पांच दशक से कविता के ‘अंधेरे में’ भटकता मुक्तिबोध का कहानीकार

मुक्तिबोध की रचना-प्रक्रिया में कविता चूंकि कहानी लिख पाने में हासिल विफलता के बाद आती है (जिसका उद्देश्य महज खुद को प्रकट कर के खो देना है), फलस्वरूप मुक्तिबोध के ही लेखे ‘‘साहित्यिक फ्रॉड’’ का अनुपात उनकी कविताओं में उनकी कहानियों के बनिस्बत कहीं ज्यादा है।

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जाति की सलीब पर कवि को टाँगे जाने के विरुद्ध: दिवाकर मुक्तिबोध से एक संक्षिप्त संवाद

दिवाकर मुक्तिबोध को मैंने फोन लगाया, हालांकि वो नहीं चाहते थे कि इस पर कुछ लिखूं या विवाद को और तूल दिया जाए या फिर मुक्तिबोध को जाति की सलीब पर लटका दिया जाए लेकिन चूंकि यह ज़रूरी है इसलिए दिवाकर मुक्तिबोध से माफ़ी सहित, उनसे हुई बातचीत यहां जस का तस प्रकाशित कर रहा हूं।

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मुक्तिबोध ने अपने को मारकर कविता को जिला लिया- हम लोगों तक पहुंचाने के लिए!

मुक्तिबोध की रचनाएं सृजन का विस्फोट हैं। वे सजग चित्रकार की भांति दुनिया का सुंदरतम उकेरना चाहते हैं। वे चाहते हैं उजली-उजली इबारत, मगर अंधेरे बार-बार उनकी राह रोक लेते हैं। अंधेरों के चक्रव्यूह में घिरे वे अभिमन्यु की तरह अकेले ही जूझते हैं अनवरत लगातार। यह युद्ध कभी खत्म नहीं होता, चलता ही रहता है उनके भीतर। वे लड़ते हैं आजीवन क्योंकि उन्हें लगता है कि उन जैसों के हाथ में सच की विरासत है; जिसे उन्हें आने वाले समय को, पीढ़ी को ज्यों का त्यों सौंपना है।

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