तिर्यक आसन: वर्ण-व्यवस्था में 80:20 के परजीवी कीड़े का अपराधबोध


उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव-2022 के दौरान योगी आदित्यनाथ एक अनुपात की याद दिला रहे थे। कह रहे थे- ये 80:20 की लड़ाई है। आदित्यनाथ ठीक ही कह रहे थे। वे एक कीड़े के संघर्ष के बारे में बता रहे थे। उस कीड़े का संघर्ष प्राथमिक शिक्षा के दौरान लगभग सभी ने देखा होगा। वो कीड़ा एक ऊँचाई के शिखर पर पहुँचना चाहता था। वही कीड़ा दिन में जितना ऊपर चढ़ता था, रात में उसका आधा नीचे आ जाता था। एक निश्चित अनुपात में। कीड़े के चढ़ने-उतरने का अनुपात कठिन प्रश्न था। सबसे पहले हल करने वाला कक्षा का मॉनिटर बन जाता था।

वो कीड़ा गणित की पाठ्यपुस्तक में था, हालाँकि आदित्यनाथ जिस कीड़े के संघर्ष के बारे में बता रहे थे उस कीड़े को लेकर उलझन में हूँ- वो गणित वाला कीड़ा है या धर्म वाला?  आदित्यनाथ चाहें तो 80 और 20 के अनुपात को एक नाम देकर मेरी शंका दूर कर सकते हैं। नाम स्पष्ट कर दें तो आदित्यनाथ को हरिशंकर परसाई द्वारा घोषित संत की साहित्यिक उपाधि भी मिल सकती है।

हरिशंकर परसाई ने कहा है, ‘जिसकी बात के एक से अधिक अर्थ निकलें, वह संत नहीं होता, लुच्चा आदमी होता है। संत की बात सीधी और स्पष्ट होती है और उसका एक ही अर्थ निकलता है।’ जैसा कि अपने स्व-प्रकाशित संग्रह ‘गूगल कालीन भारत’ में खुद के परिचय में मैंने खुद को काइयां के रूप में स्वीकारा है, तो उस स्वीकारोक्ति के अनुसार मेरे द्वारा लिखित कीड़े का एक ही अर्थ नहीं है। मुझे काइयां बनाए रखने में आदित्यनाथ जैसे आदमियों का हाथ है, जिनकी कही बात का मैं एक ही अर्थ नहीं निकाल पाता हूँ। आदित्यनाथ द्वारा स्पष्टीकरण न दिए जाने के कारण मैं उस कीड़े का कोई एक नाम तय नहीं कर पा रहा हूँ। वो कीड़ा धर्म, साम्प्रदायिकता, फासीवाद, मनुवाद, पूँजीवाद या कोई धनपशु भी हो सकता है।

बाबा रामदेव द्वारा राष्ट्रऋषि घोषित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित उनकी सम्पूर्ण मंडली भी संत घोषित की जा सकती है। वे कांग्रेसमुक्त भारत का एक अर्थ बता दें। रामायण, महाभारत नामक काव्यों के दृश्य-श्रव्य रूपांतरण (धारावाहिक) में ऐसे-ऐसे तीर हैं, जो कमान से निकलते समय एक ही रहते थे; पर जैसे-जैसे विपक्षी खेमे की तरफ बढ़ते जाते थे, एक से अनेक होते जाते थे। कांग्रेसमुक्त भारत ऐसा ही एक तीर है जो जैसे-जैसे आगे बढ़ता है, अनेकार्थी होता जाता है। कांग्रेसमुक्त भारत, धर्मनिरपेक्षता-मुक्‍त भारत, मुस्लिम-मुक्त भारत, हिन्दू राष्ट्र। इसकी पुष्टि नरेंद्र मोदी मंडली के दरबारी समय-समय पर करते भी रहते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बाल्यावस्था की उपलब्धियों पर सवालिया निशान लगाने वाली जातक कथाएँ और उनकी शिक्षा की उपलब्धियों पर सवालिया निशान लगाने वाली कई दंत कथाएँ प्रचलित हैं। इन सबके बावजूद मुझे पूरा यकीन है कि नरेंद्र मोदी ने कीड़े को सबसे पहले शिखर पर पहुँचाया होगा। तभी उनकी पूरी ‘क्लास’ ने उन्हें देश का मॉनिटर बना दिया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने भी कीड़े को सबसे पहले शिखर पर पहुँचाया होगा। ये भी मॉनिटर हैं।

