तन मन जन: चुनावी लहर के बीच उभर चुकी कोरोना की दूसरी लहर पर कब बात होगी?


कोरोना वायरस संक्रमण को दस से ज्यादा महीने हो चुके हैं। कहा जा रहा है कि यह संक्रमण की दूसरी लहर का सबसे तेज-प्रवाह है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की चेतावनी है कि सर्दियों में इसकी तीसरी लहर भी आ सकती है। डब्ल्यूएचओ के यूरोप में क्षेत्रीय निदेशक डॉ. हेनरी क्लग के अनुसार ‘‘सर्दियों में इस संक्रमण की वजह से ज्यादा लोग अस्पतालों में दाखिल होंगे। इस वायरस के प्रवृत्ति के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह आशंका निश्चित है।’’

इन दिनों अमरीका, फ्रांस और योरोप में कोरोना वायरस संक्रमण के रिकार्ड मामले आ रहे हैं। 30 अक्टूबर के आंकड़े के अनुसार 98,859 मामले अमरीका में, 49,215 फ्रांस में और भारत में 48,648 मामले दर्ज हुए हैं। एक दिन में दर्ज होने वाले ये आंकड़े डरावने और परेशान करने वाले हैं। डब्ल्यूएचओ कह रहा है कि योरोप, अमरीका, फ्रांस, भारत में तो मानो कोरोना की लहर चल रही है। हालात सचमुच खराब हैं, लेकिन आंकड़े और संचार माध्यमों के प्रबन्धन से इस वायरस संक्रमण से मरने वालों का सही आंकड़ा सामने नहीं आ पा रहा लेकिन इसमें संदेह नहीं कि इससे अब तक (31 अक्टूबर 2020) 1,194,672 मौतें दर्ज की जा चुकी हैं। भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के मौजूदा दौर को दूसरी लहर का शीर्ष बताया जा रहा है जबकि कुछ वैज्ञानिक इसे संक्रमण की तीसरी लहर भी बता रहे हैं। बहरहाल, इतना तो स्पष्ट है कि कोरोना का कहर फिलहाल थमने वाला नहीं है।

डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस अधानोम घेब्रेयेसस ने विशेषकर योरोप के देशों के लिए चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि ‘‘वे नाजुक मोड़ पर खड़े हैं क्योंकि वहां कोरोना वायरस संक्रमण से होने वाली मौतों के आंकड़े बढ़ रहे हैं।‘’ उन्होंने स्पष्ट किया कि आंकड़े और संक्रमण की तीव्रता से साफ है कि अगले महीने बेहद कठिन हैं और योरोप के कई देश अभी भी लापरवाह हैं। अमरीका के जॉन हापकिन्स विश्वविद्यालय ने भी एक रिपोर्ट जारी कर मामले की गंभीरता को रेखांकित किया है।

भारत में खासकर दिल्ली और कई शहरों में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में अचानक वृद्धि जितनी डरावनी है, यहां के लोग उतने ही लापरवाह हैं। कई राज्यों में चुनाव है तो कई राज्यों में चुनावी सरगर्मिंयां। जनसभा, बाजार, बैठकें सामुदायिक कार्यक्रमों में लोगों की लापरवाह भीड़ को देखकर लगता ही नहीं कि उन्हें इस बीमारी से मौत का कोई खौफ है। अरसे बाद दिल्ली में संक्रमण्रा का आंकड़ा अब तक के सारे रिकार्ड तोड़ चुका है। यह अलग बात है कि लोग इस वायरल संक्रमण के दौरान नेताओं द्वारा कई तरह से गुमराह किए गए। झूठे वायदे और अन्धविश्वास के सहारे किसी भी खतरनाक वायरस से निबटने का सपना देखना निरी मूर्खता है, लेकिन देश ने एहतियात से ज्यादा अन्धविश्वास को अहमियत दी। इसमें तथाकथित पढ़े लिखे लोगों से लेकर बड़े सेलेब्रेटी कहे जाने वाले लोग सब शामिल थे। इस वायरस के संक्रमण के बेकाबू होने के अन्देशों में यूरोप के कई देशों ने तो एलर्ट जारी कर दिया है लेकिन भारत में लगता नहीं कि जनता एवं सरकार में कोई भी इस बीमारी के गम्भीरता से ले रहा है।

