प्रधानमंत्री ने किसानों को परजीवी कहकर अन्नदाता का अपमान किया है: सुनीलम


किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के राष्ट्रीय संयोजक मंडल के सदस्य, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के वर्किंग ग्रुप के सदस्य एवं पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम ने कहा कि प्रधानमंत्री से उम्मीद की जा रही थी कि वे राज्यसभा में तीनों कानून रद्द करने की घोषणा करेंगे लेकिन उन्होंने आंदोलनरत किसानों को आंदोलनजीवी तथा विदेशी विध्वंसकारी बतलाकर किसानों को ही नहीं आजादी के आंदोलन से लेकर अब तक हुए सभी आंदोलनों को कलंकित करने का प्रयास किया है।

डॉ. सुनीलम ने कहा कि-

यदि स्वतंत्रता आंदोलन नहीं होता तो देश आजाद नहीं होता। 1974 का आंदोलन नहीं होता तो देश में लोकतंत्र की बहाली नहीं होती। 1894 में अंग्रेजों के द्वारा बनाए गए भू-अधिग्रहण कानून के खिलाफ आंदोलन नहीं होता तो नया भू-अधिग्रहण कानून नहीं बनता। जन लोकपाल बिल को लेकर अन्ना आंदोलन नहीं होता तो देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ वातावरण नहीं बनता। लोकपाल की आवश्यकता स्थापित नहीं होती।

डॉ. सुनीलम ने कहा कि-

अहिंसक आंदोलन और सत्याग्रह के माध्यम से अपनी समस्याओं की ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट करना स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत है। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और एकजुट होने का संवैधानिक अधिकार भी है। हम मानते हैं कि समाज और राष्ट्र के विकास के लिए यह जरूरी है कि समाज के विभिन्न तबके के लोग अपने मुद्दों की ओर ध्यान आकृष्ट करने के लिए अहिंसक आंदोलन करें।

डॉ. सुनीलम ने कहा कि प्रधानमंत्री ने किसानों को परजीवी कहकर अन्नदाता का अपमान किया है अर्थात जिस थाली में खाया है उस थाली में छेद किया है। संघ परिवार ना तो स्वतंत्रता आंदोलन के साथ जुड़ा, ना कभी स्वतंत्रता आंदोलनकारियों के महत्वपूर्ण योगदान को उसने सराहा।

प्रधानमंत्री ने अपने वक्तव्य के माध्यम से गांधी, लोहिया, जयप्रकाश, आचार्य नरेंद्र देव युसूफ मेहर अली, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, अरुणा आसफ अली, भगत सिंह ,सुभाषचन्द्र बोस जैसे स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वालों का अपमान किया है। इस तरह सभी स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान प्रधानमंत्री द्वारा किया गया है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि एमएसपी था, है, और रहेगा। यह सबसे बड़ा झूठ है क्योंकि 23 कृषि उत्पाद पैदा करने वाले सभी किसानों को आज तक एमएसपी का लाभ नहीं मिला। केवल और केवल पंजाब में गेहूं और धान की ही एमएसपी पर खरीद की जाती रही है। पूरे देश में किसानों द्वारा उत्पादित गेहूं और धान को भी एमएसपी पर ना तो पहले खरीदा गया न आज खरीदा जा रहा है।

जिन 6 प्रतिशत कृषि उत्पादों की एमएसपी पर खरीद होती है वह भी सी 2+50 प्रतिशत के आधार पर नहीं दी जा रही है।
प्रधानमंत्री द्वारा यदि कहा जाता कि कागजों पर घोषणा होती थी, होती है और होती रहेगी तो यह सत्य से जुड़ा बयान हो सकता था । वर्तमान आंदोलन सभी कृषि उत्पादों की सी2+ 50% पर खरीद की कानूनी गारन्टी की मांग कर रहा है । जिसकी घोषणा 2014 के चुनाव में प्रधानमंत्री द्वारा की गई थी तथा गुजरात के मुख्यमंत्री रहते एमएसपी पर 2006 में बनी कमेटी द्वारा एमएसपी की कानूनी गारन्टी देने की सिफारिश की गई थी।

प्रधानमंत्री ने अपने वक्तव्य में आंदोलनकारियों को अपमानित करते हुए विदेशी विध्वंशकारी विचारधारा से प्रेरित बताया है जबकि स्वयं प्रधानमंत्री, उनकी पार्टी और संघ परिवार विदेशी विध्वंसकारी फासीवादी विचारधारा के प्रतिनिधि है अर्थात प्रधानमंत्री ने उल्टा चोर कोतवाल को डांटे कहावत को चरितार्थ किया है।

डॉ. सुनीलम ने कहा कि उन्हें अपने वक्तव्य को वापस लेना चाहिए, देश के किसानों तथा आंदोलनकारियों से माफी मांगनी चाहिए और 3 किसान विरोधी कानूनों को रद्द करने की घोषणा करनी चाहिये। सभी कृषि उत्पादों की सी2 +50 प्रतिशत पर खरीद की कानूनी गारन्टी देनी चाहिए तथा बिजली संशोधन बिल वापस लेना चाहिए और पराली जलाने के अध्यादेश में किसानों को दंडित करने का प्रावधान समाप्त करना चाहिए।


भागवत परिहार
कार्यालय सचिव
किसान संघर्ष समिति
9752922320


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