इधर एक सेठ रहते हैं। सेठ शब्द का अगर किसी जाति विशेष से संबंध हो, तो सेठ शब्द को ‘साइलेंट’ मान लिया जाए। हम नहीं मानेंगे क्योंकि अक्षर साइलेंट होते हैं, शब्द नहीं! अजी, आप शब्द को ही साइलेंट मानने को तैयार नहीं, मैंने तो आदमी साइलेंट होते देखे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष किया जाता है कि उन्होंने अब तक के अपने कार्यकाल में कोई प्रेस कांफ्रेंस नहीं की। कटाक्ष का पटाक्षेप करने के लिए वे प्रेस कांफ्रेंस में आ गए। भारतीय जनता पार्टी की प्रेस कांफ्रेंस थी। प्रेस कांफ्रेंस में कई मुँहबली थे। सब बोले। नरेंद्र मोदी साइलेंट थे। मुँहबलियों की बात सुन वे तरह-तरह के मुँह बनाते रहे, लेकिन एक अक्षर भी नहीं बोले। साइलेंट रहकर ही नरेंद्र मोदी ने जवाब दे दिया- आदमी भी साइलेंट हो सकता है। देखा जाए तो भारत सरकार में नरेंद्र मोदी की पूरी कैबिनेट ही साइलेंट है। भारत सरकार के अतिरिक्त कोई भी काम करना होता है, तब ‘वाइलेंट’ हो जाती है। उचककर देखने पर पता चलता है कि वर्तमान भारत सरकार के लोकतंत्र में चारों स्तम्भ भी साइलेंट हैं।
साइलेंट सेठ के पास एक कुत्ता है। वे अपने कुत्ते को घी पिलाते हैं। हम नहीं मानेंगे क्योंकि कुत्ते को घी हज़म नहीं होता! अजी, सेठ कुत्ते को घी क्यों पिलाते हैं, ये पता चलेगा तो हो सकता है आपके कुत्ते को भी घी हज़म होने लगे। सेठ धर्मभीरू आदमी हैं। वे महाकाव्य घोषित साहित्य को देववाणी मानते हैं। एक महाकाव्य के अनुसार एक कुत्ता युधिष्ठिर के साथ स्वर्ग तक गया। साइलेंट सेठ मानते हैं कि कुत्ते की पूँछ का पीछा करते हुए युधिष्ठिर स्वर्ग पहुँचे। साइलेंट सेठ को भरोसा है कि उनका कुत्ता भी उन्हें स्वर्ग का रास्ता दिखाएगा। स्वर्ग जाने के लिए वे कुत्ते को घी पिलाते हैं। साइलेंट सेठ को अपने बच्चों पर भरोसा नहीं है। उन्हें लगता है कि स्वर्ग के रास्ते में वे धोखा दे सकते हैं। उन्हें नर्क का रास्ता दिखा, खुद स्वर्ग के रास्ते जा सकते हैं। इसलिए साइलेंट सेठ अपने बच्चों को कुत्ता नहीं कहते। कुत्ते के पिल्ले कहते हैं। खून के रिश्ते के कारण बच्चों पर थोड़ा-बहुत भरोसा बना हुआ है- बच्चे स्वर्ग के रास्ते ले जा सकते हैं। भरोसा नहीं रहता तो कुत्ते के पिल्ले की जगह उनके नाम से बुलाते।
कुत्ता वफादारी का प्रतीक होता है। मान गए न? पर इस बार मैं नहीं मानूँगा। सबकी अपनी सोच होती है। किसी आदमी को कोई कुत्ता कहता है, तो क्या वो आदमी वफादार भी होता है? सोच-सोच का फर्क होता है जी। एक बॉस अपने एक मुँहलग्गू कर्मचारी को कुत्ता कहते। कर्मचारी खुश हो जाता। सेल्फी वाला पाउट बनाकर ठंक्यू कहता। एक दिन उसके ठंक्यू का पाउट हवा में उड़ते-उड़ते मुझ तक भी पहुँचा। मैंने उसे बता दिया कि उसका बॉस उसे कुत्ता क्यों कहता है- ‘‘कुत्ता तो आदमी का गोबर भी खाता है जी। उसी गोबर के बारे में सोचकर बॉस तुम्हें कुत्ता कहता है। वो वफादार वाला कुत्ता नहीं कहता। अगर वफादार वाला कुत्ता मानता, तो तुमसे भी पूछता- मेले बाबू ने थाना थाया?’’ हम नहीं मानेंगे, नहीं ऐसा नहीं होता! मत मानिए। मुझे तो कोई कुत्ता कहता है तो मैं पूछ लेता हूँ कि कौन सा वाला कुत्ता हूँ। अब तक किसी ने नहीं कहा- वफादार वाला कुत्ता। कोई गधा कहता है तो मान लेता हूँ। कुछ नहीं पूछता हूँ।
एक परचून की दुकान के मालिक हैं। वे अपने कुत्ते को ‘कुकीज़’ खिलाते हैं। दुकान मालिक को साइलेंट सेठ के शुभ-लाभ के बारे में पता चला- स्वर्ग जाने का ‘रोडमैप’ बना रहे हैं। दुकान मालिक स्वर्ग जाने के लिए कुकीज़ की जगह घी का जोड़-घटाना करने लगे। दुकान मालिक की योजना में कैपिटलिज्म की सभी शक्तियों ने सहयोग किया। दुकान मालिक को शुभ-लाभ का मंत्र मिल गया। उसी समय दुकान खुलने और बंद होने का समय निर्धारित किया गया- सुबह सात से दोपहर एक बजे तक। एक बजे तक दुकान का शटर खुला रहता। शुभ-लाभ होता रहता। एक बजे के बाद दुकान के पीछे का किवाड़ खुल जाता। पीछे केवल लाभ ही लाभ होता- दस का सामान पंद्रह में, दस का सामान पंद्रह में। दुकान मालिक का कुत्ता भी घी पीने लगा।
साइलेंट सेठ के ‘रोड टु स्वर्ग’ का पता चलने से पहले दुकान मालिक के स्वर्ग जाने की योजना कुछ और थी। उनके दुकान के अगले दरवाजे के सामने पाप-पुण्य की मिली-जुली नाली बहती है। पीछे वाले दरवाजे के सामने पाप का नाला बहता है। विभिन्न स्रोतों से गुजरता हुआ नाला गंगा में जाकर गिरता है। एक ब्राह्मण ने मालिक को बताया कि गंगा में नहाकर अपने पाप धो लिया करो। मोक्ष मिलेगा। गौदान कर देना। गाय की पूँछ पकड़ स्वर्ग के रास्ते में पड़ने वाली वैतरणी पार कर जाओगे। ब्राह्मण के कहे अनुसार मालिक सप्ताह में एक बार नियम से गंगा स्नान के लिए जाने लगे।
गंगा नदी की विडम्बना अजीब है। गंगा को अविरल और स्वच्छ बनाने के नाम पर बजट जितना बढ़ता गया, गंगा की अविरलता और स्वच्छता उतनी कम होती गयी। बनारस में गंगा के पानी के ऊपर काई जम गयी है। गंगा में पाप की पीप बह रही है या गोमुख से निकला पानी, ये तय करना मुश्किल हो गया है। ये गंगा में अपने पाप धोने वाले सेठों द्वारा गंगा को चढ़ाये गये चढ़ावे की देन है। वे अपने पाप गंगा नदी को चढ़ा देते हैं। अपने कल-कारखाने से निकला केमिकलयुक्त जहरीला पानी बिना शोधित किये गंगा में बहा देते हैं। रही-सही कसर गंगा को माँ मानने वाले उनके बेटे पूरी कर देते हैं। मूर्ति विसर्जन और फूल माला का कचरा गंगा के माथे मढ़ देते हैं। बेचारी गंगा, पुत्रों को श्राप भी नहीं दे सकती।