दोनों मॉनिटर्स के अध्यापक नागपुर में रहकर दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से दोनों को दीक्षित करते हैं कि कैसे ‘क्लास’ में उपस्थिति संख्या बढ़ायी जाए। प्रधानाध्यापक और प्रबंधक का पद भी है। प्रधानाध्यापक और प्रबंधक गुजरात में रहते हैं। वे दोनों नागपुर के अध्यापक को दान के माध्यम से ‘क्लास’ की शाखाओं की संख्या बढ़ाने में मदद करते हैं। रेलवे के ‘डायनामिक भाड़े’ की तरह दोनों का पद ऊपर-नीचे होता रहता है। कभी एक देश का सबसे अमीर बनता है। कभी दूसरा। इसी के अनुसार वे प्रधानाध्यापक और प्रबंधक के पद पर आते-जाते रहते हैं।

विकास की लहर में कीड़े की लंबाई बढ़ी है। उसकी महत्त्वाकांक्षा बढ़ी है। कीड़े का उदर समंदर हो गया है। कीड़ा अब सबसे ऊपर पहुँचना चाहता है। अब वो दुनिया में नम्बर वन बनना चाहता है। कीड़े को सबसे अधिक ऊँचाई पर पहुँचा कर नम्बर वन बनाने के लिए 80:20 का फॉर्मूला लाया गया। कीड़ा 80 पैसे चढ़ेगा। 20 पैसे घटेगा। दोनों मॉनिटर मिलकर कीड़े को एक न एक दिन सबसे ऊपर पहुँचा देंगे।

यहाँ मैं स्पष्टीकरण देना चाहूँगा। स्पष्टीकरण धर्मभीरुओं के लिए है ताकि उनकी नाराजगी का जोखिम न उठाना पड़े। यह स्पष्टीकरण प्राथमिक शिक्षा के दौरान कीड़े को सबसे पहले शिखर पर पहुँचा कक्षा का मॉनिटर बनने वालों के लिए भी है। आजकल सबसे अधिक डर इन्हीं मॉनिटर्स से लगता है। तो स्पष्टीकरण ये है कि सबसे ऊपर पहुँचाने का तात्पर्य मुआ कर ऊपर वाले के पास भेज देना नहीं है। ऊपर वाले की सीमा प्रारंभ होने का बोर्ड जहाँ लगा होगा, वहाँ तक पहुँचाने से है। स्पष्टीकरण के साथ मॉनिटर्स की मिजाजपुर्सी के लिए एक सुझाव भी है। अगर कोई धर्मभीरु मॉनिटर ऊपर वाले की सीमा प्रारंभ होने की लंबाई/ऊँचाई जानता हो, तो दोनों मॉनिटर्स को बता दे ताकि जरूरत के अनुसार वे 80:20 के फॉर्मूले में बदलाव कर पेट्रो के कीड़े को जल्द से जल्द सबसे ऊपर पहुँचा सकें।

एक स्पष्टीकरण और- कीड़ा कहने से किसी को नगण्य, अनुत्पादक (नॉन-प्रोडक्टिव) नहीं मान लेना चाहिए। कीड़ा रेशम का भी होता है। दो-चार दिन जीवित रहता है, कीमती वस्तु का उत्पादन कर जाता है। मैं विभांशु नामक अनुत्पादक परजीवी आदम कीड़े के बारे में सोचता हूँ। दशकों से जीवित है। उत्पादन के नाम पर सिर्फ आदमी का गोबर। इसका गोबर भी किसी काम का नहीं। पहले खेत में गोबर करता था, तो कुछ उत्पादक कीड़े उसे खाद के रूप में बदल देते थे। जब से खुले में गोबर करना अपराध घोषित हुआ है, विभांशु नामक कीड़ा अपराधबोध में रहता है- जीवन परजीवी के रूप में ही कट जाएगा।

वर्णव्यवस्था में भी परजीवी कीड़े हैं। उन्हें परजीवी होने का कोई अपराधबोध नहीं है। वे दूसरों को अपराधबोध कराते रहते हैं। पाखंड के कीड़े दूसरों के अपराधबोध को अपने लिए ‘बेनिफिशरी’ बना लेते हैं। इस समय देश को कश्मीर का अपराधबोध याद दिला कर ‘बेनिफिट’ कमा रहे हैं।

कश्मीर दो देशों का सामूहिक हवनकुंड है। दोनों देशों की सरकारें संकट की घड़ी में इस हवनकुंड में सैनिक स्वाहा, नागरिक स्वाहा, रोटी स्वाहा, रोजगार स्वाहा, महँगाई स्वाहा आदि की आहुति देकर बेनिफिट कमाती हैं।

(क्षमा कीजिएगा) एक और स्पष्टीकरण- वर्ण व्यवस्था के पाखंडी कीड़े के रूप में मैंने किसी जाति को इंगित नहीं किया है। वर्ण व्यवस्था में सबसे ऊपर एक परजीवी कीड़ा है। ज्ञात वर्ण व्यवस्था में सबसे ऊपर स्थित वर्ण के भी ऊपर। उसके बारे में कहा जाता है- सबका मालिक एक (जिसके बारे में सबसे नीचे लिखा है)।

वैसे, स्पष्टीकरण की दलील देकर मुझे अपने बचाव पक्ष का वकील बनने की आवश्यकता नहीं है। अगर आपके पास अनेकार्थी बातें कहने की क्षमता है, आप मेरी तरह काइयां हैं, तो अपने बचाव के लिए वकील करने की भी आवश्यकता नहीं है। न्यायाधीश खुद आपके वकील होंगे। आपके बचाव में वकील से अच्छी दलीलें पेश करेंगे।

हाल ही में केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर को हेट स्पीच मामले में अपनी दलीलों के माध्यम से क्लीन चिट देते हुए न्यायाधीश ने कहा, ‘मुस्कुराकर कही गई कोई बात अपराध नहीं।’ ये लिखते हुए मैं मुस्कुरा रहा हूँ या नहीं, ये आप नहीं देख पा रहे हैं। जब दृश्य-श्रव्य रूपांतरण करूँगा, तब मुस्कुराते हुए पढूँगा। आप भी मुस्कुरा रहे हैं क्या, विभांशु नामक कीड़े को पढ़कर?

कीड़े से याद आया- हो सकता है दोनों मॉनिटर्स और उनकी ‘क्लास’ मिलकर कीड़े को एक दिन सबसे ऊपर पहुँचा दें पर दोनों मॉनिटर्स देश को फिर से विश्वगुरु नहीं बना पाएंगे। जब जीरो दिया मेरे भारत ने दुनिया को तब गिनती आयी; विश्वगुरु बनाने वाली उपलब्धियों में से एक ये भी है। जीरो देकर गिनती भारत ने सिखायी, कीड़े को सबसे ऊपर पहुँचाने का गणित श्रीलंका वालों ने हल कर दिया। वहाँ कीड़ा सबसे ऊपर पहुँच गया है। उसके नीचे रोजी-रोटी के लिए लोग हाहाकार मचा रहे हैं। सेना की मौजूदगी में पेट्रो की बिक्री करनी पड़ रही है। श्रीलंका में सबसे ऊपर पहुँचकर कीड़ा कह रहा है- तुम लोगों के मॉनिटर ने मुझे ईश्वर की सीमा तक पहुँचा दिया है। अब मैं ईश्वर का पड़ोसी हूँ। कीड़े-मकोड़ों जैसे तुम लोग अपनी-अपनी माँग अपने-अपने मॉनिटर्स से करो।

लोग मॉनिटर्स से माँग करते हैं, तो मॉनिटर सबका मालिक एक वाला जवाब देते हैं- ‘माँग’ सभी प्रकार की सत्ताओं का मूल तत्व है। ईश्वरीय सत्ता (जहाँ माँग पूजा, तपस्या, मनौती के रूप में होती है) से लेकर राजनीतिक और परिवार की पितृसत्ता, माँग पर टिकी है। माँग की बैशाखी टिकाये रखने के लिए सभी प्रकार की सत्ताओं के जनक पूँजी के पुजारी अभावों का निरंतर उत्पादन करते रहते हैं।



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