कोरोनावारस संक्रमण से निबटने की तैयारी और उसकी भावी रणनीति पर यदि विचार करें तो भारत में दिल्ली और केरल सरकार की तारीफ करनी पड़ेगी। केरल सरकार ने अपने सभी नागरिकों की कोरोना जांच का दावा किया है। संक्रमण की स्थिति में उनकी क्विक रेसपांस सिस्टम और पर्याप्त इलाज की पुख्ता व्यवस्था ने संक्रमण को नियंत्रित करने में बड़ी भूमिका निभाई है। ऐसे ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल एवं स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन की व्यक्तिगत रुचि के चलते पहले से ही पूरी दिल्ली में कोरोना वायरस संक्रमण जांच की निःशुल्क व्यवस्था की गई है। दिल्ली में क्षेत्रवार संक्रमण जोन को  बार बार रिव्‍यू कर वहां के नजदीकी अस्पतालों में संक्रमित व्यक्तियों के लिए बिस्तरे का इन्तजाम, होम क्वारेन्टाइन/होम आसोलेशन जैसी सुविधाएं, घर घर जाकर संक्रमितों को अक्सीमीटर का वितरण, दवाओं की उपलब्धता तथा आयुष चिकित्सा पद्धतियों की मदद से यहां के लोगों की रोग प्रतिरोधी क्षमता में वृद्धि के प्रयास सराहनीय हैं।

दिल्ली सरकार ने होमियोपैथी की दवा कैम्फोरा 1000 के कोरोना वायरस से बचाव की खूबियों/कमियों को परखने जांचने के लिए कलस्टर क्लिनिकल ट्रायल की अनुमति दी है। इस दवा के साथ साथ होमियोपैथी की अन्य दवाओं जैसे ब्रायोनिया अल्ब, आर्सेनिकम अल्ब आदि की कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव की क्षमता को भी जांचा जा रहा है। मैं स्वयं इस प्रक्रिया का हिस्सा हूं इसलिए कह सकता हूं कि होमियोपैथी में ऐसे घातक वायरस संक्रमण को रोकने, उपचार करने की अद्भुत क्षमता है।

आरंभ में ही वैज्ञानिकों ने यह आशंका जताई थी कि संक्रमण कई महीनों तक जारी रहेगा लेकिन उम्मीद थी कि तीन चार महीने में स्थिति सामान्य हो जाएगी। शुरू में संक्रमण से निजात पाने के लिए प्रधानमंत्री के द्वारा ताली-थाली घंटी बजाने की अपील पर पूरे देश भर में जनता की सहभागिता से ही स्पष्ट हो गया था कि देश की ज्यादातर जनता अवैज्ञानिक सोच की है जो गंभीर मामले में भी महज टोटके आजमाने में ही भरोसा करती है। किसी भी वायरस संक्रमण से बचने के लिए व्यक्तियों में भौतिक दूरी, मुंह को ढंकना, हाथ धोना, भीड़-भाड़ में जाने से बचना जैसे एहतियात ज्यादा प्रभावी हैं बनिस्‍बत थाली-ताली बजाने या कोई और टोना-टोटका करने को।

देखा जा सकता है कि आज भी जब कोरोना का कहर दूसरी बार दुनिया में फैल रहा है तब भी लोग मुंह ढंकने, हाथ धोने या दूरी बनाकर चलने, भीड़भाड़ से बचने में कोई रूचि नहीं ले रहे। अपने आसपास देख रहा हूं कि व्यक्ति बीमार पड़ने पर लाखों रुपये खर्च कर देता है लेकिन मुफ्त की सलाह पर एहतियात नहीं बरतता। यह स्थिति पूरे देश में लगभग सभी जगह है। देश ही क्यों पूरी दुनिया में ही ऐसी स्थिति दिख रही है।

चिकित्सा विज्ञान में उपचार से ज्यादा रोग से बचाव को अहमियत देने की बात कही है लेकिन अमल में यह नहीं दिखता। चिकित्सा पाठ्यक्रम में प्रिवेंटिव एन्ड सोशल मेडिसीन यानि सामुदायिक स्वास्थ्य विज्ञान एक उपेक्षित विभाग की तरह देखा जा सकता है। चिकित्सा छात्रों व अध्यापकों की रूचि सोशल मेडिसीन से ज्यादा उपचारात्मक विषयों जैसे हृदयरोग, तंत्रिका रोग, आंख नाक, गला रोग, उदर रोगी, किडनी, लीवर आदि में ज्यादा होती है। यही वजह है कि कोरोना वायरस संक्रमण के मामले में ही देख लें, सारा फोकस वैक्सीन या दवा पर है। एहतियात या बचाव के नैसर्गिक उपायों को मानो मजबूरी में माना जा रहा हो। सरकारी विज्ञापन की भाषा देखिए- ‘‘जब तक दवाई नहीं तब तक ढिलाई नहीं।’’ यानि दवा या वैक्सीन के आ जाने के बाद सब ठीक हो जाएगा। जनस्वास्थ्य में बचाव के प्राकृतिक उपायों और प्रकृतिसम्मत जीवन शैली की सबसे ज्यादा अहमियत होनी चाहिए, लेकिन ऐसा है नहीं।

कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव के वैकल्पिक चिकित्सीय उपायों की भी देश में बहुत उपेक्षा है। विगत 8 महीने में कोरोना वायरस संक्रमण की यह दूसरी तेज लहर है लेकिन देश में कहीं भी सरकार ने वैकल्पिक व पारम्परिक चिकित्सा पद्धतियों को ज्यादा अहमियत नहीं दी। कहीं कहीं कुछ उत्साही चिकित्सक अपनी पहल पर इस वायरस संक्रमण से बचाव के लिए प्रयोग और प्रयास कर भी रहे हैं तो उसमें काफी अड़चनें हैं। होमियोपैथी की दवा के कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव में महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर कोई खास नहीं देखा जा रहा है। दिल्ली का उदाहरण मैं देता हूं। मुम्बई के जाने माने होमियोपैथ डॉ. राजन शंकरण एवं मैं अप्रैल 2020 से ही दिल्ली व केन्द्र सरकार से होमियोपैथी की दवा के कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव के क्लिनिकल जांच व परीक्षण की अनुमति के लिए प्रयास करते रहे हैं। अनेक राजनीतिक दवाओं के बाद दिल्ली में होमियोपैथिक दवा के क्लिनिकल परीक्षण की इजाजत मिली। इस प्रक्रिया में चार महीने लग गए। अब दिल्ली में होमियोपैथिक दवाओं की ‘रेन्डमाइज्ड कन्ट्रोल ट्रायल’ चल रही है। उम्मीद है कि कुछ सकारात्मक परिणाम जल्द ही सामने आएंगे लेकिन यह तो ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ के समान है।

जिस देश में 80 फीसद जनता महंगे एलोपैथिक उपचार को दिल से स्वीकार न करती हो वहां वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों को ज्यादा जनोपयोगी एवं तार्किक बनाने के लिए जो प्रयास होने चाहिए थे वह नहीं हुए। यह भी सच है कि फिलहाल सरकार के पास वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के रूप में ‘आयुष’ (आयुर्वेद, यूनानी, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा तथा होमियोपैथी) के नाम पर जो तंत्र है वह जैसे तैसे बस काम चला रहा है। देशहित व मानवहित में यदि सरकार राजनीतिक रूप से आयुष पद्धतियों को रोग निवारण एवं उन्मूलन के लिए उपयोग में लेने का निर्णय करती है तो यकीन मानें बहुत कम बजट में देश के लोगों को खुशहाल और स्वास्थ्य रखा जा सकता है।

मई में ‘जनपथ’ के लिए लिखे अपने इस कॉलम में मैंने लिखा था कि कोरोना वायरस संक्रमण से फिलहाल मुक्ति सम्भव नहीं। मैंने यह भी स्पष्ट किया था कि इस वायरस संक्रमण को नियंत्रित तो किया जा सकता है लेकिन खत्म नहीं किया जा सकता। मैंने यह भी लिखा था कि इस वायरस संक्रमण की आड़ में सरकार और विभिन्न राजनीतिक दल अपना एजेन्डा लागू कर रहे हैं। जो भी हो, इस दौर में कोरोना वायरस संक्रमण की आड़ में आमजन के साथ बहुत ज्यादती की गई है। देश में करोड़ों लोगों की नौकरी और उनके रोजगार खत्म हो गए। बीमारी की अवस्था में सरकारी लापरवाही और समुचित उपचार के अभाव में हजारों लोगों ने दम तोड़ा, निजी अस्पतालों ने उपचार के नाम पर मनमानी रकम (10 से 20 लाख रुपये प्रति व्यक्ति) वसूली। इसी दौरान सरकार ने अपने राजनीतिक विरोधियों पर देशद्रोह जैसे मुकदमे लगाकर जेलों में डाल दिया। कई राज्यों में विधायकों की खरीद बिक्री से सरकारें बदलीं। कहा जा सकता है कि इस महामारी के दौर में जहां आम लोग बड़ी संख्या में परेशान थे वहीं सरकार ने ‘‘आपदा में अवसर’’ का पूरा लाभ लिया।

