मण्डल की सिफारिशों को याद करते हुए यूपी-बिहार में आज मनाया जा रहा है राष्ट्रीय OBC दिवस


बहुजन एकता को बुलंद करने और सामाजिक न्याय की लड़ाई तेज करने के आह्वान के साथ रिहाई मंच और सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) संयुक्त तौर पर आज 7 अगस्त को नेशनल ओबीसी डे (राष्ट्रीय ओबीसी दिवस) के बतौर मना रहे हैं.

संगठनों की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि 7 अगस्त 1990 को ही केन्द्र की वी.पी. सिंह सरकार द्वारा मंडल आयोग की एक सिफारिश- सरकारी सेवाओं में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण- को लागू करने की घोषणा की गई थी. आजादी के बाद लंबी लड़ाई और जद्दोजहद के बाद ऐतिहासिक वंचना के शिकार ओबीसी के लिए सामाजिक न्याय की दिशा में केन्द्र की किसी सरकार द्वारा पहली व न्यूनतम पहल हुई थी.

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव, सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) के संयोजक रिंकु यादव, गौतम कुमार प्रीतम ने बताया कि 7अगस्त 1990 के पहले प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग (काका कालेलकर आयोग) की रिपोर्ट खारिज हो चुकी थी और दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग (मंडल कमीशन) की रिपोर्ट भी लंबे समय से धूल फांक रही थी. 7अगस्त 1990 को सरकारी सेवाओं में 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की घोषणा के साथ 1931 की जनगणना के अनुसार मुल्क की सबसे बड़ी आबादी के लिए ऐतिहासिक वंचना से मुक्ति और सामाजिक न्याय हासिल करने का रास्ता खुला.

जारी बयान में नेताओं ने कहा कि मंडल कमीशन की दो सिफारिशों को छोड़कर शेष सिफारिशें आज तक लागू नहीं हो पाई है. उल्टे सरकारी सेवाओं और उच्च शिक्षा में लागू 27 प्रतिशत आरक्षण को भी ठीक ढंग से लागू नहीं किया गया और लगातार इसे भी खत्म कर देने की कोशिश-साजिश चल रही है.

नरेन्द्र मोदी सरकार में आरक्षण और सामाजिक न्याय पर चौतरफा हमला तेज हुआ है. एक तरफ निजीकरण की तेज रफ्तार आरक्षण को खत्म कर रही है तो दूसरी ओर से जारी हमले के क्रम में क्रीमी लेयर को पुनर्परिभाषित करने के जरिए आरक्षण के सामाजिक-शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार को ही खत्म कर देने की साजिश चल रही है. यह साजिश आरक्षण के खात्मे की है.

संगठनों की ओर से राजीव यादव, रिंकु यादव और गौतम कुमार प्रीतम ने बताया कि निम्नलिखित नारों-मुद्दों पर आवाज बुलंद की जा रही है:

  • सामाजिक न्याय नहीं आधा-अधूरा! लेकर रहेंगे,पूरा-पूरा!
  • मंडल कमीशन की तमाम सिफारिशों को लागू करो!
  • क्रीमीलेयर को पुनर्परिभाषित करने के जरिए ओबीसी आरक्षण पर हमला बंद करो!
  • क्रीमीलेयर का असंवैधानिक प्रावधान खत्म करो!
  • बुलंद करो दावेदारी! लड़कर लो हिस्सेदारी!
  • आरक्षण के लिए 50 प्रतिशत की तय सीमा खत्म करो!
  • ओबीसी को आबादी के अनुपात में 54% आरक्षण दो!
  • राष्ट्रीय स्तर पर मेडिकल कॉलेजों में दाखिले में ओबीसी आरक्षण की लूट पर रोक लगाओ!
  • आरक्षण संवैधानिक हक है, मौलिक अधिकार है!
  • ओबीसी आरक्षण को लागू करने में बेईमानी व गड़बड़ी पर रोक लगाओ!
  • निजीकरण आरक्षण व सामाजिक न्याय के खिलाफ है!
  • बहुजन विरोधी निजीकरण पर रोक लगाओ!
  • मीडिया और निजी क्षेत्र में आबादी के अनुपात में एससी-एसटी-ओबीसी को आरक्षण दो!
  • एससी, एसटी और ओबीसी को प्रोन्नति में आरक्षण की गारंटी करो!
  • हमें बहुजन विरोधी ब्राह्मणवादी न्यायपालिका मंजूर नहीं!
  • सुप्रीम कोर्ट एवं हाईकोर्ट में कॉलेजियम सिस्टम खत्म कर राष्ट्रीय न्यायिक सेवा आयोग के जरिए एससी-एसटी-ओबीसी को आबादी के अनुपात में आरक्षण के साथ जजों की नियुक्ति करो!
  • ओबीसी की गिनती क्यों नहीं?
  • 2021 में जनगणना के साथ जाति जनगणना की गारंटी करो!
  • ब्राह्मणवादी सवर्ण वर्चस्व हमें कबूल नहीं!
  • असंवैधानिक सवर्ण आरक्षण खत्म करो!
  • बहुजन विरोधी नई शिक्षा नीति-2020 वापस लो!
  • सबको एकसमान-गुणवत्तापूर्ण शिक्षा-चिकित्सा की गारंटी करो!
  • बहुजनों को भूमि अधिकार की गारंटी करो!

फेसबुक, ट्विटर व अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपर्युक्त मुद्दों के पक्ष में लिखने, घरों से भी प्रतिवाद करने व मुद्दों के पोस्टर के साथ तस्वीर सोशल मीडिया पर डालने, सोशल मीडिया पर मुद्दों के पक्ष में पोस्टर प्रसारित करने और विडीओ बनाकर या लाइव आकर अपनी बात रखने के जरिये ‘नेशनल ओबीसी डे” मनाया जा रहा है.

‘ओबीसी और सामाजिक न्याय के समक्ष चुनौतियों’ विषय पर फेसबुक पेज https://www.facebook.com/सामाजिक-न्याय-आंदोलनबिहार-294506084729679/ पर ऑनलाइन विमर्श भी आयोजित हो रहा है.

विमर्श में डॉ. विलक्षण रविदास, अनिल चमड़िया, शिव दास, डॉ. योगेन्द्र, हरिकेश्वर राम, अफाक उल्लाह, लक्ष्मण यादव, विनय जायसवाल, सिद्धार्थ रामू, गौतम कुमार प्रीतम, राजीव यादव वक्ता के बतौर हैं.

संगठनों की ओर से जारी…
रिंकु यादव- 94719 10152
राजीव यादव- 9452800752


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

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