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विसर्ग के अनैतिक संसर्ग में फंसे बनारस के बहाने हिन्दी के कुछ सबक
किसी भी भाषा का मूल तो स्वर यानी ध्वनि ही है। हिंदी में यह अधिक है, तो यह उसकी शक्ति है, लेकिन इसे ही यह हटा रहे हैं। कई भाषाओं में कम ध्वनियां हैं तो उन्हें आयातित करना पड़ा है और यह बात अकादमिक स्तरों पर भी मानी गयी है। कामताप्रसाद गुरु ने भी अपनी किताब ‘हिंदी व्याकरण’ में इसी बात पर मुहर लगायी है कि हिंदी मूलत: ध्वनि का ही विज्ञान है।
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