(अनुवाद: राजेंद्र सिंह नेगी)
बारिश के तीसरे दिन तक उन्होंने घर में इतने केकड़े मार डाले थे कि उन्हें समंदर में फेंकने के लिए पेलियो को कीचड़ से सना आँगन लांघ कर जाना पड़ा। उसका नवजात बच्चा रात भर बुखार में तपता रहा था। उसे लगा कि कहीं इसकी वजह घर में फैली मृत केकड़ों की सड़ांध ही न हो।
मंगलवार से ही दुनिया उदास सी थी। समंदर और आकाश राख के धूसर रंग में तब्दील होकर एकसार हो गए थे। समंदर किनारे की रेत, जो मार्च की रातों में छितराये पाउडर की तरह चमका करती थी, सड़ते हुए घोंघों और मिट्टी का मिलाजुला कीच लग रही थी। भरी दुपहरी में भी रोशनी इतनी कम थी कि केकड़ों को ठिकाने लगाकर जब पेलियो घर लौट रहा था, तो दूर से देखकर उसके लिए यह पता लगाना मुश्किल था कि उसके पिछवाड़े में जो चीज़ रेंग और कराह रही थी वो असल में क्या थी। बहुत नज़दीक जाकर ही उसे पता चल सका कि वह एक बूढ़ा आदमी था- नितांत बूढ़ा आदमी, जो कीचड़ में औंधे मुंह पड़ा अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद खड़ा नहीं हो पा रहा था। उसके विशालकाय पंख, उसके उठ पाने में बाधा उत्पन्न कर रहे थे।
उस खौफनाक नज़ारे से घबराकर पेलियो अपनी बीवी एल्सिंदा को लिवा लाने के लिए दौड़ा। एल्सिंदा उस वक़्त बीमार बच्चे को आराम पहुँचाने के लिए उसके सिर पर गीली पट्टियाँ रख रही थी। वह उसको पिछवाड़े ले आया। दोनों भौंचक्के से खड़े टकटकी लगाए उसे देखते रहे। उसने कचरा उठाने वाले के जैसे कपड़े पहने हुए थे। उसके गंजे सिर पर चंद बाल बचे थे और मुंह लगभग पोपला था। अगर वह कोई कुलीन था तो कीचड़ से सना होने ने उसका कुलीनता-बोध उससे छीन लिया था। उसके बाज़ सरीखे विशालकाय डैने और जहाँ-तहाँ से नुचे पंख कीचड़ में इस कदर लथपथ थे कि लगता था उन्हें कभी साफ़ नहीं किया जा सकेगा। दोनों उसे इतनी देर से और इतने नज़दीक से घूर रहे थे कि उनके भीतर उठा अचरज का भाव अब ख़त्म हो चुका था और उन्हें वो जाना-पहचाना लगने लगा था।
उन्होंने उससे बात करने की हिम्मत जुटायी। उसने भी नाविकों जैसी भारी-भरकम आवाज़ में बड़बड़ाकर कुछ जवाब दिया, जो समझ से बाहर था। इस तरह दोनों ने उसके विशालकाय पंखों से पैदा हुई असहजता और विद्वेष का निवारण किया और समझदारी का परिचय देते हुए वे इस नतीजे पर पहुंचे कि वो असल में समुद्री तूफ़ान की चपेट में आये किसी विदेशी जहाज़ से जिंदा बच गया कोई मुसाफ़िर था। इसके बावजूद, दोनों ने पड़ोस की उस औरत को उसे देखने के लिए बुला भेजा, जिसके बारे में सभी का मानना था कि वह लोक-परलोक के बारे में सब कुछ जानती थी। उस औरत ने उस बूढ़े को एक नज़र देखते ही एलान कर दिया कि वे दोनों कितने गलत थे।
