”टू मच डेमोक्रेसी” वाला वर्ष और अंत में रुकावट के लिए एक खेद!


वर्ष 2020 बीत चुका है। इसे पॉजिटिव नोट पर अलविदा कहना चाहिए। बिना तैयारी के लॉकडाउन, कोरोना से हुई मौतें, प्रवासी मज़दूरों की हृद्यविदारक तस्वीरें, आर्थिक मंदी, शाहीन बाग, किसान आंदोलन जैसी नैगेटिव बातों पर मिट्टी डालिए। विश्व में भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि खराब होती है भाई। कुछ तो पॉज़िटिव भी हुआ होगा। उसे याद कीजिए। कम से कम यही कह दीजिए कि इस साल देश में “टू मच डेमोक्रेसी” हुई। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने साल के ख़त्म होते-होते 8 दिसंबर को जिसकी औपचारिक घोषणा की थी।

टू मच डेमोक्रेसी? अब आप सोच रहे होंगे कि ये टू मच डेमोक्रेसी क्या होती है। तो हम आपको बताते हैं कि टू मच डेमोक्रेसी क्या है। इसकी क्या विशेषताएं हैं और ये कैसे काम करती है। पहले समझ लेते हैं कि डेमोक्रेसी और टू मच डेमोक्रेसी में क्या अंतर होता है? डेमोक्रेसी में जनता सरकार को चुनती है और टू मच डेमोक्रेसी में सरकार जनता को चुनती है। सरकार चुनती है कि उसकी जनता कौन होगी और कौन नहीं। जनता को ये साबित करना होता है कि वो जनता है और नागरिकों को ये साबित करना होता है कि वो नागरिक हैं। इसके लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी होती है और अनेक परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। उसके बाद भी अंतिम निर्णय सरकार का ही होता है क्योंकि टू मच डेमोक्रेसी में चुनने का अधिकार सिर्फ सरकार को है।

ये कैसे पता चलता है कि देश में टू मच डेमोक्रेसी हो गई है? तो आपको बता दें कि जब देश वर्ल्ड डेमोक्रेसी इंडेक्स पर नीचे की तरफ लुढ़कता है तो देश में टू मच डेमोक्रेसी हो जाती है। उदाहरण के तौर पर वर्ल्ड डेमोक्रेसी इंडेक्स में भारत दस स्थान नीचे लुढ़क गया है। इसका कारण बताया गया है कि भारत में नागरिक स्वतंत्रताओं का बड़े पैमाने पर हनन हो रहा है। 165 देशों की सूची में भारत 51वें स्थान पर है। शायद अब आप आसानी से समझ गये होंगे कि देश में टू मच डेमोक्रेसी कब होती है। जैसे ही डेमोक्रेसी इंडेक्स पर देश नीचे की तरफ लुढकने लगे तो समझ जाइए टू मच डेमोक्रेसी है।

आप कौन हैं और कौन नहीं, टू मच डेमोक्रेसी में ये सरकार तय करती है। इसे और अच्छे ढंग से समझने के लिए हम किसान आंदोलन का उदाहरण लेते हैं। अब दिल्ली बॉर्डर पर लाखों किसान बैठे हैं, लेकिन सरकार कैसे मान ले कि वो किसान हैं। आप कौन हैं, ये आप थोड़ी बताएंगे, ये सरकार तय करेगी क्योंकि टू मच डेमोक्रेसी में ये सरकार तय करती है कि कौन किसान है, कौन विद्यार्थी है, कौन मज़दूर है और कौन नहीं है आदि-आदि।

सरकार ने तय कर लिया है कि किसान कौन है। सरकार उन किसानों के सम्मेलन भी कर रही है। आपको अगर किसान देखने हैं तो इन सम्मेलनों की लाइव स्ट्रीमिंग देखिए। आप साक्षात उस किसान को देख सकते हैं जो सरकारी वेबसाइट पर रजिस्टर्ड भी है। इन्हें सरकार ने चुना है क्योंकि अब देश में टू मच डेमोक्रेसी है। टू मच डेमोक्रेसी में चुनने का अधिकार सिर्फ सरकार को होता है।

अगर आप मात्र इस आधार पर खुद को किसान मानते हैं कि आप खेती करते हैं, तो तुरंत समझ ठीक कर लें। सिर्फ खेती करना काफी नहीं है। आपके खेत ये साबित नहीं करेंगे कि आप किसान है बल्कि सरकार तय करेगी। इस बात को आप हर पेशे और श्रेणी पर लागू कर सकते हैं। मतलब अगर आपके पास काम नहीं है तो ये ना मानें कि आप बेरोज़गार हैं। अगर किसी फैक्ट्री में काम करते हैं तो ये मानने की भूल ना करें कि आप मज़दूर हैं। अगर किसी कॉलेज़ या विश्वविद्यालय में पढ़ते हैं तो ये ना माने कि आप विद्यार्थी हैं। ये सरकार आपको बताएगी कि आप क्या हैं?

आप अर्बन नक्सल, खालिस्तानी, माओवादी, देशद्रोही, टुकड़े-टुकड़े गैंग, अवार्ड वापसी गैंग, कांग्रेसी, वामपंथी आदि-आदि कुछ भी हो सकते हैं। सरकार के पास सबका डेटा है। सही समय पर सरकार प्रचार कर देगी कि आप कौन हैं। टू मच डेमोक्रेसी में यही सरकार का प्रमुख काम है। लोगों की शिनाख्त करना, उनका चरित्र-चित्रण करना, नामकरण करना और उसका प्रचार करना।

टू मच डेमोक्रेसी में मीडिया को पूरी से भी अधिक आज़ादी होती है। एंकर और मेहमान नेशनल टीवी पर गालियां तक दे सकते हैं। पत्रकार झूठ बोल सकते हैं, अफवाह फैला सकते हैं, लोगों की निजता का हनन कर सकते हैं, नफ़रत फैला सकते हैं, हिंसा के लिए उकसा सकते हैं, तथ्यों को तोड़ सकते हैं मरोड़ सकते हैं, लोगों को धकिया सकते हैं, गरिया सकते हैं। मतलब फुल फ्रीडम। लेकिन कौन बोलेगा, क्या बोलेगा, कब बोलेगा, कितना बोलेगा ये चुनाव सरकार करती है क्योंकि टू मच डेमोक्रेसी में चुनने का अधिकार सिर्फ सरकार को है।

टू मच डेमोक्रेसी में सरकार का एंटिना लगातार सक्रिय रहता है। बारीक से बारीक चीज़ भी इसकी नज़रों से बच नहीं सकती। ये एंटिना इतना शक्तिशाली होता है कि सिर्फ सिग्नल ही नहीं बल्कि खुशबू तक को पकड़ सकता है। उदाहरण के तौर पर, किसान आंदोलन में बड़े पैमाने पर गाजर पाक पकाया जा रहा था। एंटिना ने उसकी खुशबू को कैच कर लिया। तुरंत कार्यवाही हुई।

किसान रंगे हाथों पकड़ा गया। उससे पूछा- धरने में गाजर पाक बना रहे हो और खुद को किसान कहते हो? विपक्षी, खालिस्तानी, पाकिस्तानी एजेंट, नक्सल, कांग्रेसी, वामपंथी कहीं के।

किसान ने जवाब दिया- “गाजर साडे खेत दी, दूध साडी भैंस दा, त्‍वाडे फुफ्फड़ का की”?

इसके बाद से ही टू मच डेमोक्रेसी में रुकावट के लिए खेद चल रहा है।


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