पहले अडानी, अब अम्बानी की सफाई ने सरकार के साथ इनके गठजोड़ को उघाड़ दिया है!


सोमवार, 4 जनवरी को जब किसान नेताओं और सरकार के बीच विज्ञान भवन में सातवें दौर की वार्ता हो रही थी, ठीक उस वक्त देश के सबसे अमीर कारोबारी और प्रधानमंत्री मोदी के परम मित्र मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने एक प्रेस नोट जारी कर कहा कि वह न तो किसानों से खाद्यान्नों की सीधी खरीद करती है और न ही वह अनुबंध पर खेती के व्यवसाय में है। इससे पहले अडानी अखबार में विज्ञापन दे चुके हैंं। सवाल उठता है कि जब किसान और अम्‍बानी-अडानी अपनी-अपनी तरफ से अपना काम कर ही रहे हैं तो बीच में सरकार क्‍या कर रही है?

जिस किसान आंदोलन को मोदी सरकार और उनके पूंजीपति मितरों ने हल्के में लिया था अब उसकी गहराई और गंभीरता उनकी नींद उड़ा चुकी है। एक तरफ जहां मोदी सरकार ने अपने पूरे मंत्रिमंडल, सांसद, बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों सहित कार्यकर्ताओं को नये कृषि कानूनों के प्रचार में लगा दिया है वहीं अब अडानी-अंबानी को करोड़ों रुपये खर्च कर अख़बारों में सफाई देने के लिए विज्ञापन देना पड़ रहा है। पहले अडानी ने अपने अनाज गोदाम और जमीन के बारे में अख़बारों में विज्ञापन छपवा कर सफाई देने की कोशिश की और अब मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस ने प्रेस नोट जारी कर किसानों को सफाई दी है।

रिलायंस ने कहा कि वह कॉरपोरेट या अनुबंध कृषि नहीं करती है. उसने कॉरपोरेट अथवा अनुबंध पर कृषि के लिए पंजाब या हरियाणा या देश के किसी भी हिस्से में प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर कृषि भूमि की खरीद नहीं की है। खाद्यान्न व मसाले, फल, सब्जियां तथा रोजाना इस्तेमाल की अन्य वस्तुओं का अपने स्टोर के जरिये बिक्री करने वाली उसकी खुदरा इकाई किसानों से सीधे तौर पर खाद्यान्नों की खरीद नहीं करती है।

कंपनी ने कहा कि किसानों से अनुचित लाभ हासिल करने के लिये हमने कभी लंबी अवधि का खरीद अनुबंध नहीं किया है। हमने न ही कभी ऐसा प्रयास किया है कि हमारे आपूर्तिकर्ता किसानों से पारिश्रमिक मूल्य से कम पर खरीद करें। हम ऐसा कभी करेंगे भी नहीं।

गौरतलब है कि किसानों ने देशवासियों से अडानी-अंबानी की कम्पनियों के सामानों का बहिष्कार करने और जियो के नम्बर पोर्ट कराने की अपील की है और अब तक देश के करोड़ों लोगों ने जिओ का नंबर अन्य मोबाइल नेटवर्क में पोर्ट करा लिए हैं और यह सिलसिला निरंतर जारी है। वहीं ख़बरों के अनुसार रिलायंस जियो के 1,500 से अधिक मोबाइल टॉवर और दूरसंचार गियर हाल के हफ्तों में पंजाब में क्षतिग्रस्त हो गए हैं और नवंबर में किसानों के कुछ समूहों ने पंजाब के कुछ हिस्सों में रिलायंस फ्रेश स्टोर बंद कर दिए थे।

ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट के राष्ट्रीय प्रवक्ता एस आर दारापुरी के अनुसार:

