मंगलवार 8 दिसंबर को कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों द्वारा बुलाये गये भारत बंद के बाद अचानक गृहमंत्री अमित शाह का किसान नेताओं को भेजा शाम का न्योता दबाव में उठाया गया कदम माना जा रहा था, लेकिन उसका नतीजा न निकलना था, न निकला। सरकार और किसान प्रतिनिधि दोनों अपने पक्ष में अड़े रहे।
मंगलवार शाम 7.00 बजे 13 किसान नेताओं की बैठक अमित शाह के न्योते पर उनके आवास पर होनी थी। किसान प्रतिनिधियों ने उनके आवास पर बैठने से इनकार कर दिया, जिसके बाद पूसा के कृषि संस्थान में जगह तय की गयी। इस आपाधापी में डेढ़ दो घंटे निकल गये और बैठक देर से शुरू हुई। कोई डेढ़ घंटा चली बैठक बिना किसी नतीजे के खत्म हो गयी।
बैठक से बाहर आकर सीपीएम की किसान सभा के नेता हनन मोल्ला ने एक वाक्य में बैठक की सारी कार्यवाही को समेट दिया, ‘’मुर्गी बैठे रहा, अंडा नहीं दिया।‘’
कायदे से छठे दौर की बैठक का दिन आज तय था, लेकिन जाने किस जल्दबाज़ी और उम्मीद में गृहमंत्री ने बैठक एक दिन पहले बुलवा ली। बेनतीजा रहने के बाद उन्होंने पहले से तय आज की बैठक को रद्द करते हुए कहा कि किसान संगठनों को सरकार एक प्रस्ताव लिखित में भेजेगी। उसके बाद उक्त प्रस्ताव पर बैठक गुरुवार को होगी।
किसान नेता राकेश टिकैत की मानें तो बैठक में सरकार का पक्ष थोड़ा नरम था। उनके मुताबिक अमित शाह ने इस बात की सराहना की कि किसान आंदोलन इतने दिनों तक शांतिपूर्ण तरीके से कैसे टिका हुआ है।
आज दिन में 12 बजे सिंघु बॉर्डर पर बैठक में सरकार के प्रस्ताव पर विचार होगा। उसके हिसाब से गुरुवार की बैठक की रणनीति तय की जाएगी। वैसे मोटे तौर पर रणनीति के नाम पर अभी तक एक ही मांग है कि कानूनों को वापस लिया जाय, इसलिए गुरुवार की बैठक का भी कोई नतीजा निकलने के आसार नहीं दिख रहे।