दिल्ली के द्वारका सेक्टर 9 में बन रहे इंदिरा गांधी अस्पताल के निर्माणाधीन परिसर में तकरीबन बंधक की स्थिति में फंसे हुए 250 मजदूरों की ओर से आयी एक दर्दनाक चिट्ठी दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार की राहत योजनाओं की पोल खाेल रही है। सात सौ बिस्तरों वाले इस सरकारी अस्पताल के निर्माण का काम लार्सन एंड टुब्रो कंपनी के जिम्मे है और कंपनी इन मजदूरों को पचास दिन के लॉकडाउन के बाद भी घर नहीं जाने दे रही। केवल राशन देकर रोके हुए है।
मंगलवार की सुबह इन मजदूरों को एक बार पुलिस ने परेशान किया और साइट पर तनाव पैदा हो गया। मौके से मिला वीडियो हकीकत बयां करने के लिए काफी है।
द्वारका में फंसे इन मजदूरों ने फोन कर जनपथ को बताया कि इस लॉकडाउन के चलते उनकी जिन्दगी मुश्किल में हैं और एलएंडटी प्रशासन के साथ स्थानीय प्रशासन भी उनकी मांगों को दबाने की कोशिश में लगा हुआ है। उन्हें गालियां और धमकी दी जा रही हैं। इन मजदूरों का आरोप है कि एलएंडटी कम्पनी ने उन्हें इस लॉकडाउन में बंधक बना कर रखा है और उन्हें दो महीनों से वेतन भी नहीं मिला है। ये सभी मजदूर बिहार, यूपी, झारखण्ड, बंगाल, असम और पंजाब से हैं।
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इन मजदूरों ने कहा है कि एलएंडटी कम्पनी, जिसे इस अस्पताल का ठेका मिला हुआ है, उसके प्रशासन का रवैया बहुत क्रूर है। जब मजदूर इस लॉकडाउन में अपने घर जाने की बात करते हैं तो उन्हें धमकाया जाता है और कहा जाता है कि यदि वे घर चले जाएंगे तो काम कौन करेगा।
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इन मजदूरों को लॉकडाउन के दौरान वेतन नहीं मिला है जबकि प्रधानमंत्री ने अपने पहले संबोधन में ही कंपिनयों से कहा था कि वे वेतन न काटें। कम्पनी की तरफ से उन्हें कुछ राशन जरूर मिला है किन्तु इन मजदूरों का आरोप है कि न तो उनके पास गैस आदि के लिए पैसे हैं न ही अन्य सुविधाएं हैं।
इनमें से कुछ मजदूरों ने जनपथ को अपने नाम और नंबर की सूची भेजी है। यह सूची हम नीचे प्रकाशित कर रहे हैं ताकि दिल्ली सरकार और समाजसेवी संस्थाओं में से जिसकी भी नज़र इस पर पड़े, वे तत्काल इन्हें राहत पहुंचाएं और मुक्त करवाएं। मजदूरों ने अपना संदेश भी रिकॉर्ड कर के भेजा है।
दिल्ली में कैद इन मजदूरों को दिल्ली की केजरीवाल सरकार से भी कोई मदद नहीं मिली है। बीते 25 मार्च को दिल्ली सरकार ने घोषणा की थी कि कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच दिल्ली सरकार निर्माण मजदूरों को पांच हजार रुपये एकमुश्त देगी। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा था कि दिल्ली में निर्माण कार्य से जुड़े जितने भी मजदूर हैं, सरकार ने सभी को पांच हजार रुपये प्रत्येक देने का फैसला लिया है। केजरीवाल ने यही बात मंगलवार को भी दुहरायी है। दिल्ली की सरकारी परियोजना में काम कर रहे ये 250 मजदूर दिल्ली के मुख्यमंत्री को झूठा साबित कर रहे हैं।
इसके अलावा दिल्ली सरकार की वेबसाइट से श्रमिकों के प्रति उसका रवैया उजागर होता है जिस पर 20 नवंबर 2015 के बाद से पंजीकृत निर्माण मजदूरों की संख्या अपडेट नहीं है। इसके मुताबिक दिल्ली निर्माण व अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड के अंतर्गत 30.11.2015 तक 3,16,865 निर्माण मजदूर बोर्ड में पंजीकृत हैं।
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दरअसल, यह सहायता राशि उन मजदूरों को मिलनी थी जो लेबर बोर्ड में पंजीकृत हैं।.अब जब द्वारका में फंसे मजदूर कह रहे हैं कि उन्हें दिल्ली सरकार की ओर से कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली है तो मामला साफ़ है कि इन मजदूरों का पंजीकरण नहीं किया गया है।
मजदूरों के नाम उनके नंबर सहित नीचे दिए जा रहे हैं जो उन्होंने जनपथ को भेजे हैं।
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