कृषि बिल: किसानों के साथ केंद्र की वार्ता बेनतीजा, पंजाब में रेल सेवाएं ठप
बीते डेढ़ महीने से पंजाब के किसान मोदी सरकार द्वारा जबरन पारित कृषि बिल के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं। किसान रेलवे ट्रैक पर चारपाई खाट बिछा कर वहीं बैठे हुए हैं।
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बीते डेढ़ महीने से पंजाब के किसान मोदी सरकार द्वारा जबरन पारित कृषि बिल के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं। किसान रेलवे ट्रैक पर चारपाई खाट बिछा कर वहीं बैठे हुए हैं।
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गुरुवार को 500 से अधिक किसान संगठनों द्वारा “कॉर्पोरेट भगाओ-खेती-किसानी बचाओ-देश बचाओ” के केंद्रीय नारे पर देशव्यापी चक्का जाम का आह्वान किया गया था। माकपा सहित प्रदेश की पांचों वामपंथी पार्टियों के कार्यकर्ता भी इस आंदोलन के समर्थन में सड़कों पर उतरे।
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एक ऐसे वक़्त में जब किसान अपनी आवाज मीडिया में दर्ज नहीं करा पा रहे हैं, मोबाइल वाणी ने उन्हें कृषि बिल पर अपनी राय दर्ज करवाने का एक मौका दिया और उनकी बात रिकॉर्ड की। आइए जमीन से आयी किसानों की आवाज़ के जरिये समझते हैं कि कृषि बिल को लेकर वे क्या सोच रहे हैं।
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भारतीय किसानों के सामने जितनी बड़ी मुसीबत खड़ी है, उनकी वैचारिक तैयारी उतनी ही कमज़ोर है। वे साम्प्रदायिकता और जातिवादी नफ़रत को अपने बर्चस्व का आधार मानते आये हैं। खेतिहर मज़दूरों, दलितों, भूमिहीन किसानों की समस्या इस पांत में बहुत पीछे छूट गयी है।
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जिस अनुपात में भारतीय अर्थव्यवस्था मिस-मैनेज हो रही है, हो सकता है कि आने वाले दिनों में किसी 15 अगस्त या 26 जनवरी को मोदी, बिड़ला की जागीर हो चुके लाल किले की प्राचीर से भगत सिंह को ‘टीम वर्क’ का गुरु घोषित कर दें और शहीदे आज़म भगत सिंह सरकारी कार्यालयों में मैनेजमेंट गुरू के फ्रेम में दिखना शुरू हो जाएं।
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इस व्यवस्था के जाल में फंसा हुआ किसान इससे बाहर निकलने के लिए छटपटा रहा है। यदि किसानों को इस व्यवस्था के जाल से बाहर निकलना होगा, तो तय है पूंजीपतियों द्वारा जाति धर्म के बुने हुए जाल को खत्म करते हुए देश की संसद पर अपना हक जमाना होगा। मांगें पेश करने भर से काम नहीं चलेगा क्योंकि जो पूरी व्यवस्था है, वह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पूंजीपतियों के कब्जे में है।
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आज देश की भर की ट्रेड यूनियनों द्वारा आयोजित राष्ट्रीय प्रतिवाद दिवस में वर्कर्स फ्रंट ने उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों में कार्यक्रम कर विरोध दर्ज कराया.
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किसान सभा ने कहा है कि पिछले वर्ष की तुलना में इन फसलों की कीमतों में मात्र 2% से 6% के बीच ही वृद्धि की गई है, जबकि इस अवधि में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई में 10% और डीजल की कीमतों में 15% की वृद्धि हुई है और किसानों को खाद, बीज व दवाई आदि कालाबाज़ारी में दुगुनी कीमत पर खरीदना पड़ा है।
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