बंदरों को आदमी होना ही नहीं था: विभांशु केशव की दस लघु कथाएं


इज्जत का डॉक्टर

 

डॉक्टर साहब की लड़की ने अपनी मर्जी से विवाह कर लिया। कस्बे में लड़की के चरित्र के बारे में तरह-तरह की बातें होने लगीं। डॉक्टर साहब को शादी पर आपत्ति नहीं थी, फिर भी कस्बे में हो रही बातों के बुखार से डॉक्टर साहब का शरीर भी तप रहा था। डॉक्टर साहब सोच रहे थे कि कस्बे पर चढ़े इज्जत के बुखार को कैसे उतारा जाए।  

बीएएमएस डिग्रीधारी डॉक्टर साहब संयुक्त परिवार वाले थे। डॉक्टर साहब के परिवार के लोगों को खानदानी कहा जाता पर खानदान ने पैसे के अतिरिक्त कुछ कमाया नहीं था। डॉक्टर साहब ही ऐसे थे जो पैसे के साथ नाम भी कमा रहे थे। आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों का इलाज मुफ्त करते। जरूरतमंदों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते।   

लड़की द्वारा अपनी मर्जी से शादी कर लेने के बाद जिनका इलाज डॉक्टर साहब मुफ्त में करते, वे भी लड़की के साथ डॉक्टर साहब के चरित्र पर अँगुली उठाने लगे। घर में डॉक्टर साहब पर आरोप लग ही रहे थे- इन्होंने ही अपनी लड़की का मन बढ़ा दिया था। खानदान की इज्जत लेकर चली गई। इलाके में डॉक्टर साहब और उनकी बेटी की इज्जत तौली जाने लगी- इतना लेकर गई। नहीं जी, इतना लेकर गई।  

डॉक्टर साहब सोचते- मेरी जानकारी में मेरे खानदान ने पैसे के अतिरिक्त कुछ कमाया नहीं। फिर लड़की इज्जत लेकर कैसे चली गई? मेरे खानदान वालों ने इज्जत का खजाना कहाँ छुपा रखा है?  

डॉक्टर साहब ने इज्जत के खजाने को खोजने की जुगत लगाई। डॉक्टर साहब ने सप्रेम लड़की और दामाद को अपनाया और इस खुशी में शानदार दावत दी। दावत में एक से बढ़कर एक व्यंजन। चिकन चाऊँ चाऊँ, मटन माऊँ माऊँ, पनीर पाऊँ पाऊँ। ऐसे-ऐसे व्यंजन, जिनके नाम खाने वालों ने पहले कभी सुने ही नहीं थे। सब एक से बढ़कर एक।  

लड़की द्वारा अपनी मर्जी से शादी कर लेने के बाद जो डॉक्टर साहब से संबंध समाप्त करने की सोच रहे थे, उन्हें भी दावत का निमंत्रण भेजा गया। दावत वाले दिन तक उन्होंने नहीं आना तय किया था, पर शाम गहराने के साथ व्यंजनों की खुशबू से जब नथुने फड़कने लगे, तो वे दावत में खिंचे चले आए।  

दावत के पहले डॉक्टर साहब की इज्जत तौलने वाले खाने पर टूट पड़े। एक पात खाकर उठती, मेजें साफ की जाने लगती, तभी खाने वालों की भीड़ मेजों की तरफ उमड़ पड़ती। खाने की मेज के चारों तरफ रखी कुर्सियों पर हाथ रख दूसरों को ‘रिजर्व्ड’ का संकेत भी देती। मेज की आधी-अधूरी सफाई होने में ही खाने वालों का सब्र जवाब दे जाता। जूठन पड़ी मेज पर बैठ जाते। जैसे नाद में चारा पड़ते देख नाद से दूर खूँटे से बँधी भैंस मचलने लगती है। कभी-कभार खूँटा उखाड़ने में कामयाब हो जाती है। पशुपालक नाद में चारा डाल रहा होता है, तभी भैंस नाद में अपना मुँह गोत देती है। 

सभी निमंत्रित अतिथियों ने गर्दन तक खाया और आपस में बात भी करते रहे- अब जमाना बदल रहा है। हमें भी जमाने के बदलाव को स्वीकार करना चाहिए।  

