बात बोलेगी: जाते-जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया…


जावेद अख़्तर की लिखी यह खूबसूरत ग़ज़ल, जिसे जगजीत सिंह ने अपनी आवाज़ और अंदाज़ से अमर कर दिया, आज बेतहाशा इसलिए याद आ रही है क्योंकि लगा कि आज हमारे देश के अद्भुत प्रधानमंत्री को भी यह ग़ज़ल खुशी के मौके पर याद आ रही होगी। ऐसी एहसासजदा ग़ज़ल अगर वो मन ही मन में गुनगुना भी रहे होंगे, तो उस वक़्त उनके मन में हिंसक ख्याल नहीं आ रहे होंगे बल्कि थोड़ा नॉस्टाल्जिक, थोड़ा कृतज्ञता के भाव ही होंगे। मनुष्य को ऐसा ही होना चाहिए।

वैसे, इस अदब से उनकी कोई खास निस्बत है नहीं। वो तो गुलाबो-सिताबो के मिर्ज़ा के माफिक हैं और एक ऐसा नगमा हैं जो हर साज़ पर नहीं सजता। ‘अच्छे वक्ता’ कहलाये ज़रूर जाते हैं पर जब बात अहसासों से भारी शायरी कहने की आती है, तो वह हुंकारभेदी स्वरों में ही निकलती है। इसकी एक बानगी संसद में निदा फाजली की बहुत खूबसूरत ग़ज़ल के आतातायी इस्तेमाल में देखी गयी थी। ये नाज़ुक सी गजल थी- सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो…

डोनाल्ड ट्रम्प से इनके मरासिम दुनिया में किसी से छिपे नहीं हैं। कहते हैं कि सबसे मजबूत मरासिम उन्हें ही कहा जाता है जिस पर हर कोई अपनी-अपनी तरह से तोहमतें लगाए। कभी मज़ाक में, कभी रोष में, कभी प्यार में तो कभी चिढ़ में भी। इन दोनों के बीच की निस्बत ऐसी रही भी है कि एक की वजह से दूसरे को अपने-अपने देशों में बहुत कुछ सुनना पड़ा और मज़ेदार यह रहा कि इनके रिश्तों के बारे में लोग इस तरह बात करते पाये जाते हैं जैसे पड़ोस की बात हो। दुनिया को एक गांव में समेट लेने का श्रेय इन्हें भी इतिहास में दिया ही जाएगा। याद करिए बीते चार साल में कितने ऐसे मौके आए जब इन सिमटती दूरियों को हमने अपनी नग्न आँखों से देखा- मंच चाहे अमेरिका में सजा हो चाहे इंडिया में, मुजाहिरा केवल इन प्रगाढ़ रिश्तों का ही हुआ।

एक साँचे में ढले, एक जैसा आइक्यू, एक जैसे ब्यौपारी, दोनों की देशों की जनता का एक जैसे चौंकना, एक जैसे चुनाव अभियान, एक जैसी शोहरत,एक जैसी नफ़रत, एक जैसे अनंत झूठ- क्या ही ज़ुदा करता है दोनों को? आप कह सकते हैं कि दोनों देशों की जनताओं में फ़र्क है। डोनाल्ड ट्रम्प लाख कोशिशों के बाद अपनी जनता को न चुन सके जबकि यहां इन्होंने न केवल अपनी जनता को चुना बल्कि उसका झूठ के ईंट-गारे से पुनर्निर्माण भी कर लिया।

बात करते हैं उस मौंजू की जिसके बायस अपने वाले को जावेद साहब की प्यारी सी ग़ज़ल याद आने का ख्याल यहां मन में उठा जा रहा होगा। ख्याल का यह बवंडर मन में जब इस तरह उठा जा रहा हो तो उसे इसलिए बता देना ज़रूरी हो जाता है क्योंकि कह देने भर से पाप कट जाते हैं। पाप काटने का यह सबसे शांतिमय रास्ता है।

खबर है कि संयुक्त राज्य अमेरिका के भूतपूर्व हो रहे अभूतपूर्व राष्ट्रपति अपने दफ्तर यानी व्हाइट हाउस से अपना सामान पैक कर रहे हैं। क्या छोड़ें क्या ले जाएं जैसी तमाम उलझनों के बीच वो भारत के प्रधानमंत्री को एक अवॉर्ड देना नहीं भूले। इस अवार्ड को ‘लीजन ऑफ मेरिट’ कहा जाता है। यह अवॉर्ड अब तक कई भारतीयों को मिल चुका है। जिन भारतीयों को ये मिल चुका है वे सब सैन्य सेवाओं में रहे हैं।  

द लीजन ऑफ़ मेरिट अवॉर्ड, उन सर्वोच्च सैन्य पदकों में से एक है जो अमेरिका के राष्ट्रपति आम तौर पर अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों या फिर शासनाध्यक्षों को प्रदान करते हैं। ‘लीजन ऑफ़ मेरिट’ एकमात्र ऐसा सैन्य सम्मान है जिसमें अलग-अलग रैंक होते हैं और यह पहला ऐसा सम्मान भी है जो दूसरे देशों के लोगों को भी दिया जाता है। यह सम्मान उत्कृष्ट सेवा, निष्ठा, युद्ध अथवा युद्ध से इतर उच्च कोटि की वफ़ादारी और श्रेष्ठ काम के लिए दिया जाता है।

