नरेंद्र मोदी ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा किया था। आमदनी दोगुनी करने का वादा कर के किसानों के खिलाफ उनकी सरकार ने ऐसे कानून बना दिये कि किसान अब सड़कों पर उतर आये हैं और सरकार उन्हें अपनी बात रखने के लिए दिल्ली में नहीं घुसने दे रही है। किसान हारे नहीं, रुके नहीं अब तक। हरियाणा से दिल्ली जा रहे किसान अब दिल्ली से ज्यादा दूर नहीं हैं।
ताज़ा सूचना के मुताबिक दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर पहुंचे किसानों पर दिल्ली पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे हैं। दिल्ली पुलिस ने आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार से 9 स्टेडियमों को अस्थायी जेलों में तब्दील करने की अनुमति भी मांगी है।
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के मुताबिक 3000 वाहनों के साथ आ रहे हज़ारों किसान दिल्ली की टीकरीवाल सीमा की ओर बढ़ रहे हैं और वे सापला क्रॉस कर चुके हैं।
टीकरी बॉर्डर पहुंचे किसानों को रोकने के लिए ट्रक से बैरिकेड लगाया गया था। किसानों ने उसे रास्ते से हटा दिया है।
किसानों और पुलिस के बीच झड़प की भी ख़बर आ रही है।
इस बीच रास्ते में एक किसान की मौत की ख़बर है। मानसा जिले के धाना सिंह हरियाणा के भिवाड़ी में एक सड़क हादसे में गुज़र गये। वे दिल्ली चलो काफि़ले का हिस्सा थे। समिति ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है।
गुरुवार देर रात किसानों के ऊपर एक बार फिर से हरियाणा सरकार ने वाटर कैनन से पानी की बौछार की। उस वक्त तापमान 16 डिग्री सेंटीग्रेड था। उनके रास्ते में बड़े बड़े कंटेनर रख दिये गये और राजमार्ग में गहरे गड्ढे खोद दिये गये ताकि वे आगे न बढ़ने पाएं। किसानों को सब कुछ धकेल कर रास्ते से हटा दिया।
खट्टर सरकार ने किसानों के विरुद्ध क्रूरता में कोई कसर नहीं छोड़ी है। यह रात 11 बजे के बाद सोनीपत का दृश्य है।
जब हरियाणा की सड़कों और दिल्ली से सटे इलाकों में वृद्धों और औरतों पर पानी की तेज बौछार और आंसू गैस के गोले दागे जा रहे थे और सैकड़ों को दिल्ली में गिरफ्तार किया जा रहा था, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संविधान के मूल्यों और महत्त्व के बारे में देशवासियों को बता रहे थे।
किसानों ने मोदी सरकार से सवाल किया है– “क्या हम आतंकवादी हैं कि हमें राजधानी दिल्ली में घुसने नहीं दिया जा रहा है? यह लोकतंत्र की मौत है!”
सूर्य अस्त हुआ पश्चिम के क्षितिज पर, संविधान दिवस बीत गया, किंतु किसान प्रेमी प्रधानमंत्री ने एक शब्द नहीं बोला किसानों के बारे में। वैसे उन्होंने कानूनों को बदलने के बारे में कुछ गहरी बातें बतायीं, कुछ तरीके बताये कि कैसे चुपचाप पुराने कानून खत्म कर नये कानून लाये जा सकते हैं।
संविधान दिवस पर भले ही उन्होंने किसानों के बारे में कुछ न कहा हो, पर कुछ तेज स्मृति यानी स्मरण शक्ति वाले लोग उनकी अतीत में कही गयी बातों को उद्धृत कर रहे हैं खोज-खोज कर!
शाम हुई, ठण्ड बढ़ी, भीगे कपड़ों में थकान मिटाने और कुछ गर्मी के लिए किसानों ने आग लगायी चूल्हे में। रोटी पकाने को, पर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर खट्टर ने पानी की कमी नहीं होने दी। किसान फिर भीग गये, चूल्हे भीग गये। कोई बात नहीं। रसद की कमी नहीं है। किसान इस बार छह महीने का राशन-पानी लेकर निकले हैं। सुनिये अमृतसर से आयी इन महिलाओं को।
आधी रात पानी की बौछारों से किसानों को सताने वाले जवानों को उनके कप्तान साहब ने शाबाशी दी है! उधर पलट कर पंजाब के कप्तान साहब ने खट्टर से सवाल कर लिया– बताओ तो ऐसा क्यों हो रहा है?
