तकाज़ा तो यही कहता है कि कि “अवसरवाद जिनका सिद्धांत” है और “मूल्यहीनता जिनका आवरण”, उनका यमुना के झागभरे पानी में तब तक “शुद्धिकरण” किया जाना चाहिए जब तक उनकी अकल न ठिकाने आ जाए। ठीक वैसे ही जैसे मातादीन चमार ने ‘गोदान’ में पंडित जी का किया था।
हिंदी के महान कवि, लेखक और विचारक गजानन माधव मुक्तिबोध के दो बेटे हैं– दिवाकर मुक्तिबोध और रमेश मुक्तिबोध। दोनों स्वस्थ और सक्रिय हैं। राजनांदगांव में रहते हैं। पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहते हैं। आजकल कम दिखते हैं। दिवाकर मुक्तिबोध को तो कई बार पढ़ चुका हूं।
मुक्तिबोध की जाति खोजने वाले (समाज) वैज्ञानिक आला दर्जे के धूर्त और नाकाबिल हैं। कम से कम बुनियादी पत्रकारिता भी की होती तो दिवाकर मुक्तिबोध या रमेश मुक्तिबोध को ही फोन लगाकर ही मुक्तिबोध की जाति पूछ लेते। पक्का कर लेते लिखने से पहले, लेकिन ऐसा नहीं किया। क्यों?
क्योंकि न इनको पत्रकारिता आती है, न साहित्य। न ही भाषा और संस्कृति से इनका कोई वास्ता है। इनका एकमात्र धंधा, अपना धंधा चमकाना है। अरे! मुक्तिबोध की जाति तो राजेन्द्र यादव, ओमप्रकाश बाल्मीकि, मुद्राराक्षस और कंवल भारती जैसे लोगों ने भी नहीं पूछी, फिर तुम किस हैसियत से उनकी जाति खोज रहे हो?
दिवाकर मुक्तिबोध को मैंने फोन लगाया, हालांकि वो नहीं चाहते थे कि इस पर कुछ लिखूं या विवाद को और तूल दिया जाए या फिर मुक्तिबोध को जाति की सलीब पर लटका दिया जाए लेकिन चूंकि यह ज़रूरी है इसलिए दिवाकर मुक्तिबोध से माफ़ी सहित, उनसे हुई बातचीत यहां जस का तस प्रकाशित कर रहा हूं।
विश्वदीपक : हालांकि यह पूछना शर्मनाक है फिर भी क्या आप बता सकते हैं कि आपके पिता की जाति क्या थी?
दिवाकर : नंदकिशोर नवल ने “मुक्तिबोध” नाम से ही एक किताब लिखी है। उसमें मेरे पिता जी के बारे में सब कुछ मिल जाएगा।
विश्वदीपक : फिर भी…
दिवाकर : हम लोग मराठी ब्राह्मण हैं। देशस्थ ब्राह्मण बोलते हैं महाराष्ट्र में।
विश्वदीपक : अपने पिताजी की पैदाइश के बारे में कुछ बताइए?
दिवाकर : मेरे बाबाजी पुलिस में थे। मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले के श्योपुर कला में जब वो तैनात थे तब मेरे पिता जी का जन्म हुआ। उनका ट्रांसफर होता रहता था।
विश्वदीपक : मुक्तिबोध ने हिंदी भाषा और कविता को नये मुहावरे, नयी शब्दावली, नयी संवेदना और नयी धार दी। इसमें जाति का योगदान कितना मानते हैं?
दिवाकर : मेरे पिताजी वामपंथी थे। लेफ्ट थे। उनकी पूरी रनचा प्रक्रिया में यह दिखायी पड़ता है।
विश्वदीपक : हाल ही में मुक्तिबोध पर होने वाले एक सरकारी कार्यक्रम को विवाद के बाद स्थगित कर दिया गया। आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी?
दिवाकर : कार्यक्रम में जो वक्ता बुलाये गए थे उनको लेकर लोगों को आपत्ति थी। मेरे पिताजी लेफ्ट थे जबकि जो वक्ता वहां बुलाये गए थे उनका झुकाव दूसरी ओर था। इसलिए इसका विरोध किया गया और कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया।
विश्वदीपक : क्या कार्यक्रम दोबारा होगा?
दिवाकर : हां, जिला प्रशासन ने कहा है कि यह कार्यक्रम नये सिरे से दोबारा करवाया जाएगा।
विश्वदीपक : क्या आपको वक्ताओं के बारे में पता था?
दिवाकर : नहीं. यह आयोजन करने वालों ने तय किया था। किसको बुलाना है या नहीं बुलाना है वही लोग तय करते हैं, हालांकि मेरा नाम उस कार्ड में था लेकिन मुझे वक्ताओं की और उनकी पृष्ठभूमि की जानकारी नहीं। आयोजकों के स्तर पर यह विवाद हुआ, लेकिन फिर भी मैं चाहता हूं कि इसको अब आगे न बढ़ाया जाए।
(विश्वदीपक दिल्ली स्थित पत्रकार हैं)
ये भी पढ़ें: