किया गया है कि कोरोनाकाल में 23 करोड़ लोगों के गरीबी रेखा के नीचे चले जाने का अन्देशा है। इस वजह से देश वर्ष 2006 की स्थिति में पहुंच गया है। यूएन की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2005-06 में भारत के करीब 64 करोड़ लोग (55.1 फीसद) गरीबी में थे जो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की 2005 में लायी योजना मनरेगा के कारण काफी हद तक बेहतर स्थिति में आ चुके थे। सन् 2015-16 तक देश में गरीबी घटकर 36.9 करोड़ (27.9 फीसद) रह गयी थी। इस दौरान देश में लोगों का स्वास्थ्य सूचकांक भी बेहतर हुआ था।

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इसे थोड़ा और स्पष्ट कर देते हैं। गरीबी दरअसल किसे कहते हैं और गरीबी का हमारी जिन्दगी से क्या सम्बन्ध है? कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के अर्थ इंस्टीच्यूट के निदेशक जैफ़ी सॉक्स कहते हैं, ‘‘गरीबी का मतलब रोजमर्रा के लिए जरूरी चीजों की कमी है। दरअसल, गरीब वह है जिसे खाना, पानी और आम चिकित्सा सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं।’’ वैश्विक तौर पर भी गरीबी को मापने के चार पैमाने हैं- शिक्षा, स्वास्थ्य, जीवनस्तर और आवास की गुणवत्ता। ऐसे करीब 38 संकेतकों पर गरीबी को नापते हैं। फिलहाल बहुआयामी गरीबी के मामले में भारत 0.123 अंकों के साथ दुनिया के 207 देशों में से 62वें स्थान पर है।

विकासशील देशों के लिए कोरोना एक कहर की तरह है। लन्दन के किंग्स कॉलेज के अन्तरराष्ट्रीय विकास विभाग के प्रोफेसर एंडी समनर कहते हैं, ‘‘विकासशील देशों के लिए महामारी आर्थिक संकट बन गयी है। शोध के अनुसार करोड़ों लोग जो ठीकठाक जीवन बसर कर रहे थे महामारी के कारण गरीबी रेखा के नीचे धकेल दिये गये हैं। विकासशील देशों में यह संख्या 1.1 अरब हो सकती है।’’ प्रो. समनर ने विश्व के नेताओं से अपील की है कि समय रहते यदि कोई ठोस कदम नहीं उठाये गये तो हालात बदतर होंगे। उनके अनुसार एशिया के भारत, बांग्लादेश, इन्डोनेशिया, पाकिस्तान, फिलिपिंस आदि देशों की हालत बहुत खराब होगी।

इसके ठीक उलट, वैश्वीकरण के दौर में जहां चन्द पूंजीपति घराने दिन-प्रतिदिन अमीर होते जाते रहे थे, इस वैश्विक महामारी ने उन्हें और अवसर उपलब्ध करा दिये हैं। थोड़ा यह भी जान लें कि कोरोनाकाल में कितने अमीर और अमीर हो गये। हुरून ग्लोबल रिच लिस्ट 2021 के अनुसार भारत के सबसे बड़ा निर्यातक रिलायंस के मालिक मुकेश अंबानी नौंवें स्थान से 177 अरबपतियों के साथ तीसरे स्थान पर पहुंच गये हैं। अन्य अरबपति भारतीयों में गौतम अडानी 48वें स्थान पर हैं। बीते एक साल में इनकी सम्पत्ति बेहद बढ़ी और अब यह 32 अरब डॉलर से ज्यादा है। दुनिया में सबसे अमीर व्यक्ति टेस्ला के सीईओ एलन मस्क हैं जिनकी कुल सम्पत्ति 197 अरब डालर है। मस्क की सम्पत्ति 2020 में बढ़कर तीन गुना अधिक हो गयी थी। अमेजन के संस्थापक जेफ बेजोस दूसरे स्थान पर हैं। 35 फीसद की वृद्धि के साथ उनकी सम्पत्ति का कुल मूल्य 189 अरब डॉलर है।

