मुआवजा पाये मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने छत्‍तीसगढ़ के CM को कल्‍लूरी पर कार्रवाई के लिए लिखा


छत्‍तीसगढ़ के बस्‍तर में छह मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ चार साल पहले हुई झूठी एफआइआर के मामले में मानवाधिकार आयोग के निर्देशों पर प्रत्‍येक को एक एक लाख का मुआवजा दिए जाने पर इन कार्यकर्ताओं ने मुख्‍यमंत्री भूपेश बघेल को एक पत्र लिखकर धन्‍यवाद दिया है। प्रो. नंदिनी सुंदर, प्रो. अर्चना प्रसाद, विनीत तिवारी, संजय पराते, मंजू कवासी और मंगला राम कर्मा ने झूठे मुकदमों में जेल में बंद दूसरे नागरिकों के लिए भी इंसाफ़ की मांग की है।

विनीत तिवारी ने जनपथ को यह जानकारी देते हुए इस बात पर चिंता जाहिर की कि अब भी छत्‍तीसगढ़ की जेलों में निर्दोष आदिवासी बंद हैं और जिस पुलिस अधिकारी एसआरपी कल्‍लूरी के बस्‍तर में आइजी रहते यह किया गया वे अब तक बाहर हैं। उन्‍होंने छत्‍तीसगढ़ से सटे बिहार के कैमूर में हफ्ते भर पहले धरनारत कैमूर मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ताओं पर हुई पुलिस फायरिंग की निंदा करते हुए कहा कि बिलकुल यही अत्‍याचार छत्‍तीसगढ़़ में भी जल, जंगल और जमीन के मुद्दे पर आंदोलन करने वाले आदिवासियों पर किया गया है। बिहार में चुनाव सिर पर हैं, तो वहां भी आदिवासियों पर दमन शुरू हो गया है।

विनीत तिवारी सहित छह अन्‍य ने बघेल को लिखे पत्र में कहा है कि झूठे आरोप लगाकर उन्‍हें परेशान करने वाले पुलिस अधिकारियों की गहराई से जांच और कार्यवाही की जानी चाहिए। ‘’यह मामला पूरी तरह से झूठी और विद्वेष की भावना से की गई एफआइआर का था जिससे हमें तकलीफ पहुंचायी जा सके और इस पूरी साज़िश की पृष्ठभूमि में तत्कालीन पुलिस आइजी एसआरपी कल्लूरी की अहम भूमिका रही है। हमारा अनुरोध है कि उनके कार्यकाल में बस्तर में हुई मुठभेड़ों और गिरफ्तारियों आदि की सघन जाँच करवायी जाए। अपने पद का दुरुपयोग करने वाले ऐसे अधिकारियों को पूर्ववत सामान्य तरह से काम जारी रखने नहीं दिया जाना चाहिए।‘’

letter-to-CM

ध्‍यान देने वाली बात है कि राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग के जिस फैसले में इन छह कार्यकर्ताओं को मुआवजे का निर्देश राज्‍य सरकार को दिया गया था, उसी में दो और मामलों पर आयोग ने अपना निर्णय दिया था। एक केस था तेलंगाना के सात वकीलों की एक फैक्‍ट फाइंडिंग टीम के ऊपर दर्ज हुई एफआइआर का। यह मुकदमा भी सुकमा में ही 2016 में दर्ज किया गया था। बाद में सुकमा के मुख्‍य दंडाधिकारी ने इन सभी को बरी कर दिया था। आयोग ने इन सातों अधिवक्‍ताओं को भी एक एक लाख के मुआवजे का निर्देश दिया है।

छत्‍तीसगढ़ शासन से इन सातों वकीलों- सीएच प्रभाकर, बी. दुर्गाप्रसाद, बी. रबींद्रनाथ, डी. प्रभाकर, आर. लक्ष्‍मैया, मोहम्‍मद नाजिर और के. राजेंद्र प्रसाद- को मानसिक प्रताड़ना के एवज में एक एक लाख का मुआवजा देने को राज्‍य सरकार से कहा है।

तीसरा मामला बस्‍तर के पत्रकार संतोष यादव पर दर्ज मुकदमे का था। इसमें आयोग ने कहा है कि चूंकि चार्जशीट दाखिल हो चुकी है लिहाजा आयोग इस मामले में कोई टिप्‍पणी नहीं करेगा। चौथा मामला पीयूसीएल छत्‍तीसगढ़ के अध्‍यक्ष रहे डॉ. लाखन सिंह का था जिसमें साक्ष्‍य न होने के कारण मुकदमा समाप्‍त कर दिया गया था। आयोग ने लिखा है कि डॉ. लाखन सिंह चूंकि इस मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहते थे, लिहाजा आयोग इसमें कोई दखल नहीं देगा।

डॉ. लाखन सिंह का पिछले साल निधन हो चुका है।


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