इस देश में जिसके भी साथ बेचारा जुड़ा उसकी दुर्दशा तय है। बेचारी गंगा, बेचारी गाय, बेचारी स्त्री, बेचारे आदिवासी, बेचारे दलित, बेचारे अल्पसंख्यक, बेचारे किसान, बेचारे मजदूर, बेचारी भारत माता। इनकी बेचारगी ‘प्रोडक्ट’ बन जाती है। प्रोडक्ट अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बिकता है। प्रोडक्ट बेचने वालों ने अपनी आहार नली की पाइपलाइन विदेश तक बिछा रखी है। महानगरों में उस पाइपलाइन के सुरक्षाकर्मी तैनात हैं। उन सुरक्षाकर्मियों ने पाइपलाइन में जगह-जगह जाली लगा रखी है। बेचारों के नाम पर आया भोजन वे दोनों हाथों से उलीच लेते हैं। बड़ी मछलियाँ पकड़ लेते हैं। छोटी मछलियाँ जाली पार कर बेचारों के पास पहुँचती हैं।
गंगा की तरह बेचारों की भी विडम्बना है। बेचारों के नाम पर योजनाओं की संख्या जितनी बढ़ती गयी, उनकी बेचारगी उतनी ही बढ़ती गयी। कोरोना की पहली लहर में बेचारों के लिए बीस लाख करोड़ का सरकारी पैकेज घोषित हुआ। पैकेज का नतीजा कोरोना की दूसरी लहर में आया। बिलियनेयर्स की संपत्ति बढ़ गयी। बिलियनेयर्स की संख्या में वृद्धि हो गयी। बेचारों की आय घट गयी। बेचारों की संख्या बढ़ गयी। बेचारों के वर्ग की जनसंख्या बढ़ गयी।
दुकान मालिक का कुत्ता घी पीता है। घी का असर मालिक के शरीर पर होता है। मालिक ने अपनी आहार नली कुत्ते से जोड़ ली है। कुत्ता कुपोषण का शिकार बछड़ा लगता है। मालिक घी का पोषण लेते-लेते लोटे के आकार के हो गये हैं। मालिक गंगा स्नान से देह खजुआते हुए लौटते हैं और बर्तन धोने वाले बेसिन में लेट जाते हैं। बालू पेपर पर बर्तन धोने वाला साबुन लगाकर उनकी धुलाई होती है। लोटा चिक्कन हो जाता है।
खजुहट से परेशान मालिक ने अपनी समस्या और समाधान गंगा स्नान की सलाह देने वाले ब्राहमण को बताया- आप भी कुत्ता पाल लीजिए। गंगा के छिः छिः पानी में नहाने से भी छुटकारा मिल जाएगा। कुत्ते की पूँछ पकड़ वैतरणी पार कर जाइएगा। मालिक अब गंगा स्नान के लिए नहीं जाते। उन्हें ब्राह्मण से ज्यादा अपने धंधे पर भरोसा हो गया है।
दिन भर मजदूरी करने के बाद एक श्रमिक दुकान मालिक के कुत्ते के घी खिलाने का माध्यम बनता है। दस का सामान पंद्रह में लेकर। दस का सामान पंद्रह में बेचने से कुत्ते के घी की पौष्टिकता बढ़ती है। स्वर्ग का रास्ता छोटा हो जाता है। श्रमिक के पास भी एक कुत्ता है। साइलेंट सेठ, बॉस और दुकान मालिक के लिए वो आवारा कुत्ता है। राम मनोहर लोहिया के अनुसार- ‘‘अगर सड़कें खामोश हो जाएँ, तो संसद आवारा हो जाएगी।’’ यहाँ मैं राममनोहर लोहिया से पूरी तरह सहमत नहीं हूँ। हाँ ये मानता हूँ कि आवारा इधर-उधर घूमता ही रहता है। पर क्या जब सडकों पर शोर हो, चीख हो, तो क्या आवारा घूमना छोड़ देता है? सड़कों पर मौत की हलचल हो, तब भी आवारा घूमने में लगा रहता है। पहले लॉकडाउन में सड़कें श्रमिकों के कोलाहल से पटी हुई थीं। मौत चीख रही थी। आवारा घूम रहा था। लॉकडाउन के पहले आवारा दूर-दूर तक घूमने जाता था। लॉकडाउन में उसके घूमने का दायरा सीमित हो गया। घूम न पाने की बेचैनी में घर वालों पर ही अपना गुस्सा निकालता है। लॉकडाउन में साइलेंट सेठ, बॉस और दुकान मालिक के कुत्ते का व्यवहार भी आवारा हो गया। कुत्ते मानसिक विक्षिप्त की तरह व्यवहार करने लगे। वे वाक पर नहीं जा पा रहे थे। ऐसे में घर के सामने से कोई मुर्दा गुजरता, तो उस पर भी भौंकते। श्रमिक का कुत्ता उनकी बेबसी देख च्च च्च च्च करता।
श्रमिक का कुत्ता स्वर्ग का रास्ता दिखाने वाला कुत्ता नहीं है। वो दुत्कार सहते-सहते श्रमिक के पास चला आया। रोटी के एक टुकड़े का प्यार मिला। कुत्ते ने श्रमिक के यहाँ ही अपने कान काटकर गाड़ दिए। ध्यान रहे, कुत्ते ने खुद अपने कान काटकर गाड़े थे। कई लोग कुत्ते का कान काटकर गाड़ देते हैं। ये सोचकर कि कहीं और नहीं जाएगा। ऐसा सोचना भी क्रूरता है। अगर किसी ने अब कुत्तों का कान काटकर गाड़ा, तो मैं कुत्तों से कह दूँगा कि स्वर्ग की जगह नर्क पहुँचा देना। कुत्ता गधे की बात मान लेगा। चौपाया बिरादरी का मामला है।
ऐसा नहीं है कि मैं कुत्तों से घृणा करता हूँ। अगर मैं जानवरों से घृणा करता, तो बार-बार जानवरों को अपने कहन का माध्यम नहीं बनाता। हाँ, ये है कि मैं उनको बंदी या नजरबंद करके रखने के पक्ष में नहीं हूँ। चिड़ियाघर में भी नहीं। आदमी ने खुद को एकल परिवार और अपार्टमेंट में बंदी या नजरबंद बना लिया है तो उससे ये बर्दाश्त नहीं होता कि कोई और स्वतंत्र क्यों है।
अपार्टमेंट ‘करियर बनाओ’ सभ्यता के दड़बे हैं। जेल की अंडा सेल। अकेलेपन का अंडमान भोगते जब किसी की मौत हो जाती है और हफ्तों बाद उसकी देह से दुर्गंध उठना शुरू होती है, तब दूसरे दड़बों में रहने वालों को पता चलता है- ये भी यहीं रहता था !
मालिक की वफादारी करते-करते कुत्ते भी इलीट वर्ग की तरह व्यवहार करने लगे हैं। कई कुत्तों के मालिक इलीट वर्ग से नहीं आते, पर ईएमआइ के सहारे इलीट होने का दिखावा करते हैं। मालिक इलीट का व्यवहार अपनाने की कोशिश करते हैं। उनका कुत्ता इलीट का व्यवहार अपना लेता है। कुत्ते सूट-बूट में घूमने वाले इलीट चोरों को नहीं पहचान पाते। उन्हें देखते ही कूँ-कूँ कर तलवे चाटने लगते हैं। इलीट मालिकों द्वारा सभ्यता के हाशिये पर बिखेरा गया कचरा साफ करने वाले सर्वहारा को देखते ही भौंकने लगते हैं। आदमी की संगत में रहते-रहते सर्वहारा कुत्ते भी बिगड़ गए हैं। आवारा हो गये हैं।
