कोरोना वायरस संक्रमण (कोविड-19) के विश्वव्यापी दहशत के बाद अब इससे बचाव के लिए इसके ‘‘वैक्सीन’’ की चर्चा जोरों पर है। इस वैक्सीन के आने की कथित घोषणा अगस्त में ही की गयी थी लेकिन अब छह महीने बाद भी स्पष्ट नहीं है कि वैक्सीन कब आएगी? वैक्सीन से जुड़ी अनेक तकनीकी दिक्कतों और आशंकाओं के बीच इससे जुड़ी अनेक अन्तर्राष्ट्रीय दवा व वैक्सीन निर्माता कम्पनियों में अब ‘‘प्राइस वॉर’’ शुरू हो चुकी है।
एक सामान्य नागरिक के नजरिये से देखें तो चीन के वुहान से निकले इस कोविड-19 के आतंक से अभी वैक्सीन के दावे तक पूरा मामला एक रहस्यमयी डरावनी फिल्म जैसा लगता है, लेकिन दहशत में फंसी जनता के सामने डर से उबरने के लिए वैक्सीन की ‘‘जुबानी डोज़’’ का बयान भी जरूरी है, सो वैक्सीन पर नेताओं के बयान अब अखबारों और चैनलों की सुर्खियां बन रहे हैं। एक अखबार की सुर्खी है ‘‘वैक्सीन को भरोसे का टीका।’’ इसका अर्थ यह भी निकलता है कि वैक्सीन की साख पर बट्टा है और वैक्सीन के ही भरोसे को टीके की ज़रूरत है। बहरहाल, देश की एक रिसर्च एजेन्सी ‘‘ऑब्जर्वर रिसर्च फाउन्डेशन’’ ने अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्सी ‘‘ड्यूक ग्लोबल हेल्थ इनोवेशन सेन्टर’’ की रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि भारत कोरोना वैक्सीन की 160 करोड़ खुराक खरीदने की तैयारी में है। अमरीका भी लगभग 100 करोड़, योरोपीय संघ 540 करोड़ खुराक खरीदने का इन्तजाम कर चुके हैं। भारत में वैक्सीन निर्माण में लगे सीरम इन्स्टीच्यूट, पुणे; भारत बायोटेक, हैदराबाद तथा जायडस कैडिला, अहमदाबाद- ये तीन संस्थान हैं जहां कोविड-19 से बचाव की वैक्सीन क्रमशः कोवीशील्ड, कोवैक्सीन तथा जायकोव-डी को तैयार किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि ये वैक्सीन अप्रैल से जुलाई 2021 के दौरान जारी कर सकते हैं।
वैक्सीन की कहानी भी कोरोना वायरस संक्रमण जैसी ही रहस्यमयी है। देश में सक्रिय अनेक महत्त्वपूर्ण चिकित्सा संस्थानों की अपनी अलग राय है। हाल ही में दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. संदीप गुलेरिया का एक बयान आया है कि कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के बाद हम ऐसी स्थिति में पहुंच जाएंगे जब हर्ड इम्यूनिटी आ जाएगी और वैक्सीन की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। डॉ. गुलेरिया ने कहा कि यदि वायरस म्यूटेट नहीं होता और अब इसमें कोई बदलाव नहीं आता तो लोग वैक्सीन लगाने के बारे में सोच सकते हैं, लेकिन इसकी जरूरत नहीं है। यहां महत्त्वपूर्ण मुद्दा यह है कि वायरस अपने तरीके से लोगों को प्रभावित तो कर ही रहा है। कुछ लोग तो इसके चंगुल में दोबारा फंस रहे हैं। अभी तो यह भी स्पष्ट नहीं है कि आने वाले समय में यह वायरस कैसे व्यवहार करेगा? वैक्सीन यदि आ भी जाती है तो यह तय इस बात पर होगा कि वैक्सीन की कितनी खुराक एक आदमी को देनी है क्योंकि वायरस की तीव्रता और संक्रमण की गम्भीरता पर सारा निर्भर करेगा।