शानदार दावत से डॉक्टर साहब ने खानदान की इज्जत का खजाना खोज लिया। दावत के पहले सबकी जबान पर डॉक्टर साहब की इज्जत थी। दावत के बाद सबकी जबान पर खाने का स्वाद आ गया। सबकी जबान पर एक ही बात- गजब का खाना था। खाने वालों ने डॉक्टर साहब को दस-दस ग्राम इज्जत भी दी। डॉक्टर साहब के पास इज्जत का भंडार तैयार हो गया। हतप्रभ से डॉक्टर साहब सोच रहे थे- इतनी इज्जत मेरे खानदान वाले रखेंगे कहाँ?  

दावत के अगले दिन एक और चर्चा शुरू हुई। गर्दन तक खाने वालों में से पाँच-सात उल्टी दस्त का शिकार हो गए। जिनको उल्टी दस्त शुरू हुई, अब वे अपनी इज्जत बचा रहे थे। पेट में मरोड़ उठता तो मरोड़ नृत्य करते हुए खुले में दस्त करते जाते समय इस बात की चिंता रहती कि कहीं कपड़े में दाग न लग जाए। दूसरे देखेंगे तो चिढ़ाएंगे- आन क दाना चाँप के खाना, मर जाना परवाह नहीं। जिनके घर में शौचालय था, उन्हें कपड़ों में दाग लगने की चिंता नहीं थी, पर डॉक्टर साहब के यहाँ दवा लेने जाने में लजा रहे थे। कहीं डॉक्टर साहब ये न पूछ दें- खाना बढ़िया तो था न? डॉक्टर साहब के सम्भावित सवाल से बचने के लिए वे अपना इलाज घरेलू नुस्खों से कर रहे थे।  

चिकन चाऊँ चाऊँ, मटन माऊँ माऊँ, पनीर पाऊँ पाऊँ गले तक खाकर उल्टी-दस्त का शिकार होने वालों ने डॉक्टर साहब को पचास-पचास ग्राम इज्जत दी थी।  

बीमारियों का इलाज करने वाले डॉक्टर साहब जानते थे- इज्जत नामक महामारी का डॉक्टर पैसा है।   


राष्ट्रवाद का चश्मा

चौराहे वाली चाय की दुकान पर सुबह-शाम चश्माधारियों की भीड़ जुटती। चश्माधारियों की भीड़ में कांतिलाल बिना चश्मे के बैठते। चश्माधारियों द्वारा की जाने वाली चर्चा-परिचर्चा के बीच कभी-कभार कांतिलाल भी बोलने लगते। पर बिना चश्मे वाले कांतिलाल की बात पर न तो चश्माधारी ध्यान देते, और ना ही उनके समर्थक।

कांतिलाल की हालत देखकर चाय वाले को तरस आया। चाय वाले ने कांतिलाल को कड़क चाय पिलाई और दुकान का पता बताया। अगले ही दिन कांतिलाल अपने नजरिये के लिए उपयुक्त चश्मे की तलाश में चश्मे की दुकान पर पहुँचे। दुकान के ऊपर लिखा था ‘कम्प्यूटर द्वारा आँखों की जाँच’, पर दुकानदार आँखों की जाँच खुद करता था। कम्प्यूटर का सहारा सिर्फ ग्राहकों को आकर्षित करने के लिये लेता था। कांतिलाल दुकान में पहुँचे। लोहे के फ्रेम में शीशा डालकर दुकानदार ने उनकी आँखों की जाँच शुरू की। कांतिलाल से तीन मीटर दूर खड़े होकर दुकानदार ने एक अँगुली दिखाते हुए पूछा- कितनी अँगुलियाँ हैं?

