विसर्ग के अनैतिक संसर्ग में फंसे बनारस के बहाने हिन्दी के कुछ सबक

किसी भी भाषा का मूल तो स्वर यानी ध्वनि ही है। हिंदी में यह अधिक है, तो यह उसकी शक्ति है, लेकिन इसे ही यह हटा रहे हैं। कई भाषाओं में कम ध्वनियां हैं तो उन्हें आयातित करना पड़ा है और यह बात अकादमिक स्तरों पर भी मानी गयी है। कामताप्रसाद गुरु ने भी अपनी किताब ‘हिंदी व्याकरण’ में इसी बात पर मुहर लगायी है कि हिंदी मूलत: ध्वनि का ही विज्ञान है।

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हिंदी भाषा पर बातचीत: क्या हिंदी वालों को हिन्दी से प्यार नहीं है?

हिंदी को बस हिंदी रहने देना चाहिए। इसको क्लिष्ट और आसान के खांचों में काहे बांटना। हिंदी सहज-सरल तौर पर विदेशी भाषा के शब्दों को ग्रहण करती आयी है और यही किसी भाषा के सामर्थ्यवान होने का भी द्योतक है।

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दक्षिणावर्त: जिसकी जितनी लहान, उसकी वैसी ज़बान!

पत्रकारिता और चुनौती- ये दो शब्द एक साथ सुनते ही कुछ हुड़कहुल्लू फासीवाद, मोदी, भगवा आतंक, आपातकाल इत्यादि का जाप करने लगते हैं, जैसे उन्हें दौरा पड़ गया हो। जरूरत उन असली चुनौतियों पर बात करने की है जो न्यूजरूम के अंदर और बाहर, किसी मीडिया कंपनी के कारिंदे के तौर पर या स्वतंत्र पत्रकार होने के नाते, युवा तुर्क और अनुभवी धैर्यवान पत्रकारों को झेलना पड़ता है।

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सवा सौ साल पुरानी नागरीप्रचारिणी सभा का खोया गौरव लौटेगा, अदालती फैसले ने तोड़ा खानदानी वर्चस्व

हिन्दी भाषा और नागरी लिपि के निर्माण और प्रसार में अनिवार्य भूमिका निभाने वाली 128 वर्ष पुरानी संस्था नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी की हालत चिंताजनक थी. इस संस्था पर लंबे समय से एक परिवार ग़ैरकानूनी तरीक़े से क़ाबिज़ था. ये लोग निजी लाभ के लिए मनमानेपन से संस्था की मूल्यवान चल-अचल संपत्ति का दुरुपयोग कर रहे थे.

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आर्टिकल 19: आचार्य आप कहां हैं? उ प्र में हि शि का थैंक्यू हो गया!

सरकार के हिसाब से देखें तो इसे हिंदी का अभूतपूर्व विकास भी कह सकते हैं। वह ऐसे, कि 2019 में 10वीं-12वीं में हिंदी में फेल होने वाले छात्रों की संख्या 10 लाख थी। तो हिंदी का सीधे 20 फीसद विकास हुआ है। और अगर कहीं 2018 वाला देख लें तब तो लगेगा भारतेंदु युग यही है। निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल।

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