रिलायंस इंडस्ट्रीज का यह बयान सच के परे है। कौन नहीं जानता कि अम्बानी की कम्पनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने बड़े पैमाने पर रिटेल व्यापार में विस्तार किया है, आज भी फलों व सब्जियों के रिटेल व्यापार में रिलांयस की पचास प्रतिशत से ज्यादा की हिस्सेदारी है, हाल ही में रिलांयस ने रिटेल बाजार में एकाधिकार के लिए अमेरिकी कम्पनी फेसबुक व वाट्सएप के साथ मिलकर जीयो कृषि एप्प भी शुरू किया है और हजारों एकड़ जमीन पर फार्मिंग व लैंड डेवलपमेंट एथारटी के लिए लैंड बैंक बनाने की योजना पर यह कम्पनी काम कर रही है। रायगढ़, महाराष्ट्र व अन्य जगहों पर रिलांयस ने भारी मात्रा में जमीन का अधिग्रहण किया है। यही हाल अडानी का भी है, उसने हरियाणा, पंजाब, तमिलनाडू, कर्नाटक, महाराष्ट्र, और पश्चिम बंगाल में खाद्यान्न के भंडारण के लिए साइलो बना लिए हैं और लाजिस्टिक पार्क के नाम पर बड़े पैमाने पर जमीनें ली है। इसलिए अगर अम्बानी और अडानी सही मायने में किसानों के हितों के पक्षधर है तो उन्हें भी सरोकारी नागरिकों के साथ खड़े होकर यह बात कहनी चाहिए कि केन्द्र सरकार किसान विरोधी तीनों कानूनों को रद्द करे और किसानों के उत्पाद की खरीद की गारंटी के लिए एमएसपी कानून बनाए।

इस संबंध में जारी एक प्रस्ताव में एआईपीएफ ने कहा कि अपनी मांगों पर डटे किसानों ने इस कंपकंपाती ठंड और बरसात में धैर्य के साथ बेहद कठिन स्थितियों का सामना किया है और किसान आंदोलन में अब तक 50 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है। वहीं सरकार संवेहनहीन बनी हुई है और किसानों की ठोस व स्पष्ट मांग को हल करने की जगह वार्ता पर वार्ता की तारीखें दे रही है, उन पर लगातार दमन ढा रही है। बहरहाल, अम्बानी और अडानी की सफाई इस सरकार से उनके गठजोड़ पर पर्दा नहीं डाल सकती है इसलिए केन्द्र सरकार को इन बयानों की आड़ में बचने की जगह किसानों की न्यायोचित मांगों को पूरा करना चाहिए।

बीते 26 नवंबर से लाखों किसान इस जमा देने वाली सर्दी में खुले आकाश के नीचे अपने घर और खेतों से दूर सड़कों पर बैठे हुए हैं। इस दौरान अब 60 से अधिक किसान इस आंदोलन में शहीद हो चुके हैं जिनमें चार आत्महत्या भी शामिल हैं। बावजूद इसके सरकार अपनी जिद पर अड़ी है और किसान अपनी मांग पर, इस दौरान सात दौर की वार्ताएं विफल साबित हो चुकी हैं।

मोदी सरकार द्वारा कोरोना काल में विपक्ष और किसानों की सहमति और चर्चा किये बिना संसद में तीन नये कृषि कानून और बिजली विधेयक पारित किये जाने के बाद पंजाब-हरियाणा से शुरू हुआ किसानों का आंदोलन आज पूरे देश में फैल चुका है। किसानों के इस आंदोलन को न सिर्फ देश के कोने-कोने से समर्थन मिल रहा है बल्कि सात समंदर पार कनाडा, अमेरिका और इंग्लैंड से भी समर्थन मिल रहा है। इन कृषि कानूनों के आने के बाद किसानों ने न सिर्फ सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ा है बल्कि उन्होंने देश की दो प्रमुख और शीर्ष कॉर्पोरेट के खिलाफ भी बहिष्कार का मुहीम चला दिया है जिसके चलते न सिर्फ सरकार बैकफुट पर गयी है बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के पीठ पर हाथ फेरने वाले मुकेश अम्बानी की धड़कनें तेज हो गयी हैं।


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