कांतिलाल को अँगुली एक ही नजर आ रही थी, पर चश्माधारियों को जवाब देने के लिए चश्मा जरूरी था। ये सोचकर कि कहीं दुकानदार उन्हें दृष्टिदोष से मुक्त घोषित न कर दे, जवाब में कांतिलाल ने अपनी दो अँगुलियाँ दिखा दीं।

दुकानदार ने लोहे के फ्रेम में और अधिक पॉवर के शीशे डालकर अपनी पाँचों अँगुलियाँ दिखाते हुये पूछा- अब कितनी अँगुलियाँ दिखाई दे रही हैं? कांतिलाल ने अपनी पाँचों अँगुलियों का मुक्का बनाकर फिर इशारे में ही जवाब दिया।

कांतिलाल की नजर का दोष देख दुकानदार ने जाँच की प्रक्रिया के तहत अक्षरों को पहचानने वाला चरण स्थगित कर दिया। अंतिम चरण के तहत लोहे के फ्रेम में सबसे अधिक पॉवर के शीशे डालकर दुकानदार ने अपनी एक आँख बंद कर पूछा- अब क्या नजर आ रहा है?

स्वस्थ आँखों की दृष्टि सबसे अधिक पावर वाले शीशे ने धुँधली कर दी। सब धुआँ-धुआँ नजर आने लगा। कांतिलाल ने अपनी दोनों आँखें बंदकर मुँह से जवाब दिया- अब एकदम स्पष्ट नजर आ रहा है।

दुकानदार समझ गया कि कांतिलाल के लिए कौन सा चश्मा उपयुक्त रहेगा। कम्प्यूटर द्वारा आँखों की जाँच के बाद कांतिलाल को राष्ट्रवाद का चश्मा चढ़ गया।


भेड़ें और गड़रिया

धूप में भेड़ों को चराते-चराते थका एक गड़रिया अपनी भेड़ों के साथ बगीचे में सुस्ताने के लिए रुका। थोड़ी देर बाद एक और गड़रिया अपनी भेड़ों के साथ बगीचे में सुस्ताने आया। दोनों गड़रिये एक दूसरे से बात करने लगे। 

बगीचे में बच्चे खेल रहे थे। एक बच्चे ने देखा कि दोनों गड़रियों की भेड़ें एक दूसरे में घुल मिल रही हैं। बच्चे ने सोचा कि दोनों गड़रियों की भेड़ें एक में मिल जाएंगी तो गड़रिये उन्हें पहचानेंगे कैसे? ये सोचकर बच्चा भेड़ों को हाँकने लगा, ताकि वे अपने-अपने झुंड में रहें। 

दोनों गड़रियों ने बच्चे को भेड़ों को हाँकते देखा। एक गड़रिये ने बच्चे से पूछा- ‘ऐसा क्यों कर रहे हो?’ बच्चे ने कहा- ‘आप दोनों की भेड़ें एक हो रही हैं? जब सभी आपस में घुल मिल जाएंगी तब आप दोनों अपनी अपनी भेड़ों को कैसे पहचानेंगे?’ 

बच्चे की मासूमियत पर मुस्कुराते हुए एक गड़रिये ने बच्चे को बताया- ‘एक लोकोक्ति है कि जहाँ एक भेड़ जाती है, बाकी भेड़ें भी उसके पीछे जाती हैं। हम चार भेड़ों को सुबह-शाम रोटी खिलाते हैं। जब दो अलग अलग चरवाहों की भेड़ें आपस में मिल जाती हैं तो एक चरवाहा रोटी फेंकता है। प्रतिदिन चार रोटी खाने वाली भेड़ें रोटी की तरफ दौड़ती हैं। ये देखकर बाकी भेड़ें भी उनके पीछे लग जाती हैं। इस तरह चरवाहे अपनी अपनी भेड़ों को अलग कर लेते हैं।’

बच्चे ने पूछा- ‘दूसरे चरवाहे की चार भेड़ें भी तो रोटी खाने जा सकती हैं?’ गड़रिये ने बताया- ‘चरवाहा सभी भेड़ों को नहीं पहचानता पर भेड़ें अपने चरवाहे और अपनी साथी भेड़ों को पहचानती हैं।’

बच्चा लोकोक्ति के बारे में सोचता हुआ खेलने चला गया। वो बच्चा जब बड़ा हुआ, तब उसे ये भी समझ में आया कि धर्म, जाति और राजनीति नामक झुंड को चराने वालों को जब लगता है कि झुंड आपस में घुल मिल रहे हैं, तो वे चार के खाने के लिए कोई टुकड़ा फेंक देते हैं।