यहां महत्त्वपूर्ण मुद्दा यह है कि वायरस कैसा व्यवहार करता है, उसकी संरचना और क्रियाशीलता में क्या परिवर्तन आते हैं, वह लोगों को दोबारा संक्रमित कर सकता है या नहीं। यह सब अब भी जांच के बिन्दु हैं। इस वायरस से बचने के लिए वैक्सीन की कितनी खुराक चाहिए? यदि हर्ड इम्यूनिटी आ जाती है तब तो वैक्सीन की जरूरत ही नहीं! लेकिन वैक्सीन बनाने में इतनी ज्यादा राशि खर्च हुई कि यदि वैक्सीन की मांग घट गई तो कम्पनियों के इन्वेस्टमेन्ट और मुनाफे का क्या होगा? इधर आम लोगों को अपनी जेब और सेहत की चिंता है तो उधर कम्पनियों को अपने मुनाफे की।
कोरोना वायरस से बचाव के लिए तैयार किये जा रहे वैक्सीन के बारे में इस वैक्सीन के निर्माता कम्पनियों के प्रमुखों की क्या राय है वह जानना भी महत्त्वपूर्ण है। भारत बायोटेक देश में पहली स्वदेशी कोरोना वैक्सीन ‘‘कोवैक्सीन’’ लेकर आने का दावा कर रही है। भारत बायोटेक में क्वालिटी आपरेशंस के प्रमुख साई डी. प्रसाद के अनुसार, ‘‘विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) युनाइटेड स्टेट फूड एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (यूएसएफडीए) और भारत के सेन्ट्रल ड्रग स्टैन्डर्ड कन्ट्रोल आर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) ने मात्र 50 फीसद प्रभावशाली श्वसन रोग के टीके को मंजूरी दे चुका है तो उम्मीद है कि ‘‘कोवैक्सीन’’ को भी मंजूरी मिल जाएगी क्योंकि इसकी प्रभाव क्षमता 50 फीसद से ज्यादा है।‘’ उल्लेखनीय है कि कोवैक्सीन के परीक्षण में देश के 25 केन्द्रों पर कोई 26,000 वालेन्टियर्स लगे हैं। इस बीच केन्द्र सरकार ने सुझाव दिया है कि वह आक्सफोर्ड युनिवर्सिटी तथा ड्रग मेकर एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित कोराना वैक्सीन की 300 से 400 मिलियन खुराक चाहती है।
सीरम इन्स्टीच्यूट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अदार पूनावाला कहते हैं कि प्रधानमंत्री से हुई मौखिक चर्चा में 400 मिलियन खुराक की बात तो आई है लेकिन उनके पास लिखित कुछ भी नहीं है यानि अभी तक सब कुछ जबानी है। इधर हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक की स्वदेशी वैक्सीन ‘‘कोवैक्सीन’’ के तीसरे चरण के ट्रायल के प्रस्ताव को कुछ बदलाव और सुझाव के साथ केन्द्र सरकार के विशेषज्ञ समूह ने वापस कर दिया है।
कोरोना वैक्सीन को लेकर मेडिक्लेम एवं चुनिंदा हेल्थ इंश्योरेन्स कम्पनियों ने आने वाले खर्च को मौजूदा हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी में कवर करने में असमर्थता जताई है। हेल्थ इन्श्योरेंस इण्डस्ट्री के एग्जीक्यूटिव और एक्सपर्ट कह रहे हैं कि केवल कुछ चुनिंदा ओपीडी मेडिकल पालिसी जिन्हें काम्प्रिहेंसिव कवर में राइडर के तौर पर दिया जाता है, वे वैक्सीन के खर्च को रीइंवर्स कर सकते हैं। आईसीआईसीआई लोम्बर्ड के प्रमुख संजय दत्ता कहते हैं, ‘‘ओपीडी कॉस्ट को कवर करनेवाली इंश्योरेंस पॉलिसियां ही केवल वैक्सीन के खर्च को शामिल कर सकती हैं।‘’ वैसे तो देश में हेल्थ पालिसी बहुत कम लोगों के पास है लेकिन धीरे-धीरे लोग ऐसी पॉलिसी ले रहे हैं। जीआईसी के ताजा आंकड़ों के अनुसार कोरोना महामारी के चलते 6,836 करोड़ रुपये के करीब 4.45 लाख क्लेम आए हैं। इनमें से इंश्योरेंस कम्पनियों ने 3.02 क्लेम को निपटाया है जिसकी लागत 2,914 करोड़ रुपये है।
