COVID-19 से उपजे आर्थिक दबाव में पांच लाख से ज्यादा लड़कियां बाल विवाह के लिए मजबूर

सिविल सोसाइटी संगठनों की मदद से चलाये जा रहे वैश्विक प्रयासों द्वारा पिछले एक दशक में बाल विवाहों की संख्या में 15% तक की कमी अवश्य आयी है, लेकिन 2030 तक बाल विवाह को समाप्त करने के लक्ष्य को प्राप्त करने लिए एक लंबा रास्ता तय करना अभी बाकी है।

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गर्भधारण का आपातकाल बना लॉकडाउन, 14 देशों की 32 फीसद महिलाएं परिवार नियोजन में अक्षम

10वीं एशिया पैसिफिक कांफ्रेंस ऑन रिप्रोडक्टिव एंड सेक्सुअल हेल्थ एंड राइट्स के छठे वर्चुअल सत्र में आपातकालीन गर्भनिरोधक पर एशिया पेसिफिक संगठन (“एशिया पैसिफिक कंसॉर्शियम फॉर इमरजेंसी कंट्रासेप्शन”) के शुभारंभ के दौरान इन्हीं चिंताओं के संदर्भ में आपातकालीन गर्भनिरोधक की शोधकर्ता एवं ऑस्ट्रेलिया प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय की प्रोफेसर एंजेला डॉसन ने विचार रखे।

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जलवायु परिवर्तन और महिला स्वास्थ्य में क्या है संबंध?

पितृसत्तात्मक मान्यताओं के चलते पहले से मौजूद लैंगिक असमानताओं के कारण महिलाएँ और लड़कियाँ स्वयं को अधिक असुरक्षित पाती हैं और असंगत रूप से प्रभावित होती हैं।

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ग्रासरूट सॉकर: खेल से सामाजिक और लैंगिक परिवर्तन तक

मूल ग्रासरूट सॉकर मॉडल को अन्य देशों के युवा संगठन द्वारा भी दोहराया जा सकता है। वे किसी भी देश विशेष के राष्ट्रीय या लोकप्रिय खेल के माध्यम से युवाओं के स्वास्थ्य सम्बन्धी अधिकारों और स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ावा दे सकते हैं.

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परिवार नियोजन क्या अकेले महिलाओं का ही दायित्व है?

भारत के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के मुताबिक, 40 प्रतिशत भारतीय पुरुषों का मानना है कि गर्भ निरोध का दायित्व महिलाओं पर है और पुरुषों को इसके बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए. शायद यही कारण है कि भारत में महिला नसबंदी सबसे ज्यादा लोकप्रिय गर्भनिरोधक विधि है और इसका उपयोग करने वालों की संख्या भी सबसे अधिक – 36 प्रतिशत – है जबकि पुरुष नसबंदी मात्र 0.3 प्रतिशत है.

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