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धम्म-बुद्ध और धर्म-युद्ध : अहिंसा की पीठ पर लदी हिंसा की चेष्टाएं
यह कहना कि भारत ने हमेशा बुद्ध के अहिंसक रूप से अपने समाज और जीवन को नियंत्रित किया है, यह तो सरासर गलत होगा। एक ऐसा समाज जो वर्गीकरण, जाति-प्रथा और शोषण से ग्रस्त हो, जिसमें उसके संत-कवि एक बिना-ग़म के “बेगमपुरा” की कल्पना करें, वह समाज और सभ्यता कभी भी संपूर्ण रूप से अहिंसक नहीं कहलायी जा सकती।
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बनारस : पोप फ्रांसिस के सम्मान में सर्वधर्म शोक सभा का आयोजन
यह सभा न केवल पोप फ्रांसिस के प्रति एक हार्दिक श्रद्धांजलि थी, बल्कि विश्व शांति, पर्यावरण संरक्षण और धार्मिक सह.अस्तित्व के लिए एक प्रेरणादायी संदेश भी थी।
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बहसतलब: साध्य-साधन की शुचिता और संघ का बेमेल दर्शन
पिछले एक दशक में संघ ने भाजपा का बेताल बनकर न सिर्फ राजकीय-प्रशासनिक तंत्र पर अपना शिकंजा कसा है बल्कि उसे अपने आनुवंशिक गुणों से विषाक्त भी किया है। आजकल घर-घर द्वारे-द्वारे, हर चौबारे, चौकी-थाना और सचिवालय तक वैमनस्य, हिंसा, भ्रष्टाचार और गैर-जवाबदेही का जो नंगा-नाच चल रहा है, वह इसी दार्शनिक दिशा का दुष्परिणाम प्रतीत होता है।
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बसु-रमण की धरती पर अंधश्रद्धा और वैज्ञानिक मिज़ाज पर कुछ बातें
पश्चिम के अकादमिक गढ़ों में बैठे उपनिवेशवाद के ये आलोचक और उत्तर-औपनिवेशिकता के ये सिद्धान्तकार निश्चित ही पश्चिमी समाजों को अधिक सभ्य, अधिक जनतांत्रिक और अधिक बहुसांस्कृतिक बनाने में योगदान कर रहे हैं, लेकिन पश्चिम के पास तो पहले से ही विज्ञान और आधुनिकता है, वह पहले ही आगे बढ़ चुका है। इस सब में हम पूरब वालों के लिए क्या है? गरीबी और अंधश्रद्धा के दलदल से हमें अपना रास्ता किस तरह निकालना है? अपने लिए हमें किस तरह के भविष्य की कल्पना करनी है?
COLUMN
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स्मृतिशेष: अनिल चौधरी, एक प्रतिबद्ध जनसरोकार योद्धा
अनिल चौधरी का जीवन हमें सिखाता है कि कैसे संस्थागत सीमाओं से परे जाकर, विचारधारा और प्रतिबद्धता के साथ सामाजिक परिवर्तन लाया जा सकता है। उनकी शिक्षाएं और संघर्ष हमें आज भी प्रेरित करते हैं कि हम लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के लिए निरंतर प्रयासरत रहें।
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पोन्नीलन के उपन्यास ‘करिसल’ के अंग्रेजी अनुवाद का लोकार्पण उर्फ साहित्य का ‘भारत जोड़ो’ समारोह
उपन्यास में आंदोलन का वर्णन ऐसे है जैसे जमीन से अनाज पैदा होता है, वैसे ही शोषण से जनआंदोलन पैदा हो रहा है, आंदोलन के नेता पैदा हो रहे हैं, लेखक पैदा हो रहा। उपन्यासकार मामूली इंसानी जिंदगियों को, उनके अभावग्रस्त जीवन को, इस जीवन के खिलाफ संघर्ष को करुणा के माध्यम से उसके उदात्त स्वरूप तक ले जाता है।
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शिक्षा का लोकतान्त्रिक मूल्य और डॉ. भीमराव अम्बेडकर
डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा दिया गया सूत्र ‘शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो’ इस सूत्र में ही उनके संघर्षपूर्ण जीवन का व उनके शैक्षिक विचारों का सारांश छिपा हुआ है।