तन मन जन: कोविड संक्रमण के पलटवार का दौर और बढ़ता खतरा


कोरोना वायरस संक्रमण भयानक है और इसके भयंकर परिणाम होंगे। इससे होने वाली बरबादी का असर भारत में ज्यादा दिखेगा। फिलहाल जो दो बड़े खतरे दिख रहे हैं वे हैं आर्थिक कंगाली तथा बदहाल स्वास्थ्य व्‍यवस्था से तिल तिल कर मरते लोग। एक नया संकट जो दिख रहा है वह है कोरोना वायरस संक्रमण से ठीक हो चुके लोगों का पुनः कोरोना वायरस पॉजिटिव होना! यह एक ऐसा खतरा है जिसे वैज्ञानिक सहज स्वीकार नहीं कर पा रहे, लेकिन हकीकत है कि ठीक हो चुके लोग दोबारा संक्रमित हो रहे हैं। वुहान (चीन) से भी ऐसे मामलों की पुष्टि चुकी है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) तथा भारत की मेडिकल रिसर्च संस्था आइसीएमआर अभी तक आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि नहीं कर पा रहे, लेकिन रोजाना ऐसे मामले दुनिया भर में प्रकाश में आ रहे हैं जिन्‍हें नजरअन्दाज करना भयंकर भूल होगी। मेरे स्वयं की निगरानी में ऐसे तीन मामले उपचार के लिए आ चुके हैं जिन्हें होमियोपैथिक उपचार से लाभ मिला और फिलहाल वे ठीक हैं।

फिलहाल कोरोना वायरस संक्रमण के उपचार से ठीक हुए लोगों पर एक अध्ययन की रिपोर्ट चर्चा में है और दिल दहला रही है। स्वास्थ्य की साप्ताहिक शोध पत्रिका द लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार कोरोना संक्रमण से उबर चुके लोगों में पुनः संक्रमण और बाद के जोखिम की सम्भावना बहुत ज्यादा है। चीन के वुहान से उपलब्ध रिपोर्ट के अनुसार कोरोना से ठीक हुए 90 फीसद मरीजों के फेफड़े संक्रमित पाये गये हैं। वुहान के झोंगवान अस्पताल के आइसीयू के निदेशक पेंग झियोंग के नेतृत्व में किये गये सर्वे और अध्ययन में देखा गया है कि कोरोना वायरस सक्रमण से एक बार ठीक हो चुके मरीजों में 90 फीसद के फेफड़े खराब हो चुके हैं यानि इन मरीजों के फेफड़े का वेंटिलेशन और गैस एक्सचेंज फंक्शन काम नहीं कर रहा है। इनमें से कई मरीजों को ठीक होने के तीन महीने बाद भी ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है। अध्ययन में यह भी सामने आया है कि इनमें 10 फीसद मरीज ऐसे भी हैं जिनके शरीर में कोरोना वायरस से लड़ने वाली एन्टीबाडी खत्म हो चुकी है। इस संक्रमण में यह एक नये किस्म की चुनौती है।

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कोविड-19 से उपचार के उपरान्त उबर जाने वाले लोगों के भावी स्वास्थ्य को लेकर एक अध्ययन यूनिवर्सिटी हास्पिटल फ्रैंकफर्ट का है। शोध के अनुसार कोविड-19 से ठीक हुए 100 लोगों में से हृदय के एमआरआइ जांच में 80 लोगों के हृदय में संरचनात्मक परिवर्तन दिखायी दिये हैं। यह अध्ययन ‘‘जेएएमए कोडिर्योलोजी‘‘ जर्नल में 27 जुलाई 2020 को प्रकाशित हुआ है। यह जर्नल अमरीकी मेडिकल एसोसिएशन द्वारा प्रकाशित एक महत्वपूर्ण शोध जर्नल है। इस शोध का नेतृत्व कर रहे वैज्ञानिक वैलेंटिना पुटंमैन का कहना है कि कोविड-19 की कई बातें अभी भी रहस्य हैं और चिकित्सकों व वैज्ञानिकों को यह ध्यान देना होगा कि संक्रमण से ठीक हो जाने के उपरान्त भी मरीजों में हृदय, फेफड़ा व मस्तिष्क सम्बन्धी दिक्कतों की क्या-क्या जटिलताएं हैं।

अध्ययन में यह चौंकाने वाला तथ्य भी सामने आया कि कोविड-19 से मर चुके 39 लोगों में जिनकी औसत आयु 85 वर्ष थी, के शव परीक्षा परिणामों में पाया गया कि इनके हृदय में वायरस की उपस्थित उच्च स्तर तक थी। अध्ययन के अनुसार कोविड-19 के रोगियों में ‘‘सार्स-कोब-2’’ वायरस ज्यादातर हृदय की मांसपेशी, ऊतक व कोशिकाओं में कई तरह से असर डालता रहा जबकि इस संक्रमण से पहले उन लोगों के हृदय की मांसपेशियां, ऊतक आदि ठीक थे।

