राज्यसभा चुनाव के ठीक पहले आज बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने अपने सात बागी विधायकों को पार्टी से बाहर करने के साथ ही घोषणा कर दी कि सपा को हराने के लिए बसपा पूरी ताकत लगा देगी. इसके लिए विधायकों को बीजेपी समेत किसी भी विरोधी पार्टी के उम्मीदवार को वोट क्यों न देना पड़ जाए.
याद हो कि पश्चिम बंगाल में पिछले विधानसभा चुनाव और 2019 लोकसभा चुनावों के दौरान तृणमूल कांग्रेस के कई नेता, पंचायत प्रतिनिधि सहित भारी संख्या में पार्टी कार्यकर्ताओं ने बीजेपी की शरण ले ली, वहीं वाम दलों के कार्यकर्ता और समर्थकों ने ममता बनर्जी को हराने की चाह में बीजेपी के पक्ष में मतदान किये.
यह कोई नई घटना नहीं है, किंतु वाम समर्थक वोटरों द्वारा बीजेपी जैसे एकदम उलट विचारधारा वाली पार्टी के पक्ष में मतदान करना हैरतअंगेज घटना जरूर थी. समझने की जरूरत है– यह खेल सारा सत्ता का है!
थोड़ा पीछे जाकर देखिए, नेशनल फ्रंट यानि राष्ट्रीय मोर्चा याद है? वर्ष 1989 में कांग्रेस को रोकने के लिए राष्ट्रीय मोर्चा बना था, भाजपा और सीपीएम भी साथ आए थे, वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने थे.
बिहार विधानसभा चुनाव में वाम दल कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के साथ महागठबंधन में शामिल होकर मैदान में हैं. आरजेडी के मोहम्मद शाहबुद्दीन पर माले नेता और जेएनयू के भूतपूर्व छात्र नेता चंद्रशेखर उर्फ़ चंदू की हत्या का आरोप है.
मायावती द्वारा आज की कार्रवाई और घोषणा कोई हैरानी वाली घटना नहीं है. मायावती का इतिहास इसका गवाह है. गुजरात नरसंहार के ठीक बाद उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनायी थी. यह तो तय था. बस औपचारिक घोषणा बाकी थी जो अब हो गयी.
हां, इसके बाद कुछ नेताओं के ट्वीट और प्रतिक्रिया देख कर आपको हंसी आ सकती है. जैसे उदित राज के ट्वीट देखें-
उन्हीं का एक और ट्वीट देखिए–
अब डॉ. उदित राज के बारे में क्या कहें, कुछ समझ नहीं आ रहा है इस वक्त क्योंकि वो तो बीजेपी की गंगा नहा कर वापस आ चुके हैं.
मायावती और बीजेपी का चोली-दामन का साथ बहुत पुराना है. बहनजी समय-समय पर बीजेपी और कांग्रेस से सत्ता सुख लेती रही हैं. आज जिस अखिलेश यादव के खिलाफ़ वे बोलीं, उन्हें भी भतीजा बनाकर वे सत्ता सुख भोगने की कोशिश कर चुकी हैं.
बीजेपी महबूबा मुफ़्ती को देशद्रोही मानती है, पर जब तत्कालीन अविभाजित जम्मू-कश्मीर में सत्ता सुख लेना था तो साथ मिलकर सरकार बना ली!
थोड़ा दिमाग पर जोर डालिए, अविभाजित आंध्र प्रदेश में तेलुगु फिल्मों के मेगा स्टार चिरंजीवी ने ‘प्रजा राज्यम’ नामक पार्टी बनायी थी? कहां है वो पार्टी आज?
मायावती की घोषणा के बाद आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने ट्वीट कर लिखा है- 2022 के विधानसभा चुनाव में बहन जी का चुनाव निशान होगा।
“हाथी के सूँड़ में कमल का फूल”
लगता है संजय सिंह मध्य प्रदेश में अपनी पार्टी की गतिविधियों की जानकारी नहीं रखते! पर ऐसा तो संभव नहीं लगता.
मध्य प्रदेश में आम आदमी पार्टी बीजेपी की राह पर चलते हुए बिना किसी वैचारिक भेदभाव के हर वर्ग और विचारधारा के लोगों का अपनी पार्टी में दिल खोलकर स्वागत करने में जुटी हुई है इन दिनों.
आम आदमी पार्टी में अब बिना किसी वैचारिक भेद के सभी मत/विचारधारा के लोगों को मध्य प्रदेश में पार्टी में स्वागत कर रही है.
चाहे वो अंतरराष्ट्रीय भगवा सेना से हों फिर कायस्थ महासभा और चाहें वो विश्व हिंदू विकास परिषद के सदस्य क्यों न हों, सबका खुले दिल से पार्टी में स्वागत और दाखिला शुरू है!
कांग्रेस व अन्य दलों के बड़े नेता ही दल बदल रहे हैं, सिर्फ बीजेपी में जा रहे हैं ऐसा नहीं है. मध्य प्रदेश में बीजेपी के जिला स्तर के छुटभैये नेता और कार्यकर्ता भी पार्टी छोड़ कर आम आदमी पार्टी में जा रहे हैं. बीजेपी के अलावे कांग्रेस और जेडीयू जैसे दलों के नगर और जिला स्तर के कार्यकर्ता भी आम आदमी पार्टी की सदस्यता ले रहे हैं.
बीजेपी के सैनिक प्रकोष्ठ के प्रदेश सह-संयोजक नितेश पाण्डेय, नगर सह-संयोजक सी.के. सिंह व जिला कार्यालय मंत्री अरविंद राठौर जी समेत कई भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी आम आदमी पार्टी की सदस्यता ग्रहण की है.
उद्देश्य सिर्फ एक सत्ता का लाभ और पहचान. बड़े नेता दिल्ली स्तर पर पार्टी बदलते हैं, उनसे छोटे नेता राज्य स्तर पर और सबसे निचले स्तर के जिला स्तर पर दल बदल करते हैं. मीडिया का सारा ध्यान केवल राष्ट्रीय स्तर पर रहता है. उधर जमीन पर बदलाव पर ध्यान ही नहीं जाता किसी का.
इसलिए यहां बुनियादी तौर पर बीजेपी, बसपा, कांग्रेस, तृणमूल, सीपीएम और आम आदमी पार्टी में कोई अंतर नहीं है. कुल मिलाकर सारी लड़ाई कुर्सी की है.
मध्य प्रदेश में अरविन्द केजरीवाल की पार्टी जिस तरह से तमाम कट्टर हिंदूवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं को अपनी पार्टी में स्वागत कर रही हैं उससे प्रशांत भूषण का पिछले दिनों लगाया आरोप सही जान पड़ता है कि आम आदमी पार्टी की पैदाइश यानी अन्ना आंदोलन ही आरएसएस से समर्थित था। वैसे, उनके बयान के बाद तो इसके ढेरों साक्ष्य सोशल मीडिया में तैर रहे हैं।
कभी एआईएडीएमके प्रमुख और तमिलनाडु की भूतपूर्व मुख्यमंत्री ने कहा था- “राजनीति में कोई भी अछूत नहीं होता.” मने उनके कथन का आशय था कि सत्ता पाने के लिए किसी का भी दामन वक्त और जरूरत के हिसाब से थामा और छोड़ा जा सकता है. उनका यह कथन शत प्रतिशत सही था.
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कवि हैं। शीर्षक सुलेमान अरीब का एक शेर है।