राजकुमारी अमृत कौर कॉलेज ऑफ नर्सिंग में 50 दिन से जारी है कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स का प्रोटेस्ट

कॉन्ट्रैक्ट पर काम करनेवाले कर्मचारियों को कॉलेज और ठेकेदार की मिलीभगत से काम से निकाल दिया गया है। इन मज़दूरों ने ‘समान काम समान वेतन’, ‘नियमितीकरण’ जैसी मांगो को कॉलेज प्रशासन के समक्ष उठाया था। अपने संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए मज़दूर अपनी यूनियन भी बनाने में लगे हुए थे। इन्हीं कारणों के चलते यूनियन से जुड़े 39 कर्मचारियों को काम से निकाल दिया गया है।

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देश भर में LIC वाले हड़ताल पर क्यों चले गए? क्या है IPO और क्यों हो रहा है विरोध?

सरकार निगम मे विनिवेश क्यों करना चाहती है? क्या निगम ने अपनी ऐतिहासिक भूमिका नहीं निभाई है? क्या निगम ने जनता के पैसे को मोबि‍लाइज नहीं किया है? क्या निगम ने उस पैसे का राष्ट्रीय और सामाजिक उपयोग नहीं किया है? क्या निगम ने जनता का विश्वास बरकरार नहीं रखा है? क्या निगम ने प्रतियोगी माहौल का सामना सफलतापूर्वक नहीं किया है?

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पॉलिटिकली Incorrect: सत्ता का वर्ग-युद्ध बनाम ट्रेड यूनियनों की सदिच्‍छा

तीन लेबर कोड बिल- इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड, कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी और ऑक्‍युपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड को स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजा गया था और मामूली रद्दोबदल के साथ वो अब सीधे लोकसभा में प्रवेश कर चुके हैं।

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पेट्रोलियम कंपनियों का निजीकरण हम सब के हितों के खिलाफ़ क्यों है?

नवंबर 2019 को केंद्र सरकार ने बी.पी.सी.एल. को बेचने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। उस समय से देशभर में तमाम तेल कंपनियों – आयल एंड नेचुरल गैस कमीशन (ओ.एन.जी.सी.), इंडियन आयल कारपोरेशन (आई.ओ.सी.), हिन्दोस्तान पेट्रोलियम कंपनी लिमिटेड (एच.पी.सी.एल.), आयल इंडिया और बी.पी.सी.एल. की सभी मज़दूर यूनियनें इसका ज़ोरदार विरोध करती आ रही हैं।

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छत्तीसगढ़: कोयला मजदूरों की हड़ताल के समर्थन में कल किसान-आदिवासी संगठन भी उतरेंगे मैदान में

आज यहां जारी एक बयान में इन किसान संगठनों से जुड़े नेताओं संजय पराते, आलोक शुक्ला, सुदेश टीकम, आई के वर्मा, राजिम केतवास, पारसनाथ साहू, तेजेन्द्र विद्रोही, नरोत्तम शर्मा, बाल सिंह आदि ने कहा कि विकास के नाम पर विभिन्न परियोजनाओं की आड़ में अभी तक दो करोड़ से ज्यादा आदिवासियों और गरीब किसानों को उनकी भूमि से विस्थापित किया गया है।

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आज से शुरू हुई लाखों कोयला मजदूरों की हड़ताल का समर्थन हर देशभक्त को क्यों करना चाहिए?

जिन लोगों ने ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’ नामक फिल्म देखी होगी उसने यह पाया होगा कि कोयले के राष्ट्रीयकरण के पहले कैसे गुलामों की तरह कोयला मजदूरों की जिंदगी थी। इस बात को अस्सी के दशक में बनी फिल्म ‘काला पत्थर’ में भी दर्शाया गया है। इन गुलामी के दिनों की वापसी के खिलाफ कोयला मजदूरों की यह तीन दिवसीय हड़ताल है जो आज से शुरू होकर 4 जुलाई तक चलेगी।

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