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UP : स्कूल विलय के पीछे कम नामांकन दर की दलील और उसके मायने

स्कूलों के विलय का मुद्दा जितना चिंताजनक है उससे अधिक चिंता का विषय ये है कि स्कूलों में बच्चों की संख्या (नामांकन) कम कैसे हुई। बच्चे गए कहां? क्या वे किसी प्राइवेट स्कूल में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं या ड्रॉपआउट हो गए? क्या इसके पीछे सरकारी/विभागीय फ़रमान भी जिम्मेदार है?

Voices

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दुनिया को चाहिए अमन लेकिन मुनाफाखोरों को जंग चाहिए: विनीत तिवारी

वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता कॉमरेड रमेश मिश्रा के पंचम स्मृति दिवस पर 17 जून 2025 को आगरा में आयोजित गोष्ठी का विषय था, “दुनिया को चाहिए अमन तो जंग किसे चाहिए: अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बदलाव”। 

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स्थानीय समुदाय बनाम वैश्विक पूंजी: हमारे दौर का सबसे बुनियादी अंतर्विरोध

दुनिया भर में अब उत्‍पीड़क और निरंकुश राजकाज का एक ऐसा मॉडल उभर चुका है जहां देशों की जनता को नियंत्रित रखने का ठेका उन सनकी और बाहरी ताकतों को सौंप दिया गया है जिनके नियंत्रण में देशों की सीमाएं हैं। इन ताकतों को अब सीधे और पूरी तरह कुछेक विशाल कॉरपोरेशन और वित्‍त प्रबंधन कंपनियां चलाएंगी। इसलिए वैश्विक पूंजी और स्‍थानीय समुदायों का अंतर्विरोध अब पहले से कहीं ज्‍यादा तीव्र हो गया है।

Lounge

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हाथियों की लड़ाई : सलीम हिंदुस्तान का शहंशाह कैसे बना

राजनीतिक संघर्षों के बीच पारिवारिक राजनीति और परिवार में अंदरखाने होने वाले संघर्षों को दर्शाती यह कहानी आज के वक्त में मुग़लों पर नए सिरे से शुरू हुई बहस में बेहद फायदेमंद साबित होगी।

COLUMN

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विश्व पर्यावरण दिवस : हिमालयी पारिस्थितिकी और प्लास्टिक का प्रदूषण

भारत के पारिस्थितिकी संवेदनशील हिमालय क्षेत्र में प्लास्टिक प्रदूषण का संकट दिन प्रतिदिन गंभीर होता जा रहा है। नाज़ुक और संवेदी पहाड़ों पर 80 फ़ीसद से अधिक प्लास्टिक कचरा सिंगल यूज खाद्य और पेय पैकिंग से उत्पन्न हो रहा है। चिंताजनक यह है कि इस कचरे में 70 फीसद तो वह प्लास्टिक है जिसे न तो रीसायकल किया जा सकता है और न ही इसका कोई बाज़ार मूल्य है।

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‘कोचिंग जाने वाले बच्‍चे’ उर्फ बिहार से दिल्‍ली तक बिखरी अनसुनी आवाजें, सपने और संघर्ष

राजधानी एक्सप्रेस वाया उम्मीदपुर हाल्ट   उन लाखों युवाओं की स्मृतियों का दस्तावेज है जो अपने भविष्य के लिए वर्तमान को गिरवी रख चुके हैं। यह उपन्यास हमें बताता है कि प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी सिर्फ एक शैक्षणिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक संघर्ष भी है।

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