कोरोना काल में ही बिहार और मध्य प्रदेश में चुनाव हो रहे हैं। वहां की चुनावी सभा को देख लें। लोगों का हुजूम है सभाओं में। कोरोना से बेखौफ और कानून व्यवस्था को ठेंगा दिखाकर सभी राजनीतिक पार्टियां ताबड़तोड़ रैली कर रही हैं। बिहार में एक अधेड़ मतदाता से कोरोना वायरस संक्रमण एवं चुनाव के दौरान बीमारी-महामारी से बेखौफ लोगों की लापरवाही के बारे में पूछा तो उनका जवाब था- ‘‘लोकतंत्र में जनता के पास अब एकमात्र वोट ही हथियार बचा है। वोट के बहाने ही सही नेता जनता के दरवाजे पर आता है, बाकी चुनाव जीतने के बाद तो हम अपने आंसुओं के साथ ही रहते हैं। भीड़ का क्या करें। राजनीति ने देश की सम्मानित जनता को भीड़ में ही तो बदल कर रख दिया है।‘‘

चुनाव के दौरान नेताओं के लिए जनता का उमड़ना लाजिमी है। बिहार चुनाव में तो कोरोना कहीं लग ही नहीं रहा। आश्चर्य है। न कोई गाइडलाइन न कोई परहेज। मास्क की बात तो क्या करें लोगों को नंगे बदन बूथ पर वोट डालने के लिए घंटों कतार में लगे देख लें। पेट पीठ आपस में चिपके हुए लेकिन उंगली में इतनी ताकत है कि वे नेताओं का भविष्य तय कर सकें। बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था भी चरमराई हुई है। न डाक्टर, न दवाई फिर भी कोरोना से बेखौफ बिहार की जनता। राजनीति ने बिहार को यही दिया है?

कोई कह रहा है यह तीसरी लहर है तो कोई इसे दूसरी लहर ही बता रहा है मगर एक बात तो तय है कि कोरोना वायरस संक्रमण अब बेलगाम हो गया है। कोई कितना भी शोर मचा ले या डींगे हांक ले मगर कोरोना काबू से बाहर है। कई देशों ने तो फिर से इमरजेन्सी की घोषणा कर दी है। कोरोना काल में सबसे ज्यादा चर्चित अमरीका की हालत तो और खस्ता है। अमरीका में कोरोना महामारी लगभग अनियंत्रित हो चली है। यहां पर हर सेकेन्ड में एक नया कोरोना मरीज मिल रहा है। रोजाना एक लाख लोग संक्रमित हो रहे हैं। भारत में भी यही स्थिति है। इन दिनों कोरोना संक्रमितों की संख्या बेइंतहा बढ़ रही है। वैज्ञानिक भी हाथ खड़े कर रहे हैं। कह रहे हैं कि ‘‘हर्ड इम्यूनिटी’’ के बाद ही स्थिति नियंत्रण में आएगी। शायद इसलिए ही सरकार लोगों की लापरवाही पर नियंत्रण नहीं कर रही?

कुछ वैज्ञानिकों की राय में कई इलाके में कोरोना महामारी के व्यापक प्रसार के बाद अब ठहराव पर है। शायद वहां ‘‘हर्ड इम्यूनिटी’’ का असर हो? अमरीकी हार्ट एसोसिएशन के सीएमओ डॉ. एडुआर्डो सांचेज ने कहा है, ‘‘कोरोना वायरस (कोविड-19) के खिलाफ ‘‘हर्ड इम्यूनिटी’’ तभी विकसित हो सकती है, जब तकरीबन 60 फीसद आबादी कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुकी हो।’’ भारत में हर्ड इम्यूनिटी की संभावना पर अमरीका के सेन्टर फॉर डिजीज डायनेमिक्स, इकोनोमिक्स एण्ड पॉलिसी के निदेशक तथा अमरीका के प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ रिसर्च स्कालर डॉ. रामानन लक्ष्मीनारायण कहते हैं, ‘‘भारत की 65 फीसद आबादी यदि कोरोना वायरस से संक्रमित होकर ठीक हो जाए तो बाकी 35 फीसद को भी कोविड-19 से सुरक्षा मिल जाएगी।’’

तो समझ लें कि यह दूसरी लहर ही है। अभी तीसरी, चौथी लहर भी आएगी और बड़ी संख्या में लोगों को संक्रमित करेगी। यदि आप मौजूदा व्यवस्था से ज्यादा आशावादी हैं तो आप वैक्सीन का इन्तजार कर सकते हैं।


लेखक जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होमियोपैथिक चिकित्सक हैं


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