Netlfix पर बहुचर्चित सीरीज़ है नारकोस, जिसने हमें मेड्लिन कार्टेल, काली कार्टेल और पाब्लो एस्कोबार जैसे दुनिया के बड़े ड्रग माफिया से परिचित कराया है। उस सीरिज़ ने हमें ड्रग माफिया, लेफ़्ट गुरिल्लों, CIA और कोलम्बिया के भ्रष्ट राजनैतिक वर्ग के बीच का जटिल रिश्ता तो दिखाया ही, साथ ही साथ देश में व्याप्त ग़रीबी, ग़ैर-बराबरी और राजनैतिक हिंसा से भी रूबरू कराया है। देशांतर में इस सप्ताह हम कोलम्बिया के बदलती हुई राजनैतिक तस्वीर को समझने की एक कोशिश कर रहे हैं।
1946 से चल रहे दुनिया के सबसे लम्बे वामपंथी गुरिल्ला संघर्ष के ख़त्म होने के आसार तेज़ हो गये जब कोलम्बिया सरकार और FARC (Revolutionary Armed Forces of Colombia) नेताओं ने ऐतिहासिक हवाना शांति समझौते पर जून 2016 में हस्ताक्षर किए। इस लम्बे और जटिल शांति समझौते की महत्ता इस बात से समझ सकते हैं कि कोलम्बिया के राष्ट्रपति जुआन मैनुअल सैंटोस को इसके लिए 2016 के नोबेल शांति पुरस्कार से नवाज़ा गया।
उम्मीद थी कि इस शांति समझौते के बाद इस लम्बे हिंसक संघर्ष का खात्मा होगा जिसमें लगभग 2,60,000 लोगों की जान गयी और क़रीब 7० लाख लोग विस्थापित हुए लेकिन आज भी कोलंबिया शांति से कोसों दूर है। आज यह पर्यावरण और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए सबसे खतरनाक स्थानों में से एक है। 2016 में शांति समझौते पर हस्ताक्षर के बाद से, अनुमानित 700 सामाजिक आंदोलनकर्मी और 215 पूर्व FARC गुरिल्लों की हत्या हुई है। सिर्फ़ 2020 में अब तक 100 से अधिक आंदोलनकारी और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है, जिनमें से तक़रीबन 28 लोगों की हत्या 25 मार्च के बाद से COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिए लगाए लॉकडाउन के बाद के समय में हुई है। इनके पीछे सुरक्षाबलों, ग़ैर-सरकारी शक्तियों, आतंकवादी समूहों, माफिया सबका हाथ है क्योंकि कहीं ना कहीं पर्यावरण आंदोलन या सामाजिक कार्यकर्ता इनके कामों और स्वार्थों के आड़े आ रहे हैं।
FARC के साथ खंडित शांति समझौता
शुरुआत से ही यह शांति समझौता विवादास्पद बना हुआ है क्योंकि वहां के दक्षिणपंथी राजनैतिक वर्ग को यह मंज़ूर नहीं था। यही कारण है कि नवंबर 2016 में कांग्रेस द्वारा पारित किए जाने के पहले यह मसौदा एक जनमत संग्रह में खारिज कर दिया गया था। और तो और, अगस्त 2018 में दक्षिणपंथी दलों की जीत के बाद राष्ट्रपति इवान डुके मार्केज़ की सरकार ने इस समझौते को ख़ारिज करने की भरपूर कोशिश की है। मौजूदा राष्ट्रपति का काल पूर्व-गुरिल्ला लड़ाकों की हत्या की बढ़ती घटनाओं; यूनियन नेताओं, पर्यावरणविदों आदि की बढ़ती हत्याओं; ELN (अन्य वामपंथी समूह) के साथ शांति वार्ता को रोकने; सेना का इस्तेमाल शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को रोकने के लिए; और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार पर्यवेक्षकों के निष्कासन आदि के कारण विवाद में रहा है और उसकी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी आलोचना की गई है।
