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आरक्षण खत्म करने और संविधान बदलने का मुद्दा क्या सिर्फ चुनावी भ्रम था?
लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम ने बता दिया है कि आरक्षण को खत्म करने और संविधान को बदलने की मंशा रखकर चुनाव नहीं जीते जा सकते। चुनाव परिणाम ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि ‘निर्णायक’ दलित-पिछड़े ही हैं। इसलिए दलितों-पिछड़ों की उपेक्षा व उनके हितों की अनदेखी किसी को भी भारी पड़ सकती है।
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इजरायली रंगभेद अफ्रीका से अधिक खतरनाक है: इरफान इंजीनियर
इजरायल फलस्तीन युद्ध 1948 से जारी है, जब यूरोपीय देशों ने इंग्लैंड के संरक्षण में इजरायल राष्ट्र की स्थापना की थी। सारी दुनिया से यहूदियों को बुलाकर फलस्तीन में बसाया गया और वहां के मूल निवासियों को अपना ही देश छोड़ने पर विवश किया गया।
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बहसतलब: साध्य-साधन की शुचिता और संघ का बेमेल दर्शन
पिछले एक दशक में संघ ने भाजपा का बेताल बनकर न सिर्फ राजकीय-प्रशासनिक तंत्र पर अपना शिकंजा कसा है बल्कि उसे अपने आनुवंशिक गुणों से विषाक्त भी किया है। आजकल घर-घर द्वारे-द्वारे, हर चौबारे, चौकी-थाना और सचिवालय तक वैमनस्य, हिंसा, भ्रष्टाचार और गैर-जवाबदेही का जो नंगा-नाच चल रहा है, वह इसी दार्शनिक दिशा का दुष्परिणाम प्रतीत होता है।
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बसु-रमण की धरती पर अंधश्रद्धा और वैज्ञानिक मिज़ाज पर कुछ बातें
पश्चिम के अकादमिक गढ़ों में बैठे उपनिवेशवाद के ये आलोचक और उत्तर-औपनिवेशिकता के ये सिद्धान्तकार निश्चित ही पश्चिमी समाजों को अधिक सभ्य, अधिक जनतांत्रिक और अधिक बहुसांस्कृतिक बनाने में योगदान कर रहे हैं, लेकिन पश्चिम के पास तो पहले से ही विज्ञान और आधुनिकता है, वह पहले ही आगे बढ़ चुका है। इस सब में हम पूरब वालों के लिए क्या है? गरीबी और अंधश्रद्धा के दलदल से हमें अपना रास्ता किस तरह निकालना है? अपने लिए हमें किस तरह के भविष्य की कल्पना करनी है?
COLUMN
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मणिपुर डायरी: हेड हंटर की वापसी और पूर्वोत्तर में औरतों की आजादी का मिथ
दूसरी जनजाति से प्रेमसंबंध और विवाह को हतोत्साहित किया जाता है, लेकिन अगर किसी ने प्रेम किया है और उसे जाहिर करता है तो उसे कतई रोका नहीं जाता है। अत: जनजातीय विवाह खूब होते हैं और कोई जनजाति इन्हें प्रतिबंधित नहीं करती। मैतेइ और कुकियों के बीच भी ऐसे विवाह काफी हुए हैं, लेकिन इतिहास बताता है कि इन आजादियों का उस समय कोई मूल्य नहीं रह जाता, जब इनके बीच आपसी संघर्ष होता है।
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पोन्नीलन के उपन्यास ‘करिसल’ के अंग्रेजी अनुवाद का लोकार्पण उर्फ साहित्य का ‘भारत जोड़ो’ समारोह
उपन्यास में आंदोलन का वर्णन ऐसे है जैसे जमीन से अनाज पैदा होता है, वैसे ही शोषण से जनआंदोलन पैदा हो रहा है, आंदोलन के नेता पैदा हो रहे हैं, लेखक पैदा हो रहा। उपन्यासकार मामूली इंसानी जिंदगियों को, उनके अभावग्रस्त जीवन को, इस जीवन के खिलाफ संघर्ष को करुणा के माध्यम से उसके उदात्त स्वरूप तक ले जाता है।
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शिक्षा का लोकतान्त्रिक मूल्य और डॉ. भीमराव अम्बेडकर
डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा दिया गया सूत्र ‘शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो’ इस सूत्र में ही उनके संघर्षपूर्ण जीवन का व उनके शैक्षिक विचारों का सारांश छिपा हुआ है।