सूट-बूट वाला जेबकतरा

पहली बार जेब काटते हुए पकड़े जाने के बाद भीड़ ने जेबकतरे की धुनाई कर दी। धुनाई के बाद उसे पुलिस के हवाले कर दिया। पुलिस ने उसे जेल भेज दिया। 

सुधारगृह से छूटने के बाद भी उसने जेब काटना जारी रखा। कुछ दिन में ही वो दुर्दांत जेबकतरा बन गया। फिर एक बार जेब काटने के दौरान वो रंगे हाथ पकड़ा गया। पकड़े जाने के बाद अदालत ने उसके पुराने रिकॉर्ड को देखते हुए, उसे जिलाबदर घोषित कर दिया।

जब उसे जिलाबदर घोषित किया गया, उसी समय देश में सत्य और ईमानदारी की लहर आई हुई थी। जिलाबदर घोषित जेबकतरा जहाँ भी जाता, वहाँ सत्य और ईमानदारी की बातें सुनाई देतीं। सत्य और ईमानदारी के देशव्यापी माहौल से प्रेरित होकर जेबकतरे ने निश्चय किया कि अब वो सत्य और ईमानदारी के रास्ते के पर चलेगा। इसके लिए उसने सबसे पहले अपना पहनावा बदला। फिर सत्य और ईमानदारी के ‘ट्रैक’ पर चल पड़ा।  

अब तक साधारण कपड़े पहनने वाला जेबकतरा सूट-बूट पहन एक ट्रेन में सवार हुआ। शिकार की ताक में वो एक सीट पर जाकर बैठ गया। जेबकतरे के अगल-बगल बैठे यात्री आपस में सत्य और ईमानदारी की चर्चा कर रहे थे। शिकार की बाट जोहता जेबकतरा भी सत्य और ईमानदारी की बातें सुनने लगा। जेबकतरे को भी सहयात्री समझ सत्य और ईमानदारी की चर्चा कर रहे एक यात्री ने पूछा- भाईसाहब! आप क्या करते हैं? जेबकतरे ने बताया- मैं जेब काटता हूँ। वो आदमी हँसते हुए बोला- कपड़ों से तो नहीं लगता। मजाक अच्छा कर लेते हैं आप। 

आदमी के साथ दूसरे यात्री भी हँसने लगे। सबकी जेब काटने के बाद जेबकतरा ट्रेन से उतर गया। आगे के सफर के दौरान जब चाय वाले को पैसा देना हुआ, तब सबका हाथ जेब में गया। तब पता चला कि सबकी जेब कट चुकी है। सभी ने एक-दूसरे को भौचक होकर देखा- वो सच बोल रहा था।  

उधर काटी गई जेबों की रकम जोड़ने के बाद जेबकतरा अट्टहास कर रहा था- आर्थिक उदारीकरण सूट-बूट वाला जेबकतरा है। जिसकी जेब काटता है, वो अवाक हो जाता है। कुछ कर नहीं पाता है।


बंदरों को आदमी होना ही नहीं था

आदम जाति द्वारा शैवाल से मनुष्य होने की विकास प्रक्रिया को खारिज किये जाने, अपने-अपने धर्म को श्रेष्ठ बताने और सत्ता के लालच में दिये रहे अमानवीय विचारों को सुनने के बाद पशु-पक्षियों ने अपना अस्तित्व बचाये रखने के लिए गिरगिट के नेतृत्व में अपना संगठन बना लिया।

संगठन निर्माण के मौके पर आयोजित पशु-पक्षियों की विशाल सभा को सम्बोधित करते हुए संगठन अध्यक्ष गिरगिट ने कहा- आदम जाति से पहले इस देश में पशु-पक्षी आये। इस देश पर पहला अधिकार पशु-पक्षियों का है। इस देश में रहने वाली आदम जाति किसी दूसरे देश चली जाये। आदम जाति के बीच रहते-रहते पशु-पक्षियों की कई प्रजातियाँ विलुप्त हो गयीं। आदम जाति की रंग बदलने की कला से अब हमारी रंग बदलने की कला पर भी विलुप्त होने का संकट उत्पन्न हो गया है।

