ये तस्वीर है एक हुकूमत के हाकिमों के बर्बर, बेशर्म और बदमिजाज़ हो जाने की। चार छोटे-छोटे छोटे बच्चे। बिलखते हुए अपने मुल्क पर, मुल्क के मुकद्दर पर और मुकद्दर के मुस्तकबिल पर। एक दूसरे से गले मिलकर रोते हुए। समझिए इनके सुरों में बादशाह की बुजदिली का तराना। सामने के खेतों में पुलिस घसीटे जा रही थी इनके मां-बाप को। और दूर राष्ट्रवाद की छाती पर बज रहा था एक शोक गीत। भारत माता भाग्य विधाता।
मध्य प्रदेश के गुना के खेतों से जब ये चीखें उठीं तो धरती की ओढ़ी हुई धानी चूनर ने सहमकर सिकोड़ लिए अपने पांव। आकाश में दौड़ते हुए कालिदास के बादलों न बदल डाली रफ्तार। और दूर क्षितिज ने दहशत के मारे बंद कर लिए अपने द्वार।
ये कहानी है इस चमचमाते हुए देश में गांव के एक गरीब की। मरते हुए किसान की। सताए गए दलित की। बिलखते हुए बच्चों की।
सूबा मध्य प्रदेश। जिला गुना, थाना कैंट। गांव जगनपुर चक।
हुआ यूं कि इस जमीन को राजू नाम के एक दलित खेतिहर मजदूर और उसकी पत्नी सावित्री ने बटाई पर लिया है। इसी खेत में वो झोपड़ी बनाकर अपने छह छोटे-छोटे बच्चों के साथ रहते थे। ये रही पांच ट्रिलियन डॉलर के देश में राजू और सावित्री की समूची जिंदगी की गृहस्थी। राजू को मालूम नहीं था कि जो जमीन उसे बटाई के लिए एक दबंग ने टिका दी है वो एक कॉलेज के लिए ली जा चुकी है। उन्होंने खेती में सारी पूंजी झोंक दी। खेत में फसल लहलहाने लगी। अगले महीने फसल कटने वाली है कि एक दिन एसडीएम शिवानी रायकवार के निर्देश पर नायब तहसीलदार निर्मल राठर के नेतृत्व में पटवारी और पुलिस का दस्ता जेसीबी मशीन लेकर पहुंच गया। शिवराज सरकार के कारिंदों ने फसलों को रौंदना शुरू कर दिया। राजू और सावित्री अफसरों के पैरों में गिर गए। हुजूर ऐसा मत करो। हम बर्बाद हो जाएंगे।
राजू चीख रहा था- साहब तीन लाख रुपए का कर्जा लेकर बटाई की जमीन पर फसल बोई है। बस एक महीने की बात है। फसल कट जाने दो फिर हम खुद ही चले जाएंगे।
अधिकारी नहीं माने। एक दलित किसान की हिम्मत जवाब दे गई। सावित्री दौड़कर झोपड़ी में गई और कीटनाशक पी लिया। देखते ही देखते सावित्री बेहोश हो गईं।
हरी-हरी फसलों के गलीचे पर मां के मुंह से झाग आता देख बच्चे बिलख उठे। लिपट गए उसकी छाती से। सावित्री का बदन नीला पड़ता जा रहा था। बच्चों की चीखें सुनकर चट्टानों की रूह भी कांप उठी।
अपनी मां के बदन से चिपकी हुई इस बच्ची की तस्वीरें हमारी सभ्यता के सम्मान में लिखी हुई किताबों के लिए देखते ही देखते बोझ में बदल गईं। ये सब होता देख राजू झोपड़ी की ओर दौड़े। इसके पहले कि कोई कुछ समझ पाता केन में पड़ा हुआ कीटनाशक उन्होंने हलक के नीचे उतार लिया। वो कीटनाशक लेकर बच्चों को पिलाने के लिए दौड़े लेकिन इसके पहले ही पुलिसवालों ने उन्हें रोक लिया।
अब पुलिस राजू की पत्नी सावित्री को घसीट रही थी। इस पर राजू के भाई ने पुलिवालों को धक्का दे दिया। इसके बाद तो पुलिसवाले जल्लाद बन गए।
पुलिस वालों ने सावित्री को ऐसे घसीट लिया था जैसे वो उसका, उसके बच्चों का, उसके परिवार का दुनिया में कोई अस्तित्व ही न हो। कौन कहता है कि इस मुल्क में औरतों को छूने के लिए महिला पुलिस की अनिवार्यता का कानून है। दलित टोले की औरतों पर हाथ डालना पुलिस का नैसर्गिक अधिकार है। शिवराज सिंह चौहान क्या समझते हैं इस बेहयाई, इस बर्बरता इस जुल्म का मतलब?
ये किसी की झोपड़ी की ईंट नहीं उखाड़ी गई है। ये इस मुल्क की बुनियाद की ईंटें उखाड़ी गई हैं। वही बुनियाद जिसपर खड़ा होता है एक संप्रभु देश और उम्मीद बांधती हैं सताई हुई आंखें। पुलिसवाले की गुंडागर्दी देखिए, वो लोकतंत्र को जूतों से मसले जाने की इन तस्वीरों को रिकॉर्ड करने से रोकने की हिमाकत करता है।
शिवराज सिंह चौहान! अगर आप वाकई दलित विरोधी नहीं हैं तो आपको यह बात साबित करनी चाहिए। इनमें से हर पुलिसवाले को, तहसीलदार को, पटवारी को अधिकारी को बर्खास्त किया जाना चाहिए। जेल में डाला जाना चाहिए। उनपर मुकदमा चलाना चाहिए। वर्ना याद रखिएगा इस जुल्म पर आपकी चुप्पियां सत्ता की अदालत में भले बरी कर दें, इतिहास की अदालतें आपको कभी बरी नहीं करेंगी, कि एक हंसते-खेलते दलित परिवार को आपके अफसरों ने रौंदकर रख दिया था।