बहुजन राजनीति के बेगमपुरा मॉडल की तलाश

बाबा साहेब द्वारा 1942 में स्थापित आल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन के उद्देश्य और एजंडा को देखा जाय तो पाया जाता है कि डॉ. आंबेडकर ने इसे सत्ताधारी कांग्रेस और सोशलिस्ट पार्टियों के बीच संतुलन बनाने के लिए तीसरी पार्टी के रूप में स्थापित करने की बात कही थी। इसकी सदस्यता केवल दलित वर्गों तक सीमित थी क्योंकि उस समय दलित वर्ग के हितों को प्रोजेक्ट करने के लिए ऐसा करना जरूरी था।

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उत्तर प्रदेश में मायावती राज और दलित उत्पीड़न

अब यह सामान्य अपेक्षा है कि जिस राज्य में सवर्ण मुख्यमंत्री के स्थान पर कोई दलित मुख्यमंत्री बनेगा वह दलित उत्पीड़न को रोकने के लिए वांछित इच्छाशक्ति दिखायेगा और अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण कानून को प्रभावी ढंग से लागू कराएगा ताकि दलित उत्पीड़न कम हो सके. पर क्या वास्तव में ऐसा होता है?

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दलित राजनीति की त्रासदी को इसका स्वर्णिम युग कहना मसखरापन है!

जिन दलित पार्टियों ने जाति की राजनीति को अपनाया था वे भाजपा के हाथों बुरी तरह से परास्त हो चुकी हैं क्योंकि उनकी जाति की राजनीति ने भाजपा फासीवादी हिन्दुत्व की राजनीति को ही मजबूत करने का काम किया है।

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दलितों को दूसरों के हेलिकॉप्टर से चलने वाले नेताओं से सावधान रहना चाहिए

चंद्रशेखर जब कांशीराम के सत्तावादी मिशन को ही आगे बढ़ाने की बात करता है, तो यदि उसे सत्ता में कुछ हिस्सेदारी मिल भी जाय तब भी सवाल यह बना रहेगा कि क्या इससे दलितों का कोई कल्याण हो पाएगा?

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इतवार को AIPF मनाएगा ‘लोकतंत्र बचाओ दिवस’, 15 को अन्य संगठनों के साथ साझा संकल्प पत्र

आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट राष्ट्रीय आज़ादी आन्दोलन के आदर्शों के अनुरूप एक धर्मनिरपेक्ष एवं लोकतान्त्रिक भारत के निर्माण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को पुनः दोहराता है और भारतीय गणराज्य में जनता की संप्रुभता को स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध है.

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भारत में हर रोज पुलिस अभिरक्षा में क्यों होती हैं मौतें?

पुलिस के चरित्र को बदलने के लिए समाज व राज का लोकतांत्रिक होना जरूरी है. यदि समाज चाहता है कि उसे मानवीय, संवेदनशील एवं कानून का सम्मान करने वाली पुलिस मिले तो पुलिस में मूलभूत सुधारों की जरूरत होगी, जिसे कोई भी सरकार या मौजूदा पूंजीवादी दल नहीं करना चाहते है. इसके लिए नई जन राजनीति को खड़ा करना होगा!

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