शांति समझौते में सेना और गुरिल्ला लड़कों द्वारा किए गए अत्याचारों को उजागर करना, उनका दस्तावेजीकरण करना, न्याय की प्रक्रिया स्थापित करना, पीड़ितों को मुआवज़ा, गुरिल्ला लड़कों को आत्मसमर्पण के बाद सामजिक तौर पर पुनर्वास, गुरिल्ला शासित पिछड़े ग्रामीण इलाक़ों का विकास करना आदि शामिल था। कोशिश थी कि एक मार्क्सवादी विद्रोह को कैसे सफलतापूर्वक एक राजनीतिक दल में बदला जाए और राजनीति की मुख्यधारा में शामिल किया जाये जिससे कोलम्बिया की राजनीति में पूर्ण शांति बहाल हो सके। उल्टा शांति समझौते के साथ ही गुरिल्ला शासित क्षेत्रों में उनके हटते ही, आपराधिक सशस्त्र समूहों, दक्षिणपंथी अर्धसैनिक बलों, असंतुष्ट FARC लड़ाकों आदि ने अपनी गतिविधि तेज कर दी। उनकी कथित विचारधारा के परे सभी मादक पदार्थों की तस्करी, अवैध खनन और जबरन वसूली रैकेट से पैसा बनाने के धंधे में लगे हैं। यही कारण है कि आंदोलनकर्मियों की कोई भी शांति और सामाजिक पहल उनके बनाए लाभपूर्ण अर्थव्यवस्था को बाधित करती है। वर्तमान राष्ट्रपति के मौजूदा रूख ने मामले को पेचीदा किया है क्योंकि शुरुआत के कार्यकाल से ही उन्होंने हर सम्भव कोशिश की है इसे विफल करने की और जैसे-जैसे यह शांति समझौता विफल हो रहा है, समाज में हिंसा का एक नया दौर शुरू हो रहा है।
समझौते के बाद नए लोकतांत्रिक FARC की चुनौतियाँ
शांति समझौते के बाद FARC ने खुद को एक नई राजनीतिक पार्टी, कॉमनर्स ऑल्टरनेटिव रिवोल्यूशनरी फोर्स (FARC) में बदल दिया है, लेकिन, रातोंरात एक ख़ूँख़ार सशस्त्र समूह से अहिंसक संसदीय दल बन जाना एक आसान राजनैतिक प्रक्रिया नहीं है। पांच दशकों से भी ज़्यादा समय तक FARC ने भूमि सुधार और पूंजीवाद विरोधी क्रांति के अपने मार्क्सवादी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए हिंसा का इस्तेमाल किया, किसी सामाजिक समाधान को रोकते हुए लाखों कोलम्बियाई लोगों की आवाज को दबाया और एक अलग तरह की राजनीति की अगुआई की। FARC का कहना है कि इसने सशस्त्र संघर्ष का सहारा लिया क्योंकि कोलम्बियाई राजनीतिक अभिजात वर्ग ने ग्रामीण और किसान वर्गों (जो 20वीं शताब्दी में कोलम्बिया की आबादी का 70 प्रतिशत था) के संघर्षों को नजरअंदाज करते हुए देश को एक निजी सम्पति के तौर पर सामंती व्यवस्था के तहत चलाया है।
FARC अब खुद को इन हाशिये के मतदाताओं की पार्टी के तौर पर स्थापित करने की कोशिश कर रहा है लेकिन दिक़्क़त यह है कि आज लगभग 80% आबादी शहरी केंद्रों में रहती है जहां FARC का राजनीतिक आधार नहीं है। यह एक बड़ी चुनौती है कि कोलम्बिया के व्यापक हिस्से के मतदाताओं तक कैसे पहुँचे? बोगोटा, काली या मेडेलिन जैसे बड़े शहरों के मतदाता ग्रामीण क्षेत्रों की जरूरतों को साझा नहीं करते हैं जिन्होंने FARC के राजनैतिक एजेंडे को आकार दिया है। बेहतर स्वास्थ्य देखभाल, सार्वजनिक शिक्षा और आर्थिक विकास का उनका पुराना एजेंडा, नयी बेहतर सरकारी सेवाओं की मांगों से जुड़ा हुआ है लेकिन फिर भी एक व्यापक और समावेशी राजनैतिक एजेंडा जो देश भर में कोलंबियाई लोगों की चिंता और आकांक्षाओं को समाहित कर सके] उसकी रूपरेखा कहीं नहीं दिखती है।
इन सबके बीच एक बड़ी बाधा है FARC में लोकप्रिय अपील वाले युवा नेताओं की कमी, जो मौजूदा 43 वर्षीय राष्ट्रपति ड्यूक को चुनौती दे सकें। FARC के शीर्ष नेतृत्व की औसत आयु 65 है और कमांडर लोदनो इचेवरी, जो टिमोचेंको के नाम से भी मशहूर हैं और शांति समझौते में महत्वपूर्ण भूमिका जिन्होंने निभायी, फ़िलहाल बीमारी से जूझ रहे हैं। कई नये चेहरे पार्टी में शामिल तो हुए हैं जिनमे कई पूर्व वाम नेता, ट्रेड यूनियन कर्मी, पर्यावरण आंदोलन के नेता आदि शामिल हैं, लेकिन एक ऐसा नेता जो सर्वसम्मति से सभी सदस्यों के हितों का सम्मान और प्रतिनिधित्व कर सके और साथ ही साथ पुराने गुरिल्ला लड़ाकों और नयी राजनैतिक धारा से आए लोगों के बीच सामंजस्य भी स्थापित कर सके, जो वर्तमान शासन के दमनकारी और विरोधाभासी चरित्र के कारण काफ़ी मुश्किल दिखता है।
न्यू लेफ्ट की संभावनाएं और विरोध-प्रदर्शन के अधिकार की मांग
निरंतर हिंसा के बीच अगर एक आशा की किरण दिखती है तो छात्रों, युवाओं, इंडिजेनस समुदायों, पर्यावरण आंदोलनों, महिला आंदोलनों, आदि के द्वारा भयानक हिंसा के बावजूद शांति के लिए अहिंसक संघर्ष। 2019 में चिली, इक्वाडोर और हैती जैसे लैटिन अमेरिकी देशों में हो रहे प्रदर्शनों की तर्ज़ पर कोलंबिया में भी सरकार की सुधारवादी नीतियों के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। राष्ट्रपति इवान डुक ने शांति समझौते को विफल करने के अपने प्रयासों को तेज करने के साथ-साथ, जब नयी पंचवर्षीय विकास योजना (2018-2022) के विस्तार के लिए 2019 में चर्चा की शुरुआत की तो लोगों का ग़ुस्सा फूट पड़ा। कई वैसे समुदाय जो पहले सड़क पर नहीं उतरे थे वह भी सड़कों पर आए, उदाहरण के तौर पर कौका समुदाय के लोग जिन्होंने अप्रैल 2019 में देश के कई पैन-अमेरिकी राजमार्गों को कई दिनों तक बंद रखा था। तब आंदोलन ज़्यादातर ग्रामीण इलाक़ों में सीमित था लेकिन इस बार जब जीवन और शांति के लिए राष्ट्रीय “पारो” आंदोलन 21 नवंबर, 2019 को शुरू हुआ तो कोलंबिया के सभी बड़े शहरों में फैल गया।
