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लोकसभा में राहुल गांधी के उठाए सवाल लोकतंत्र के लिए क्‍यों जरूरी हैं

यदि भारत सच में एक जीवंत लोकतंत्र है, तो उसे राहुल गांधी के उठाए सवालों को सुनना और समझना चाहिए। सत्‍ता जब सवालों से डरने लगे, तो वह संवादहीनता और आत्ममुग्धता की दिशा में बढ़ती है। लोकतंत्र का क्षरण वहीं से प्रारंभ होता है।

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इंदौर : स्वतंत्रता दिवस की संध्या विख्यात निर्देशक मेघनाथ के साथ एक शाम

दर्शकों को मेघनाथ की दो लघु फिल्में और भी देखने को मिली जिनमें एक तो जन गीत का स्वरूप ले चुके गीत गांव छोड़ब नाहीं, जंगल छोड़ब नाहीं तथा दूसरी मुंडा जनजाति पर एनिमेशन फ़िल्म थी।

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स्थानीय समुदाय बनाम वैश्विक पूंजी: हमारे दौर का सबसे बुनियादी अंतर्विरोध

दुनिया भर में अब उत्‍पीड़क और निरंकुश राजकाज का एक ऐसा मॉडल उभर चुका है जहां देशों की जनता को नियंत्रित रखने का ठेका उन सनकी और बाहरी ताकतों को सौंप दिया गया है जिनके नियंत्रण में देशों की सीमाएं हैं। इन ताकतों को अब सीधे और पूरी तरह कुछेक विशाल कॉरपोरेशन और वित्‍त प्रबंधन कंपनियां चलाएंगी। इसलिए वैश्विक पूंजी और स्‍थानीय समुदायों का अंतर्विरोध अब पहले से कहीं ज्‍यादा तीव्र हो गया है।

Lounge

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हाथियों की लड़ाई : सलीम हिंदुस्तान का शहंशाह कैसे बना

राजनीतिक संघर्षों के बीच पारिवारिक राजनीति और परिवार में अंदरखाने होने वाले संघर्षों को दर्शाती यह कहानी आज के वक्त में मुग़लों पर नए सिरे से शुरू हुई बहस में बेहद फायदेमंद साबित होगी।

COLUMN

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विश्व पर्यावरण दिवस : हिमालयी पारिस्थितिकी और प्लास्टिक का प्रदूषण

भारत के पारिस्थितिकी संवेदनशील हिमालय क्षेत्र में प्लास्टिक प्रदूषण का संकट दिन प्रतिदिन गंभीर होता जा रहा है। नाज़ुक और संवेदी पहाड़ों पर 80 फ़ीसद से अधिक प्लास्टिक कचरा सिंगल यूज खाद्य और पेय पैकिंग से उत्पन्न हो रहा है। चिंताजनक यह है कि इस कचरे में 70 फीसद तो वह प्लास्टिक है जिसे न तो रीसायकल किया जा सकता है और न ही इसका कोई बाज़ार मूल्य है।

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दिल्ली : ख़्वाजा अहमद अब्बास के एक ख़त के बहाने, जवाहर भवन में गूंजे आज़ादी के तराने

उल्लेखनीय है कि इप्टा की इंदौर इकाई की प्रस्तुति इसके पहले 1950 के दशक में दिल्ली में हुई थी जिसमें तब के युवा इप्टा कलाकार नरहरि पटेल, प्रोफ़ेसर मिश्रराज आदि शामिल हुए थे। इस बार नाटक का आकल्पन जया मेहता ने किया और इसकी पटकथा प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव, कवि, पत्रकार और रंगकर्मी विनीत तिवारी लिखी। सुप्रसिद्ध अभिनेत्री और निर्देशक फ्लोरा बोस के कुशल के निर्देशन में इंदौर इप्टा के रंगकर्मियों ने अपने सहज सजीव अभिनय से इस नाटक को यादगार बना दिया।

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