विश्व बैंक ने अभी जो भारत की आर्थिक वृद्धि का दो परसेंट का आंकड़ा दिया है, वह समझ में आने वाली बात नहीं है। अव्वल तो एक महीना पहले ही निकल गया है जब सारी आर्थिक गतिविधियां देश में ठप पड़ी हैं। अप्रैल तो पूरा गया। हमारे यहां हर चीज बंद पड़ी है। इसमें आपने कितना प्रोडक्शन किया है? अधिकतम पचास परसेंट। फिर सवाल उठता है कि विश्व बैंक को ग्रोथ कहां दिख रही है?
इसमें गणना का लफड़ा भी होने वाला है। मान लो कि आप सरकारी कर्मचारियों को वेतन दे रहे हो तो उसको जीडीपी में काउंट कर लोगे, सवाल है कि सरकारी दफ्तरों में प्रोडक्शन तो नहीं हुआ है। ये कहना कि आर्थिक ग्रोथ हो रही है, मुझे समझ में नहीं आता।
इसे आप इस तरह समझो कि मान लो पिछले साल आर्थिक वृद्धि दर सौ थी। आपने इकनॉमी को बंद कर दिया तो यह गिरकर पचास पर आएगी। 102 तो नहीं हो जाएगी? वृद्धि के लिहाज से तो ये माइनस हुआ। आज सारी दुनिया मंदी की बात कर रही है। 2008 के संकट में कर्इ जगह दस परसेंट के नीचे चली गयी थी इकॉनमी। इस बार कहा जा रहा है कि 2008 की मंदी से भी खराब हालात हैं। फिर ग्रोथ कहां से आएगी?
लॉकडाउन को जितना विस्तार दिया जाएगा, बेरोजगारी के आंकड़े उतने ही बढ़ते जाएंगे। दिक्कत ये है कि सरकार ने वैसे भी बेरोजगारी सहित तमाम चीज़ों के आंकड़े देना बंद कर दिए हैं। इसके अलावा ये जो विश्व बैंक आदि के आंकड़े हैं, वे भी अचानक नहीं आते। असली आंकड़े आने में थोड़ा वक्त लगता है। अमेरिका में भी आंकड़े तुरंत नहीं आ जाते, लेकिन देखिए कि वहां भी बेरोज़गारी की दर 3 परसेंट से 15-17 परसेंट हो गयी है। इसमें भी आप गिग वर्कर्स यानी रोज़ाना दिहाड़ी करने और पैसा कमाने वाले लोगों की गणना नहीं करते। इसका मतलब है कि जब असली आंकड़ा कुछ दिनों बाद आएगा तो स्थिति की भयावहता का पता चल सकेगा।
जब अमेरिका में वे लोग 17 परसेंट कह रहे हैं तो अपने यहां कुछ भी हो सकता है। कुछ भी। आप देखिए, सारे माइग्रेंट लेबर वापस चले गये। खेती में मजदूरी बंद हो गयी। हमारे आंकड़े आने दीजिए, आंकड़ा कुछ भी निकल सकता है, हालांकि मेरा मानना है कि सच कभी सामने नहीं आएगा। सरकार नहीं आने देगी।
इस मामले में सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनमी वाले वाले थोड़ी गंभीर कोशिश करते हैं क्योंकि वे हफ्तावार गणना करते हैं। उनकी मानें तो बेरोज़गारी की दर लॉकडाउन के पहले के 8.4 परसेंट से बढ़कर 23 परसेंट जा चुकी है। यह सही हो सकता है, बल्कि यह तो अभी लॉकडाउन को बीस दिन हुए ये हाल है। अगर लॉकडाउन खिंचा तो आकड़ा कुछ भी रह सकता है।
अभी तो महीने भर की बेरोजगारी सब जगह फैलेगी। बड़े संगठन कह सकते हैं कि हमने उस बीच कर्मचारियों की छुट्टी मान ली थी लेकिन छोटा व्यापारी इससे वास्तव में प्रभावित होगा। प्रवासी मजदूर इतनी जल्दी तो नहीं आएगा वापस। उसका शहर से विश्वास टूटा है इस बार। शहर वापस आने में उसे टाइम लगेगा।
हां, इस बीच गांवों पर बहुत दबाव होगा। अब वे लोग गरीबी में ही जीवन साझा करेंगे। मिल बांटकर चार की जगह तीन रोटी खाएंगे। इसी तरह प्रवासी मजदूर बांग्लादेश में पहले भागे। फिर लोगों को लगा कि परिधान कारोबार का धंधा खत्म हो जाएगा, इसलिए लॉकडाउन वापस लो और उन्हें काम पर बुलाओ। नतीजा ये हुआ कि पूरे श्रमिक फिर भी वापस नहीं आ सके।
सब कुछ इस सरकार पर निर्भर करता है। पूरी दुनिया में अकेले हमारे यहां लॉकडाउन हुआ है। अकेले साउथ अफ्रीका ने हमारे जैसी बेवकूफी की है। जापान ने नहीं किया, चीन ने केवल एक प्रोविंस में किया। ये हमने पता नहीं क्या सोच कर लॉकडाउन किया।
आप कोरोना को देखिए। यह वायरस ठंडे देशों में फैला है। आप केवल दुनिया के दस बारह देशों को ले लो तो कुल नब्बे परसेंट केस वहां के हैं। भारत में तो अब भी बहुत कम है।
अगर आप लोगों को घर से बाहर नहीं निकलने देंगे तो जानते हैं क्या होगा? वही, जो पंजाब, सूरत, महाराष्ट्र में हुआ है। किसानों ने सब्जियां फेंकी हैं। जब पुलिस निकलने ही नहीं देगी तो लोग इकट्ठा कैसे होंगे। इकट्ठा नहीं होंगे तो किसी तरह का प्रोटेस्ट कैसे होगा। इसके अलावा, सभी राजनीतिक दल भी डरे हुए हैं। अब भी लोगों के दिमाग में शुरुआती प्रोजेक्शन बना हुआ है कि दो करोड़ लोग मरेंगे, जबकि अब तो पूरी दुनिया मान रही है कि कोरोना से होने वाली मृत्यु दर बहुत कम है।
दुनिया भर का डेटा आ चुका है। एक परसेंट का डेटा भी सही नहीं है वास्तव में। पहले तो डॉक्टरों ने कुछ कहा, हमने माना लेकिन अब तो पूरी दुनिया को हकीकत पता है। वैसे भी मॉर्टलिटी रेट का डेटा दो तीन साल बाद ही आएगा जब इसका कायदे से अध्ययन होगा। अभी तो सब अपने मन से ही बोल रहे हैं।
दरअसल, इस बार सारा मामला मनोवैज्ञानिक है। कुछ तो जेनुइन भी है। हर आदमी को डर लग गया है कि कहीं मेरी ही मौत न हो जाए। इसके चलते एक दिमागी लॉकडाउन रहेगा लंबे समय तक। खेल, मनोरंजन, पार्टियां, सिनेमाहॉल, यात्रा, पर्यटन, सब कुछ पोस्टपोन हो जाएगा। लॉकडाउन उठ भी गया तो लोग खुद ही इस पर लगाम लगाएंगे। सबसे बड़ा सवाल शिक्षा का है कि स्कूल कॉलेज कब खुलेंगे।
इन स्थितियों में विश्व बैंक हों चाहे आइएमएफ, सबका डेटा हकीकत से बहुत दूर है। मेरा मानना है कि भारत की आर्थिक वृद्धि आने वाले दिनों में नकारात्मक रहने वाली है, वो भी मामूली नहीं। बहुत ज्यादा।