मेरे कहन पर मत जाइए। पालिए। दिखावा करने के लिए पालिए। शौक के लिए पालिए। सुरक्षा के लिए पालिए। प्यार करने के लिए पालिए। अपनी हैसियत के अनुसार पालिए। मेरे पास भी एक कुत्ता है। आवारा। उसे पाला नहीं। उसने ही अपने कान काटकर गाड़ दिए। मेरा कुत्ता फकीर है। रोटी के लिए दरवाजे-दरवाजे ना सुनता है, पर ना कहने वाले पर गुरार्ता नहीं है। फकीरी के गुणों को देशी कुत्ते बचाये हुए हैं। देशी कुत्ते शुद्ध फकीर होते हैं। जिनकी हैसियत शून्य होती है, वे शुद्ध फकीर पालते हैं। विदेशी कुत्ते शुद्ध फकीर नहीं होते। उनकी जीवनशैली ‘संकर’ फकीर की होती है। विदेशी कुत्ता रोटी मिले या न मिले, मालिक पर नहीं गुर्राता पर उसे पालने के लिए हैसियत चाहिए होती है। जिनकी हैसियत अधिक होती है, वे करोड़ों की कीमत का कुत्ता पाल सकते हैं जिसके भोजन पर हर महीने लाखों रुपए खर्च होते हैं। ऐसा ही एक कुत्ता और उसके मालिक कुछ दिन पहले चर्चित हुए थे।
अखबार में कुत्ते और उसे खरीदने वाले का फोटो समाचार छपा था। फोटो समाचार में कुत्ते की नस्ल, किस देश में पाया जाता है, कीमत और उसके पालन पर हर महीने खर्च होने वाली रकम का विवरण था। फोटो में कुत्ते के गले में डिजायनर जंजीर थी। समाचार में जंजीर की कीमत भी दी गयी थी। कुत्ते को खरीदने वाले का भी फोटो समाचार था। खरीदने वाले की हैसियत के विवरण का क्रम कुत्ते के विवरण से मिलता-जुलता था।
शुद्ध फकीर को पालने का जतन नहीं करना पड़ता। वो सर्वहारा की तरह पल जाता है। शुद्ध फकीर समाज की गंदगी साफ करता है। संकर फकीर की गंदगी समाज को साफ करनी पड़ती है।
साइलेंट सेठ, बॉस और दुकान मालिक वाले प्यार की हैसियत भी नहीं मेरी, जो उनके कुत्तों की नस्ल का कुत्ता पाल सकूँ। मेरा कुत्ता देशी नस्ल का है। देशी नस्ल का है तो क्या हुआ, युधिष्ठिर के साथ जो कुत्ता था, उसकी तो नस्ल भी पता नहीं। मैंने सोचा, अगर गधा भी स्वर्ग पहुँच जाए, तो स्वर्ग की चाँदनी में चार खुर लग जाएँ। यही सोचकर मैंने भी अपने कुत्ते को घी पिलाना शुरू किया। कर्ज लेकर।
घी की पहली खुराक के बाद ही कुत्ता सरपट कूड़े के ढेर की तरफ भागा। कूड़े पर बैठकर दिन भर घी निकालता रहा। लौटकर आया तो डायरिया का मरीज हो गया था। गाली देने लगा मुझे- गधा है क्या बे, घी क्यों पिला दिया? मैं भौचक्का- इसको कैसे पता कि मैं गधा हूँ! जबकि अभी तो मैंने इससे कहा भी नहीं कि जो तुम्हारा कान काटकर गाड़ते हैं, उन्हें…। अपने स्वर्ग जाने की योजना असफल होता देख मुझे गुस्सा आ गया- साले आवारा, तुझे पता होता कि मैं तुझे घी क्यों पिला रहा हूँ, तो तुझे भी घी हजम हो जाता। कुत्ता गुर्राया- स्वर्ग जाना है न तुझे? मैंने इतराते हुए कहा- स्वर्ग को न चाहो तब भी कैपिटलिज्म की एक शाखा दक्षिणपंथ की सभी शक्तियाँ मिलकर तुम्हें स्वर्ग दिलाने पर उतारू हो जाती हैं।
कैपिटलिज्म ने कर्मकांडी ब्राह्मणों के बनाये आभासी स्वर्ग का नक्शा लीज़ पर ले लिया, ‘‘हम वहाँ मल्टीस्टोरी बिल्डिंग खड़ी करते हैं। तुम उसका वास्तु दोष ठीक करो। जो स्वर्ग जाना चाहते हैं, उन्हें स्वर्ग जाने का रास्ता दिखाओ। मुनाफे का अनुपात 70:30 रहेगा। बोलो मंजूर?’’ कुबूल है मालिक कुबूल है।
कुत्ते ने पूछा- दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय, जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे को होय’ का अर्थ बता। मैंने रटा-रटाया जवाब दिया- सुख में भगवान को याद नहीं करते, इसलिए दुःख होता है। अगर सुख में भी भगवान को याद किया जाय तो दुःख नहीं होगा। मेरा टेपरिकॉर्डर बंद हो, उससे पहले ही कुत्ते ने दुलत्ती मार दी। मैं गिरते-गिरते बचा। उसने पूछा- आदमी मृत्यु को कब याद करता है? उसका सवाल सुन मैं तू से जी पर आ गया- मृत्यु को कौन याद करता है जी? कुत्ता शुरू हो गया- कबीर को क्यों बदनाम करते हो, जब सुख में कभी मृत्यु को याद ही नहीं किया तो! मृत्यु को याद करने के नाम पर ही मेरा पसीना छूटने लगा। कुत्ते की पूँछ मूँछ की तरह खड़ी हो गयी- सुन, जब तक शरीर चलता-फिरता है, तब तक शुभ-लाभ, पूजा-पाठ, अजान-कुरआन, पीर-पैगम्बर के दरबार में घूम-घूम पुण्य कमाते हो। जब शरीर अशक्त हो जाता है, बिस्तर पर पड़ जाते हो, बिस्तर पर ही नित्य क्रिया करते हो, कभी-कभार बिस्तर पर कपड़े में ही नित्य क्रिया हो जाती, उसी तरह पड़े रहते हो, तुम्हारी पुकार सुनने वाला कोई नहीं, उसी नित्य क्रिया में लटपटाते तुम्हें नर्क दिखने लगता है, तब कहते हो- अब मौत आ जाती तो मुक्ति मिलती। मौत तुम्हारी पुकार सुनती है, तो मुस्कुराती है- जब तक शरीर के सुख में थे, तब तक तो मुझसे कभी आँखें चार नहीं की। अब अशक्तता के दुःख में पड़े हो तब मेरी याद आयी है। थोड़ा इंतजार तो करवाएंगे ही हम। अपने बाबू सोना का बहुत इंतजार किया है। थोड़ा मेरा भी कर लो। बचपन था स्वर्ग, जो तुम जी चुके। ये जो लटपटा रहे हो, वही नर्क है। इसको भी जी लो, फिर मैं तुम्हें गले लगाऊँगी। मैं जी से गुरु जी पर आ गया- आपका मृत्यु से साक्षात्कार हो गया क्या गुरु जी? कुत्ते ने कहा- हम न मरब, मरिहैं सब संसारा। बताओ, संसार मर जायेगा फिर भी कौन नहीं मरेगा? मैंने ना में मुंडी हिलायी- मुझे नहीं पता। मैंने कुत्ते का पैर छूते हुए कहा- गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागूँ पाँय, बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दीयो बताय। कुत्ते ने फिर पूछ दिया- बताओ, कौन गुरु है? गुरु से साक्षात्कार हुआ है तुम्हारा? कुत्ते का सवाल सुन मेरा मुँह परई (कसोरा) की तरह बन गया- आप ही बताइए गुरु जी? कुत्ते ने कहा- अगली बार जब घी पिलाओगे, तब बताऊँगा।
कुत्ता दुलकी चाल में कूड़े के ढेर की तरफ चला- आज के बाद किसी को मत कहना कि तुम कुत्ते की मौत मरोगे। नहीं तो मैं कहने लगूँगा- तुम आदमी की मौत मरोगे। और सुन, अब तक मुझे लगता था कि तू दो पैर वाला गधा है, लेकिन अब मुझे भरोसा हो गया है कि तेरे शरीर में भी चार पैर लगे हुए हैं। दो पैर ‘साइलेंट’ हैं।