इस बीच बीमा कम्पनियां कह रही हैं कि मौजूदा पॉलिसी की शर्तों के अनुसार कम्पनियां ऐसी लागत को कवर करने के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। यहां तक कि अगर सरकार टीकाकरण को अनिवार्य करती है तो भी उन पर यह दबाव नहीं डाला जा सकता है। ऐसा तभी होगा जब बीमा नियाम इरडा की ओर से कोई निर्देश आए। स्टार हेल्थ एण्ड एलायड इंश्योरेंस के एमडी डॉ. एस. प्रकाश ने कहा है कि दो से तीन हफ्तों के अंतराल में दो से तीन वैक्सीन शॉट्स की जरूरत पड़ सकती है, हालांकि ऐसा नहीं लगता कि प्रति व्यक्ति खर्च 1,000 रुपये से ज्यादा आएगा।
कोरोना वायरस से बचाव की वैक्सीन की चर्चा के बीच एक चर्चा यह भी है कि क्या सचमुच वैक्सीन आ जाने पर सब कुछ सामान्य हो जाएगा? ब्रिटेन के रॉयल सोसाइटी के शोधकर्ताओं ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि वैक्सीन से क्या होगा और क्या हो सकता है, इसे लेकर अभी भी कई आशंकाएं हैं जिसका जवाब आना बाकी है। इम्पीरियल कॉलेज लंदन के नेशनल हार्ट एण्ड लंग इन्स्टीच्यूट के डॉ. फियोना कुली के अनुसार, ‘‘वैक्सीन के बारे में जानकर हमारे मन में उम्मीद पैदा होती है कि महामारी समाप्त हो जाएगी लेकिन हमें यह भूलना नहीं चाहिए कि ‘‘वैक्सीन के विकास में कई बार विफलता का मुंह देखना पड़ता है।’’
वैक्सीन को लेकर भारत सरकार सहित ब्रिटेन एवं अमरीका की सरकारें बड़ी उम्मीद में हैं कि वैक्सीन जल्द आ जाएगी लेकिन रॉयल सोसाइटी की चेतावनी है कि ‘‘कोरोना वायरस से बचाव की मुकम्मल वैक्सीन का निर्माण एक लम्बी प्रक्रिया है।’’ कॉलेज के ही इम्यूनोलाजी विभाग के प्रमुख प्रोफेसर चाल्र्स बांगम का कहना है कि ‘‘हम वाकई यह नहीं जानते हैं कि कोरोना वायरस से बचाव का टीका कब तैयार हो पाएगा? हम यह भी नहीं जानते कि यह कितना प्रभावी होगा? और हम अभी यह भी नहीं बता सकते कि यह कब तक हर किसी को उपलब्ध हो पाएगा।’’ वैक्सीन पर किये जा रहे दावे पर टिप्पणी करते हुए बाथ युनिवर्सिटी के डाॉ. एंड्रयू प्रेस्टन कहते हैं, ‘‘वैक्सीन को एक ऐसे अचूक उपाय के तौर पर चित्रित किया जा रहा है, जो आते ही महामारी को दूर कर देगी, लेकिन यह इतना आसान नहीं है।’’
जिसे भी देखिए वह थोड़े लापरवाह स्थिति में वैक्सीन के नाम से ही आश्वस्त है कि, ‘‘अब डर काहे का, वैक्सीन तो आ ही रही है।’’ ऐसा कहते चक्त यह भी जानिए कि विश्व स्वास्थ्य संगठन वैक्सीन को लेकर क्या कह रहा है। संगठन के हेल्थ इमरजेन्सी डायरेक्टर माइकल रेयान का वक्तव्य तो डराने वाला है। वे कहते हैं कि ‘‘हो सकता है हमें वायरस के साथ ही जीना पड़े।’’
अब तक के वैक्सीन का इतिहास देखिए। इबोला महामारी के बारे में दुनिया को पहली बार 1976 में पता चला। तब इससे मरने वालों की दर 50 फीसद थी। अभी तक इसकी कोई वैक्सीन बन नहीं पायी। एचआइवी वायरस भी दुनिया में तीस साल पुराना वायरस है। इससे दुनिया में 3.2 करोड़ लोग मारे भी जा चुके हैं लेकिन अभी तक इसकी भी न तो कोई वैक्सीन बनी है और न ही कोई मुकम्मल दवा। एच5एन1 (एवियन एनफ्लूएन्जा) सन् 1990 से दुनिया में है। अभी तक लाखों लोग इससे संक्रमित हुए हैं और हजारों मारे भी जा चुके हैं। यह संक्रमण पक्षियों के मल से इंसानों में फैलता है। 1997 में एच5एन1 वायरस का सबसे पहले हांगकांग में पता चला था। मर्स-कोव यानि मिडल इस्ट रेस्पीरेटरी सिंड्रोम एक तरह का कोरोना वायरस ही है। अरबी ऊंट को इस वायरस का मुख्य स्रोत माना जाता है। सार्स भी एक प्रकार का कोरोना वायरस ही है। यह वर्ष 2003 में सामने आया। इसकी भी अभी तक कोई वैक्सीन नहीं बन पाई है। इसलिए अपने सभी पाठकों और देशवासियों को मैं यह सूचना देना चाहता हूं कि वैक्सीन कोई रामबाण नहीं होता। एहतियात ही सबसे बड़ा और सुरक्षित बचाव है। रोग की सम्भावनाओं से बचने के लिए बताए गए उपायों पर अमल करें। यह ही मुफ्त में सबसे भरोसेमंद वैक्सीन है।