इस आंदोलन के पीछे नयी पंचवर्षीय विकास योजना के कुछ प्रावधान जैसे न्यूनतम मजदूरी में कमी, मज़दूरों के साथ प्रति घंटा अनुबंध की अनुमति, पेंशन व्यवस्था का निजीकरण, राज्य कंपनियों का निजीकरण, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए उदार कर व्यवस्था और आर्थिक कानून और दूसरी ओर मध्यम और कामकाजी वर्गों के लिए भारी कर आदि प्रमुख रहे। यही कारण था कि छात्र (जो शिक्षा के निजीकरण के ख़िलाफ़ पहले से ही कई महीनों से लामबंद थे) तुरंत इंडिजेनस समुदाय के लोगों, वाम विचारधारा के लोगों, शांति समझौते पालन के लिए संघर्षरत लोग, और सामान्य तौर पर सरकार की नीतियों से असंतुष्ट सभी लोग एक साथ सड़क पर उतर आए। देश के सभी बड़े शहरों में लाखों की संख्या में बड़े प्रदर्शन हुए और शुरुआत के बुनियादी सवालों से आगे बढ़ते हुए एक राजनैतिक आंदोलन में तब्दील हो गए।
देश की 1,222 नगर पालिकाओं में से 550 में, इंडिजेनस लोग, एफ्रो-कोलम्बियाई, किसान, सेवानिवृत्त, स्कूली शिक्षक और अन्य सार्वजनिक कर्मचारी, नारीवादी, शांतिवादी, LGBTQ लोग, विश्वविद्यालय के छात्र (सार्वजनिक और निजी संस्थानों दोनों) और हाई स्कूल के छात्र, विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आदि सभी लोगों ने भागीदारी की। यह ऐतिहासिक है क्योंकि पिछली बार देशव्यापी शहरी विरोध 1977 में हुए थे और मौजूदा प्रदर्शन हिंसा को चुनौती देते हुए शांतिपूर्वक तरीक़े से हुए, जो कोलम्बिया जैसी हिंसक व्यवस्था में बेहद चुनौतीपूर्ण है।
परिणामस्वरूप, प्रदर्शन करना एक लोकतांत्रिक अधिकार है, एक सबसे महत्वपूर्ण माँग के तौर पर उभर कर सामने आया। अपने उल्लेखनीय इतिहास में सबसे बड़ी हड़ताल होने के बावजूद कुछ महत्वपूर्ण बदलाव नहीं हुए। उल्टा जैसा हमेशा होता है, इन शहरी प्रदर्शनों को धार्मिक, व्यापारिक और राजनैतिक नेताओं, साथ ही डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन के प्रतिनिधियों द्वारा, एक अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट साजिश के रूप में, ग्रामीण अपराधियों द्वारा ELN और FARC समर्थित प्रचारित किया गया लेकिन फिर भी हिंसक रूप से इसे वह कुचल नहीं पाए, जैसे पहले वो हमेशा करते आए थे।
इस मौजूदा असंतोष, राजनैतिक उथल-पुथल और आर्थिक मंदी में जो सबसे बड़ा डर है वह है दक्षिणपंथी ताक़तों का मज़बूत होना, जैसे कि 27 अक्टूबर 2019 के स्थानीय चुनावों में इन दलों के गठबंधन की भारी जीत। मौजूदा स्थिति इसलिए भी जटिल हो जाती है क्योंकि 21वीं शदी के शुरुआत में दक्षिण अमरीका के जिन देशों में वामपंथी सरकारों का उदय हुआ था वहां आज दक्षिणपंथी और जनविरोधी पूँजीपति फासीवादी ताक़तें हावी हैं- वह चाहे बोलीविया हो, ब्राज़ील हो या फिर लोकप्रिय राष्ट्रवादी इक्वाडोर और चिली की सरकार या फिर नयी चुनी हुई आर्जेंटीना की सरकार। इन सबके बीच संयुक्त राज्य अमरीका, जिसने दक्षिण अमेरिका के देशों में हमेशा हस्तक्षेप रखा है, वहां डॉनल्ड ट्रम्प की सरकार है। कुल मिलाकर हवाना समझौते के बावजूद कोलम्बिया में शांति बहाली की प्रक्रिया के कोई आसार नज़र नहीं आते।