चुनावीबिहार-9: अफ़वाह पर टिकी उम्मीद और ज़मीन पर गायब चुनाव


बिहार चुनाव में अब तक दो अफवाहें काफी तेज़ फैली हैं, हालांकि इनका फैलाव टी.वी. स्टूडियो, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों से होते हुए मिडिल क्लास तक मात्र फैला है और पार्टीवालों के पास भी पहुंच चुका है। इसलिए, हरेक राज़दार बड़े फुसफुसाते हुए वही बात कहेगा जो आप पिछले दो-तीन दिनों से अलग-अलग लोगों और मंचों से सुन चुके हैं।

पहली अफवाह यह है कि भाजपा और नीतीश कुमार में कट्टिस हो चुकी है और दोनों एक-दूसरे के साथ भितरघात कर रहे हैं। दूसरी अफवाह ये है कि तेजस्वी 10 लाख नौकरियां दे रहे हैं, बेरोजगारी मुद्दा है और इसी बात पर तेजस्वी बंपर बहुमत से जीत कर आ रहे हैं।

ये दोनों ही अफवाह कैसे हैं, ये जानने से पहले यह जान लीजिए कि इस अफवाह का फैलाव ग्रामीण या कस्बाई इलाकों में नहीं हुआ है। एक तो यह जान लीजिए कि सोशल मीडिया और टीवी पर जितना चुनाव ‘नज़र’ आ रहा है, ज़मीन पर उसका 10 फीसदी अगर होगा तो होगा, वरना चुनाव को लेकर इतनी बेरुखी कभी नज़र नहीं आयी। एक बड़ा अंतर तो यह आया है कि इस चुनाव में अब तक किसी को अपने घर पर प्रत्याशी के दर्शन नहीं हुए, किसी को हुए, जबकि इससे पहले के चुनावों में दो-तीन पार्टियों के प्रत्याशी तो किसी के भी दरवाजे पर प्रकट होते ही थे। इस बार सारी कसर एक रोड शो के जरिये निकाली जा रही है। एनडीए के जिस उम्मीदवार के पास बड़ा नेता आ गया, उसे लग रहा है कि उसका दीवाली का बोनस मिल गया। पीएम की जहां सभा हो गयी है, वह तो खुशी के मारे उम्‍मीदवार बस रो नहीं पा रहा है।

भाजपा और नीतीश की कट्टिस को काउंटर करने के लिए पहले तो हरेक मंच से, हरेक बड़े नेता से कहलवाया गया। उसके बाद पीएम के साथ कई सभाओं में मंच साझा करने के बाद नीतीश अभी थोड़े दुरुस्त हुए हैं और प्रधानसेवक भी हरेक सभा में आदरणीय नीतीश जी का सप्रेम उल्लेख करना नहीं भूलते।

रविवार की सुबह 8.30 बजे पीएम की सभा छपरा में थी। यह किसी भी लिहाज से एक सभा के लिए बेहद जल्दी का समय है, हालांकि छपरा की सभा जो भले आधे घंटे देर से शुरू हुई वहां भी जनता भारी संख्या में पहुंच ही गयी थी। इसके साथ ही पीएम की अब तक कुल 10 सभाएं हो चुकी हैं और 3 नवंबर को दो जनसभाओं के साथ ही उनका प्रचार-अभियान खत्म हो जाएगा। भाजपा खेमे में आधे रास्ते चल कर ही थके होने का सा भाव आ गया है और सिवाय उस एक खेमे के, जो पूरे चुनाव को अपने हिसाब से चला रहा है, बाकी कहीं कोई उत्साह नहीं दिख रहा है, बल्कि जमीनी नेता और कार्यकर्ता तो अब तक अलग जगहों पर मुंह फुलाये ही चल रहे हैं।

जमीन पर जो अफवाह काफी मजबूत होकर फैल चुकी है, वह यह है कि लोजपा और भाजपा अंदरखाने एक ही हैं और यह सब नीतीश कुमार को सबक सिखाने के लिए किया गया इंतजाम है। लोजपा के प्रत्याशी खुले तौर पर अपने कुरते के बटन का इशारा करते हुए कह रहे हैं कि उनके दिलों में मोदीजी हैं, अगर चीर कर देखा जाए तो। लोजपा इस चक्कर में जेडी-यू का खासा नुकसान कर रही है और करेगी, भले ही वह कहीं खुद से जीते या न जीते।

एक और बात, जिस पर बुद्धिजीवियों को, चुनावी हिसाब-किताब लगाने वाले आंकड़ेबाजों को ध्यान देना चाहिए कि नीतीश कुमार का गांव की महिलाओं में अब भी क्रेज है और मोदीजी का गांव-देहात से लेकर कस्बों-शहरों तक में अब तक जादू चुका नहीं है, वह लहर अब भी बरकरार है। 28 अक्‍टूबर को मिथिलांचल और मगध के बाद रविवार को भोजपुर में ताबड़तोड़ सभाएं कर उन्होंने भाजपा का कुछ नुकसान तो कम किया है, लेकिन भाजपा में इस बार जिस तरह की अफरातफरी, समन्वय का अभाव और अराजकता दिख रही है, वह अभूतपूर्व है। इसी को महसूस कर, पीएम को अपनी दो और सभाएं करने के लिए मनाया जा रहा है, जिसका इस लेख के छपने तक कोई नतीजा नहीं निकला था।

दरअसल, भाजपा के पास शस्त्र है, अस्‍त्र है, असलहा-गोला-बारूद सब है, नहीं है तो एक चाणक्य और उसके निर्देशन में सारे पायों के साथ दुरुस्त सुसज्जित उसकी सेना। पैसा तो पानी की तरह बह रहा है, लेकिन सारे प्रयास एकाकी से लग रहे हैं और इसी वजह से वह विजिबल भी नहीं हो पा रहे हैं। इसी वक्त अमित शाह की अनुपस्थिति खलती है। वह होते तो शायद अब तक बागियों वाली मुसीबत हुई ही नहीं होती, और अगर होती तो दुरुस्त हो गयी होती। लोकसभा में उनका यह जलवा पटना के पत्रकार देख चुके हैं, जब एक रूठे को मनाने के लिए उन्होंने अपना जेट भेज दिया था।

इस बार बिहार चुनाव का जिन्हें प्रभारी बनाया गया, वह फडणवीस इतनी जल्दी भला बिहार को समझते कैसे और जो महामंत्री इस राज्य के प्रभारी हैं, उनके खिलाफ जमीनी स्तर पर नाराजगी ही है क्योंकि उन्हें बाहरी समझते हुए उनकी अनावश्यक दखल बहुत लोगों-कार्यकर्ताओं को रास नहीं आ रही है।

तेजस्वी के पास अफवाहों की रानी है। एक, वह जीत रहे हैं। दूसरे, वह 10 लाख नौकरियां देंगे, दे सकते हैं, वह इसके बारे में बिल्कुल गंभीर हैं। इसी अफवाह और इस पर भरोसा करने वाले बिहारी वोटर्स पर उनका दांव टिका है।



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