कोरोना महामारी जिस तरह से मानसिक अवसाद का कारण बन रही है उसका वास्तविक कारण क्या है? आज मेरे मन में आया कि मैं इस विषय पर लिखूं क्योंकि लोगों से बातचीत के आधार पर मैंने यह निष्कर्ष निकाला कि अधिकांश लोगों के मन में इस महामारी के दौरान काफी डर बैठ गया है कि अगर वो इसकी चपेट में आ गए तो पता नहीं उनका क्या हाल होगा? ऑक्सीजन की कमी होने पर समय पर सिलेंडर उपलब्ध हो पाएगा कि नहीं? रेमडेसिविर इंजेक्शन जो कि गंभीर हालत होने पर दिया जाता है उपलब्ध हो पाएगा कि नहीं? या फिर अगर कहीं पर मिल भी रहा है तो ब्लैक में कितने दाम देने पड़ेंगे? क्योंकि हर किसी के पास इतना पैसा नहीं होता कि वो 1000 का ऑक्सीजन सिलेंडर 15000 में और 5000 का इंजेक्शन 25000 में खरीद ले।
कई बार कोरोना का मरीज गंभीर हालत होने पर हॉस्पिटल में भर्ती होना चाहता है तो बेड का अभाव होने की वजह से मजबूरी में मरीज को मना कर दिया जाता है। अगर हॉस्पिटल में दाखिल कर भी लिया जाता है तो इस बात पर जोर दिया जाता है कि ऑक्सीजन सिलेंडर और इंजेक्शन अपनी तरफ से अरेंज करें चाहे वह मरीज को ब्लैक में ही क्यों ना लेना पड़ेl अस्पताल वालों का कहना है कि हम भी मजबूर हैं क्योंकि कोरोना के मरीज ज्यादा हैं और इलाज के लिए जरूरी चीजों की भारी कमी होने की वजह से उचित इलाज संभव नहीं हो पाताl
इसका जिम्मेदार कौन है? हमारी सरकार जो कोरोना महामारी के दौरान बंगाल के चुनाव में लगी हुई थी देश के हालात से इतनी बेखबर कैसे हो गई कि जिस समय देशवासियों को सरकार के सहयोग की सबसे ज्यादा आवश्यकता थी उसी दौरान उसने बंगाल में अपनी जीत को ही अपना मकसद बना लिया?
आज मैं आपसे अपना अनुभव साझा करती हूंl एक महीना पहले मैं कोविड-19 महामारी से बीमार हो गई थी जिसके कारण मुझे घर में ही क्वारंटीन होना पड़ा। एक दिन अचानक मेरे ऑक्सीजन का स्तर कम हो गया और मेरी हालत बिगड़ गईl विभिन्न अस्पतालों में बात करने पर पता चला कि न उनके पास मरीज को दाखिल करने के लिए बेड है और न ही ऑक्सीजन उपलब्ध हैl मेरे परिवार वालों ने सोचा किसी तरह घर पर ही ऑक्सीजन सिलेंडर अरेंज करके मेरे ऑक्सीजन लेवेल को बढ़ाया जाए किंतु जगह-जगह बात करने पर यह पता चला 1000 का सिलेंडर 15000 में मिल रहा है, लेना हो तो लो नहीं तो और भी लोग हैं क्योंकि जब मांग ज्यादा होती है और चीज कम होती है तो कालाबाजारी का धंधा खूब चलता हैl
किसी तरह घरवालों ने ऑक्सीजन सिलेंडर अरेंज किया, इसके बावजूद भी हालत में सुधार न होने पर कई अस्पतालों में बात करने के बाद बड़ी मुश्किल से कैलाश हॉस्पिटल ग्रेटर नोएडा में दो दिन बाद मुझे एक कमरा मिल गयाl वहां पर ऑक्सीजन व दवाइयों का अभाव नहीं था और हमारे डॉक्टर व नर्स मरीजों की उचित देखभाल कर रहे थेl मेरी हालत गंभीर होने की वजह से मुझे रेमडेसिविर की आवश्यकता पड़ी जो हॉस्पिटल में उपलब्ध नहीं था। वहां के स्टाफ से बातचीत में पता चला कि वहां पर कुछ मरीज ऐसे भी हैं जो 25000 प्रति इंजेक्शन के हिसाब से एक लाख में चार इंजेक्शन ब्लैक में मंगवा रहे हैं। मुझसे भी कहा गया कि अभी हमारे मेडिकल स्टोर पर इंजेक्शन नहीं आया है और अगर आप बाहर से अरेंज कर सकती हैं तो कर लें। मैं काफी सोच में पड़ गई क्योंकि इलाज में वैसे ही मेरा अच्छा खासा खर्चा आ रहा था और उस पर यह अतिरिक्त बोझ क्योंकि बाहर पता करने पर यह बात मेरे सामने आई कि वाकई में इंजेक्शन की कालाबाजारी चल रही है और कमी होने की वजह से उपलब्ध होना काफी मुश्किल है। मैं काफी परेशान हो गयी। मुझे मानसिक तनाव हो गया जो कि एक मरीज को बिल्कुल नहीं होना चाहिए। हमारे मनोचिकित्सक बताते हैं यदि हमारी मानसिक स्थिति सकारात्मक है तो हमारी बीमारी जल्दी ठीक होती है।
