इंदौर
अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता संगठन (एप्सो ) के सदस्य बुधवार 12 जुलाई को इंदौर में मालवा मिल चौराहे पर जमा हुए और उन्होंने साम्राज्यवादी युद्ध के ख़िलाफ़ और विश्व शांति के समर्थन में शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया। सभी सदस्य तख़्तियाँ लिए हुए थे जिसमें नाटो को तत्काल भंग करने, रूस और युक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को रोकने और ख़तरनाक हथियारों की होड़ के बजाय हर हाथ को काम देने के नारे लिखे थे। जहाँ मालवा मिल पर यह प्रदर्शन चल रहा था वहीं सुदूर देश लिथुआनिया के नाटो (नार्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) सम्मेलन में फैसला लिया गया कि यूक्रेन को नाटो की सदस्यता नहीं दी जाए। यूक्रेन को सदस्यता देने के मुद्दे पर जाहिर है, सभी सदस्य देशों के बीच सहमति नहीं बन पाई।
प्रदर्शन के पूर्व शहीद भवन में हुई सभा में अ. भा. शांति एवं एकजुटता संगठन के राज्य महासचिव अरविंद पोरवाल ने कहा कि एप्सो विश्व शांति संगठन का हिस्सा है और सारी दुनिया के देशों में शांति पसंद लोग संगठित रूप से युद्ध का विरोध कर रहे हैं पहले भी वियतनाम युद्ध के समय विश्व शांति आंदोलन ने युद्ध रोकने में बड़ी भूमिका निभायी थी और अभी भी दुनिया के अनेक देशों में युद्ध के खिलाफ शांति के लिए प्रदर्शन जारी है इन सबके संवेद प्रभाव से अमेरिका या नाटो अपनी मनमानी नहीं कर पाएगा। मालवा मिल पर बरसते पानी में चले इस प्रदर्शन को आते-जाते राहगीरों ने वाहन रोक-रोक कर देखा।
कुछ युवाओं ने आकर यह भी पूछा कि हमने तो नाटू-नाटू वाला गाना सुना है, यह नाटो है क्या, इस पर कॉमरेड चुन्नीलाल वाधवानी ने यह समझाया कि नाटो अमेरिकापरस्त देशों का संगठन है जो दूसरे विश्व युद्ध के बाद अस्तित्व में आया था और उसका प्रमुख काम समाजवादी देशों को नुकसान पहुँचाना था नाटो ने विश्व शांति को अनेक बार ख़तरे में डाला है।
मालवा मिल पर प्रदर्शन को देखकर कुछ विजिलेंस वाले भी पहुंचे। उन्होंने नाटो-नाटो लिखे नारे को देखा और पूछने लगे कि यह नाटो-नाटो क्या है, हम तो यह सोचकर आए थे कि नोटा को लेकर कोई प्रदर्शन हो रहा है। जब शांति संगठन के सदस्य विजय दलाल ने उन्हें बताया कि किस तरह से नाटो का भंग होना विश्व शांति के लिए ज़रूरी है तो उन्होंने राहत की साँस ली और लौट गए।
अखिल भारतीय शांति संगठन के इस संक्षिप्त किंतु प्रभावी प्रदर्शन को तक़रीबन 1000 लोगों ने देखा। सभी सदस्यों ने इस बात पर खुशी जाहिर की कि युक्रेन को नाटो की सदस्यता देने से इनकार कर दिया गया है। सदस्यों का कहना था कि इससे रूस और यूक्रेन के युद्ध में और तीव्रता नहीं आएगी और इस बीच शांति प्रयासों से रूस और यूक्रेन को युद्ध विराम के लिए समझाया जा सकता है । प्रदर्शन में शामिल अ. भा. शांति एवं एकजुटता संगठन के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने कहा कि किसी भी देश को नाटो का सदस्य बनाने के लिए नाटो के वर्तमान सदस्य देशों की सर्वसम्मति जरूरी होती है। अभी नाटो में 31 देश सदस्य हैं। नाटो के नियमों के अनुसार यदि नाटो के किसी भी सदस्य देश पर हमला होता है तो सभी सदस्य देश मिलकर हमला करने वाले देश के ख़िलाफ़ युद्ध करते हैं I ऐसी स्थिति में दो देशों का युद्ध दो देशों तक नहीं रह जाता और विश्व युद्ध की शक़्ल ले सकता हैI नाटो के सदस्य देश रूस से सीधा युद्ध नहीं चाहते। इसके बजाय वे युक्रेन को मोहरा बना कर इस युद्ध में शामिल रखना चाहते हैं।
उन्होंने बताया कि 1949 में अमेरिकी साम्राज्यवाद के असर वाले 11 देशों, जिनमे यूरोप के भी कुछ देश शामिल थे, ने मिलकर नाटो की स्थापना की थी जब 1955 में अमेरिका ने पश्चिमी जर्मनी में हथियारों का जमावड़ा बढ़ा दिया तो इससे जर्मनी के ही समाजवादी धड़े, पूर्वी जर्मनी के लिए खतरा पैदा हो गया इसके जवाब में सोवियत संघ ने अपने प्रभाव वाले देशों को एकजुट कर नाटो की तर्ज़ पर वारसा संधि की तब से शीत युद्ध के दौरान नाटो देश और वारसा संधि वाले देश एक दूसरे के ख़िलाफ़ साज़िशें और हमले करते रहते थे सन 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद वारसा संधि वाले देश बिखर गए कायदे से नाटो को भी अपने आप को विघटित कर देना चाहिए था लेकिन अब नाटो का इस्तेमाल अमेरिका अपने साम्राज्यवादी विस्तार के लिए कर रहा है और दूसरे देशों पर अनेक बहानों से हमला कर रहा है। अमेरिका के इस इरादे का सारी दुनिया में विरोध होना जरूरी हैI विश्व शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा साम्राज्यवाद है ये हमें समझना होगा । उन्होंने यह भी कहा कि विश्व शांति के लिए काम कर रहे संगठनों ने युक्रेन को नाटो की सदस्यता से दूर रखने में महती भूमिका निभाई है।
उन्होंने कहा कि युक्रेन को नाटो की सदस्यता ना देकर नाटो के सदस्य देशों ने अपने आप को युद्ध से सुरक्षित रखने की चाल अपनायी है और रूस से लड़ने के लिए युक्रेन को ये कहकर बहलाया फुसलाया है कि हम तुम्हें और ज़्यादा हथियार और युद्ध के लिए ज़रूरी सामग्री उपलब्ध करवाते रहेंगे बस लड़ाई में मोर्चे पर तुम डटे रहो।
प्रदर्शन में लेखक, कलाकार, पत्रकार और मज़दूर संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए।
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