कोविड-19 के साइड इफेक्ट से सम्बन्धित एक और अध्ययन आजकल चर्चा में हैं। चर्चा यह कि कोविड-19 से संक्रमित व्यक्ति 20वें दिन तक किसी भी स्वस्थ मनुष्य को वायरस से संक्रमित कर सकता है। यह अध्ययन भी ‘‘द लैंसेट’’ में ही प्रकाशित हुआ है। यह शोध चाइनीज एकेडमी ऑफ मेडिकल साइन्सेज के वैज्ञानिकों ने किया है। इन वैज्ञानिकों का कहना है कि संक्रमण की अवधि अनुमान से भी ज्यादा हो सकती है।

यह अध्ययन कई चुनौतियों को सामने रखता है। वैसे गम्भीर किस्म के तीव्र श्वसन सिंड्रोम (एसएआरएस कोरोना वायरस) में संक्रमण के फैलने की अवधि चार सप्ताह है और मध्य पूर्व रेसपिरेटरी सिन्ड्रोम कोरोना वायरस (मर्स) के लिए यह अवधि तीन सप्ताह है। इस शोध का नेतृत्व कैपिटल मेडिकल युनिवर्सिटी, चीन के वैज्ञानिक बिन फाओ ने किया है। इस शोध ने यह भी स्पष्ट किया कि बढ़ी हुई उम्र में कोविड-19 के संक्रमण के जटिल होने का खतरा ज्यादा है। अध्ययन के अनुसार कोविड-19 के मरीजों में कफ और दर्द की शिकायत काफी समय तक बनी रह सकती है।

एक और अध्ययन ब्रिटेन के बर्मिंघम स्थित एनआइएचआर ग्लोबल रिसर्च का है जिसमें कहा गया है कि कोरोना वायरस संक्रमण के बाद सर्जरी करवाने वालों को मौत का खतरा ज्यादा रहता है। ‘‘द लैंसेट’’ में ही प्रकाशित यह अध्ययन 24 देशों के 235 अस्पतालों में 1125 मरीजों से प्राप्त आंकड़ों के 30 दिनों तक किये गये परीक्षण से सामने आया है। अध्ययन में पाया गया है कि कोविड-19 से उबर चुके लोग यदि सर्जरी का प्लान कर रहे हैं तो उसे फिलहाल टाल दें। शोधकर्ताओं के अनुसार इलेक्टिव सर्जरी में मौत की दर 1 प्रतिशत होती है लेकिन कोविड-19 से उबरे लोगों में माइनर सर्जरी में यह 16.3 प्रतिशत तथा इलेक्टिव सर्जरी में 18.9 प्रतिशत है। कोरोना संक्रमण से पहले सबसे ज्यादा खतरे वाले मरीजों में जो मृत्यु दर थी, वह उससे भी ज्यादा है। इस अध्ययन का असर भी दिखायी दे रहा है। दुनिया भर में कोरोना के कारण लगभग 28.4 प्रतिशत इलेक्टिव सर्जरी टाल दी गयी है। कहना न होगा कि रहस्य बना यह वायरल संक्रमण चिकित्सा के लिए एक बड़ी चुनौती की तरह है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन तो शुरू से ही कोरोना वायरस संक्रमण के मामले में विवादों में है। शुरू में पर्याप्त व समुचित जानकारी नहीं देने तथा इस संक्रमण से जुड़ी जानकारियों को छिपाने का आरोप भी डब्लूएचओ पर लगा है लेकिन संगठन शायद खुद भी कोविड-19 से जुड़ी अनेक बातों को लेकर स्पष्ट नहीं है। डब्लूएचओ के स्वास्थ्य आपात कार्यक्रम के कोविड-19 रिस्पान्स की टेक्निकल हेड मारिया वेन केरखोवे ने कहा है कि कोविड-19 से प्रभावित कुछ लोगों में पीसीआर पाजिटिविटी कुछ हफ्तों तक रहती है। इसका मतलब यह नहीं कि व्यक्ति इस दौरान संक्रमित हो ही। उन्होंने कहा है कि सैद्धान्तिक रूप से कोविड-19 संक्रमण की सिक्वेंसिंग से यह पता लगेगा कि क्या वायरस को आइसोलेट किया जा सकता है? इससे यह भी पता लग सकता है कि क्या व्यक्ति दोबारा कोरोना वायरस से संक्रमित हुआ? इसमें शक नहीं कि कोविड-19 संक्रमण के दोबारा पाजिटिव मामले अच्छी संख्या में सामने आ रहे हैं लेकिन अभी तक स्वास्थ्य की सर्वोच्च संस्था भी इस मामले में स्वयं स्पष्ट नहीं है।

