डॉक्टर अम्बेडकर के जीवन और चिंतन, दलित आंदोलन के समाजशास्त्र, भारत की मुक्तिकामी परम्परा पर बेहतरीन पुस्तकें लिखने वाली समाजशास्त्री गेल ओमवेट का आज निधन हो गया।
‘अम्बेडकर: प्रबुद्ध भारत की ओर’ शीर्षक से डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर की उन्होंने जो जीवनी लिखी, वह लाखों पाठकों द्वारा पढ़ी और सराही गई। इस जीवनी में अम्बेडकर संविधान-निर्माता और अर्थशास्त्री होने के साथ राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी प्रमुखता से सामने आते हैं। गेल ओमवेट की तरह ही एक अन्य अमेरिकी विद्वान एलिनॉर जेलियट ने भी डॉक्टर अम्बेडकर, दलित आंदोलन और पश्चिम भारत में जाति विरोधी आंदोलन पर शानदार काम किया था।
वर्ष 1941 में अमेरिका के मिनियापोलिस में पैदा हुईं गेल ओमवेट ने कार्ल्टन कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की और आगे चलकर कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी (बर्कली) से उन्होंने पीएचडी की जहाँ उन्होंने पश्चिमी भारत में उन्नीसवीं-बीसवीं सदी में हुए ‘नॉन-ब्राह्मण मूवमेंट’ के बारे में लिखा। बाद में उनका यह शोधग्रंथ पुस्तक रूप में भी प्रकाशित हुआ।
सत्तर के दशक के आख़िर में उन्होंने कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी में सुनहरा अध्यापकीय जीवन छोड़कर भारत आने का चुनौतीपूर्ण निर्णय लिया। सामाजिक कार्यकर्ता भारत पाटणकर से विवाह कर वे महाराष्ट्र के एक गाँव में ही बस गयीं और वर्ष 1983 में उन्होंने भारत की नागरिकता भी ले ली।
दलित आंदोलन, जोतिबा फुले और अम्बेडकर पर काम करते हुए गेल ओमवेट अकादमिक परिसर तक महदूद नहीं रहीं बल्कि उन्होंने सामाजिक आंदोलनों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की। वह चाहे बहुजन समुदाय के आंदोलन हों, या फिर महिलाओं, किसानों, आदिवासियों और पर्यावरण से जुड़े आंदोलन हों। आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी के साथ-साथ इतिहास और समाजशास्त्र से जुड़े मुद्दों पर उनकी कलम लगातार चलती रही।
‘दलित्स एंड द डेमोक्रेटिक रिवोल्यूशन’ जैसी उनकी किताबों के साथ-साथ जर्नल ऑफ़ पीजेंट स्टडीज़, इकनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली, सोशल साइंटिस्ट, जर्नल ऑफ़ एशियन स्टडीज़ जैसी पत्रिकाओं के पन्ने भी उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता और सामाजिक सरोकार की गवाही देते हैं।
अपनी समूची अकादमिक यात्रा में वे भारत की मुक्तिकामी परम्पराओं का अन्वेषण करती रहीं। इस क्रम में जहाँ एक ओर उन्होंने ‘बुद्धिज़्म इन इंडिया’ में बौद्ध धर्म और दर्शन की विकास-यात्रा की पड़ताल की, वहीं अपनी बेहतरीन पुस्तक ‘सीकिंग बेगमपुरा’ में उन्होंने नामदेव, कबीर और तुकाराम से लेकर जोतिबा फुले, इयोथी थास, पंडिता रमाबाई, पेरियार और अम्बेडकर सरीखे जातिविरोधी विचारकों की सामाजिक दृष्टि की पड़ताल की।
ब्राह्मणवाद और जातिवाद को चुनौती देने वाले बौद्ध धर्म व दर्शन पर चर्चा के हवाले से भारत के पच्चीस सौ वर्षों का बौद्धिक इतिहास समेटे ‘बुद्धिज़्म इन इंडिया’ बौद्ध धर्म के उद्भव व विकास, भारत में बौद्ध धर्म की अवनति, भक्ति आंदोलन और औपनिवेशिक काल में बौद्ध धर्म के पुनरुत्थान और नवयान सम्प्रदाय के बारे में विस्तार से बताती है।
अपनी एक अन्य महत्त्वपूर्ण किताब ‘अंडरस्टैंडिंग कास्ट’ में गेल ओमवेट ने आधुनिक भारत के निर्माण में इन जातिविरोधी विचारकों की परिवर्तनकामी सोच की भूमिका को रेखांकित किया। इस पुस्तक में वे स्वाधीन भारत में दलित राजनीति के विभिन्न आयामों, दलित पैंथर्स जैसे रैडिकल समूहों और बसपा जैसे राजनीतिक दलों के उभार की पृष्ठभूमि भी बताती हैं।
बतौर अनुवादक गेल ओमवेट ने वसंत मून की आत्मकथा और जोतिबा फुले की कृतियों का मराठी से अंग्रेज़ी में अनुवाद किया। उन्हें नमन!
(इतिहास के अध्येता शुभनीत कौशिक ने अपनी फ़ेसबुक दीवार पर यह श्रद्धांजलि लिखी है, वहीं से साभार प्रकाशित)