1942 से शुरू हुए इस अवॉर्ड की चार श्रेणियां हैं जो सीधे तौर पर सैन्य सेवाओं से संबंधित हैं। विदेशी सशस्त्र बलों के सदस्यों या अन्य नागरिकों को चार श्रेणियों के तहत लीजन ऑफ़ मेरिट अवॉर्ड से सम्मानित किया जाता है। इनमें चीफ़ कमांडर, कमांडर, ऑफ़िसर, लेजियोनॉएर हो सकते हैं। इन चारों ही श्रेणियों में मेडल दिया जाता है। मोटे तौर पर सभी मेडल एक ही जैसे होते हैं लेकिन उनके आकार में श्रेणीबद्ध तरीक़े से थोड़ा-बहुत अंतर होता है। नरेंद्र मोदी को सर्वोच्च श्रेणी यानी चीफ़ कमांडर की डिग्री से ही नवाज़ा गया है।

अब कोई भाजपा प्रवक्ता डिबेट के दौरान यह भी कहते पाया जाया सकता है कि उनके लोकप्रिय प्रधानमंत्री चीफ कमांडर भी हैं। गैर की महफिल में चर्चे होना ज़रूरी है। उन चर्चों की वजहों का कोई खास महत्व नहीं होना चाहिए।

अब दिलचस्प यह है कि मोदी जी को ये अवॉर्ड किस उत्कृष्ट सेवा, निष्ठा और उच्चकोटि की वफादारी के लिए दिया गया होगा? क्या इस अवॉर्ड को हासिल करने में उनके ‘हाउडी मोदी’ वाले प्रायोजित कार्यक्रम को आधार बनाया गया होगा जहां उन्होंने तमाम कूटनीति को खेत करते हुए ‘अबकी बार ट्रम्प सरकार’ का नारा उछाला था। या फिर कोरोना के तमाम खतरों में देश को झोंकने का जोखिम उठाते हुए अहमदाबाद में ‘नमस्ते ट्रम्प’ जैसे चुनाव अभियान आयोजित करने के लिए दिया गया होगा, जहां उन्होंने डोनाल्ड ट्रम्प से अपने बेहद अंतरंग और अनौपचारिक रिश्तों का इज़हार करते हुए उन्हें ऐसे नाम से पुकारा था जिससे उन्हें कोई और नहीं पुकारता- जब उन्होंने डोनाल्ड को डोलाण्ड कहा तो जैसे पूरे स्टेडियम में एक उत्तेजना का संचार हुआ था और ट्रम्प ने अपनी जीत सुनिश्चित सी कर ली थी। क्या इस अवार्ड के पीछे अनौपचारिकता में लिए गए इस नाम की महिमा है?

कहना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन शायद इसी के बाद भावी राष्ट्रपति जो बिडेन ने अपने चुनाव अभियान में ट्रम्प की यह कहकर खिल्ली उड़ायी कि- ‘कैसों कैसों से तो इनके अंतरंग संबंध हैं?’ लेकिन जैसा पहले कहा गया, रिश्तों की प्रगाढ़ता की कसौटी यह भी होती है कि दुनिया उन रिश्तों की अलग अलग तरह से व्याख्या करे।

तब भी यह एक सम्मान तो है ही और ऐसे सम्मान मिलने से किसी का भी मनोबल बढ़ता है। जिस बात के लिए उसे सम्मान मिला उन गुणों में और बेहतरी करने का प्रोत्साहन भी मिलता है और एक ज़िम्मेदारी भी आती है। इसका इज़हार स्वयं मोदी जी ने किया है। और देश भर में इस बात को लेकर जश्न का माहौल है।

ऐसे वक़्त में जब सड़कों पर देश भर के किसान डेरा डाले हों; असल शत्रुओं की पहचान कर ली गयी हो और उनकी अट्टालिकाओं को घेरा जा रहा हो; जब महंगाई बेतहाशा बढ़ रही हो और जनता को मिलने वाली तमाम रिरायतों में कटौती हो रही हो; बेरोजगारों की फौज टिड्डी दल का रूप धरण करके आसमान में छा जाने की तैयारियां कर रही हो; और तरकश का कोई तीर किसी काम न आ रहा हो; और एक-एक दिन काटना मुश्किल हो रहा हो; ऐसे में अचानक आपको पता चले कि दूरंदेस का एक मित्र जो दुनिया भर में साम्राज्‍यवाद और युद्धों का पोषक हो, आपको निष्ठा और उच्च कोटि की वफादारी के लिए एक सम्मान दे, तो सम्मान तो बढ़ता ही है।

सभी देशवासियों को इस सम्मान में हुई प्रगति के लिए बधाई। इस मौके पर पूरी ग़ज़ल भी पढ़ी ही जा सकती है। हर शेर कुछ कहता है-

जाते-जाते वो मुझे, अच्छी निशानी दे गया
उम्र भर दोहराऊँगा, ऐसी कहानी दे गया

उससे मैं कुछ पा सकूं, ऐसी कहां उम्मीद थी
ग़म भी वो शायद बराए,महरबानी दे गया

सब हवाएं ले गया,मेरे समंदर की कोई
और मुझको एक कश्ती, बादबानी दे गया

खैर मैं प्यासा रहा, पर उसने इतना तो किया
मेरी पलकों की कतारों को, वो पानी दे गया


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