खट्टर जी अपनी बात पर अड़े रहे। किस बात पर? उन्होंने भी झोला झोला उठाके चल दूंगा वाली फ़कीराना तर्ज पर कह दिया– ‘’राजनीति छोड़ दूंगा।”
गोदी मीडिया ने अपना कर्तव्य पूरी निष्ठा से निभाया है। दिन भर एक पुल से बैरिकेड हटाते और गिराते किसानों को दिखा कर एंकर चीखते रहे कि देखो, किसान उग्र हो गये हैं।
भीतर पिक्चर कुछ और ही थी। आंसू गैस और पानी की तेजधार में भी अन्नदाताओं ने मानवता और धरती जितनी उदारता की मिसाल पेश करते हुए एम्बुलेंस के लिए उस रास्ते को खोला जिसे खट्टर सरकार ने सील कर दिया था।
केंद्र में बीजेपी की सहयोगी शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख ने संविधान दिवस को किसानों के लिए 26/11 की संज्ञा दे दी।
शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने किसानों का ‘दिल्ली चलो’ मार्च विफल करने का प्रयास करने के लिए हरियाणा सरकार की आलोचना की और प्रयास को ‘‘पंजाब का 26/11’’ करार दिया।
बठिंडा की सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने भी हरियाणा में किसानों को प्रवेश करने से रोकने के लिए हरियाणा सरकार की निंदा की और कहा कि यह ‘‘लोकतंत्र की हत्या’’ है।
बादल ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘आज पंजाब का 26/11 है। हम लोकतांत्रिक प्रदर्शन के अधिकार की समाप्ति देख रहे हैं। अकाली दल हरियाणा सरकार और केंद्र की निंदा करता है जिसने किसानों के शांतिपूर्ण आंदोलन को दबाया।’’
सीपीआई के महासचिव डी राजा ने कहा है कि किसानों पर वॉटर कैनन चलाना, उन पर आँसू गैस के गोले दागना बीजेपी के किसान विरोधी चेहरे को बेनक़ाब करता है।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा है कि “एनडीए की जन विरोधी नीतियों के कारण समाज के कई तबक़े प्रदर्शन करने के लिए बाहर आ चुके हैं। किसान भी उनके क्षेत्र में सरकार द्वारा लाये गये काले क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं पर उनकी बात सुनने की जगह, सरकार उनसे दो-दो हाथ करना चाहती है।”
उन्होंने लिखा, “सभी किसान संगठन इन काले क़ानूनों के ख़िलाफ़ एक हुए हैं। इसलिए इस मुद्दे की गंभीरता को समझते हुए, सरकार को बिना किसी इंतज़ार के उनसे बातचीत करनी चाहिए।”
वैसे जितने नेताओं ने आज किसानों के हमदर्दी दिखाते हुए खट्टर और मोदी सरकार की आलोचना की है कभी उनका भी इतिहास खंगाला जाये तो क्या निकलेगा पता नहीं।
कोई नेता या स्वघोषित राष्ट्रवादी किसान मजदूरों के साथ हो या न हों, देश की करोड़ों जनता अपने अन्नदाताओं के साथ खड़ी है। इसका प्रमाण है कि 26 नवंबर को देशभर में मोदी सरकार की नीतियों, महंगाई, बेरोजगारी, निजीकरण के खिलाफ करीब 25 करोड़ लोग सड़कों पर थे।
इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक), ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक), हिंद मजदूर सभा (एचएमएस), सेंटर ऑफ इंडिया ट्रेड यूनियंस (सीटू), ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर (एआईयूटीयूसी), ट्रेड यूनियन को-ऑर्डिनेशन सेंटर (टीयूसीसी), सेल्फ-एंप्यॉलयड वीमेंस एसोसिएशंस (सेवा), ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (एआईसीसीटीयू), लेबर प्रोग्रेसिव फेडरेशन (एलपीएफ) और युनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस (यूटीयूसी) जैसी दस केन्द्रीय ट्रेड यूनियनें भी सड़कों पर थीं।
कवर फोटो रुक्षमनी कुमारी के ट्विटर से