पशु-पक्षी संगठन की भविष्य की योजनाओं की जानकारी देते हुए संगठन सलाहकार लोमड़ी ने बताया- इस देश से जब आदम जाति दूसरे देश चली जाएगी, तब इसका नाम चिड़ियाघर रख दिया जाएगा। चिड़ियाघर की सीमा की सुरक्षा के लिए चारों तरफ कँटीले तार लगाए जाएंगे। चिड़ियाघर के अंदर गिरगिटों को अपनी रंग बदलने की कला के प्रदर्शन के लिए एक ‘स्पेशल जोन’ भी बनाया जाएगा जहाँ चिड़ियाघर के दूसरे पशु-पक्षी सप्ताहांत मनाने आया करेंगे और गिरगिटों की रंग बदलने की कला देखकर तालियाँ बजाया करेंगे।

संगठन समन्वयक कौवे ने अपनी कर्कश आवाज में बताया- छुट्टियाँ मनाने दूसरे देशों से आने वाले पशु-पक्षियों के प्रवेश और निकास के लिए एकमात्र द्वार होगा जिसकी जमीनी निगरानी भालू और हवाई निगरानी बाज करेंगे। प्रवेश द्वार के ऊपर प्रवासी पशु-पक्षियों के स्वागत के लिए एक बड़ा सा बोर्ड लगा होगा, जिस पर लिखा होगा- आदम जाति का प्रवेश वर्जित।

सभा के समापन अवसर पर संगठन संरक्षक शेर ने गुर्राते हुए कहा- गिरगिट के अतिरिक्त चिड़ियाघर में रहने वाले किसी अन्य पशु-पक्षी ने रंग बदलने की कोशिश की, तो उसे आदमी कहकर चिढ़ाया जाएगा।

शेर की बात सुन पेड़ पर गुलाटी मारते हुए एक बंदर ने दूसरे बंदर से कहा- साला, बंदरों को आदमी होना ही नहीं था।


संवेदनशीलता की मौत

एक कुत्ता सड़क पर वाहन की चपेट में आकर मर गया। अगल-बगल के घरों के लोग खिड़कियों, दरवाजों से झाँक रहे हैं और ड्राइवर को कोस रहे हैं। उनकी शक्लों पर छाए दुःख को देख ऐसा लग रहा है, जैसे वे दूसरों का दुःख भी अपने दुःख जितना महसूस करते हैं।

मरकर बीच सड़क पर पड़े कुत्ते को दूसरे वाहन रौंदते हुए गुजर रहे हैं। मरे हुए कुत्ते के ऊपर से गुजर रहे वाहनों को देख दरवाजे खिड़की से झाँक रहे लोगों का दुःख असह्य होता जाता है। कुत्ते की मौत से उपजी पीड़ा से बचने के लिए खिड़की, दरवाजों पर खड़े लोग धीरे-धीरे गायब होने लगते हैं।

इसी बीच कूड़ा बीनने वाला एक लड़का आता है। लड़का मरे हुए कुत्ते को बीच सड़क से हटाने लगता है। खिड़की दरवाजों से गायब हुए दुःखी लोग फिर से प्रगट होते हैं और चिल्लाकर कहते हैं- दूर ले जाकर फेंको। सड़क के किनारे ही रख दोगे तो बदबू हमारे घरों में आएगी।

पीड़ा कुत्ते की मौत की नहीं, बदबू की थी।


अपना कार्य स्वयं करो

धरती पर बढ़ रहे पाप से मुक्ति दिलाने और धर्म का राज स्थापित करने के लिए विभिन्न धर्मों के धर्मगुरुओं ने सर्व धर्म सभा का आयोजन किया। सभा में महिलाओं, पुरुषों के साथ बच्चे भी शामिल हुये। सभा शुरू होने से पहले धर्मगुरुओं में इस बात को लेकर बहस हो गई कि किस धर्म के ईश को पुकारा जाये। हिंदू धर्म के देवी-देवताओं की संख्या के आधार पर हिंदू धर्म की परम्परा का पालन किया जाना तय हुआ।