यदि आपको यह लग रहा है कि आप वैक्सीन लगाते ही ‘‘कोरोना प्रूफ’’ हो जाएंगे तो आप गलतफहमी में हैं। वैक्सीन एक्सपर्ट कह रहे हैं कि हमारे शरीर में एन्टीबाडीज़ बनने की प्रक्रिया में न्यूनतम तीन सप्ताह लगता है। यानि यदि आप आज वैक्सीन लेते हैं तब भी आप पर अगले तीन सप्ताह तक संक्रमण का खतरा मंडराता रहेगा। यह संकट इससे अधिक समय के लिए भी हो सकता है।
अभी अभी गुजरे बिहार विधानसभा चुनाव में एक राजनीतिक दल ने मतदाताओं से वोट देने की अपील की और उन्हें मुफ्त ‘‘कोरोना वैक्सीन’’ का ऑफर भी दिया था। अगले वर्ष भी देश में कई चुनाव होने हैं। जाहिर है कि वहां भी वैक्सीन का लालीपॉप बिकेगा! आम जनता को यह समझ लेना चाहिए कि वैक्सीन आ जाने पर भी उसके वितरण के जो नियम सरकार ने तय किये हैं उसके अनुसार यह पहले फ्रंटलाइन वर्कर्स, मरीज, महत्वपूर्ण व्यक्तियों (वीवीआइपी) आदि को उपलब्ध होगी।
अब आप यह भी याद रखिए कि सरकार में रसूखदार लोगों के रिश्तेदारों का कितना प्रभाव है। समझने के लिए चार वर्ष पहले 5 नवम्बर 2016 की रात याद करें। पुराने नोटों के बदले नये नोट लेने के लिये कौन लाइन में लगे थे और कौन मरे थे? और वे कौन थे जिनके घर पर नये नोटों के बंडल पहुंच गये थे? कोरोना वैक्सीन को लेकर शुरू राजनीति से यही दृश्य मुझे दिखायी पड़ रहा है। मै कल्पना में देख पा रहा हूं कि मुंह पर फटा-चिथड़ा मास्क लगाए आम लोग अस्पतालों में लम्बी लाइन लगाकर वैक्सीन का इन्तजार करेंगे। कुछ तो शायद लाइन में ही शहीद हो जाएं। दुआ करता हूं कि ऐसा न हो और मेरी कल्पना झूठ सिद्ध हो लेकिन पुराने अनुभव तो मुझे डरा ही रहे हैं।
वैक्सीन आने में अब भी कम से कम छह महीने से ज्यादा लगेंगे, फिर आप तब तक क्या करेंगे? सलाह साफ है कि भीड़-भाड़ में जाने से बचें। 5 से 6 फीट की दूरी बनाकर रखें। घर से बाहर निकलें तो अच्छी क्वालिटी का मास्क पूरी तरह नाक और मुंह पर लगाकर रखें। हाथ धोते रहें। टोने-टोटके से बचें। अफवाहों और जालसाज ज्योतिषियों या झोलाछाप डॉक्टरों के चक्कर में न पड़ें। याद रखें, यह एक खतरनाक वायरस है इससे वैज्ञानिक तरीके से ही निपटा जा सकता है। टोना-टोटका से यह वायरस जाने वाला नहीं। आप यदि अंधभक्त हैं तो भी जान तो आपको भी प्यारी होगी। इसलिए इस वायरस से बचने के लिए वैज्ञानिक उपायों पर ही भरोसा रखें। देश और दुनिया के वैज्ञानिक आपके जीवन की रक्षा के लिए रात दिन एक कर शोध में लगे हैं। देशी चिकित्सा एवं होमियोपैथी में भी कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव के लिए शोध जारी हैं। अपने योग्य, अनुभवी होमियोपैथिक चिकित्सकों की सलाह भी आपकी मदद कर सकती है। हर हाल में याद रखें वैक्सीन या दवा से भी ज्यादा कारगर है बीमारी/महामारी से बचाव। बचाव ही इलाज है। हम आपके सेहतमंद जीवन की कामना करते हैं।