यूथ जर्नलिस्‍ट लीग का पहला कार्यक्रम 11 फरवरी को

हाल के दिनों में जिस तरीके से हमारे इर्द-गिर्द पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं, उसने यह साफ कर दिया है कि अब हमारे शासकों को अपने ही संविधान में सुनिश्चित …

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कविता की मौत का फ़रमान

पिछली बार भी लिखी थी अधूरी एक कविता… छूटे सिरे को पकड़ने की कोशिश की नहीं। आखें बंद कर- करता हूं जब भी कृत्रिम अंधेरे का साक्षात्‍कार मारती हैं किरचियां …

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समाज सेवा या ‘स्वयं’ सेवा?

हम पहले भी सुनते आए हैं कि किस तरह सत्‍यार्थी अपने दो-चार विश्‍वस्‍त पत्रकार गुर्गों के माध्‍यम से मीडिया को मैनेज करते रहे हैं, लेकिन पहली बार ऐसा उदाहरण सजीव प्रस्‍तुत है।

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कुछ खबरें फटाफट…

तीन-चार खबरें जल्‍दी-जल्‍दी बतानी हैं, क्‍योंकि एक तो ब्‍लॉग अपडेट करने का वक्‍त नहीं मिलता, दूसरे हरेक खबर के बारे में लंबा नहीं लिखा जा सकता… सबसे पहले…जल्‍द से जल्‍द …

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हिंदी का आधुनिक कालिया मर्दन…

दरअसल, पिछले दिनों हुए नया ज्ञानोदय विवाद पर एक पुस्तिका प्रकाशित हुई थी जिसका नाम रखा गया ‘युवा विरोध का नया वरक’। मैंने सोचा कि साल बीतते-बीतते इस पर एक …

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क्‍या बुद्धिजीवी इतने नादान होते हैं…

अभी पिछले ही दिनों 21 से 24 सितम्‍बर के बीच दिल्‍ली में एक महत्‍वपूर्ण आयोजन हुआ जिसे हम मीडिया की भाषा में ‘अंडर रिपोर्टेड’ की संज्ञा दे सकते हैं। जवाहरलाल …

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एक उम्‍मीद जो तकलीफ जैसी है…

ये पंक्तियां आलोक धन्‍वा की एक कविता की हैं…बरबस याद आ गईं। दरअसल, मैं दो दिनों पहले दिल्‍ली में आयोजित एक पुरस्‍कार समारोह के बारे में सोच रहा था। शहीद …

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दिल्ली ब्रांड संघर्ष के मायने

(यह लेख कुछ ही दिनों पहले दैनिक भास्‍कर में प्रकाशित हो चुका है। चूंकि इस पर काफी प्रतिक्रियाएं आईं और किसी रूद्र वर्मा नाम के सज्‍जन ने इसे ए से …

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देर आयद, दुरुस्‍त आयद…

नारद के बारे में पिछले कुछ दिनों के भीतर हिंदी चिट्ठाकारों के बीच भड़का असंतोष दरअसल एक ऐसी स्थिति को बयान करता है जहां व्‍यावसायिक हित ओर लोकप्रियता का चरम …

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कुमार मुकुल की एक उपयोगी कविता

जो हलाल नहीं होता…मेरे सामने बैठामोटे कद का नाटा आदमीएक लोकतांत्रिक अखबार कारघुवंशी संपादक हैपहले यह समाजवादी थापर सोवियत संघ के पतन के बादआम आदमी का दुख इससे देखा नहीं …

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