पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले की कुल 31 असेंबली सीटों में से 20 पर मतदान हो चुका है और शेष 11 पर आगामी 10 अप्रैल को मतदान होना है। 10 अप्रैल के मतदान के लिए चुनाव प्रचार आज शाम खत्म हो रहा है। इन 11 सीटों में जादवपुर और टॉलीगंज जैसी प्रमुख सीटें हैं जहां बाबुल सुप्रियो जैसे बड़े नेताओं की किस्मत का फैसला होना बाकी है।
जादवपुर छात्र आंदोलन के लिए जाना जाता है। बंगाल के चुनाव में भले ही सीएए और एनआरसी का मुद्दा उत्तरी और दक्षिणी 24 परगना के इलाकों में उतना अहम नहीं है लेकिन जादवपुर की दीवारों पर सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलन के दौर के नारे अब भी लिखे दिख जाते हैं। जादवपुर के विजयगढ़ स्थित एक कॉलेज की दीवारों पर एनआरसी और सीएए विरोधी नारे हमें लिखे दिखायी दिए। बहुत संभव है आज चुनाव प्रचार के आखिरी दिन इन पर सफेदी पोत दी जाय।
यहां कॉलेज के पड़ोस में मशहूर सिनेमा आलोचक बिद्यार्थी चटर्जी अपनी पत्नी के साथ रहते हैं। वे बताते हैं कि बंगाल के लोग खुद अपने पतन के लिए जिम्मेदार हैं। कुछ महीने पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की रैली के दौरान हुड़दंगियों द्वारा तोड़ी गयी ईश्वरचंद्र विद्यासागर की प्रतिमा पर वे बहुत नाराज़ हैं। वे कहते हैं, ‘’बंगाल के रेनेसां में तीन नाम सबसे अहम हैं- राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर और रवींद्रनाथ टैगोर। इनमें से किसी की मूर्ति तोड़ी जाती है और बदले में कोई कार्रवाई नहीं होती बल्कि बंगाल की जनता इन्हीं दंगाइयों के पीछे हो लेती है, इससे बड़ा अपमान बंगाल की इन विभूतियों का नहीं हो सकता। यह अपमान न सिर्फ बंगाल रेनेसां का है बल्कि बंगाली अस्मिता का भी है।‘’
वे बताते हैं कि जादवपुर सीट के आसपास ज्यादातर विभाजन के बाद आकर बसे हुए लोग हैं। भारतीय जनता पार्टी ने इन्हें अपने प्रचार से यह विश्वास दिला दिया है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इन्हें ‘बाहरी’ मानती है। वे कहते हैं:
ममता ने बाहरी गुंडों का प्रयोग अमित शाह और मोदी के लिए किया था, जो पूरब से नयी खेप भाजपाई लोगों की बंगाल में आयी है उनका आशय उससे था लेकिन यहां पीढि़यों से रह रहे बंगालियों ने उसे अपने ऊपर ले लिया। भाजपा ने इस ‘बाहरी’ वाले फैक्टर की गलत व्याख्या कर के इन सब को अपनी ओर खींच लिया है।
जादवपुर में वैसे तो प्रचार के दौरान टीएमसी के अलावा किसी के वाहन नहीं दिखते। यहां से टीएमसी के मलय मजूमदार खड़े हैं। इसके बावजूद चाय की दुकान पर चर्चा में बीजेपी का जिक्र जरूर आता है। यहीं एक कंपनी में काम करने वाले एक युवा नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘’अब नेताओं का कोई विचार या नैतिक स्टैंड नहीं रह गया। आप देखिए कैसे सीपीएम का सिटिंग एमएलए भाजपा के टिकट पर लड़ रहा है। जैसे हम लोग कंपनी बदलते हैं वैसे तो ये लोग पार्टी और विचार बदल रहे हैं। ऐसे में जो जिसका आदमी है उसे वोट देता है, बिना इस बात पर दिमाग लगाए कि उसका नेता किस पार्टी से लड़ रहा है।‘’
चटर्जी की मानें तो जादवपुर और खासकर विजयगढ़ में रहने वाली सर्विस क्लास जनता का रूझान इस बार भाजपा की ओर है।
ठीक यही हाल उन सीटों का है जहां वोट गिर चुका है। मसलन, रायदीघी असेंबली सीट के मथुरापुर क्षेत्र में हमने जितने भी लोगों से बात की उन्होंने बीजेपी के पक्ष में वोट देने की बात कही। एक समय पर यह सीपीएम का गढ़ हुआ करता था और कांति गांगुली को यहां लोग बहुत चाहते थे। वाम शासन के पतन और टीएमसी के उदय के साथ लोगों का मन भी बदल गया।
मथुरापुर से आने वाली लोकल ट्रेन से 7 अप्रैल की शाम कोलकाता लौट रही ज्यादातर जनता 6 तारीख को अपना वोट देकर लौट रही थी। कोई 40 लोगों से ट्रेन में ही बात कर के इस बात का अंदाजा लगता है कि टीएमसी की मामूली गलतियों से बीजेपी ने फायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
मथुरापुर में जो पारंपरिक सीपीएम वोटर बचे थे उनमें से ज्यादातर ने इस बार बीजेपी को वोट देने की बात कही। जब हमने इस बदलाव के पीछे का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि बीते वर्ष आए अम्फन तूफान के कारण लोगों को बहुत नुकसान हुआ था लेकिन राज्य सरकार की मदद उन तक नहीं पहुंची। लोगों के घरों को जो नुकसान हुआ था उसका मुआवजा भी दलगत तरीके से बांटा गया है। लोगों ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से जो मदद देने की बात कही गयी थी, वो उन्हें नहीं मिली, जिन्हें मिली वो सभी तृणमूल के लोग थे। पार्टी के आधार पर पहचान कर राहत सामग्री/राशि बांट दी गयी।
लोगों की एक और शिकायत है कि तृणमूल के शासन में विपक्षी खास कर सीपीएम समर्थकों और घर वालों को चुन-चुन कर टारगेट किया गया। उन पर फ़र्जी मुकदमें दर्ज कर हवालात में डाला गया और धमकी दी गयी। इस दौरान उन्हें बचाने के लिए खुद सीपीएम वाले भी आगे नहीं आये।
दक्षिण 24 परगना से लेकर सुंदरबन तक अम्फन की राहत सामग्री को लेकर शिकायत आम रही तो तकरीबन उन सभी ने तोलाबाजी और कट मनी की भी शिकायत रखी जिनसे हमने ट्रेन में आते-जाते बात की। कुछ नौजवानों का दबे स्वर में कहना था- ‘’हम जानते हैं कि बीजेपी की छवि साम्प्रदायिक है, किन्तु टीएमसी को सत्ता का गुरूर इतना हो गया कि वह किसी की नहीं सुनती। वही करती रही जो चाहती रही। इसलिए इस बार लोग बदलाव चाहते हैं।‘’
हमने फोन पर सुंदरबन के गोसाबा में कुछ लोगों से बातचीत की। गोसाबा में वोट गिर चुका है। बीजेपी ने सुंदरबन में भी अच्छी पहुंच बना ली है। बीजेपी का मत प्रतिशत इस बार और बढ़ने की उम्मीद है। कोई एक महीने से सुंदरबन में डेरा डाले दिल्ली से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के एक पुराने नेता आश्वस्त होकर कहते हैं कि उत्तर बंगाल और दक्षिणी बंगाल को भाजपा ने पूरी तरह साध लिया है। अब बारी कलकत्ते की है।
जादवपुर से अभिषेक श्रीवास्तव और रायदीघी से नित्यानंद गायेन के इनपुट के साथ