भारत की जेलों में कैद औरतों की अनकही कहानियां

आज़ादी का ख्वाब दिल में पाले देश की जेलों में कैद महिलाओं की अनगिनत कहानियां हैं। इनमें से कितनी गुनाहगार हैं और कितनी बेगुनाह हैं, यह आमतौर पर कानून नहीं, बल्कि पुलिस के गढ़े गये सबूतों के साथ-साथ समाज और अदालतों का पितृसत्तात्मक नज़रिया तय करता है।

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पूंजी-विस्तार और संसाधनों की लूट के बीच हाशिये की औरतों की जिंदगी, श्रम और प्रतिरोध

जाति, जातीयता, वर्ग के पदानुक्रम और राज्‍य के प्रभुत्‍व सहित कलंकीकरण के सभी औज़ारों के साथ मिलकर पितृसत्‍ता औरतों के श्रम का शोषण करती है, उनकी आवाजाही व मेहनत पर नियंत्रण कायम करती है। नतीजतन, साधनों-संसाधनों तक उनकी पहुंच को और कम कर देती है।

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वर्क फ्रॉम होम के दौर में लैंगिक उत्पीड़न का बदलता स्वरूप

हमें अपने परिवार, समाज के भेदभावपूर्ण ढाँचे को भी बदलना होगा, जहां लड़कों की हर बात को सही और लड़कियों के हर कदम को शंका की नज़र से देखा जाता है

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