इतना ही नहीं, कोरोनाकाल में देश में 40 और भारतीय अरबपतियों की लिस्ट में शामिल हुए। यह अलग बात है कि इस दौरान लगभग 40 करोड़ भारतीय अपने सामान्य स्तर से नीचे चले गये। कोरोनाकाल में गौतम अडानी का भाई विनोद अडानी भी अपनी सम्पत्ति में 128 फीसद की वृद्धि कर 9.8 अरब अमरीकी डॉलर का मालिक बन जाता है। इस दौरान एचसीएल के शिव नादर की सम्पत्ति 27 अरब डॉलर, बायोकॉन की किरण मजूमदार 41 फीसद की वृद्धि के साथ 4.8 अरब डॉलर, ल्यूपिन की मंजू गुप्ता 3.3 अरब डॉलर हो गयी तो सॉफ्टवेयर कम्पनी जेकलर के मालिक जय चौधरी ने अपनी सम्पत्ति में 274 फीसद वृद्धि कर 13 अरब डॉलर जोड़ लिये। पतंजलि के बालकृष्ण भी 3.6 अरब डॉलर के मालिक हैं। जाहिर है आपदा में अवसर के लाभ तो इन अरबपतियों ने ही उठाये।

Source: Hurun Research Institute 2021

इस बीच फोर्ब्‍स ने भी अरबपतियों की अपनी सूची जारी की है। इसमें कहा गया है कि कोरोना महामारी के दौरान दुनिया के अरबपतियों की सम्पत्ति में 60 फीसद तक इजाफा हुआ है। फोर्ब्‍स ने कुल 2755 अरबपतियों की सूची जारी की है जिनमें 493 एकदम नये हैं। इस लिस्ट में चीन और हांगकांग के 210 तथा संयुक्त राज्य अमरीका के 98 लोग शामिल हैं। फोर्ब्‍स का मानना है कि कोरोनाकाल में आपदा का अवसर उठाकर जिन उद्योगपतियों ने अपना कारोबार बढ़ाया उनमें अमेजन के संस्थापक जेफ बेजोस, माइक्रोसॉफ्ट के बिल गेट्स, फेसबुक के मार्क जुकरबर्ग, गूगल के को-फाउन्डर लैरी पेज तथा सर्मी ब्रिन, रिलायन्स इन्डस्ट्री के मुकेश अंबानी, टेस्ला के एलन मस्क आदि प्रमुख हैं।

ये तो आपदा में अवसर वाले अमीरों की बात है, लेकिन इसी दौरान कंगाल और बेहाल हुए लोगों पर एक रिपोर्ट ऑक्सफैम ने भी जारी की है। ऑक्सफैम की 2021 की रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां भारत में अरबपति 35 फीसद और अमीर हुए, वहीं वर्ष 2020 में केवल अप्रैल में हर घंटे 1 लाख 70 हजार लोगों की नौकरी चली गयी। इस दौरान आर्थिक असमानता भी बढ़ी। इस रिपोर्ट को तैयार करने में 79 देशों के 295 अर्थशास्त्रियों ने अपनी राय दी थी। सर्वेक्षण में शामिल 87 फीसद लोग महामारी के चलते आय में बढ़ी भारी असमानता से परेशान थे। ऑक्सफैम ने अपनी रिपोर्ट में माना है कि मार्च 2020 के बाद भारत के 100 अरबपतियों की सम्पत्ति में 12,97,822 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई। इतनी राशि का वितरण यदि देश के 13.8 करोड़ सबसे गरीब लोगों में किया जाए तो इनमें से प्रत्येक व्यक्ति को 99,045 रुपये दिये जा सकते हैं।

