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होमियोपैथी दिवस: कहीं आप उपचार की सहज, सरल, सस्ती, प्रामाणिक विधि से महरूम न रह जाएं!

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी “ट्रेडिशनल मेडिसिन इन एशिया” नाम से एक मोनोग्राफ प्रकाशित कर होमियोपैथी एवं अन्य आयुष पद्धतियों की प्रासंगिकता को स्वीकार किया है। संगठन ने इस वर्ष (2025) विश्व स्वास्थ्य दिवस के संदेश के रूप में “स्वस्थ्य शुरुआत- आशापूर्ण भविष्य” की बात की है।

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अमेरिकी उपराष्ट्रपति वेंस, भारत बिकाऊ नहीं है! फ्री ट्रेड के नाम पर असमान समझौते नहीं होंगे!

अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस की भारत यात्रा द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत करने, कृषि उत्पादों सहित अमेरिकी उत्पादों के लिए टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करने के लिए है

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बहसतलब: साध्य-साधन की शुचिता और संघ का बेमेल दर्शन

पिछले एक दशक में संघ ने भाजपा का बेताल बनकर न सिर्फ राजकीय-प्रशासनिक तंत्र पर अपना शिकंजा कसा है बल्कि उसे अपने आनुवंशिक गुणों से विषाक्त भी किया है। आजकल घर-घर द्वारे-द्वारे, हर चौबारे, चौकी-थाना और सचिवालय तक वैमनस्य, हिंसा, भ्रष्टाचार और गैर-जवाबदेही का जो नंगा-नाच चल रहा है, वह इसी दार्शनिक दिशा का दुष्परिणाम प्रतीत होता है।

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बसु-रमण की धरती पर अंधश्रद्धा और वैज्ञानिक मिज़ाज पर कुछ बातें

पश्चिम के अकादमिक गढ़ों में बैठे उपनिवेशवाद के ये आलोचक और उत्तर-औपनिवेशिकता के ये सिद्धान्तकार निश्चित ही पश्चिमी समाजों को अधिक सभ्य, अधिक जनतांत्रिक और अधिक बहुसांस्कृतिक बनाने में योगदान कर रहे हैं, लेकिन पश्चिम के पास तो पहले से ही विज्ञान और आधुनिकता है, वह पहले ही आगे बढ़ चुका है। इस सब में हम पूरब वालों के लिए क्या है? गरीबी और अंधश्रद्धा के दलदल से हमें अपना रास्ता किस तरह निकालना है? अपने लिए हमें किस तरह के भविष्य की कल्पना करनी है?

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स्मृतिशेष: अनिल चौधरी, एक प्रतिबद्ध जनसरोकार योद्धा​

अनिल चौधरी का जीवन हमें सिखाता है कि कैसे संस्थागत सीमाओं से परे जाकर, विचारधारा और प्रतिबद्धता के साथ सामाजिक परिवर्तन लाया जा सकता है। उनकी शिक्षाएं और संघर्ष हमें आज भी प्रेरित करते हैं कि हम लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के लिए निरंतर प्रयासरत रहें।​

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पोन्नीलन के उपन्यास ‘करिसल’ के अंग्रेजी अनुवाद का लोकार्पण उर्फ साहित्य का ‘भारत जोड़ो’ समारोह

उपन्यास में आंदोलन का वर्णन ऐसे है जैसे जमीन से अनाज पैदा होता है, वैसे ही शोषण से जनआंदोलन पैदा हो रहा है, आंदोलन के नेता पैदा हो रहे हैं, लेखक पैदा हो रहा। उपन्यासकार मामूली इंसानी जिंदगियों को, उनके अभावग्रस्त जीवन को, इस जीवन के खिलाफ संघर्ष को करुणा के माध्यम से उसके उदात्त स्वरूप तक ले जाता है।

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