तन मन जन: जब स्वास्थ्य व्यवस्था ही बीमार है तो कैसे हो इलाज?

जब देश की जनता प्रधानमंत्री जी के आह्वान पर ताली और थाली बजा रही थी तभी कोरोना वायरस देश में अपनी पकड़ मजबूत कर रहा था। उनके अगले राष्ट्रीय प्रसारण …

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देशान्तर: सीरिया में हिंसा और भुखमरी के बीच उम्मीद के बीज बोता फ़िफ़्टीन्थ गार्डेन नेटवर्क

सीरिया अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का अखाड़ा बना हुआ है। गृह युद्ध में अब तक 5 लाख से ज़्यादा मौतें हुई हैं, एक करोड़ से ज़्यादा शरणार्थी और विस्थापित हैं, जिसमें आधे बच्चे हैं। इन सबके बीच सीरिया की जनता अपने आत्मसम्मान और स्वशासन की लड़ाई लड़ने को तत्पर है। इसी से जुड़ी है फ़िफ़्टीन्थ गार्डेन नेटवर्क की कहानी- भूख और हिंसा के बीच आशा, इज्जत और आत्मनिर्भरता के बीज बोने की।

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गाहे-बगाहे: मशीनों के आगोश में बुनकरी है, तबाही के पहलू में कारीगरी है!

लॉकडाउन ने बुनकरों को भुखमरी और मौत के कगार पर ला खड़ा किया है. काम चलने का कोई आसार नहीं है. ऊपर से उत्तर प्रदेश सरकार ने बिजली का दाम बहुत ज्यादा बढा दिया है. पहले जहाँ हज़ार-डेढ़ हज़ार रुपये बिजली का बिल आता था वहीं अब मनमाने ढंग से कहीं तीस हज़ार तो कहीं चालीस हज़ार आ रहा है. कहीं कोई सुनवाई नहीं है.

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दक्षिणावर्त: न तो PM का अयोध्या दौरा सांप्रदायिक है, न ही सनातन के प्रतीकों पर हमला सेकुलरिज़्म

यहूदियों की भावना को आहत न करने के पीछे स्वास्तिक को नीचा दिखाने, उसे एक खूंरेज़ विचार के साथ दिखाने के पीछे की मंशा आखिर क्या है? अमेरिका में यहूदी लॉबी चूंकि बहुत ताकतवर है, इसलिए तो कहीं ऐसा नहीं हो रहा है?

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पंचतत्‍व: रामगंगा नदी का गला घोंट रहे हैं हमारे स्मार्ट फोन और कंप्यूटर

आपने सोचा भी नहीं होगा कि आपके स्मार्टफोन या कंप्यूटर की वजह से मैदानी भारत की एक अहम नदी रामगंगा की सांसे थम रही हैं? मुरादाबाद में देश भर का जमा हो रहा ई-कचरा है रामगंगा नदी में भारी धातुओं के प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह और आम लोगों में कैंसर का बड़ा कारण

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आर्टिकल 19: उत्तर प्रदेश के चुनावी कर्मकांड में तब्दील होता ‘विकास दूबे कांड’!

विकास दूबे को पुलिस ने एनकाउंटर में मार तो दिया लेकिन वो मरा नहीं। उसकी आत्मा अब राजनीति में प्रवेश की कोशिश कर रही है। और आदमी से ज्यादा खतरनाक होता है आत्मा का राजनीति में प्रवेश कर जाना।

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तिर्यक आसन: राष्ट्र चिंता का कॉपीराइट

देश सेवा की योजनाएँ बढ़ने के साथ चहारदीवारी के अंदर की जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ी थी। उर्वरा शक्ति ने घर के भीतर अलग-अलग कोनों में गमलों में उगे पौधों में एकता का संचार किया था। गमलों में उगे पौधों ने एकजुट होकर लॉन का रूप ले लिया था।

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छान घोंट के: लॉकडाउन से बदरंग हुए बनारस में जन पत्रकारिता का एक साहसी दस्तावेज़

लॉकडाउन के दौरान इसी जरूरत और ज़मीनी हकीकत को समझाने वाली वरिष्ठ पत्रकार विजय विनीत की हाल ही में प्रकाशित किताब है “बनारस लॉकडाउन”, जो बताती है कि लॉकडाउन के 75 दिनों की जिंदगी क्या रही।

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डिक्टा-फिक्टा : ‘ऐक्शन’ का विकल्प नहीं है ‘कैंसिल कल्चर’

अपने विचारों को चुनने और उसके अनुसार व्यवहार करने तथा उससे अलग या विरोध में खड़े विचारों व व्यक्तियों की आलोचना करना या उनका विरोध करना मानव सभ्यता के मूलभूत आचरणों में शामिल है. तो, फिर कैंसिल कल्चर’ को लेकर इतनी चिंता क्यों होनी चाहिए?

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बात बोलेगी: चढ़ी हुई नदी के उतरने का इंतज़ार लेकिन उसके बाद क्या?

असम, बिहार से ऐसी तस्वीरें ज़्यादा आ रही हैं। इन दो राज्यों में हालांकि यह वार्षिक कैलेंडर का हिस्सा हैं इसलिए फिर भी कुछ न कुछ मानसिक तैयारी लोगों की होती होगी, लेकिन पिछले कई साल से ऐसी ही तस्वीरें देखते हुए लगता है कि बाढ़ का पानी उतरने के बाद ये लोग शून्य से ज़िंदगी शुरू करते होंगे तभी तो इनका हर बार उतना ही नुकसान होता है जितना उससे पिछले बरस हुआ था!

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