खैर, किसी तरह मेरे बेटे द्वारा घंटों लंबी लाइन में लगने के बावजूद सीएमओ ऑफिस से एक ही इंजेक्शन अरेंज हुआ जिसका उसे कोई दाम नहीं देना पड़ा और फिर हॉस्पिटल वालों की मदद से दो-तीन दिन बाद दूसरा इंजेक्शन भी उपलब्ध हो गया जिसकी कीमत लगभग 5000 थी। मेरी लेडी डॉक्टर प्रमिला जी व नर्सों की बेहतर देखभाल से मैं एक हफ्ते में बिल्कुल ठीक हो गई और हॉस्पिटल से वापस अपने फ्लैट पर आ गई।
आज मुझे यह बात महसूस हो रही है कि हमारे लाखों डॉक्टर व नर्स अपनी जान पर खेलकर कोरोना से पीड़ित मरीजों के इलाज में लगे हुए हैं पर उचित समय पर दवाई और इंजेक्शन न मिलने की वजह से वे भी मजबूर हो जाते हैं और इलाज में देरी होने की वजह से इंफेक्शन बढ़ जाता है जिससे कई बार कोविड पीड़ित मरीज की हालत इतनी गंभीर हो जाती है बचाना मुश्किल हो जाता है। इस महामारी के दौरान जहां सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहनने के लिए मीडिया आदि के माध्यम से सावधानी बरतने के लिए कहा जा रहा है वहीं पर दूसरी ओर लोग यह सोच-सोच कर परेशान और अवसादग्रस्त हो रहे हैं कि अगर लाख सावधानी के बावजूद भी उनको कोविड-19 हो गया तो क्या समय पर उनके इलाज के लिए साधन उपलब्ध हो पाएंगे और क्या वह इससे निजात पा सकेंगे।
इसके अलावा सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में कोविड-19 का वैक्सिनेशन भी लगभग थम सा गया है क्योंकि वैक्सीन समुचित मात्रा में उपलब्ध नहीं है और जिन लोगों ने पहली वैक्सीन लगवा ली है उनको वैक्सीन की बूस्टर डोज नहीं मिल पा रही है। देश के हालात से हर इंसान परेशान है और दोतरफा मार पड़ने की वजह से निर्धन वर्ग की मानसिक स्थिति पर तो इसका सबसे ज्यादा असर पड़ रहा है।
लगभग डेढ़ साल हो गए कोरोना महामारी को आए हुए पर अभी तक कोई राहत के आसार नजर नहीं आ रहे। हमारी सुकून भरी जिंदगी कब वापस लौटेगी? इंतजार का दौर कब खत्म होगा? कब हम होली, दीपावली आदि त्योहार मिलजुल कर मनाएंगे? ईद पर कब गले मिलकर बधाइयां देंगे? शहर की रौनक तो मानो चली गई है और सूनापन काटने को दौड़ता है।
बस्ता लेकर स्कूल जाते हुए बच्चों के चेहरों पर उल्लास देखकर जो खुशी महसूस होती थी आज इस महामारी की वजह से उन्हें घर में बंद देखकर मन में एक टीस सी उठती है। शाम के समय जब मैं अपनी सोसाइटी में टहलने जाती थी तो चारों तरफ छोटे बच्चे खेलते नजर आते थे और उनके चेहरों पर खुशी देखकर मेरा मन भी प्रफुल्लित हो जाता था पर आज की स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत है, जिसका खामियाजा छोटे-छोटे मासूम बच्चों को भी भुगतना पड़ रहा है। कभी-कभी मैं सोचती हूं इन छोटे-छोटे बच्चों को संभालना माता-पिता के लिए कितना मुश्किल हो जाता होगा और उनके चेहरे पर मायूसी देखता उनका मन कितना विचलित होता होगा।
कोरोना महामारी ने लोगों की कार्यशैली को काफी हद तक प्रभावित किया है क्योंकि बहुत लोगों की नौकरियां चली गई हैं व बहुत से ऐसे लोग भी हैं जिन्हें आधे वेतन पर ही गुजारा करना पड़ रहा है। जमा पूंजी खर्च होने की वजह से कई परिवारों में तनाव की स्थिति पैदा हो गई है जो भविष्य में मानसिक अवसाद का कारण बन सकती है जिससे कभी-कभी मन में आत्महत्या के विचार आते हैं जो कि बहुत ही चिंताजनक है।
लॉकडाउन की वजह से रोज कमाने-खाने वालों का तो बहुत ही बुरा हाल है। अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटाना भी आसान नहीं है। क्या हम कल्पना कर सकते हैं उनकी मानसिक स्थिति की क्या हालत होगी? देश के इस बुरे दौर में अगर हमारी सरकार इधर-उधर के फालतू कामों में पैसा बर्बाद ना करके ज्यादा से ज्यादा वैक्सिनेशन पर जोर दे तो बहुत ही जल्दी कोरोना महामारी को फैलने से बचाया जा सकता है और बद से बदतर होती हुई परिस्थितियों को काबू में करके इस भयंकर समस्या का समाधान किया जा सकता है व देश की जनता को मानसिक अवसाद से काफी हद तक बचाया जा सकता है।
लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं