दिल्ली के 200 दलित परिवारों का राष्ट्रपति को खुला पत्र- हमें इच्छामृत्यु दे दीजिए!

बीते 1 मार्च 2024 को केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के अधीन आने वाले भूमि एवं विकास विभाग ने हमारे घरों पर एक नोटिस चस्पा किया जिसमें हमें अपने मकान खाली करने का आदेश दिया गया था। साथ ही इस नोटिस में हमे अतिक्रमणकारी और अवैध कब्ज़ाधारी कह कर संबोधित किया गया था।

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साहित्य में साम्राज्यवाद और विस्थापन की तलाश: संदर्भ इजरायल-फिलिस्तीन संकट

साम्राज्यवाद को दो पैमानों से पहचाना जा सकता है। पहला यह कि शोषक ताकतें किसी दूसरे देश पर कब्जा करके यानि उसे उपनिवेश बनाकर उस देश के उद्योगों को खत्म कर देती हैं और दूसरा उस देश की उपज और उत्पादन को जबरदस्ती हड़पती जाती हैं।

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बारपेटा से लखनऊ के बीच पेट की आग में जलता बचपन और भटकती जिंदगी

2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ते जातीय भेदभाव के बाद अब तक करीब 90,000 से अधिक लोग बारपेटा से लखनऊ विस्थापित हो चुके हैं, हालांकि यहां वह पूर्वाग्रहों और जातीय संघर्षों से तो बच गए परंतु शहरों में भेदभाव के नए रूप खुल गए हैं।

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मंदुरी हवाई अड्डा के खिलाफ आन्दोलनरत महिलाओं का उत्पीड़न: फैक्ट फाइन्डिंग टीम की रिपोर्ट

मंदुरी के निकट ग्राम जमुआ हरिराम (तहसील सगड़ी जनपद) में सरकार द्वारा जमीन कब्जाने और महिलाओं के साथ लाठीचार्ज के सवाल पर पिछले 26वें दिन से (यह रिपोर्ट लिखे जाने तक) धरना चल रहा है और इसमें सबसे अधिक महिलाएं शामिल हैं और आंदोलन का नेतृत्व भी कर रही हैं।

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खंडवा: बिना पर्यावरणीय स्वीकृति के बांध बना कर उजाड़ दिए आदिवासी परिवार

केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा खंडवा जिले में बन रही आंवलिया मध्यम सिंचाई परियोजना की पर्यावरणीय मंजूरी की अर्जी का प्रकरण बंद कर इसे उल्लंघन परियोजना घोषित कर दिया है। इसके साथ ही बांध के निर्माण कार्य पर भी रोक लगा दी है। बांध का कार्य बगैर पर्यावरणीय स्वीकृति के 90 प्रतिशत हो चुका है।

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खोरी गांव की पुनर्वास नीति तैयार नहीं, सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का पालन नहीं

सर्वोच्च न्यायालय ने 3 अगस्त के अपने आदेश में पृष्ठ संख्या 4 यह आदेशित किया है कि नगर निगम फरीदाबाद, खोरी गांव के उजाड़े लोगों के लिए पुनर्वास नीति को अंतिम रूप दे। अब क्योंकि हरियाणा सरकार स्वयं पूरी नीति को देख रही है इसलिए यह जरूरी है वह लोगों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को मद्देनजर रखे।

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स्मृतिशेष: मुन्ना मारवाड़ी चले गए, काशी अब ‘बाकी’ नहीं है

यह विस्‍थापन सामान्‍य नहीं था। मुन्‍ना मारवाड़ी का पूरा अस्तित्‍व ही विस्‍थापित हो चुका था। मुन्‍नाजी को अब अदालत से भी कोई उम्‍मीद नहीं रह गयी थी। वे बस बोल रहे थे, बिना कुछ खास महसूस किए। मैं उनकी आंखों में देख रहा था, बिना कुछ खास सुने।

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