सभी धर्मों के धर्मगुरुओं और अनुयायियों द्वारा एक मंच से लगाई जा रही त्राहिमाम की पुकार सुन ब्रह्मा, विष्णु और महेश को दया आई। तीनों ने आपस में विचार-विमर्श करने के बाद नारद को अपना प्रतिनिधि बनाकर सर्व धर्म सभा में भेजा।

नारद नारायण नारायण कहते सभा में पहुँचे। उन्होंने धर्मगुरुओं से परेशानी पूछी। एक धर्मगुरु ने कहा- प्रभु! भगवान से कहिये अब अवतार लें। धरती पर पाप का साम्राज्य बढ़ता जा रहा है। धर्मगुरु की माँग सुन नारद ने बताया- भगवान अवतार तो ले लें, पर अवतार लेने में एक बाधा है!

बाधा की बात सुन ग्रह बाधा, नौकरी बाधा, विवाह बाधा आदि दूर करने वाले आदमी ने कहा- प्रभु! आदेश करिये। मैं हर प्रकार की बाधा दूर करता हूँ। बाधा दूर किये जाने का आश्वासन मिलने के बाद नारद ने बताया- अगर भगवान पाप फैलाने वाले आदमियों को मारने के लिए अवतार लेंगे, तो भगवान के इतिहास में काला अध्याय जुड़ जाएगा! पाप फैलाने वाले आदमी भगवान के ऊपर हँसेंगे कि शक्तिशाली राक्षसों को मारने वाला भगवान कमजोर आदमियों को मार रहा है।

भगवान के अवतार में लगी बाधा के बारे में जानकर बाधा दूर करने वाले आदमी सहित सभा में उपस्थित सभी लोग उदास हो गये। बाधा दूर करने वाले आदमी ने हिचकते हुए नारद से कहा- प्रभु! आप ही अवतार की बाधा दूर करने वाला उपाय बतायें। नारद ने उपाय बताया- पौराणिक कथाओं में जैसे राक्षस वर्णित हैं, या टीवी में जैसे राक्षस दिखाए जाते हैं, वैसे ‘गेटअप’ वाले राक्षस जब धरती पर पाप फैलाने आयें, तब भगवान अवतार लेंगे। राक्षस को मारने के बहाने भगवान पाप फैलाने वाले आदमियों को भी मार देंगे। तब तक आप सभी अपना कार्य स्वयं करें।

उपाय बताकर नारायण नारायण कहते नारद चले गये। नारद के जाने के बाद सभा में आये पहली कक्षा में पढ़ने वाले एक बच्चे ने कहा- ये तो मेरी कक्षा की दीवार पर लिखा है कि अपना कार्य स्वयं करो।


हलचल 

देश की सीमा पर युद्ध जैसे हालात की चर्चा आम जनमानस में छाई हुयी है। जनता सीमा पर मची हलचल का सच जानना चाहती है। वो सरकार से जवाब और मीडिया से सूचना की माँग कर रही है। जनता को जवाब और पड़ोसी मुल्क को मुँहतोड़ जवाब देने के लिए सरकार के राष्ट्रीय प्रवक्ता की तरह कार्य करने वाले पत्रकार सुझाव दे रहे हैं- सरकार को सीमा पर ‘ऑपरेशन स्टिंग’ चलाना चाहिये।  

इसी बीच एक मंत्री मांगलिक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अपने गृह जनपद आते हैं। मंत्री को जनता की माँग और अपनी मंशा से अवगत कराने के लिए, अन्य पत्रकारों के साथ सरकार के जिला प्रवक्ता की तरह कार्य करने वाले पत्रकार भी मांगलिक कार्यक्रम में शिरकत करने पहुँचते हैं। मंत्री के साथ बैठकर भोजन करने के पश्चात् सवाल-जवाब का सिलसिला शुरू होता है। अन्य पत्रकारों के मुँह पर हाथ रख जिला प्रवक्ता की तरह कार्य करने वाले पत्रकार एक-एक कर सवाल पूछते हैं।

पहला सवाल- मंत्री जी, कैसी हलचल है ? क्या है पूरा मामला ?

