मजदूरों के बाद अब कॉरपोरेट, मध्यवर्ग और पैसेवाले भी कहीं सड़क पर न उतर आवें!


तीन  मई आने से पहले हमें एक बार इत्मीनान से सोच लेना चाहिए कि सिर्फ कोरोना ही एक संकट है या और बाकी और भी कई संकट है इस जमाने में. क्या कोरोना के बहाने सभी संकट फिलहाल टाल दिए गए हैं? आखिर कोरोना से बचने के लिए हम दुनिया को कितने दिन तक बंद रख सकते हैं? एक महीने, दो महीने या फिर सालों साल या अनंत काल तक?

यह सोचना ही अजीब लगता है. खुद पर ही रोने जैसा, हंसने जैसा. मानसिक अवसाद की चरम अवस्था जैसा. दुनिया बनी ही है चलने के लिए, रुकने के लिए नहीं. विधि का विधान भी यही कहता है. 3 मई के बाद क्या लॉकडाउन बढ़ाया जाएगा? सरकार शायद लॉकडाउन बढ़ाने के फ़िराक में है. सरकार इसे ही ब्रह्मास्त्र मानती है. सरकार के सलाहकार भी मानते हैं कि देश ने जो इन लॉकडाउन के दिनों में बढ़त हासिल की है उसे गंवाना नहीं चाहिए.   

मजदूर-कामगार ही नहीं, अगर लॉकडाउन ही अंतिम सच बनता जाएगा तो खाए-पीए अघाए मिडिल क्लास से लेकर हाइ नेटवर्थ इंडीविजुअल्स से लेकर कॉरपोरेट-उद्योगपति भी सड़कों पर उतर आएंगे. ठीक उसी तरह जैसे दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे और मुंबई के बांद्रा स्टेशन पर मजदूरों का हुजूम घर जाने के लिए उमड़ पड़ा था. अगर मजदूरों-कामगारों के लिए पेट और भूख सच है तो घनकुबेरों के लिए भी धंधा और पैसा ही सच है. लॉकडाउन में तो सब ठप है, बंद है.

फर्ज कीजिए, फर्ज क्या कीजिए यही सच है कि अगर काम-धंधा, इंडस्ट्री, बाजार, इसी तरह महीनों ठप रहे तो बड़े-बड़े धनकुबेर और सरकार भी सड़क पर उतरने को मजबूर नहीं हो जाएंगे क्या? कोई अपनी बचत को खोर-खोर के कितना दिन तक खाते रहेगा? हर धंधेबाज 99 को 100 बनाने के चक्कर में पूरी जिंदगी परेशान रहता है. कोई नहीं चाहेगा कि जो 99 बचा हुआ है वो भी खत्म हो जाए. यही वजह है बड़ी-बड़ी कंपनियां अब लॉकडाउन से घबरा कर अपने कर्मचारियों को नौकरी से हटा रही हैं. कई कंपनियां जबरन अपने कर्मचारियों की 30 से 40 फीसदी सैलरी काटने लगी हैं. अब तो भारत के सबसे बड़े सेठ मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्री भी अपने कर्मचारियों की सैलरी काटने का फैसला ले चुकी है. उनके हाइड्रोकार्बन इंड्स्ट्री का लॉकडाउन ने भट्ठा बैठा दिया है. बाजार में पेट्रोकेमिकल्स की डिमांड ही नहीं रही. घबरा कर कंपनी अपने हाइड्रोकार्बन बिजनेस से जुड़े वर्कफोर्स की सैलरी तो 30 से 40 फीसदी काटेगी ही, इसके अलावा अगले कई महीनों तक कोई इनसेंटिव भी नहीं देगी. 