“यह एक फ़रिश्ता है,” उसने कहा, “जो शायद तुम्हारे बच्चे को लेने आया था, लेकिन बेचारा इतना बूढ़ा है कि मूसलाधार बारिश को झेल नहीं पाया।”
अगले दिन सभी को भनक लग चुकी थी कि एक हाड़-माँस का फ़रिश्ता पेलियो के घर में बंदी पड़ा था। समझदार पड़ोसन की सलाह के बावजूद- जिसके लिए फ़रिश्ते उन दिनों किसी दैवीय साजिश से बचकर निकल आये भगोड़े हुआ करते थे- दंपत्ति की हिम्मत उसे मौत के घाट उतारने की नहीं हुई। पेलियो अपनी सरकारी कारिंदे वाली छड़ी लिए किचन से सारा दिन उस पर नज़र रखे रहा और रात को सोने जाने से पहले उसने उसे कीचड़ से घसीटकर तारों वाले मुर्गियों के बाड़े में पहुंचा दिया। आधी रात को जब बारिश रुकी तब भी पेलियो और एल्सिंदा केकड़े मार रहे थे। थोड़ा समय बीतने के बाद बच्चे का बुखार उतर चुका था। उसे भूख लग रही थी। वह कुछ खाना चाहता था।
उन दोनों ने इसके लिए फ़रिश्ते का आभार माना। उसे ताज़ा पानी और तीन दिन के खाने-पीने के सामान के साथ नाव में बिठाकर बीच समंदर में उसकी किस्मत पर छोड़ देने का फैसला किया। अगली सुबह सूरज की पहली किरणों के साथ जब वे सो कर उठे और अपने आँगन में पहुंचे तो उन्होंने पाया कि बाड़े के सामने पड़ोसियों का जमघट लगा है और वे फ़रिश्ते के साथ अठखेलियाँ कर रहे हैं। उनके मन में फ़रिश्ते के लिए रत्ती भर भी सम्मान का भाव नहीं था। वे उसकी तरफ बाड़े के तारों के बीच से खाने की चीज़ें उछाल रहे थे, जैसे वो कोई अलौकिक जीव न होकर सर्कस का जानवर हो।
इस अजीब सी खबर को पाकर फादर गोंज़ागा भी सुबह सात बजे से पहले घबराये हुए वहां पहुँच गए थे। तब तक नये लोगों का हुज़ूम वहां जमा हो चुका था, जो सुबह के छिछोरे हुज़ूम से अपने व्यवहार में कमोबेश बेहतर था। वे बंदी के भविष्य के बारे में तमाम किस्म की अटकलें लगा रहे थे। उनमें जो ज़रा सीधे-सादे थे, उनका मानना था कि बंदी को दुनिया का ‘मेयर’ बना दिया जाना चाहिए। कठोर स्वभाव वालों का मानना था कि उसे पाँच सितारों वाला ‘जनरल’ घोषित कर दिया जाना चाहिए ताकि भविष्य की तमाम जंगें जीती जा सकें। कुछ स्वप्नदृष्टाओं ने उम्मीद जतायी कि उसे एक ऐसे प्रजनक में बदला जा सकता था जो पृथ्वी पर पंखों वाले दानिशमंद इंसानों के बच्चे पैदा कर सके और फिर समूची कायनात को जो अपने अख्तियार में ले सकें।
फादर गोंजागा पादरी बनने से पहले एक हट्टे-कट्टे लकड़हारे हुआ करते थे। बाड़ की बगल में खड़े-खड़े उन्होंने ऐसे मौके पर दिये जाने वाले अपने उपदेश पर पुनर्विचार किया और आदेश दिया कि उनके अंदर जाने के लिए फाटक तत्काल खोल दिया जाय ताकि वे उस दयनीय आदमी का नज़दीक से निरीक्षण कर सकें जो मुर्ग़ियों के बाड़े में, बनिस्बत इंसान के एक जीर्ण-शीर्ण विशाल मुर्गे की भांति ज्यादा लग रहा था। जब वे भीतर दाखिल हुए तो वो एक कोने में पसरा धूप में अपने पंख सुखा रहा था। उसके आसपास फलों के छिलके और बचे-खुचे नाश्ते के टुकड़े बिखरे पड़े थे जो अल-सुबह उसे देखने के लिए वहां जमा हुए लोगों ने उसकी तरफ फेंके थे। फादर गोंज़ागा ने उससे लैटिन में ‘गुड मॉर्निंग’ कहा, तो जमाने की गुस्ताखियों से बेखबर उसने भी अपनी पुरातन पलकें धीरे-धीरे झपकायीं और धीमे से किसी अंजान जुबान में कुछ बुदबुदाया। टोले के पादरी का माथा उसी वक़्त ठनक गया। उन्होंने उसे बहुरूपिया मान लिया, जब उन्होंने देखा कि न तो उसे ‘गॉड’ की भाषा आती थी और न ही उसे यह मालूम था कि ‘उसके मिनिस्टर्स’ का अभिवादन कैसे किया जाता है। फिर उन्होंने गौर किया कि नज़दीक से देखने पर वो बहुत कुछ इंसानों सा नज़र आता था: उसके भीतर से एक असहनीय इंसानी गंध आ रही थी, उसके पंखों का पिछला हिस्सा परजीवी कीटाणुओं से पटा पड़ा था और जगह-जगह से क्षत-विक्षत उसके परों को देखकर यह अंदाजा आसानी से लग जाता था कि उन पर तेज हवाओं के थपेड़ों की मार पड़ी थी। उसमें फरिश्तों की गर्वीली गरिमा जैसा कुछ भी नहीं था।
वे मुर्ग़ियों के बाड़े से बाहर आ गए और संक्षिप्त सा उपदेश देते हुए वहां जमा सभी आतुरों को खुद को ज्यादा सयाना समझने के खिलाफ चेताया। उन्होंने सभी को याद दिलाया कि शैतान की यह बुरी फितरत होती है कि वह मायावी छल का इस्तेमाल करते हुए असावधान लोगों को भ्रमित कर सके। उन्होंने तक़रीर दी कि जिस तरह एक बाज़ और हवाई जहाज़ में फर्क करने के लिए पंख एकमात्र पैमाना नहीं होते, उसी तरह फरिश्तों की पहचान के भी वे एकमात्र पैमाना नहीं हो सकते। बहरहाल, उन्होंने वादा किया कि वे ‘बिशप’ को एक ख़त लिखेंगे, जो फिर अपने ‘प्राइमेट’ को लिखेगा जो फिर ‘सुप्रीम पोंटिफ़’ को लिखेगा ताकि उच्चतम अदालत से इस मसले पर कोई अंतिम राय क़ायम की जा सके।
उनका विवेक बाँझ दिलों से गुहार लगाने जैसा था। बंदी बनाये गए फ़रिश्ते की ख़बर इतनी तेज़ी से फैली कि कुछ ही घंटों में आँगन में बाज़ार जैसी चहल-पहल हो गयी। भीड़ घर को ही ढहाने पर तुली थी। उसे काबू में करने के लिए संगीनों से लैस सैन्य दस्ता बुलाना पड़ा। एल्सिंदा की कमर भीड़ का फेंका कचरा बुहारते-बुहारते अकड़ चुकी थी। तभी उसे आँगन में बाड़ लगाने और फ़रिश्ते की एक झलक के लिए पाँच सेंट वसूलने का ख़याल आया।
झलक पाने के लालायित लोग दूर-दूर से आ रहे थे। कार्निवाल का झुंड एक हवाई करतब दिखाने वाले कलाबाज़ के साथ वहां आ पहुँचा था और भीड़ के इर्द-गिर्द मँडराने लगा था, लेकिन किसी ने उसे तवज्जो नहीं दी क्योंकि उसके पंख फ़रिश्ते की तरह नहीं, बल्कि किसी चमकीले चमगादड़ की तरह थे। दुनिया के सबसे बदकिस्मत दुर्बल लोग भी स्वास्थ्य की कामना की तलाश में वहां आए थे: एक ग़रीब औरत थी, जो बचपन से अपनी साँसें गिन रही थी और अब उसके पास संख्याएँ तक ख़त्म हो गयी थीं; एक पुर्तगाली आदमी था जो सो नहीं पाता था क्योंकि तारों की आवाज़ उसकी नींद में खलल डालती थी; नींद में चलने वाला एक ऐसा आदमी था जो जागे में अधूरे छूटे कामों को पूरा करने की ख़ातिर आधी रात को उठ कर चल पड़ता था; और कई अन्य कम गंभीर बीमारियों वाले लोग भी थे।
पृथ्वी को कंपा देने वाले किसी डूबे जहाज़ के बाद की अफ़रा-तफ़री वाले माहौल के बीच पेलियो और एल्सिंदा अपनी हड्डियाँ चरमराने देने वाली थकान के बावजूद ख़ुश थे क्योंकि एक हफ़्ते से भी कम समय में उनके कमरे सिक्कों से भर गए थे और दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ की कतार अब भी क्षितिज को छू रही थी।
खुद फ़रिश्ता ही इकलौता शख्स था जो इन हरकतों में हिस्सेदार नहीं था। वो उधार के अपने आशियाने में ख़ुद को आरामदायक बनाने में अपना वक़्त गुज़ार रहा था- बाड़ की तार के पास जलने वाले तेल के दीयों और मोमबत्तियों की नारकीय गरमी से घबराया हुआ। शुरू में उन्होंने उसे कपूर की कुछ गोलियाँ खिलाने की कोशिश की, जो पड़ोस की दानिशमंद औरत के मुताबिक़ फ़रिश्तों का खाना था। उसने वह ठुकरा दिया। उसके लिए पोपों द्वारा खाया जाने वाला लंच लाने वाले पश्चातापियों को यह समझ ही नहीं आ रहा था कि वो ऐसा इसलिए कर रहा था कि वो एक सचमुच का फ़रिश्ता था, या महज़ एक बूढ़ा आदमी जो बैंगन की लुगदी के अलावा और कुछ नहीं खाता था। उस वक़्त उसकी इकलौती अलौकिक शक्ति उसका ज़ब्त-ओ-सब्र जान पड़ती थी- ख़ासकर शुरुआती दिनों में, जब उसके पंखों में पलते मकोड़ों को चुगने के लिए मुर्ग़ियाँ उसे चोंच मारा करती थीं और अपाहिज अपने अधूरे अंगों को छुआने के लिए उसके पंख नोचते थे। उनमें सबसे दयावान भी उसे खड़ा हुआ देखने की लालसा में उस पर पत्थर उछालते। इसमें एकमात्र बार उन्हें सफलता तब मिली जब उन्होंने साँड़ों को दागने वाली लोहे की छड़ से उसकी बग़ल जला दी थी क्योंकि वो बहुत देर से हिला-डुला नहीं था। उन्हें लगा कि वह मर न गया हो, लेकिन वो झटके से उठा, अपनी रहस्यमयी ज़ुबान में आँसुओं से भीगी आँखों के साथ शिकायत की और दो-एक बार अपने पंख फड़फड़ाये, जिससे मुर्ग़ियों की बीट और रात की धूल का एक बवंडर उठा और खलबली का एक ऐसा तूफ़ान आया जो इस दुनिया का नहीं जान पड़ता था। कई को लगा कि उसकी यह प्रतिक्रिया ग़ुस्से में नहीं, बल्कि दर्द में थी। उसके बाद उनकी यह कोशिश रही कि वे उसे हैरान-परेशान ना करें। अधिकांश को यह समझ में आ चुका था कि उसकी निष्क्रियता किसी नायक की नहीं, बल्कि प्रलय से पहले की शांति के समान थी।
बंधक की प्रकृति पर अंतिम फ़ैसले का इंतज़ार करते हुए फ़ादर गोंज़ागा ने घरेलू नौकरानी के नुस्ख़ों से प्रेरणा लेकर भीड़ के छिछोरेपन से बचने की कोशिश की, लेकिन रोम से आने वाले ख़त में कहीं कोई व्यग्रता नहीं थी। वे अपना समय यह जानने में ही व्यतीत कर रहे थे कि बंधक के नाभि थी या नहीं, या, जो बोली वह बोलता है उसका अरमैक से कोई संबंध था, या, कि कितनी बार वह अपने आपको पिन के सिरे पर टिका सकता था, या फिर, क्या वो महज़ कोई पंखों वाला नॉर्वेजियन था! दुनिया क़ायम रहने तक वे तुच्छ ख़त आ-जा सकते थे, अगर एक अलौकिक घटना ने पादरी की पीड़ा का अंत न कर दिया होता।
हुआ कुछ यूँ कि उन दिनों के दौरान कार्निवाल के अन्य आकर्षणों में शहर में एक ऐसी औरत के शो का भी आगमन हुआ, जिसको अपने माता-पिता की अवज्ञा करने पर मकड़ी में तब्दील कर दिया गया था। मकड़ी में तब्दील कर दी गयी उस औरत को देखने का शुल्क न केवल फ़रिश्ते के दर्शन से कम था, बल्कि दर्शकों को उससे कोई भी सवाल पूछने की छूट थी और उन्हें उसकी देह को ऊपर से नीचे तक ग़ौर से देखने की भी इजाज़त थी ताकि किसी को उसकी वीभत्सता की सच्चाई पर संदेह न रहे। वह भेड़ के डीलडौल की भयावह टैरेंटुला (ज़हरीली बड़ी मकड़ी) थी, जिसका सिर किसी उदास कुआँरी का था। उसको लेकर सबसे मर्मांतक बात उसका विचित्र आकार नहीं, बल्कि अपनी दुर्गति की मनोव्यथा के विवरण का उसका ईमानदार अंदाज़ था। कमसिन उम्र में ही वह एक दिन चुपके से माता-पिता की इजाज़त के बिना नृत्य में भाग लेने घर से निकल गयी। रात भर नृत्य समारोह में भाग लेने के बाद जब वह जंगल से होकर वापस घर लौट रही थी तभी बादलों में ज़ोरों से बिजली कड़की और आसमान का सीना चीरकर उस पर आ गिरी और वह एक मकड़ी में तब्दील हो गयी।
गोश्त के बने कोफ्ते ही अब उसका एकमात्र पोषण थे, जो कुछ दयालु लोग उसके मुंह में डाल दिया करते थे। मानवीय सत्य से भरपूर इस तरह के नज़ारे और भयावह सबक़ के आगे फ़रिश्ते की अकड़बाज़ी कहाँ टिकने वाली थी, जो उनकी तरफ देखने की भी ज़हमत नहीं उठाता था। इसके अलावा, जिन कुछ चमत्कारों को फ़रिश्ते से जोड़कर देखा गया था उनमें भी पागलपन की झलक ज़्यादा थी, जैसे कि एक अंधे आदमी की दृष्टि तो नहीं लौटी लेकिन उसके तीन नए दाँत निकल आए; या फिर लक़वे का शिकार एक व्यक्ति चलना तो शुरू नहीं कर पाया मगर लॉटरी जीतते जीतते रह गया; और एक कोढ़ी के ज़ख़्मों पर सूरजमुखी के फूल उग आए। इन अजीबोग़रीब खिल्ली उड़ाने वाले चमत्कारों की वजह से फ़रिश्ते की साख पहले ही धूमिल हो चुकी थी। मकड़ी बन चुकी उस औरत के आने के बाद से तो उसे पूछने वाला ही कोई नहीं रहा। इस तरह फ़ादर गोंजागा की अनिद्रा की बीमारी हमेशा के लिए ठीक हो गयी और पेलियो का आँगन वैसे ही सूना हो गया जैसे उन तीन दिनों तक लगातार चलने वाली बारिश और केकड़ों से भर गए शयन-कक्ष के दौरान हुआ करता था।
घर के मालिकों के पास अफ़सोस मनाने की कोई वजह नहीं थी। जो पैसा उन्होंने बचाया था उससे उन्होंने बाल्कनियों और बगीचों वाला दो-मंज़िला आलीशान मकान बनवा लिया, जो एक ऊँचे जाल से ढँका था ताकि सर्दियों के मौसम में घर में केकड़े न घुस सकें। फ़रिश्तों को घर में दाख़िल होने से रोकने के लिए खिड़कियों पर लोहे की छड़ें लगा दी गयी थीं। पेलियो ने शहर के पास एक ख़रगोश का बाड़ा बना लिया था और कारिंदेकी अपनी नौकरी से निजात पा ली थी। एल्सिंदा ने अपने लिए कुछ ऊँची हीलों वाले साटन के जूते, और उन दिनों सबसे दिलकश हसीनाओं द्वारा संडे के दिन पहने जाने वाली महंगी रंग-बिरंगी रेशम की बहुत सी पोशाकें ख़रीद लीं थीं। मुर्ग़ियों का बाड़ा ही एक ऐसी जगह बची थी जिस पर कोई तवज्जो नहीं दी गयी थी। अगर वे कीटनाशक से उसे धोते या आँखों में जलन पैदा करने वाली अगरबत्ती जलाते भी थे तो इसलिए नहीं कि वे फ़रिश्ते को किसी क़िस्म की श्रद्धांजलि देना चाहते हों बल्कि इसलिए क्योंकि वे गोबर के ढेर से आने वाली बदबू से निजात पाना चाहते थे, जो अब भी हर जगह पिशाच की तरह हवा में पसरी रहती थी और नये घर को पुराना बना रही थी। पहले पहल जब बच्चे ने चलना सीखा तो वे इस बात के प्रति सावधान रहते कि वह मुर्ग़ियों के बाड़े के ज़्यादा क़रीब न जाने पाए। फिर धीरे-धीरे उनका यह डर भी जाता रहा और बदबू की भी आदत पड़ गयी।
बच्चा अपना दूसरा दाँत आने तक बाड़े के अंदर जाकर खेलने-कूदने लगा था, जहाँ अब तारें तार-तार होने लगीं थीं। फ़रिश्ते का रूखापन बच्चे के प्रति भी वैसा ही था जितना किसी और इंसान के प्रति, लेकिन फिर भी वो अपने साथ की जाने वाली भद्दी से भद्दी दुष्टता को धीरज के साथ बर्दाश्त कर लिया करता था- धोखा खाए किसी कुत्ते की भाँति। दोनों को छोटी चेचक एक ही समय पर हुई। बच्चे की देखभाल करने वाला डॉक्टर फ़रिश्ते के दिल की बात सुनने से ख़ुद को रोक नहीं पाया और उसने पाया कि उसके हृदय से इतनी सीटियाँ बज रही थीं और गुर्दों से इतनी आवाज़ें आ रही थीं कि उसका ज़िंदा रह पाना नामुमकिन सा लगता था। जिस बात से डॉक्टर सबसे ज़्यादा अचंभित था वह था उसके पंखों का तर्क। उसके पंख उसे इतने प्राकृतिक और इंसानी लगते कि उसे समझ नहीं आता था कि वे सभी इंसानों में क्यों नहीं हैं।
जब तक बच्चे ने स्कूल जाना शुरू किया, धूप और बारिश की वजह से मुर्ग़ियों के बाड़े को टूटे हुआ ख़ासा समय बीत चुका था। फ़रिश्ता एक भटके हुए मरते इंसान की तरह इधर से उधर ख़ुद को घसीटता हुआ घूमता रहता। वे उसे झाड़ू से बुहार कर बेडरूम से बाहर निकालते तो दूसरे ही पल उसे किचन में पाया जाता। एक ही समय में वो इतनी सारी जगहों पर नज़र आ जाता कि उन्हें लगने लगा था कि वो अपना प्रतिरूप बना रहा है, या, सारे घर में ख़ुद का प्रजनन ख़ुद से करने लगा है। इसे देखकर एल्सिंदा उत्तेजित होकर पागलों की तरह चिल्लाती कि फ़रिश्तों वाले घर में रहना दोज़ख़ में रहने के समान था। वह मुश्किल से ही कुछ खा पाता था और उसकी पुरातन आँखों की ज्योति इतनी धुँधला चुकी थी कि वो जब तब खंबों से टकराता रहता था। पंखों के नाम पर उसके पास अब केवल उसके जिस्म में घुसी हुईं नलियाँ ही बची रह गयी थीं। पेलियो ने परोपकार स्वरूप उसके ऊपर एक कंबल डाल दिया था ताकि उसे अपने ऊपर ओढ़नी में सोने का सुकून मिल सके। तभी उन्होंने पाया कि उसे रात में बुखार आता था और वो बेसुधी में जटिल उच्चारण वाली पुरानी नॉर्वेजियन भाषा के शब्द बड़बड़ाता था। उस वक़्त वे ज़रा सहम से जाते क्योंकि उन्हें लगता कि वो मरने वाला है और पड़ोस की बुद्धिमान औरत को भी नहीं पता था कि मरे हुए फ़रिश्तों के साथ क्या किया जाता है।
फिर भी न केवल वह अपनी सबसे खराब सर्दी से बच गया, बल्कि धूप के पहले कुछ दिनों में उसकी तबीयत में सुधार भी आने लगा। वह आंगन के सबसे दूर के कोने में कई दिनों तक बिना हिले-डुले पड़ा रहा, जहां उस पर किसी की नज़र नहीं जा सकती थी। दिसंबर की शुरुआत में उसके पंखों पर कुछ बड़े, कड़े पंख उगने लगे, बिजूका के पंखों के समान, जो दुर्बलता के किसी अन्य दुर्भाग्य की तरह दीखते थे। वह शायद उन बदलावों का कारण जानता रहा होगा, इसलिए वो सतर्क था कि किसी की नज़र उस पर नहीं पड़नी चाहिए, ताकि कोई भी उन समुद्री मंत्रों को न सुन पाए जो कभी-कभी वह सितारों की छाँव में गाता था।
एक सुबह जब एल्सिंदा दोपहर के भोजन के लिए प्याज के कुछ गुच्छों को काट रही थी, हवा का एक झोंका उफनाते समुद्र की ओर से आया जिसे रसोई के अंदर भी महसूस किया गया। वो खिड़की के पास गयी और उसने फ़रिश्ते को उड़ान भरते हुए अपनी पहली कोशिशें करते देखा। यह इतना बेढंगा था कि उसके नाखूनों ने सब्ज़ियों के पैच में एक खांचा बना दिया था और शेड को लगभग गिरा ही डाला था। वो हवा में अपनी पकड़ नहीं बना पा रहा था। फिर भी कुछ कोशिशों के बाद उसे उड़ान भरने में कामयाबी मिल गयी। एल्सिंदा ने अपने और उसके लिए राहत की सांस भरी, जब उसने उसे आखिरी घरों के ऊपर से उड़ते हुए देखा- किसी बूढ़े गिद्ध की तरह, जो ख़तरनाक तरीक़े से पंख फड़फड़ाते हुए उड़ा चला जा रहा था। एल्सिंदा उसे प्याज काटते हुए भी देखे जा रही थी। वह उसे तब तक देखती रही जब तक कि उसके लिए उसे देख पाना संभव न रहा। अब वो उसके जीवन में झुंझलाहट का सबब नहीं था, बल्कि समुद्र के क्षितिज पर एक काल्पनिक बिंदु भर था।
यह अनुवाद ग्रेगरी रबासा के अंग्रेज़ी अनुवाद से किया गया है।