वाम मोर्चा शासित केरल में राज्य सरकार पुलिस एक्ट में संशोधन को लागू नहीं करेगी। आज दिन में इस आशय की खबर आने के बाद शाम को मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने इस बारे में ट्वीट किया। केरल पुलिस अधिनियम संशोधन अध्यादेश को राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने मंजूरी दे दी थी।
राज्य मंत्रिमंडल द्वारा 21 अक्टूबर को केरल पुलिस अधिनियम संशोधन अध्यादेश में धारा 118-ए जोड़कर केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के पास 21 नवंबर को हस्ताक्षर के लिए भेजा गया था। यह सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ए की जगह लाया गया था।
मुख्यमंत्री विजयन ने इस अध्यादेश का बचाव करते हुए कहा था, “किसी को भी अपनी मुट्ठी को उठाने की आजादी है लेकिन ये वहीं खत्म हो जाती है जैसे ही दूसरे की नाक शुरू हो जाती है।” इसके बाद ही सरकार चौतरफा आलोचना में घिर गयी थी।
बीजेपी और आरएसपी ने इस कानून के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। वहीं सीपीआइ (एमएल) और कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने भी केरल सरकार की इस जनविरोधी कानून का विरोध किया था।
इन विरोधों और आलोचनाओं के बाद पिनरई विजयन की सरकार ने इस कानून पर रोक लगा दी है। मुख्यमंत्री विजयन ने कहा कि इस कानून की घोषणा के बाद से अलग-अलग क्षेत्र से अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आने लगी थीं, यहां तक कि एलडीएफ के समर्थकों और मानवाधिकार की रक्षा करने वालों ने भी इस पर चिंता व्यक्त की। उसके बाद इस कानून को लागू नहीं किया जा सकता।
इस संशोधन के अनुसार, जो कोई भी सोशल मीडिया के माध्यम से किसी पर धौंस दिखाने, अपमानित करने या बदनाम करने के इरादे से कोई पोस्ट डालता है उसे पांच साल तक कैद या 10000 रुपये तक के जुर्माने या फिर दोनों की सजा हो सकती है। इस कानून के तहत पुलिस के पास बिना वारंट और बिना कारण बताए किसी को भी गिरफ्तार करने का अधिकार था।
अध्यादेश आते ही इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। यूडीएफ ने इस कानून के खिलाफ प्रदर्शन मार्च किया।
केरल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने इस अध्यादेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। आरएसपी के नेता और पूर्व श्रम मंत्री शिबू बेबी ने भी इस अध्यादेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की है।
विडंबना है कि देश भर में माओवाद के नाम पर आदिवासियों को अपने कार्यकाल में ठिकाने लगाने वाले पूर्व गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने भी इस कानून पर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा था कि वो केरल सरकार के इस नियम से आश्चर्य में हैं।
उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा, ”केरल की वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (LDF) सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर तथाकथित भड़काऊ आपत्तिजनक पोस्ट करने के कारण पांच साल की सजा के नियम से आश्चर्य में हूं।”
इन आलोचनाओं के बाद सीपीएम की ओर से कहा गया था कि सभी विकल्पों और सलाहों पर विचार किया जाएगा, पर इस कानून को वापस लेने पर कुछ नहीं कहा गया है।