अगर लॉक़डाउन इसी तरह जारी रहा तो भूख से इतनी बड़ी महामारी आएगी जिसे सरकार संभाले नहीं संभाल पाएगी. यह हमारे जैसा कोई भुक्खड़ मजदूर या कामगार नहीं बोल रहा है बल्कि ये चेतावनी दे रहे हैं देश के जाने माने बिजनेस टाइकून और आइटी इंडस्ट्री के सिरमौर इंफोसिस के संस्थापक नारायणमूर्ति. उन्होंने कहा है कि लॉकडाउन अगर और लंबा चला तो कोविड-19 वायरस से ज्यादा भुखमरी से लोग मरेंगे. अरविंद सुब्रमण्यण और गीता गोपीनाथ जैसे आर्थिक जानकार कह रहे हैं कि इकोनॉमी ऐसी ध्वस्त होगी कि हम सालों तक संभल नहीं पाएंगे. पहले से गरीब भारत खुद को बंद कर बीमारी से नहीं लड़ सकता है. ईटी नॉउ चैनल को इंटरव्यू देते हुए नारायणमूर्ति ने बताया कि हमें यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि कोविड-19 जाने के लिए नहीं आया है, वो इस दुनिया में रहेगा. हमें ही अब तमाम सावधानी बरतते हुए काम पर वापस लौट जाना चाहिए और स्वीकार कर लेना चाहिए कि यही न्यू नॉर्मल है.

दुनिया की सबसे बड़ी कैपटलिस्ट कंट्री अमेरिका की इकोनॉमी वेंटिलेटर पर है. पिछले चार-पांच हफ्तों से अमेरिका की बड़ी आबादी घरों में कैद है और वहां का रिटेल मार्केट धाराशायी हो गया है. दस फीसदी से ज्यादा की रिकॉर्ड गिरावट सिर्फ रिटेल मार्केट में दर्ज की गयी है. इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड ने भी बताया है कि अमेरिका समेत पूरी दुनिया में 2008 से भी ज्यादा भयानक मंदी का असर दिख रहा है. अमेरिका की 33 करोड़ की आबादी में से 95 फीसदी आबादी राष्ट्रीय आपात स्थिति की वजह से अपने घरों में बंद है. ताजा आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार मौजूदा आर्थिक संकट की वजह से अमेरिका में 1.6 करोड़ लोगों का रोजगार छिन गया है. वहीं अब इकनॉमी से जुड़ी सबसे बुरी खबर तो भारत को लेकर आ रही है। इतिहास में पहली बार किसी रेटिंग एजेंसी ने भारत की ग्रोथ रेट जीरो होने का अनुमान लगाया है. रेटिंग एजेंसी का नाम बार्कलेज़ बैंक है.

सरकार की सारी नीतियां अभी जो कोरोना महामारी से लड़ने के लिए बन रही हैं वो देश के लाखों मजदूरों-कामगारों को माइनस करके ही बनाई जा रही हैं. अगर ऐसा नहीं है तो लॉकडाउन की घोषणा से पहले देश के सभी प्रांतों में काम कर रहे प्रवासी मजदूरों को अपने-अपने गृह राज्य में भेजने का प्रंबंध किए जाने के बाद लॉकडाउन की घोषणा की जानी चाहिए थी.. महामारी के मरघटी सन्नाटे में भी सरकार का सारा फोकस तो बालकनी में खड़े होकर घंटी बजाने वाले और दीप जलाकर दीवाली मनाने वाले मिडिल क्लास को बचाने पर ही है. अब सरकार को पूरे एक महीने के लॉकडाउन के बाद मजदूरों-कामगारों की चिंता हुई है. वो भी तब जब हजारों-हजार मजदूर पैदल ही दिल्ली से, गुजरात से, महाराष्ट्र से पैदल ही अपने घर बिहार और यूपी के लिए निकल पड़े. कितनों ने तो रास्ते में ही भूख से प्यास से दम तोड़ दिया और कितने साथियों ने सैकड़ों किलोमीटर की सफर तय तो कर लिया मगर उन्हें घर का खाना और पानी तक नसीब नहीं हुआ.    

नॉर्वे में पेशे से डॉक्टर के साथ ही साथ कई किताबों के लेखक प्रवीण झा एक हेल्थ पोर्टल पर लिखते हैं कि नॉर्वे में लोग जान-जोखिम में डालकर काम पर वापस लौटने का मन बना चुके हैं. हैरानी की बात यह है कि ऐसा रिस्क लेने वाले व्हाइट कॉलर जॉब वाले हैं. बहरहाल, यह सोचना ही विनाशकारी है कि दुनिया को लंबे समय तक के लिए बंद रखा जा सकता है. दुनिया को लंबे समय तक ताले में बंद कर रखना विस्फोटक हो सकता है क्योंकि दुनिया की फितरत ही है जिंदादिली के साथ चलते रहना और अनवरत, अनथक चलते रहना.

इसलिए साथियों, काम पर वापस लौट जाओ.


About सतीश वर्मा

View all posts by सतीश वर्मा →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *