पिछला कैलेंडर साल खत्म होने वाला था कि कई लोगों ने नववर्ष की शुभकामनाएं देते वक्त इसको ‘आंग्ल नववर्ष’ करार दिया, नया साल ‘अपना नहीं है’ का जिक्र किया। मैंने जब इस बाबत पोस्ट किया कि भाई हर यूरोपियन चीज ‘आंग्ल’ नहीं होती तो कइयों को ‘मिर्ची’ लगी। मुझसे बहस के लिए उतरे लोगों में एक ‘खैनीखोर’ भाई भी थे, जिनको ‘झालदार’ चीजें बहुत पसंद थीं और घर में उन्होंने पपीते के पौधे बहुत लगा रखे हैं। उन मित्र को पपीते, खैनी (तंबाकू), आलू और मिर्ची से कोई दिक्कत नहीं है, पर इस कैलेंडर से है।
इसलिए मुझे लगा कि क्यों न भारतीय व्यंजनों में शामिल मिर्ची की बात की जाए, जो न सिर्फ हमारे खान-पान में, जायके में शामिल है बल्कि इसने हमारी भाषा और मुहावरों में भी जगह बनाई है।
मध्यकाल में जब यूरोपियनों का देश में आगमन होना शुरू हुआ, तो वे लोग अपने साथ कई पौधे लेकर आए थे- अनानास, आलू, पपीते, तंबाकू के साथ उनमें मिर्ची भी शामिल थी। अनानास तो बादशाह अकबर को बहुत पसंद था। उसके खाने में अमरूद और अनानास जरूर होता था। तंबाकू और पपीता भी बहुत जल्दी लोकप्रिय हो गया।
ऐसा सभी पौधों के साथ नहीं था। भारतीय व्यंजनों में तीखापन लाने के लिए काली मिर्च पहले से मौजूद थी और काली मिर्च जैसे सम्राट को सिंहासन से हटाने का काम नाजुक बदन मिर्ची उस समय कर नहीं पाई। ऐसे में 18वीं सदी तक काली मिर्च (और लौंग) भारतीय भोजन में तीखापन लाती रही।
काली मिर्च के साथ पिप्पली का इस्तेमाल तीखेपन के लिए भारतीय भोजन में किया जाता था। पिप्पली मूल रूप से बंगाल की फसल थी। फ्रांसीसी यात्री टैवर्नियर ने लिखा है कि ‘मुस्लिमों के पुलाव में मुट्ठी भर-भरकर पिप्पली झोंके जाते थे’। वैसे, यह पिप्पली आयुर्वेद वाले नपुंसकता के इलाज के लिए उपयोग में लाते थे।
1590 ईस्वी में लिखी आईने-अकबरी में करीब 50 व्यंजनों की फेहरिस्त है जिसे अकबर के दरबार में पकाया जाता था और उनमें से सभी में काली मिर्च का ही इस्तेमाल होता था।
उस समय बंगाल (आज के बांग्लादेश समेत) और मालाबार तट पर काली मिर्च की खेती की जाती थी और विश्व व्यापार में इसका महत्व और इसकी कीमत पर कई किताबें लिखी जा चुकी हैं। यहां तक कि एक मान्यता है कि रोम पर जब बर्बरों ने कब्जा कर लिया था तो भारतीय जहाजों में करीब 35 टन काली मिर्च मौजूद थी और इस काली मिर्च के बदले बर्बरों ने रोम को आजाद कर दिया था।
बहरहाल, भारत में पुर्तगालियों के आगमन के बाद मिर्च को सबसे पहले गोवा लाया गया। वास्को डि गामा के हिंदुस्तान की धरती पर पैर रखने के महज 30 साल के भीतर पश्चिमी तट मिर्ची उगाया जाने लगा था और बाद में इस मिर्च को गोवाई मिर्ची कहा गया।गोवा से वह दक्षिण भारत में फैल गया। 17वीं सदी में जब छत्रपति शिवाजी की सेना मुगल साम्राज्य को चुनौती देने के लिए उत्तर की ओर बढ़ी, तो उनके साथ मिर्च भी उत्तर भारत में आ गई, लेकिन भारतीय अभिजात्य तबके को उस समय भी विदेशी चीजों का बड़ा शौक था इसलिए मिर्च धीरे-धीरे उनके व्यंजनों में जगह बनाने लगी।
एक मराठी किंवदंती है कि मुगल सेना को केवल इसलिए हराया जा सकता था क्योंकि मराठे मिर्च की खपत ज्यादा करते थे और इस चीज ने उन्हें विशेष रूप से उग्र विरोधियों में बदल दिया था।
सबसे शुरुआत में मिर्च का इस्तेमाल अचार और चटनी के रूप में किया जाता था। 16वीं सदी में मिर्च का अचार लोकप्रिय था। बाद में अन्य व्यंजनों में उसको शामिल किया जाने लगा। बहरहाल, इस वक्त मोटे तौर पर चार तरह की मिर्च भारत में खाई और उगाई जाती है- लाल मिर्च, हरी मिर्च, देगी मिर्च और शिमला मिर्च।
आज स्थिति यह है कि भारत दुनिया में लाल सूखी मिर्च का सबसे बड़ा उत्पादक है। और हां, हरी मिर्च का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी। हाल ही में दुनिया की सबसे तीखी मिर्च में गिनी जाने वाली भूत झोलकिया का निर्यात नगालैंड के खेतों से लंदन को भेजा गया है।
भूत झोलकिया भारत की सबसे तीखी और दुनिया की पांच सबसे तीखी मिर्चों में शामिल है। वैसे असमिया भाषा में इसके दो अर्थ निकलते हैं- भूत वाली मिर्ची (जो भूत भगा दे) और भूटान की मिर्च।
तीखेपन के मापदंड पर देखें तो भूत झोलकिया में 10 लाख स्कोविल हीट यूनिट (एसएचयूएस) होता है। एसएचयूएस खाने में तीखेपन को मापने की इकाई है। भूत झोलकिया का इस्तेमाल असम के गांववाले घरों में घुस आ रहे हाथियों के झुंड को भगाने के लिए भी करते हैं।
अगर मिर्ची आपके खाने में घुसकर हिंदुस्तानी (सॉरी, भारतीय) हो गई है, अगर अन्नानास को आप फलाहारी में खाकर व्रत तोड़ सकते हैं और खैनी, जर्दा, तंबाकू (को ठोस, द्रव या गैस के रूप में लिए) के बिना आप रह नहीं सकते तो फिर कैलेंडर से क्या अदावत!