जिस रास्ते पर देश के नागरिक चलें वही जनपथ है। इस समय हमारे ज्यादातर हाइवे जनपथ बने हुए हैं। हमारे कामगार इन्हीं रास्तों पर चलकर अपने घरों को जा रहे हैं। पाबंदियों, वादाखिलाफ़ी और मजबूरियों के बीच वे फैक्ट्रियों को छोड़ आये हैं। अपने परिवार को लेकर वे पराये शहरों से अपने देस की ओर निकल चुके हैं। रास्ते में क्या होने वाला है, इन्हें पता नहीं लेकिन ये जानते हैं कि आगे के कई महीनों तक इनका जीवन सामान्य नहीं रहने वाला। जिन्हें ये पीछे छोड़ आये हैं उनकी जिंदगी भी कुछ इसी तरह गुज़रेगी। इनके सफ़र और संघर्ष पर लिखी जा रहीं तमाम कहानियां अधूरी ही रह जाएंगी।
मुंबई की एक मिल में काम करने वाले रामबरन सिंह अपनी पत्नी और दो बच्चों के परिवार को एक ऑटो में समेटे हुए हैं। 9 मई को वे मुंबई से निकले थे और 11 मई को इंदौर पहुंचे हैं। यहां शहर के बाहर से गुज़रने वाले आगरा-मुंबई हाइवे पर उनकी तरह हज़ारों लोग चलते नजर आ रहे हैं। रामबरन राऊ सर्किल पर बने स्टॉल से खाना ले रहे हैं। यह स्टॉल इंदौर नगर निगम की ओर से लगाया गया है जहां आसपास के युवा सेवाकार्य कर रहे हैं। रामबरन के मुताबिक अब तक उनका कपड़ों से जुड़ा बिज़नेस अच्छा चल रहा था, लेकिन लॉकडाउन के बाद से सब ठप हो गया है। कुछ महीनों तक मुंबई में वे रुक सकते थे लेकिन बीमारी के डर के बीच उन्हें जौनपुर लौटना ही ठीक लगा।
भोजन के इसी स्टॉल पर बस्ती जिले के सत्येंद्र चौरसिया भी हैं। इंदौर और मुंबई के बीच करीब साढ़े पांच सौ किलोमीटर की दूरी में से सत्येंद्र और उनके साथ करीब पैंतीस लोग साढ़े तीन सौ किलोमीटर पैदल चल चुके हैं और बाकी का सफ़र एक ट्रक पर बीता है। सत्येंद्र को मुंबई में कोरोना संक्रमण के बारे में खास नहीं पता। वे भिवंडी की एक लूम में काम करते हैं जो लॉकडाउन के बाद से ही बंद है। उन्हें दो महीने से वेतन नहीं मिला है। अब तक जो भी उनके पास था, सब खर्च हो चुका है। किराया न देने पर मकान मालिक पिछले कुछ दिनों से लगभग रोज़ ही सामान बाहर फेंक देने की धमकी दे रहा था, जिसके बाद 7 मई को सत्येंद्र अपने घर के लिए निकल पड़े।
सत्येंद्र को पता था कि तकरीबन डेढ़ हजार किलोमीटर का सफर उन्हें पैदल ही तय करना है। रास्ते में कोई खास मदद भी नहीं मिलने वाली और अगर मिल जाय तो किस्मत है। वे अगले साल तक के लिए अपने घर जा रहे हैं क्योंकि उनके साथियों ने कहा है कि अब लूम अगले साल ही शुरू हो सकेगी।
11 मई और इससे पहले के करीब चार दिनों में आगरा-मुंबई रोड़ का यही नज़ारा रहा है। यहां से इस दौरान लाखों की संख्या में लोग गुजरे। इनमें सबसे ज्यादा संख्या पैदल चलने वालों की रही है। महाराष्ट्र की सीमा पार करके मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले के सैंधवा चौकी पर हजारों लोगों की भीड़ थी। इन्हें देखकर स्थानीय प्रशासन के हाथ-पांव फूल रहे थे। इनके लिए इंतजाम करना आसान नहीं था। ऐसे में इन्हें इनके हाल पर छोड़ दिया गया।
इस दौरान लगातार लाखों की संख्या में लोग निकलते रहे। विंध्याचल के घाटों के बीच बने इस हाइवे पर लोग कराहते हुए सफ़र काट रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान इनके खाने-पीने के लिए भी यहां कोई इंतजाम नहीं थे, ऐसे में स्थानीय ग्रामीणों ने अपने प्रयासों से इनके लिए इंतजाम किया। लॉकडाउन के दौरान सब्जियों की फसल मंडी नहीं पहुंच सकी थी, तो किसानों ने उससे राहगीरों का पेट भरना मुनासिब समझा।
नासिक से चला एक छोटा ट्रक भी यहां खऱाब होकर खड़ा है। इसमें सहारनपुर, बस्ती, बलरामपुर, गोंडा, इलाहाबाद, चित्रकूट के साथ कई शहरों के लोग हैं। लॉकडाउन के अब तक के दिन काटने के बाद इन सभी ने अपनी आखिरी बचत घर जाने के लिए इस ट्रक में लगा दी है। ट्रक में कुल 85 लोग बैठे हैं। ट्रक मालिक ने सभी से करीब तीन-तीन हजार रुपए लिए हैं। ट्रक बंद होने के बाद ट्रक मालिक ने कुछ देर तक मैकेनिक खोजा, लेकिन जब नहीं मिला तो इन प्रवासी मजदूरों को अपने साधन से जाने के लिए कह दिया है।
दोनों पक्षों में बहस जारी है। इनमें से कुछ लोग दूसरे ट्रकों में लिफ्ट लेने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने इन्होंने अपने घर पर रिश्तेदार से पैसों का इंतजाम करने के लिए कह दिया है और अब ट्रक ड्राइवर को मंजिल पर पहुंचाकर पैसा लेने के लिए मना रहे हैं। इस बीच राऊ सर्किल पर करीब 500 अधिक लोग खाना खा रहे हैं। इनमें से ज्यादातर कुछ भी पूछे जाने पर चुप ही रहते हैं और आंखें फेर लेते हैं।
अगले दिन यानी 12 मई का नज़ारा आगरा-मुंबई रोड पर अलग ही था। यहां इस बार पैदल चलने वालों की संख्या बेहद कम या न के बराबर थी। पिछले रोज़ ही मध्य प्रदेश सरकार ने सीमा पर इन प्रवासियों को इनके प्रदेशों तक पहुंचाने के लिए करीब सौ बसों का इंतजाम किया है। वहीं सामान की जगह इंसानों को ढ़ोने वाले ट्रकों की संख्या अब हजारों में हो चुकी है। लोग टैक्सी और ऑटो से भी अपने घरो की ओर लौटने रहे हैं।
पिछले करीब डेढ़ महीने से खाली पड़ा प्रदेश का यह व्यस्ततम हाइवे आज पहले से भी अधिक चल रहा है। सहारनपुर के दुबे परिवार ने पांच ऑटो किराये पर लिए हैं और सभी परिजन अब मुंबई से लौट रहे हैं।
बलिया जा रहे रामवीर यादव के मुताबिक अब तक की भीड़ केवल उन कामगारों की थी जो मुंबई के बाहरी इलाकों में रहते हैं और जिन्हें आने से रोका नहीं गया। उनके मुताबिक सबसे अधिक संख्या में मुंबई शहर के अंदर उत्तर भारतीय रह रहे हैं। ऐसे में 17 मई के बाद लॉकडाउन बढ़ने की सूरत में यदि रोज़गार की स्थिति नहीं सुधरती है तो मुंबई शहर के अंदरुनी इलाकों में काम कर रहे लोग भी लौटना शुरू कर देंगे।
प्रधानमंत्री ने ठीक ही कहा है कि लॉकडाउन-4 का रूप-रंग अलग होगा। जनपथ बन चुके राष्ट्रीय राजमार्गों का नया रूप-रंग भी 17 मई के बाद ही देखने को मिलेगा। फिलहाल आगरा-मुंबई हाइवे पर पिछले हफ्ते की तस्वीरों में इस देश के भीतर हो रहे महापलायन के रंग देखिए।
आदित्य एस. इंदौर के पत्रकार हैं। सभी तस्वीरें, वीडियो, फेसबुक स्टेटस लेखक के हैं।