इस वर्ष 2023 -24 का बजट अधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा था क्योंकि अगले वर्ष वर्तमान सत्ताधारी सरकार की फिर से आम लोकसभा चुनाव में परीक्षा होनी है। वर्तमान सत्ताधारी सरकार का यह लगातार दूसरा कार्यकाल है। बजट के द्वारा सरकार अपनी योजनाओं, दृष्टिकोण और उपलब्धियों को भी देश की जनता के सामने पेश करती है। 1 फरवरी को लोकसभा में प्रस्तुत बजट पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने उभरने लगी हैं। कई वर्गों से निराशा के स्पष्ट संकेत सामने आये हैं।
कृषि प्रधान देश में आबादी का एक बड़ा भाग खुद को उपेक्षित व ठगा हुआ पा रहा है। बढ़ती महंगाई और घटते रोजगार से परेशान हालत में सामान्य नागरिक सरकार से अपेक्षाएं रखे हुए था कि पिछले कुछ वर्षों की विषम परिस्थितियों- जिनमें महामारी काल भी शामिल है- का कोई समाधान निकलेगा परन्तु बजट की समीक्ष करने पर उसकी समान्य बुद्धि को भी एक झटका महसूस होने लगा। दूसरी और इस बजट ने विशषज्ञों को भी हैरान कर दिया है कि आखिर सरकर किस दिशा में बढ़ना चाहती है।
बजट में सबसे महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्र को वर्तमान सरकार ने जिस तरह से उपेक्षित किया वह किसानों को स्तब्ध कर रहा है। अभी एक वर्ष पहले ही देश के प्रधानमंत्री ने किसानों से माफ़ी मांगी थी और उनके हितों को सुरक्षित करने के अपने प्रयासों को दोहराया था, लेकिन बजट में वह संकल्प बिलकुल नदारद है।
नियत और नीतियों में अंतर धरातल पर साफ दिखाई देने लगा है। फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाए जाने, किसानों के कर्ज माफ़ी, बीज व उर्वरक की गुणवत्तापूर्ण उपलब्धि, बिजली सिंचाई की सुचारु व्यवस्थाओं का निर्माण, फसलों की सरकारी खरीद के लिए मंडियों का विस्तार व आधारभूत ढांचा, फल सब्जियों के लिए मूल्य निर्धारण व भंडारण व्यवस्था, फसल बीमा योजना द्वारा किसानों को समयानुसार उचित मुआवजा, प्राकृतिक आपदा से फसलों के नुकसान की भरपाई, कृषक समाज को स्वास्थ्य व शिक्षा के लिए अनुदान, ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की उपलब्धता आदि अनेक बिन्दुओं को वित्त मंत्री ने छुआ तक नहीं।
बजट में कृषि मद में पिछले वर्षों की अपेक्षा अबकी बार अधिक प्रावधान किये जाने की उम्मीद थी जिससे सरकार द्वारा 2016 में किये गए किसानों की आय को 2022 तक दुगना करने के वायदे को सार्थक किया जा सकता था, लेकिन इसके विपरीत कई कटौतियां कर दी गयीं।
अन्य मंत्रालयों और क्षेत्रों में बजतीय आवंटन के विश्लेषण के लिए पढ़ें CFA की यह रिपोर्ट
Budget-Analysis-2023-Taking-People-for-a-Rideकृषि क्षेत्र के लिए पिछले वर्ष एक लाख चौबीस हजार करोड़ का खर्च का प्रावधान था जो इस बार 6.8 प्रतिशत घटा कर एक लाख पंद्रह हजार पांच सौ इकतीस कर दिया गया। लगभग 8469 करोड़ कम किये गए जबकि पिछले कुछ वर्षों से मौसम कृषि के लिए अनुकूल ही रहा है, मानसून निरंतर खेती के लिए बेहतर रहा। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में 15,500 को 12 प्रतिशत घटा कर 13,625 करोड़ कर दिए गए। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में पिछले वर्ष 68,000 करोड़ रखे गए थे, वह भी 12 प्रतिशत घटा कर 60,000 करोड़ कर दिए गए हैं।
बजट में कृषि का हिस्सा पिछले वर्ष कुल बजट का 3.36 प्रतिशत था, वो भी लगभग 30,000 करोड़ कम करके इस वर्ष 2.7 प्रतिशत कर दिया गया। उर्वरक पर जो अनुदान पिछले वर्ष तक जो 2,25,000 करोड़ था उसको 22 प्रतिशत कम करके 1,75,000 करोड़ कर दिया गया है।
कृषि यंत्रों पर जो जीएसटी लगाया गया था उसको कम नहीं किया गया। उसके कम होने से किसानों के फसल उत्पादन के ख़र्च में कमी आ सकती थी जिससे उनको लाभ मिलने की संभावना बढ़ सकती थी। उसमें कोई बदलाव नहीं किया गया।
इसी प्रकार मनरेगा के मद में जो राशि पिछले वर्ष 79,400 करोड़ थी उसको घटा कर 60,000 करोड़ कर दिया गया जबकि इस योजना के तहत अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों के छोटे व भूमिहीन किसानों व मजदूरों को स्थानीय स्तर पर कुछ दिन निश्चित काम मिल जाता था जिससे उनके लिए कुछ आय हो जाती थी, हालाँकि इस योजना के अंतर्गत कम से कम 100 दिन निश्चित रोजगार देने के प्रावधान हैं।
कृषि भूमि सिंचाई के लिए 12,954 करोड़ को घटा कर अब 10,787 करोड़ कर दिया गया। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत पूर्व वर्ष में 10,433 करोड़ का प्रावधान रखा गया था जिसे कम करके 7150 किया गया! कृषि उन्नति योजना के लिए विगत में 7,183 करोड़ मंजूर किये गए थे, अबकी बार वहां भी कमी कर के 7,066 करोड़ किया गया है।
मूल्य सहायता व बाजार हस्तक्षेप व अन्नदाता आय संरक्षण योजना में भी आवंटन करीब समाप्त कर दिया गया। पिछले बजट में जिसमें 1500 रखे गए थे उसमें अबकी बार केवल एक लाख रुपये ही रखे गए हैं।
खाद्य सुरक्षा जिसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के अधीन लागू किया गया था जिसमें धन का आवंटन केंद्रीय सरकार की प्रतिबद्धता है उसमें पिछली बार 2,87,194 करोड़ आवंटित थे। उसे कम करके 1,97 350 करोड़ रुपये किया गया है।
बजट पर वित्त मंत्री के भाषण में ऐसा प्रतीत हुआ कि सरकार अनुमानित खर्च को कम करके निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना चाहती है। 2011-12 में कृषि क्षेत्र में कुछ खर्च जो कि 5.4 प्रतिशत था उससे तुलना करने पर अब खर्च कम करके 4.3 प्रश्तिात कर दिया गया है। वित्त मंत्री द्वारा कृषि क्षेत्र में निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए जो सुझाव सामने रखे गए, जैसे कि एग्रीकल्चर एसकेलेटर फण्ड जिसके द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में एग्री स्टार्ट अप के लिए युवाओं को प्रोत्साहित किया जा सकेगा, धरातल पर काल्पनिक अधिक लगता है। ज़्यादातर घोषणाएं कृषि व्यपार केंद्रित ही सुनायी पड़ीं जबकि कृषि व्यापार कृषि उद्यम से बिलकुल भिन्न है।
प्राकृतिक खेती व जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए एक नए मिशन की घोषणा की गई जिसके अंतर्गत चार सौ उनसठ करोड़ रुपये का खर्च प्रवधानित किया गया। इसके क्रियान्वयन की कोई रूपरेखा स्पष्ट नहीं है।
फरवरी 2019 में पीएम किसान सम्मान निधि की पहली किश्त 11.84 करोड़ किसानों को दी गयी थी, मई-जून 2022 में 11वीं किश्त मात्र 3.87 करोड़ किसानों को दी गयी है, किसानों की संख्या में 67 प्रतिशत की कमी आ गई है। कृषि मंत्री ने ये नहीं बताया के ये संख्या कम क्यों की गई।
इन सब पहलुओं के कारण किसानों की निराशा मुखर रूप से सामने आई है। किसान अपनी समस्याओं के लिए स्थायी व ठोस समाधान चाहते हैं। बढ़ते कर्ज के कारण किसानों की आत्महत्या करने की घटनाओं में पिछले कुछ वर्षों में बहुत वृद्धि हुई जिसके समाधान के लिए वर्तमान सरकार ने किसानों को आश्वस्त किया था लेकिन उस दिशा में कुछ खास बदलाव नहीं आ पाया।
किसान कौमों, ज़मींदार कौमों, खेतिहर कौमों, क्षेत्रपति समाज में एक असंतोष निरंतर बना हुआ है। वर्तमान में पूंजीवादी ताकतें क्षेत्रपति समाज की जमीनों पर आँख लगाये हैं। एक बड़ी साजिश की बड़ी चुनौती फिर से सामने है। अगर क्षेत्रपति समाज अब भी धर्म और जातियों मे बंटा रहा तो आने वाले भविष्य में उसका अस्तित्व नहीं रहेगा।