ऑक्सफैम ने अपनी रिपोर्ट का नाम द इनइक्वालिटी वायरस रखा है। रिपोर्ट में चिंता व्यक्त की गयी है कि कोरोनाकाल में महामारी के दंश के अलावा सबसे ज्यादा खतरनाक बात यह है कि इस दौरान अमीर और अमीर हो गये तथा सामान्य लोग और गरीब हो गये। इस रिपोर्ट में यह मांग की गयी है कि इस दौरान अमीर हुए लोगों पर उच्च सम्पत्ति कर लगाया जाए तथा श्रमिकों के लिए मजबूत संरक्षण का इन्तजाम हो। उल्लेखनीय है कि महामारी के दौरान अमीरों की अय्याशी में कोई कमी नहीं आयी जबकि स्वास्थ्य कर्मचारी, मजदूर, छोटे विक्रेता आदि ने जान जोखिम में डालकर काम किया फिर भी अमीर नहीं बन पाये। इसी बीच विश्व बैंक ने चेतावनी दी है कि कोरोना महामारी के चलते हाशिये पर खड़े श्रमिकों, महिलाओं और कमजोर लोगों की नौकरी खत्म हो गयी है। कोई 10-20 करोड़ लोग बदहाली की स्थिति में जा सकते हैं। विश्व बैंक और ऑक्सफैम के अनुसार कोरोना से पहले की स्थिति में लौटने में 10 वर्ष से भी ज्यादा लग सकते हैं।

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आश्चर्य इस बात का है कि जब मार्च 2020 से लगभग लगातार देश में और विदेश में लॉकडाउन है और दुनिया की सारी अर्थव्यवस्थाएं कोरोना के कारण पस्त पड़ी हैं, ऐसे में चन्द अरबपतियों की सम्पत्ति और संख्या में असाधारण वृद्धि कैसे हुई? इस कोरोनाकाल में जहां करोड़ों लोगों का रोजगार खत्म हो गया वहां गिनती भर के अरबपतियों की आमदनी पांच खरब से बढ़कर तेरह खरब डॉलर कैसे हो गयी? जब लॉकडाउन में सभी जगह का उत्पादन बन्द था, पेट्रोल, डीजल की बिक्री भी बाधित थी, दुकानें बन्द थीं, गोदामों में तैयार माल डम्प थे, जीडीपी का ग्राफ नीचे जा रहा था तब इन अरबपतियों की सम्पत्ति दिन दूनी रात चौगुनी कैसे बढ़ रही थी? यह सवाल हर किसी की जिज्ञासा है। इस सवाल का उत्तर है कि इन अरबपतियों के जेबें सरकारें भर रही थीं। कोरोना महामारी से आयी मंदी को हटाने के लिए लगभग दुनिया भर में सरकारों ने सरकारी खजाने (जनता के धन) से करीब नौ खरब डॉलर के राहत पैकेज इन अरबपतियों को प्रकारान्तर से दिये। यदि यह रकम जनता की जेब में जाती जो बाजार चलते, लेनदेन होता और जनता में खुशहाली आती, मगर सरकार ने इसे वित्तीय बाजार (स्टॉक एक्सचेंज, सिक्योरिटी मार्केट, बान्ड मार्केट) में पहुंचाया। वहां शेयर तथा प्रतिभूतियों के बहाने यह रकम अरबपतियों की कुल आमदनी में शामिल हो गयी। इन अरबपतियों के जो आठ खरब डॉलर बढ़े वह इन्हीं नौ खरब डॉलर से आये।

अपने देश के दो उद्योगपति इसी कोरोनाकाल में इतने अमीर हो गये कि उन्होंने अमरीका के जॉन रॉकफेलर को भी पीछे छोड़ दिया। इन उद्योगपतियों में से एक की सम्पत्ति 2020-21 में देश के कुल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2.8 फीसद और दूसरे की 1.7 फीसद बढ़ गयी है। उल्लेखनीय है कि रॉकफेलर जो कभी दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति था, उसकी कुल सम्पत्ति 1.6 फीसद ही है। देश की आम जनता शायद इस तथ्य पर भरोसा भी न करे लेकिन यही सच है कि जब देश लॉकडाउन में था तब इन अरबपतियों की सम्पत्ति में ऐसी बढ़ोतरी पूंजी की सट्टेबाजी की वजह से हुई और हमारी सरकार ने यह सब होने दिया। अब भारतीय उद्योगपतियों की कुल सम्पत्ति देश के जीडीपी के 20 फीसद के बराबर हो गयी है।

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कोरोनाकाल में चन्द अरबपतियों की जेब में देश की सम्पत्ति का एक बड़ा हिस्सा चले जाने के बाद यहां के आम लोगों के सेहत की बात करना बेमानी है। यूएनडीपी और डेनवर विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के मुताबिक कोविड-19 महामारी के गंभीर दीर्घकालिक परिणामों के चलते वर्ष 2030 तक 20 करोड़ 70 लाख और लोग घोर गरीबी की ओर जा सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो दुनिया भर में बेहद गरीब लोगों की संख्या एक अरब के पार हो जाएगी। दूसरी ओर दुनिया के टॉप दस अमीरों ने इस दौरान इन्होंने इतनी दौलत कमाई कि इससे दुनिया की गरीबी खत्म हो सकती थी। अपवादस्वरूप कुछ लोगों (नियमित नौकरी वालों) को छोड़कर देश में 70 फीसद अपने दैनिक व्यवसाय या मेहनत की कमाई खाने वालों के समक्ष भयंकर आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। देश में विभिन्न रोगों से ग्रस्त लगभग 15 करोड़ बीमार लोग अपने नियमित उपचार के लिए चिकित्सक या अस्पताल नहीं जा पा रहे हैं।

अभी पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने अपने सम्बोधन ‘‘मन की बात’’ में स्वीकार किया कि देश में 80 करोड़ लोग अभाव में हैं इसलिए उन्हें अक्टूबर-नवम्बर तक मुफ्त अनाज दिया जाएगा। इस घोषणा से यह स्पष्ट हो गया कि कोरोनाकाल में देश के बहुसंख्यक लोगों की आर्थिक स्थिति कितनी जर्जर हो गयी है। इसी दौरान लोगों की सेहत का हाल इतना बुरा हो गया है कि लोग अपने शरीर के पुराने गम्भीर रोगों को भूल चुके हैं। जो लोग नियमित पारम्परिक दवाएं लेते थे उसकी बिक्री कम हो गयी है। मानसिक रोग, अवसाद, तनाव आदि के मामले बढ़ गये हैं। परिवारों में बढ़े आर्थिक दबाव का असर बूढ़ों पर पड़ा है। कोरोनाकाल में लापरवाह सरकारों की वजह से जो बदतर हालात खड़े हुए हैं उसकी भरपाई की तत्काल तो कोई गुंजाइश दिख नहीं रही। देशवासियों से यही उम्मीद है कि वे अब किसी झूठे नेता या जुमलेबाज राजनीतिक दल या दलों के थोथे लालच में नहीं फंसेंगे। ध्यान रहे कि अब भी उठकर संभलने के लिए बहुत कुछ है।

लेखक जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होमियोपैथिक चिकित्सक हैं।

 


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One Comment on “तन मन जन: महामारी का राजनीतिक अर्थशास्त्र और असमानता का वायरस”

  1. एक गम्भीर व विश्लेषणात्मक लेख। शीर्षक ही लेख को पढ़ने के लिए बाध्य कर देता है। जैसे जैसे लेख आगे बढ़ता है लेखक
    का विषय को लेकर विश्लेषण एक पाठक को भी विश्लेषण करने के लिए उत्साहित कर देता है। आज इसी तरह के लेखन की आवश्यकता है जो पाठक को सोचने के लिए बाध्य कर दे।

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