मंत्री- हमारे एक खानदानी मतदाता के घर शादी है। वर-वधु को आशीर्वाद देने और भोजन का निमंत्रण मिला था। हमारे यहाँ आने से ही हलचल मची है।

दूसरा सवाल- मंत्री जी, देश की जनता आपकी पाचन क्षमता जानना चाहती है। आई मीन, आपने कितनी कचौड़ियाँ खायीं ?

मंत्री- हम अल्पाहारी हैं। आलू पालक और पनीर की सब्जी के साथ सिर्फ दो कचौड़ियाँ खाईं।

तीसरा सवाल- मंत्री जी, गृहिणियाँ जानना चाहती हैं कि आलू पालक की सब्जी अच्छी बनी थी या पनीर की ?

मंत्री- पनीर की सब्जी में नमक थोड़ा कम था। आलू पालक की सब्जी अच्छी बनी थी।

चौथा सवाल- मंत्री जी, होटल उद्योग जानना चाहता है कि आपके खाने में नमक कितना होना चाहिये ?

जवाब देने की जगह ‘अब इजाजत दीजिए’ कहकर मंत्री जी पत्रकार बंधुओं के हाथ जोड़ते हैं। तत्पश्चात राजधानी रवाना होने के लिए कार में बैठते हैं।

मंत्री के गृह जनपद में मची हलचल का सीधा प्रसारण भी किया जा रहा था। सोलहो श्रृंगार से सज्जित और छप्पन कलाओं से लैस ओबी वैन वैवाहिक स्थल पर तैनात थी। ओबी वैन के साथ सरकार के जिला प्रवक्ता की तरह कार्य करने वाले एक पत्रकार, मंत्री के काफिले के पीछे-पीछे मंत्री के गृह जनपद की सीमा तक आते हैं।

पुलिस द्वारा लगाए गए ‘सीमा समाप्त’ के बोर्ड के पास खड़े हो पीस टू करते हैं- मंत्री जी का दौरा अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया है। क्या आप जानना चाहते हैं, किस कंपनी का था वो नमक जो मंत्री जी के खाने में भी कम पड़ गया ? क्या है सच, सब्जी में कम हुए नमक का? अगर जानना चाहते हैं इन सवालों के जवाब, तो इंतजार करिये अगली हलचल का।


आत्मा प्रेमी 

मंच पर बैठे निर्वस्त्र मुनि प्रवचन दे रहे थे। मंच के सामने बैठे बच्चा-महिला-पुरुष भक्त प्रवचन सुन रहे थे। निर्वस्त्र मुनि प्रेम करना सिखा रहे थे। कह रहे थे- हमें शरीर की जगह आत्मा से प्रेम करना चाहिये। आत्मा निर्वस्त्र होती है।

तभी प्रवचन स्थल के पास पागल कही जाने वाली नंग-धडंग आत्मा आ पहुँची। उसे देखते ही बच्चे हँसने लगे। महिलायें नजर बचाने लगीं। पुरुष भागो यहाँ से का जयकारा लगाने लगे।

पागल कही जाने वाली नंगी आत्मा को प्रवचन स्थल से हटाये जाने के बाद मंच पर बैठी निर्वस्त्र आत्मा ने प्रवचन आगे बढ़ाया।


ईमानदारी का महान दृश्य

जेब काटते हुये एक जेबकतरा पकड़ा गया। भीड़ इकठ्ठा हुयी और जेबकतरे को पीटना शुरू किया। जेबकतरे को पीटने वालों में एक कर्ज की चोरी कर बैंक की जेब काटता है। एक जनता की निधि में गबन कर लोकतंत्र की जेब काटता है। एक अदालत में हिंसा कर संविधान और कानून की जेब काटता है। एक कागजी गरीब बन वंचितों की जेब काटता है।

दूर खड़े दो जेबकतरे आपस में बात कर रहे थे- जेबकतरे ही जेबकतरे को पीट रहे हैं! ये ईमानदारी का महान दृश्य है।


विभांशु केशव व्यंग्यकार हैं और जनपथ पर तिर्यक आसन नाम का व्यंग्य स्तम्भ लिखते हैं।


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