दुनिया की जानी-मानी संस्था सीडीसी (सेन्टर फार डिजीज कन्ट्रोल एण्ड प्रिवेंशन) ने यह सलाह दी है कि कोविड-19 के मामले में सभी कन्फर्म तथा सस्पेक्टेड मरीजों के लिए यह देखना जरूरी है कि पहले वह लक्षणमुक्त रहा हो। उसके बाद भी 24 घंटे में कम-से-कम 2 बार वायरस के लिए उनकी टेस्टिंग निगेटिव हो। इतना ही नहीं, सीडीसी ने अपनी ताजा गाइडलाइन में कहा है कि अगर कन्फर्म या सन्दिग्ध कोविड-19 मरीज बिना बुखार कम करने वाली दवा के इस्तेमाल से 3 दिन के अन्दर बुखार से मुक्त हो जाए और उसके श्वसन सम्बन्धी लक्षणों में भी सुधार हो, तो उसे रिकवर या संक्रमण से ठीक हुआ माना जाएगा। हालांकि इस स्थिति में भी मरीज को कम से कम 7 दिनों की निगरानी में रहना चाहिए। सीडीसी के अध्ययन में यह भी कहा गया है कि कोरोना वायरस संक्रमण के लक्षण सामने आने में 3 दिन या इससे ज्यादा भी लग सकता है। इस स्थिति में भी यह सन्दिग्ध व्यक्ति किसी दूसरे को संक्रमित कर सकता है।

बहरहाल, कोविड-19 के मामले अभी भी गम्भीर हैं। इस वैश्विक संकट के दौर में सरकारें अपनी जनता पर इस कदर हमलावर हैं कि मानो वे जनता से वर्षों पुरानी दुश्मनी का हिसाब कर रही हो। इस अभूतपूर्व रोगजन्य संकट के साथ देश की अधिकांश जनता आर्थिक मुसीबतें भी झेल रही हैं। लगभग आधी आबादी ने अपने रोजगार गंवा दिये और जिनके रोजगार बचे भी हैं तो उनकी आय आधी से भी कम रह गयी है। सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं बदतर हैं और निजी अस्पताल इसका नाजायज फायदा उठा रहे हैं। बड़े शहरों में कोविड-19 संक्रमित लोगों का इलाज खर्च प्राथमिक रूप से एक व्यक्ति के लिए 10-15 लाख रुपए तक पड़ जाता है। ऊपर से इलाज करा कर ठीक हुए लोगों में से अधिकांश को फेफड़े, हृदय की खराबी से जूझना पड़ रहा है।

कोरोना वायरस संक्रमण ने देश, समाज और लोगों को व्‍यवस्‍था की हकीकत से रुबरू करा दिया है। जनता इस संकट में अपने सरकार की नियत और कार्यप्रणाली दोनों से वाकिफ़ हो चुकी है। इस संक्रमण ने हमें आईना दिखा दिया है कि हमारी हैसियत क्या है और जनता को माई-बाप कहकर वोट लूटने वाले सियासी नेता और उनकी पार्टियां सच में कितनी पाखण्‍डी हैं।

इस संकट में हमने समाज की सामाजिक आर्थिक प्रणाली को भी ठीक से समझने की कोशिश की है। मानवीय सम्बन्ध और सामाजिकता जिस बुनियाद पर खड़ी है वह कब का दरक चुकी है और ज्यादातर लोग अमीर और गरीब तथा हिन्दू और मुसलमान में बंट चुके हैं। सत्ता और मीडिया ने मिलकर इस वायरस संक्रमण को फैलाने के लिए धर्म विशेष को आरोपित किया, कई जगह तो इसी नाम पर लिंचिंग हुई मगर मूल कारणों को जानते हुए हम बेआवाज बना दिये गये क्योंकि मीडिया में घुसे कुछ दलालों ने सच को छिपाने की सुपारी ले रखी थी। भारत में चूंकि सत्ता पर काबिज राजनीतिक दलों का एजेन्डा ही झूठ और फरेब के सहारे स्वार्थ को बढ़ावा देना है, इसलिए इस भीषण संकट में भी जनता ने देखा कि शहर जल रहा था और नीरो बंसी बजा रहा था।

ऐसे में मैं इतना ही कहूंगा कि झटपट निष्कर्ष देने वाले वाट्सएप ज्ञानियों तथा गैरजिम्मेदार वक्तव्य देने वाले कथित चिकित्सकों की सूचना पर गुमराह होने के बजाय प्रमाणिक चिकित्सा शोध संस्थाओं की सूचना पर नजर बनाये रखें। हर महामारी आम लोगों के लिए आपदा ही होती है लेकिन यह चिकित्सा वैज्ञानिकों के लिए एक जिम्मेवारी वाला अवसर है और राजनेताओं के लिए अपनी राजनीति चमकाने का मौका। सतर्क रहें तथा एहतियात का पालन करते रहें।


लेखक जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होमियोपैथिक चिकित्सक हैं


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