पंचतत्व: सतभाया का शेष
कानपुरू में 303 घर बचे हैं और उनमें अफरातफरी का, बेचैनी का आलम बना रहता है. पड़ोस के सतभाया गांव में भी परिस्थिति कमोबेश ऐसी ही है. हर साल समुद्र करीब 80 मीटर आगे बढ़ जाता है.
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कानपुरू में 303 घर बचे हैं और उनमें अफरातफरी का, बेचैनी का आलम बना रहता है. पड़ोस के सतभाया गांव में भी परिस्थिति कमोबेश ऐसी ही है. हर साल समुद्र करीब 80 मीटर आगे बढ़ जाता है.
Read Moreयह बात समझने की है कि एपल का एचआर मैनेजर कभी भी स्टीव जॉब्स नहीं बन सकता है, उसी तरह सोशल मीडिया या चुनाव-प्रबंधन करनेवाला व्यक्ति कभी भी नेता की जगह नहीं ले सकता है और अगर नेता में, उसके कैंपेन में दम नहीं है तो कितना भी अच्छा मैनेजर हो, वह कुछ नहीं बिगाड़ या बना सकता है।
Read Moreएक अस्थिर और अशांत म्यांमार इस क्षेत्र में शांति और लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए चिंताजनक है और इसके लिए ज़रूरी है कि दुनिया भर के जनतांत्रिक देश और आंदोलन सविनय अवज्ञा आंदोलन का साथ दें।
Read Moreशादी-ब्याह या किसी सामुदायिक आयोजन में किसे जाना है, किसे बुलाना है, कितनों को बुलाना है जैसे मसले कभी इन संस्थाओं के अधीन नहीं रहे, लेकिन कोरोना महामारी के बहाने राजकीय संस्थागत प्रभावों से मुक्त इस नितांत अनौपचारिक कहे जाने वाले कार्य-व्यवहार को संस्थागत राजनैतिक ढांचे में ला दिया है।
Read Moreयह बात कहने में दुःखद कितनी भी लगे, लेकिन संघ के पास लोग नहीं हैं। न तो शीर्ष पर बिठाने लायक, न ही मध्यक्रम के। जितनी भी ऊर्जा है, वह सब प्रारंभिक स्तर पर है, प्रवेश की है और इसीलिए इतनी भगदड़ हो रही है।
Read Moreआखिर को दिल्ली- जिसे देश की राजनैतिक राजधानी का दर्जा प्राप्त है और जिसके वैभव में कश्मीर से कम सभ्यताओं और शासकों के आवागमन का इतिहास दर्ज है- भी ठीक उसी गति को प्राप्त हुई है जिस गति को कश्मीर? क्या वाकई कोई नागरिक प्रतिरोध दिल्ली में देखा गया? याद नहीं पड़ता।
Read Moreस्कूल बंद हैं। यातायात बाधित है। व्यापार लगभग ठप है। युवा तनाव में है। लोगों के आपसी रिश्ते दरक रहे हैं। पुलिस और प्रशासन की निरंकुशता ज्यादा देखी जा रही है। लोगों की ऐसी अनेक आशंकाओं को यदि ठीक से सम्बोधित नहीं किया गया तो 130 करोड़ की आबादी में जो निराशा फैलेगी उसका इलाज इतना आसान नहीं होगा।
Read Moreयह सरकार शिक्षा के साथ खिलवाड़ के मामले में अब तक की सभी सरकारों से अधिक सक्रिय है, तो यह बहुत राहत की बात है कि अब तक इस सरकार ने कोई नयी यूनिवर्सिटी खोलने की नहीं सोची है, वरना नालंदा के बाद बारी तो तक्षशिला की ही थी।
Read Moreअगर बाहर यानी सदन के अलावा कहीं भी ठीक यही सुरक्षा, संरक्षण, मर्यादा व सभ्यता नहीं है तो सदन पर भी इसका प्रत्यक्ष प्रभाव होगा। सदन को मिली विशिष्टता उसे सुरक्षा देने में कभी भी चूक जाएगी।
Read Moreआज जब हमारे देश में एक आदमी की औसत आय साढ़े दस हजार (1 लाख 26 हजार 968 रुपए सालाना) रुपए प्रति महीने के करीब है तो हमारे देश में प्रोफेसरानों को तकरीबन ढाई लाख रुपए हर महीने मिलता है, फिर भी वे पब्लिक विश्वविद्यालय को छोड़कर निजी विश्वविद्यालय की तरफ दौड़े जा रहे हैं।
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